कहानी : असली अमीरी दिल से होती है

मुंबई के सबसे पॉश इलाके कफ परेड में सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का शानदार हेडक्वार्टर था। इस सल्तनत का बादशाह था 30 साल का युवा उद्योगपति आदित्य सिंघानिया, जिसकी गिनती देश के सबसे सफल और कम उम्र के अमीरों में होती थी। उसके लिए जिंदगी सिर्फ पैसे, समय और सफलता का गणित थी। भावनाओं और इमोशन्स के लिए उसकी दुनिया में कोई जगह नहीं थी।

हर रोज़ ऑफिस जाते हुए आदित्य की कार एक ट्रैफिक सिग्नल पर रुकती थी, जहाँ कई भिखारी भीख माँगते थे। आदित्य हमेशा उन्हें नजरअंदाज कर देता था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसकी नजरें अनचाहे ही एक अधेड़ उम्र के भिखारी पर टिक जाती थीं। उस भिखारी के चेहरे पर ना कोई लालच था, ना बेबसी। वह चुपचाप पेड़ के नीचे खड़ा रहता, किसी के पीछे नहीं भागता। अगर कोई अपनी मर्जी से कुछ दे देता, तो सिर झुका कर ले लेता।

एक दिन आदित्य ने देखा कि एक महिला ने उस भिखारी को 100 रुपये का नोट दिया। उसने सोचा, आज तो इसकी चांदी हो गई होगी, शाम को शराब पिएगा। लेकिन भिखारी ने सारे पैसे एक बेकरी की दुकान में देकर ब्रेड और बिस्किट के पैकेट खरीदे और कहीं चला गया। अगले दिन भी यही हुआ। आदित्य की जिज्ञासा बढ़ने लगी।

भिखारी भीख की कमाई से गरीब बच्चों को खिलाता था खाना, जब एक करोड़पति ने उसका  पीछा किया और असलियत - YouTube

एक शाम आदित्य ने फैसला किया कि वह भिखारी का पीछा करेगा। वह उसके पीछे-पीछे एक गंदी, तंग गली में गया। वहां एक टूटी-फूटी इमारत में भिखारी घुस गया। अंदर करीब 25-30 गरीब बच्चे थे, जो उसे “शंकर काका” कहकर घेर लेते थे। शंकर काका बच्चों को ब्रेड और बिस्किट बाँटते, उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरते। आदित्य यह सब देख कर भावुक हो गया। उसे समझ आया कि जिसके पास कुछ नहीं, वह भी दूसरों के लिए कितना कुछ कर सकता है।

आदित्य ने शंकर से पूछा, “तुम यह सब क्यों करते हो?”
शंकर ने जवाब दिया, “इन बच्चों को जरूरत है और मुझे सुकून मिलता है।”
आदित्य ने चेकबुक निकालकर पूछा, “कितने पैसे चाहिए?”
शंकर मुस्कुरा कर बोला, “साहब, इन बच्चों को पैसे नहीं, प्यार चाहिए। अगर सच में कुछ करना चाहते हैं तो अपने हाथों से इन्हें खाना खिलाइए।”

आदित्य ने अगले दिन बच्चों के लिए खुद खाना लाकर अपने हाथों से उन्हें खिलाया। उसकी जिंदगी बदल गई। अब वह रोज़ बच्चों के साथ समय बिताने लगा। उसने उनके लिए कपड़े, खिलौने और किताबों का इंतजाम किया। लेकिन उसके मन में सवाल था — शंकर कौन है?

आदित्य ने अपने दोस्त सेन की मदद से शंकर का अतीत पता करना शुरू किया। कई हफ्तों की मेहनत के बाद पता चला कि शंकर चौधरी कभी दिल्ली के बड़े उद्योगपति थे। 15 साल पहले एक हादसे में उनकी पत्नी और बेटे की मौत हो गई थी, और शंकर की याददाश्त चली गई थी। उनका बिजनेस प्रतिद्वंदी सचिन ओबेरॉय ने साजिश करके सब कुछ छीन लिया था।

आदित्य ने शंकर की याददाश्त वापस लाने के लिए डॉक्टरों की मदद ली। उसे पुराने घर, ऑफिस और पसंदीदा जगहों पर ले गया। धीरे-धीरे शंकर को अपनी जिंदगी के टुकड़े याद आने लगे। सेन ने उस ट्रक ड्राइवर को ढूँढ निकाला जिसने शंकर की गाड़ी को टक्कर मारी थी। ड्राइवर ने कबूल किया कि सचिन ओबेरॉय ने उसे पैसे दिए थे।

आदित्य ने एक बड़े बिजनेस अवार्ड फंक्शन में सचिन का सच सबके सामने लाकर रख दिया। शंकर को सब याद आ गया और सचिन ओबेरॉय को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। शंकर को उसकी कंपनी और दौलत वापस मिल गई, लेकिन अब वह बदल चुका था। उसने अपनी सारी दौलत बेच दी और मुंबई में बच्चों के लिए “माया राहुल सदन” नाम से अनाथ आश्रम और स्कूल बना दिया।

अब शंकर काका सैकड़ों बच्चों का पिता बन चुका था। आदित्य भी बदल गया था, उसने अपनी जिंदगी बच्चों की सेवा में समर्पित कर दी। दोनों ने सिखाया कि असली अमीरी पैसों में नहीं, दिल में होती है। बदला लेने से ज्यादा सुख दूसरों की सेवा और माफ करने में है।

**दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि किस्मत कभी भी किसी की जिंदगी बदल सकती है। लेकिन इंसानियत, प्यार और सेवा ही असली दौलत है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो जरूर शेयर करें और बताएं कि आपको सबसे भावुक पल कौन सा लगा।**

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