मैनेजर ने ऐसा क्या किया कि 70 साल के बुजुर्ग ने एक कॉल में Showroom बंद करवा दिया
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सम्मान की कीमत
भूमिका:
यह कहानी है विनय कुमार की, एक 70 वर्षीय बुजुर्ग की जो अपनी आत्म-सम्मान के लिए खड़े होते हैं। इस कहानी में हमें दिखाया गया है कि कैसे एक साधारण दिखने वाला व्यक्ति अपने आत्मविश्वास और अनुभव से एक बड़े शोरूम के मैनेजर को सबक सिखाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि असली ताकत कपड़ों या पद में नहीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र और उसके दृष्टिकोण में होती है।
भाग 1: विनय कुमार का आगमन
सुबह के ठीक 11:00 बज रहे थे। एक पतला दुबला बुजुर्ग सिंपल पट शर्ट पहने शहर के सबसे बड़े कार शोरूम की तरफ तेजी से बढ़ रहा था। नाम था विनय कुमार। उनके कंधे पर एक पुराने जमाने का झोला लटका था। कपड़े सिंपल थे लेकिन चाल में कॉन्फिडेंस ऐसा जैसे कोई करोड़पति चल रहा हो। जैसे ही वह गेट पर पहुंचे, गार्ड कुर्सी से उठ गया। उसकी भें तन गई।
वह गुस्से से बोला, “अरे, अंदर कहां घुसे जा रहे हो बाबा? यह कार का शोरूम है। राशन की दुकान नहीं। क्या काम है आपको इस शोरूम में?” बुजुर्ग विनय कुमार जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे अंदर वही काम है बेटा जो एक कार खरीदने वाले को होता है। मुझे एक कार का रेट और कुछ डिटेल्स पता करनी है।”
गार्ड अपनी हंसी रोक नहीं पाया और जोर-जोर से हंसने लगा। “जरा देखो भाई, बाबा को गाड़ी खरीदनी है।” गार्ड बड़ी मुश्किल से हंसी रोकते हुए बोला, “अरे बाबा, क्यों सुबह-सुबह अपना और मेरा टाइम खराब कर रहे हो? शोरूम के रिसेप्शन पर बैठी सोनाली सिंह यह सारी बातें सुन रही थी। सोनाली ने विनय कुमार जी को ऊपर से नीचे तक देखा। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान तैर रही थी। यह मुस्कान किसी कस्टमर के स्वागत के लिए नहीं बल्कि विनय कुमार जी का पहनावा देखकर आ रही हंसी छुपाने के लिए थी।
भाग 2: रिसेप्शनिस्ट का व्यवहार
वो रिसेप्शनिस्ट मुंह बनाते हुए बोली, “बाबा, यह इंपोर्टेड कार का शोरूम है। आप शायद गलत जगह आ गए हैं।” विनय कुमार जी ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, “बेटा, मैं जानता हूं यह कोई छोटा-मोटा शोरूम नहीं है। यहां एक गाड़ी की कीमत किसी मिडिल क्लास आदमी के घर से भी ज्यादा होती है। एंड आई एम क्वाइट श्योर कि मुझे इसी शोरूम में जाना है।”
