मनुष्य के कर्म कब लौटकर आते हैं। घमंडी राजा चंद्रसेन की कहानी।
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अहंकारी राजा चंद्रसेन और राजकुमारी देवी की चतुराई
बहुत समय पहले की बात है, मेहरगढ़ नामक एक राज्य में राजा चंद्रसेन का शासन था। राजा चंद्रसेन स्वभाव से अत्यंत अहंकारी और निर्दयी थे। वे अपनी प्रजा की भलाई की चिंता नहीं करते थे, उनका एकमात्र उद्देश्य था अपना खजाना भरना। उनके घमंड के कारण अभी तक उनका विवाह नहीं हो पाया था। कोई भी राजा अपनी बेटी को ऐसे अहंकारी व्यक्ति से जोड़ने को तैयार नहीं था। आसपास के कई राजा उन्हें अपने किसी भी आयोजन में आमंत्रित नहीं करते थे। स्वयंवर में तो उन्हें बुलाया ही नहीं जाता था।
राजा चंद्रसेन के एक मंत्री थे, हर्षवर्धन। वह अपने राजा के प्रति बहुत वफादार थे, पर उनकी पत्नी भाग्यवान एक दयालु और समझदार महिला थीं। वह अक्सर अपने पति को समझाती कि वे राजा को समझाएं कि वह प्रजा के साथ अन्याय न करें, क्योंकि इससे प्रजा का दिल दुखता है और राज्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है। मंत्री हर्षवर्धन कहते, “भाग्यवान, मेरी हैसियत राजा के सामने एक नौकर से ज्यादा नहीं है। अगर मैंने सच कहा तो वह मुझे पद से हटा देगा। इसलिए राजा की हां में हां मिलाना ही समझदारी है।” भाग्यवान ने कहा, “तो कुछ ऐसा उपाय करो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।”
राजा चंद्रसेन अपनी प्रजा से दुगना लगान वसूलते थे। जो भी यह देने से मना करता, उसका घर से सारा धन उठा लेते। मंत्री को भी राजा के आदेशों का पालन करना पड़ता, लेकिन धीरे-धीरे वह भी राजा जैसा ही कठोर हो गया। एक साल भयंकर बारिश हुई, फसलें बर्बाद हो गईं। प्रजा के पास लगान देने के लिए कुछ नहीं बचा था। मंत्री जब लगान वसूलने गया, तो लोगों ने रोते हुए कहा कि उनके पास कुछ भी नहीं है।
मंत्री ने राजा से कहा कि इस साल फसल खराब हो गई है, लोगों को मदद करनी चाहिए। राजा ने क्रोधित होकर कहा, “मैं एक राजा हूं, मैं प्रजा की सहायता कैसे कर सकता हूं? हर हाल में कर देना होगा।” मंत्री को धमकी दी गई कि यदि वह दयावान बनने की कोशिश करेगा तो उसे पद से हटा दिया जाएगा। मंत्री ने मजबूरी में ऐलान किया कि चाहे कुछ भी हो, कर जरूर देना होगा, नहीं तो जमीनें जब्त कर ली जाएंगी।

मंत्री अपनी पत्नी के पास गया और सारी बात बताई। वह चिंतित था कि राजा प्रजा की खाल तक खींचना चाहता है। भाग्यवान ने कहा, “राजा की कोई रानी नहीं है। यदि उसका घर बस जाए तो वह सुधर सकता है। तुम उसकी शादी करवा दो।” मंत्री ने कहा, “लेकिन कोई राजकुमारी हमें नहीं देगा। हमारे राजा को स्वयंवर में भी बुलाया नहीं जाता।” भाग्यवान ने कहा, “तुम अपनी प्रजा में से किसी लड़की को राजकुमारी बनाकर राजा के सामने पेश करो। वह तुम्हारे पक्ष में काम करेगी।”
मंत्री ने इस योजना को स्वीकार किया। उसने प्रजा से राजकुमारी जैसी दिखने वाली लड़की खोजने को कहा। तीन दिन में कई लड़कियां तैयार हो गईं। मंत्री ने उनमें से एक लड़की चुनी जिसका नाम रत्ना था। मंत्री की पत्नी ने उसे राजकुमारी की तरह तैयार किया। उसे राजकुमारियों के वस्त्र, हाव-भाव, बात करने का तरीका सिखाया गया। उसका नाम बदलकर राजकुमारी देवी रख दिया गया।