उनका कॉन्फिडेंस देखकर गार्ड और रिसेप्शनिस्ट ने एक पल के लिए एक दूसरे की ओर देखा। आंखों आंखों में कुछ इशारा हुआ। और वो रिसेप्शनिस्ट बड़ा अजीब सा मुंह बनाते हुए बोली, “ठीक है, आप अंदर वेट करिए। और हां, किसी गाड़ी को टच मत करना बाबा। नहीं तो प्रॉब्लम हो जाएगी। हर तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। कुछ ऐसा वैसा हुआ तो मुझे भी जवाब देना पड़ता है। आप समझ रहे हैं ना बाबा?” इतना कहकर वो रिसेप्शनिस्ट वापस चली गई।
भाग 3: शोरूम का माहौल
बुजुर्ग विनय कुमार की मन ही मन सोच रहे थे। जब गार्ड और रिसेप्शनिस्ट का यह हाल है तो अंदर सेल्समैन और मैनेजर का क्या हाल होगा? अंदर मौजूद कुछ कस्टमर्स विजय कुमार जी को ऐसे घूर रहे थे जैसे उन्होंने किसी मिडिल क्लास आदमी को नहीं, किसी एलियन को देख लिया हो।
“एसी की हवा खाने आया होगा बेचारा। इस देश में मिडिल क्लास आदमी की यही प्रॉब्लम है। इन्हें हर चीज फ्री में चाहिए,” एक कस्टमर ने धीरे से बगल में खड़े दूसरे कस्टमर से कहा। और इतना कहते ही सब हंसने लगे। विनय कुमार जी सब सुन रहे थे। लेकिन वह आंखें झुकाए, अपने मुंह और कान बंद किए एक कोने की कुर्सी पर जाकर बैठ गए।
उन्होंने अपना चश्मा साइड में रखा। झूले से पानी की बोतल निकाली और पानी पीने लगे। वो महसूस कर रहे थे कि वहां मौजूद सारे कस्टमर्स उनकी ही बातें कर रहे हैं। लेकिन वह शांति से बैठे सेल्समैन के फ्री होने का वेट करने लगे। रिसेप्शन पर बैठी सोनाली बुजुर्ग बाबा को देखकर अनकंफर्टेबल हो रही थी।
भाग 4: समय का इंतजार
उसे प्रीमियम कस्टमर्स के बीच बैठे वह बाबा थोड़ा खटक रहे थे क्योंकि इससे शोरूम की इमेज खराब हो रही थी। उसे डर था कि बाबा को वहां बैठा देख मैनेजर उसकी क्लास ना लगा दे। लेकिन उस बुजुर्ग बाबा का कॉन्फिडेंस देखकर वो थोड़ा कंफ्यूज भी थी। वो बुजुर्ग बाबा कभी घड़ी की ओर, कभी मैनेजर के कैबिन की ओर देखते।
वो धैर्यपूर्वक हर सेल्समैन को एक कस्टमर से दूसरे और दूसरे से तीसरे कस्टमर की ओर जाते देख रहे थे। वो किसी सेल्समैन या मैनेजर के आने का सिर्फ वेट भर ही नहीं कर रहे थे बल्कि वह बहुत बारीकी से कौन क्या कर रहा है यह ऑब्जर्व भी कर रहे थे। उनकी आंखें शोरूम के कोने-कोने को खंगाल रही थी।
उन बुजुर्ग को वेट करते 2 घंटे से ज्यादा हो चुके थे। अचानक वो कुर्सी से उठे और छोटे-छोटे कदमों से मैनेजर के रूम की ओर बढ़ने लगे। सोनाली ने जैसे ही बुजुर्ग को मैनेजर के रूम की ओर बढ़ते देखा, वो तेजी से बाबा के पास पहुंची और बहुत रुडली बोली, “बाबा, मैनेजर सर अभी व्यस्त हैं, आप उनसे अभी नहीं मिल सकते।”
भाग 5: विनय कुमार की दृढ़ता
वो बुजुर्ग धीरे से बोले, “बेटा, मैं पिछले दो घंटे से वेट कर रहा हूं पर अभी तक ना तो कोई सेल्समैन फ्री हुआ ना मैनेजर। अगर मैनेजर के पास टाइम नहीं तो मैं खुद मैनेजर से मिलकर बात कर लेता हूं।” सोनाली मन ही मन सोच रही थी कि क्या मुसीबत गले पड़ी है।
उसने इधर-उधर फ्री सेल्समैन ढूंढने की एक्टिंग की और बोली, “ठीक है बाबा, आप बस थोड़ी देर और बैठिए। जैसे ही कोई सेल्समैन फ्री होता है, मैं तुरंत आपके पास भेजती हूं।” रिसेप्शनिस्ट के कहने पर विनय कुमार जी ना चाहते हुए भी फिर से बैठ गए। कस्टमर्स उन्हें देखकर बातें बना रहे थे।
लेकिन वो किसी की परवाह किए बिना अभी भी बड़े सब्र से किसी सेल्समैन या मैनेजर के फ्री होने का इंतजार करने लगे। उनके पास समय कम था। लेकिन उनके चेहरे पर जल्दबाजी नाम की कोई चीज नहीं थी। सोनाली से उनकी बात हुए लगभग आधा घंटा बीत चुका था।
भाग 6: मैनेजर का अभिमान
वो सब नोटिस कर रहे थे कि कैसे सेल्समैन और मैनेजर सब उन्हें जानबूझकर इग्नोर कर रहे थे। लेकिन वो अनजान बन पूरा तमाशा देख रहे थे। सोनाली को डर था कि वह बाबा कहीं मैनेजर से मिलने उनके केबिन में ना पहुंच जाए क्योंकि वह मैनेजर प्रीमियम कस्टमर से डील करने का बहाना बनाकर अपने पर्सनल काम निपटा रहा था।
उसने कुछ सेकंड्स सोचा और मैनेजर को कॉल लगा दिया। मैनेजर आराम से बैठा मोबाइल पर रील्स देखने में व्यस्त था। सोनाली ने मैनेजर से कहा, “सर, वो बाबा अभी भी बैठे हुए हैं। वो हमारे प्रीमियम कस्टमर्स को डिस्टर्ब कर रहे हैं। मुझे तो लगता है उनसे 5 मिनट बात करके निपटा देने में ही भलाई है। वो जल्दी नहीं गए तो कस्टमर्स बुरा मान सकते हैं।”
भाग 7: मैनेजर की अनदेखी
मैनेजर को भी सोनाली का यह सुझाव सही लगा। मैनेजर ने उस बुजुर्ग को अपने केबिन में बुलवा लिया। मैनेजर आराम से पैर फैलाए मोबाइल में रील्स स्क्रोल कर रहा था। उसके चेहरे पर मैनेजर होने का घमंड साफ दिख रहा था। उसने बुजुर्ग को एक नजर ऊपर से नीचे तक देखा और अपनी घूमने वाली चेयर से खड़ा होकर घड़ी देखते हुए बोला, “मेरे पास सिर्फ 5 मिनट है बाबा। जल्दी बताइए क्या काम है आपको? मुझे भी एक अर्जेंट मीटिंग अटेंड करनी है।”
वो बुजुर्ग घमंड में चूर उस मैनेजर की नौटंकी देख रहे थे। वो सीधे शब्दों में बोले, “बेटा, मैं तुम्हारा ज्यादा समय नहीं लूंगा। मुझे बस बाहर खड़ी ब्लैक एसयूवी की कीमत और कुछ डिटेल्स पता करनी है।”
भाग 8: विनय कुमार का उद्देश्य
मैनेजर विनय कुमार जी को गुस्से से देखने लगा। वो चिढ़कर बोला, “क्या कहा आपने? आपको उस बाहर खड़ी ब्लैक एसयूवी का रेट पता करना है?” “हां बेटा, वही,” उस बुजुर्ग ने धीरे लेकिन कॉन्फिडेंस के साथ कहा। “आपने सिर्फ इसका रेट जानने के लिए मेरा इतना टाइम वेस्ट किया?”