मंत्री राजकुमारी को लेकर राजा के दरबार में गया। राजा ने पहली बार इतनी सुंदर राजकुमारी देखी। मंत्री ने कहा कि वह जंगल में मिली थी, अकेली और परेशान। राजकुमारी ने कहा कि वह सात समंदर पार के राज्य की राजकुमारी देविका है। उसके पिता के पास तेज गति से चलने वाले जहाज हैं। वह जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वह बहकर यहां पहुंची। राजा से कहा कि या तो वह उसे उसके पिता के पास पहुंचाए या उससे विवाह कर ले। राजा ने मंत्री से कहा कि इस राजकुमारी से विवाह करना चाहिए क्योंकि महल में रानी नहीं है।
राजा ने तुरंत पंडित को बुलाकर विवाह संपन्न किया। विवाह के बाद राजकुमारी ने राजा से कहा कि वह चाहती है कि अगले पांच वर्षों तक प्रजा से कोई कर वसूला न जाए। राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “प्रजा आलसी हो जाएगी।” राजकुमारी ने कहा कि उनकी बहनों के विवाहों में भी यह निर्णय लिया गया था। राजा ने वचन दिया कि अगले पांच वर्षों तक कर माफ रहेगा।
मंत्री ने नगर में ऐलान करवा दिया कि अगले पांच वर्षों तक कोई कर नहीं वसूला जाएगा। राजा खुश था। लेकिन अब चिंता यह थी कि राज दरबार को चलाने के लिए धन कहां से आएगा। मंत्री ने सुझाव दिया कि जंगलों में लकड़ी और फल बेचे जाएं। राजा को यह पसंद नहीं आया। उसने मन ही मन सोचा कि पड़ोसी राज्य बसंतगढ़ पर आक्रमण करना चाहिए और खजाना लूटना चाहिए।
कुछ समय बाद राजा विजय सिंह के राज्य बसंतगढ़ पर राजा चंद्रसेन ने आक्रमण कर दिया। विजय सिंह का महल तबाह हो गया और खजाना लूट लिया गया। मंत्री जानता था कि विजय सिंह बदला लेने की फिराक में रहेगा। वह इस बात से चुप रहा।
समय बीतता गया, महारानी गर्भवती हुई। लेकिन जब संतान जन्मी तो वह विचित्र थी—चेहरा सामान्य था, लेकिन शरीर पत्थर का था। राजा ने यह देखकर चिंता जताई, लेकिन महारानी ने कहा कि यह प्रभु की इच्छा है। राजा ने सोचा कि इस बच्ची को महल में रखना उचित नहीं होगा।
राजा जंगल में शिकार पर गया। वहां उसे एक सुंदर युवती मिली, जो खुद को राजकुमारी बताती थी। उसने कहा कि राजा की पहली पत्नी एक गरीब किसान की बेटी है। यदि यह सच निकला तो राजा उसे फांसी पर चढ़ा देगा। राजा ने युवती को किसान के घर लेकर गया। वहां उसे पता चला कि युवती सच कह रही है। मंत्री ने उसे धोखा दिया था।
राजा गुस्से में युवती को अपनी रानी बना लेता है। लेकिन महल पहुंचते ही वह मंत्री और पहली रानी को कारागार में डाल देता है और विचित्र बच्ची को जंगल में फेंक देता है। जंगल में लकड़हारा और उसकी पत्नी उस बच्ची को पाती हैं, जो उनके स्पर्श से सुंदर कन्या बन जाती है। वे उसे अपने घर ले जाते हैं।
महल में नई रानी राजा का खजाना लेकर बसंतगढ़ चली जाती है। राजा को पता चलता है कि उसने अपना खजाना खो दिया है। वह पछताता है और राजगुरु से सलाह लेता है। राजगुरु कहता है कि राजा के पापों का फल है यह। उसे मंत्री और रानी को कारागार से मुक्त कराना चाहिए और विचित्र बच्ची को वापस लाना चाहिए।
राजा लकड़हारे के घर जाता है, बच्ची को देख कर रोता है। वह उसे वापस महल ले आता है। मंत्री और रानी से क्षमा मांगता है। इसके बाद राजा न्याय और प्रेम से शासन करने लगता है। प्रजा खुशहाल रहती है और राज्य में शांति आती है।
समाप्त
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