वो मैनेजर गुस्से से बोला। “बुजुर्ग विनय कुमार जी कुछ सेकंड शांत रहे और बोले, नहीं बेटा दरअसल मेरी बेटी यूएसए से अपनी पढ़ाई खत्म कर इंडिया वापस आ रही है और 10 दिन बाद उसका बर्थडे भी है। मैं यह एसयूवी अपनी बेटी को उसके बर्थडे पर सरप्राइज गिफ्ट करना चाहता था। मुझे सिर्फ इतना कंफर्म करना था कि क्या यह एसयूवी मुझे 10 दिनों के अंदर डिलीवर हो सकती है।”
भाग 9: मैनेजर की हंसी
इससे पहले कि वो बुजुर्ग कुछ और कहते, पूरा शोरूम मैनेजर की हंसी से गूंज उठा। मैनेजर ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी और बोला, “अरे बाबा, मैंने माना कि आपको लग्जरी गाड़ियों के रेट जानने का शौक है। लेकिन आपको यह गाड़ी खरीदनी है। यह कुछ ज्यादा ही नहीं फेंक दिया आपने। आपको पता भी है यह गाड़ी कितने की है? कहीं आप झोले में पैसे भर कर तो नहीं लाए ना?” पूरा स्टाफ उस बुजुर्ग पर हंस रहा था।
लेकिन वो बुजुर्ग अभी भी शांत थे। वो कॉन्फिडेंस के साथ हंसते हुए बोले, “तुमने बिल्कुल सही सुना बेटा। मुझे वही एसयूवी खरीदनी है। और हां, अगर तुम चाहो तो मैं एडवांस पेमेंट भी कर सकता हूं। बट मेरी शर्त सिर्फ इतनी है कि मुझे यह गाड़ी 10 दिनों से पहले मिल जानी चाहिए।”

भाग 10: विनय कुमार की शक्ति
मैनेजर को उस बुजुर्ग की बातें सुनकर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने उस बुजुर्ग की बातें सुन, अपना सर पकड़ लिया। उसे लग रहा था यह कोई सिर फिरा बुजुर्ग है जो सिर्फ टाइम पास कर रहा है। वो मैनेजर बुजुर्ग से चिढ़कर बोला, “बाबा, अगर आपका टाइम पास हो गया हो तो आप कहानियां बनाना बंद कीजिए और तुरंत यहां से बाहर निकल जाइए। वरना मुझे मजबूरी में गार्ड को बुलाना पड़ेगा।”
इससे पहले कि वो बुजुर्ग कुछ और कहते, मैनेजर ने कैबिन का दरवाजा बंद किया और एक बार फिर पैर फैलाकर मोबाइल में बिजी हो गया। दरवाजे के पीछे वो मैनेजर अभी भी ऊंची आवाज में गुस्से से बोल रहा था, “औकात साइकिल की नहीं और गाड़ी खरीदनी है। पता नहीं कहां-कहां से चले आते हैं।”
भाग 11: विनय कुमार की चुप्पी
इतनी इंसल्ट के बाद भी विनय कुमार जी के चेहरे पर रत्ती भर भी शिकन नहीं थी। वो मैनेजर के कैबिन के बाहर चुपचाप खड़े कुछ सोच रहे थे। अचानक 27-28 साल की एक यंग सेल्स गर्ल काव्या, जो उस बुजुर्ग को बहुत देर से देख रही थी, उनके पास आई। वो पूरी रिस्पेक्ट से बोली, “आप परेशान ना हो सर, मैं आपकी हेल्प करूंगी। बताइए मैं आपकी क्या हेल्प कर सकती हूं?”
वो बुजुर्ग मुस्कुराते हुए बोले, “बेटा, मुझे वो ब्लैक एसयूवी खरीदनी है। मुझे सिर्फ इतना कंफर्म करना है कि उस एसयूवी की डिलीवरी 10 दिनों के अंदर हो सकती है या नहीं।” यह सुन खुद काव्या भी थोड़ा चौंक गई। वो एसयूवी इतनी महंगी थी कि साल में ऐसी सिर्फ एक या दो एसयूवी ही बिकती थी।
भाग 12: काव्या का समर्पण
काव्या ने सिस्टम में चेक किया और बोली, “सर, इस एसयूवी की कीमत 1 करोड़ 25 लाख है और हां सर, यह गाड़ी आपके दिए गए एड्रेस पर एक हफ्ते के अंदर डिलीवर हो सकती है।” वो लड़की काव्या जिस तरह उस बुजुर्ग के कपड़ों और लुक्स पर ध्यान ना देकर पूरी ऑनेस्टी और डेडिकेशन से अपना काम कर रही थी, उसे देख बुजुर्ग विनय कुमार जी काफी इंप्रेस्ड थे।
विनय कुमार जी ने अपने झोले से एक चेक बुक निकाली। चेक पर रकम भर अपने साइन किए और चेक काव्या को दे दिया। काव्या चेक मैनेजर को देने उसके कैबिन में जाने ही वाली थी कि उसने देखा कि वह मैनेजर उसके ठीक पीछे खड़ा गुस्से से उसे घूर रहा था।
भाग 13: मैनेजर का प्रतिशोध
घमंड में चूर वो मैनेजर यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि जिस बुजुर्ग को उसने बाहर जाने के लिए बोला था, वो बिना उसकी परमिशन के अभी तक अंदर कैसे बैठा था। उसने काव्या के हाथ से वो चेक लिया और फाड़कर डस्टबिन में फेंक दिया। वो काव्या को गुस्से से बोला, “काव्या, तुम कुछ ज्यादा ही स्मार्ट बनने की कोशिश कर रही हो। अगर तुम्हें समाज सेवा का इतना ही शौक है तो कोई एनजीओ ज्वाइन कर लो। तुम्हें यहां प्रीमियम कस्टमर्स की हेल्प के लिए रखा गया है ना कि टाइम पास करने आए किसी मिडिल क्लास गरीब की हेल्प के लिए।”
भाग 14: काव्या की ईमानदारी
तुम्हें अभी तक यह देखना भी नहीं आया कि कौन मिडिल क्लास कस्टमर है और कौन प्रीमियम। और जब मैंने बाबा को बाहर जाने के लिए बोल ही दिया था, तो तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इनसे बात करने की?” काव्या ने सिर्फ अपना फर्ज निभाया था। वह तो सिर्फ एक कस्टमर की हेल्प कर रही थी। लेकिन फिर भी मैनेजर का ऐसा रिएक्शन देखकर वो शॉक्ड थी।
वो सॉफ्ट टोन में लेकिन पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बोली, “बट सर, मैंने तो वही किया जो एक सेल्स गर्ल को करना चाहिए। कौन हमारा प्रीमियम कस्टमर है और कौन नहीं, यह हम कपड़े देखकर कैसे डिसाइड कर सकते हैं? सर, आपको मेरा बाबा की हेल्प करना बुरा लगा तो आई एम सॉरी, बट मैंने वही किया जो मुझे ट्रेनिंग में सिखाया गया है।”
भाग 15: मैनेजर का अपमान
काव्या के सबके सामने इस तरह जवाब देने से मैनेजर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वो अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। एक सेल्स गर्ल होकर वह मैनेजर को इस तरह ज्ञान दे रही थी। यह बात मैनेजर की ईगो पर आ गई थी। आज तक किसी जूनियर ने उसे ऐसे बोलने की हिम्मत नहीं की थी।
मैनेजर अब गुस्से से पागल हो चुका था। वो काव्या पर चिल्लाते हुए बोला, “काव्या, मैं तुम्हारे इस अनप्रोफेशनल तरीके के अगेंस्ट एचआर हेड को मेल कर रहा हूं। अब तुम समझना और एचआर हेड बाकी, मैं तुमसे बाद में बात करता हूं। तुम ऐसे नहीं सुधरोगी।”
भाग 16: काव्या का दुख
मैनेजर की बात सुन काव्या को जोरदार शॉक लगा था। वो दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाए सर नीचे कर बैठ गई। उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। वो मैनेजर उस बुजुर्ग की ओर मुड़ा और एक बार फिर तेज आवाज में बोला, “बाबा, मैंने आपसे शोरूम से बाहर जाने के लिए बोला था ना, लेकिन आप अभी भी टाइम पास करने में लगे हैं और आप यह फर्जी चेक दिखाकर किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं? मैं आप जैसे फ्रॉड लोगों को शक्ल से ही पहचान लेता हूं। चलिए निकलिए यहां से अभी तुरंत।”
वो चिल्लाया, “गार्ड, इन बाबा को बाहर निकालो। जल्दी, अगर यह 5 मिनट के अंदर यहां से बाहर नहीं निकले तो तुम यहां से बाहर निकाल दिए जाओगे।” बुजुर्ग विनय कुमार जी मैनेजर से बोले, “गार्ड की जरूरत नहीं है बेटा, बस 5 मिनट रुक जाओ, मैं पानी पी लूं।”
भाग 17: विनय कुमार की योजना
बस मैनेजर गुस्से में गार्ड से बोला, “गार्ड, अगर यह 5 मिनट से ज्यादा यहां रुके तो मैं तुम्हें भी जॉब से निकाल दूंगा। समझे?” “जी सर,” गार्ड कांपता हुआ बोला। काव्या अपने मोबाइल पर कुछ टाइप कर रही थी। शायद उसे कोई मेल चेक करना था।
उसके सामने बैठे विनय कुमार जी अपने छोटे से मोबाइल पर कुछ टाइप कर रहे थे। काव्या ने धीरे से कहा, “हे भगवान, आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैंने तो एक बुजुर्ग की मदद करनी चाही और आपने वो बुजुर्ग काव्या की बातें सुन रहे थे और मंदमंद मुस्कुरा रहे थे।
भाग 18: विनय कुमार की पहचान
अचानक वो धीरे से उठे और मैनेजर से बोले, “बेटा, एक बार तुम भी अपना मेल चेक कर लो। देखो तुम्हें एचआर हेड स्वाति का मेल आया होगा।” वो मैनेजर उस बुजुर्ग को देखकर ऐसे हंसा जैसे उन्होंने कोई जोक मारा हो। “बाबा, यह सब हम लोग बचपन में किया करते थे अपने दोस्तों को डराने के लिए। अगली बार आप कोई नया तरीका सीखकर आइएगा। पूरा शोरूम स्वाति का नाम जानता है।
इसलिए आप स्वाति वाला ड्रामा छोड़िए और प्लीज यहां से निकलिए। नहीं तो मुझे मजबूरी में आपको धक्के मार कर बाहर निकालना पड़ेगा।” बुजुर्ग हंसते हुए बोले, “मुझे अफसोस है कि मुझे यहां से धक्के मारकर बाहर निकालने की तुम्हारी यह तमन्ना अब शायद कभी पूरी नहीं हो पाएगी।
भाग 19: काव्या की नई शुरुआत
और रही बात काव्या की तो वह चाहे तो तुम्हें यहां से अभी इसी वक्त धक्के मारकर बाहर करवा सकती है क्योंकि काव्या आज और अभी से ही इस शोरूम की नई मैनेजर बन चुकी है।” काव्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो बुजुर्ग क्या बोल रहे थे। वो रोते हुए बोली, “अंकल, यह मजाक का वक्त नहीं है। मेरे घर में मैं अकेली कमाने वाली हूं और मेरा पूरा घर मेरी इस जॉब से ही चलता है।”
वो बुजुर्ग काव्या की मासूमियत पर मंदमंद मुस्कुरा रहे थे। अचानक मैनेजर की तेज आवाज से पूरा शोरूम गूंज उठा। “गार्ड, बाबा को यहां से बाहर निकालो तुरंत और काव्या को भी क्विक। आई डोंट वांट एनी मेस एनीमोर।”
भाग 20: अभिज्ञान सिंह का आगमन
गार्ड उठा और तेजी से आगे बढ़ा। वो भी दो कदम ही आगे बढ़ा होगा कि तीन नई चमचमाती काली गाड़ियां तेज हॉर्न बजाती हुई ठीक शोरूम के बाहर आकर रुकती हैं। इससे पहले कि वहां मौजूद कोई कुछ समझ पाता, 40-42 साल का एक आदमी शोरूम के मेन गेट से तेजी से भागते हुए अंदर आता है।
यह कोई और नहीं बल्कि खुद उस शोरूम के मालिक अभिज्ञान सिंह थे। वो घबराए हुए और पसीने से लथपथ थे। उनके पीछे और तीन-चार लोग सूट बूट पहने हाथ में ब्रीफ केस और फाइल्स लिए भागते हुए अंदर आते हैं। अभिज्ञान सिंह सीधे उस बुजुर्ग के सामने सर झुका के खड़े हो गए। वो बहुत पोलाइटली बोले, “सर, आपने मुझे बुला लिया होता। आप जैसे इतने बड़े आदमी कि मेरे इस छोटे से शोरूम में इंसल्ट होना मेरे लिए बहुत शर्म की बात है।”
भाग 21: विनय कुमार की पहचान
पूरे शोरूम में पिन ड्रॉप साइलेंस था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह बुजुर्ग कौन है और उस शोरूम के मालिक उस बुजुर्ग के सामने सर झुकाए क्यों खड़े हैं। तभी अभिज्ञान सिंह तेज आवाज में बोले, “मैनेजर, तुम्हें पता भी है तुमने किसकी इंसल्ट की है। यह बुजुर्ग उस कंपनी के मालिक हैं जिस कंपनी की गाड़ियां हम अपने शोरूम में बेचते हैं।
और तुमने सिर्फ एक गाड़ी का रेट पूछने की वजह से इनके साथ ऐसा सुलूक किया। यह चाहे तो गाड़ी नहीं, हमारा पूरा शोरूम अभी खरीद सकते हैं। तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई ऐसा करने की? मुझे पूरी रिपोर्ट मिल चुकी है। अब मैं देखता हूं कि तुम्हें कौन बचाता है।”
भाग 22: मैनेजर का पछतावा
मैनेजर सदमे में था। वो जो देख रहा था, सुन रहा था, उसे उस पर यकीन नहीं हो रहा था। वो पसीने से लथपथ डर के मारे कांप रहा था। वो भागता हुआ उस बुजुर्ग के पैरों पर गिर पड़ा और अपने किए के लिए माफी मांगने लगा। उसके आंखों से आंसू बह रहे थे। वो लगातार रोए जा रहा था।
“सर, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई सर। मैं अनजाने में आप जैसे अरबपति बिजनेसमैन को गरीब भिखारी समझने की बहुत बड़ी गलती कर बैठा सर। मुझे बचा लीजिए। अब आप ही मुझे बचा सकते हैं। आप जो कहेंगे मैं वो करने को तैयार हूं। लेकिन सर, आप कुछ भी करके प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। मैं जानता हूं सर कि मैंने माफ ना किए जाने वाली गलती कर दी है। लेकिन मैं आपसे माफी की भीख मांगता हूं सर।”
भाग 23: विनय कुमार का सबक
वो बुजुर्ग कुर्सी से खड़े हो गए। वो मैनेजर से हंसते हुए बोले, “तुम गलत आदमी से माफी मांग रहे हो बेटा। माफी तुम मुझसे नहीं, इस शोरूम से मांगो जिस शोरूम की वजह से तुम्हारा घर चलता है। तुमने इस शोरूम की इमेज खराब की है। माफी इस शोरूम के मालिक श्री अभिज्ञान जी से मांगो जिनका नमक खाकर भी तुमने उनके साथ विश्वासघात किया है।
अगर तुम्हें माफी मांगनी ही है तो अपनी इस मैनेजर की कुर्सी से मांगो जो तुम्हें बिना भेदभाव के सबकी हेल्प करने के लिए दी गई थी। लेकिन तुमने इसे अपने ईगो और पावर का शो ऑफ करने का हथियार बना लिया है।”
भाग 24: काव्या की नई जिम्मेदारी
मैनेजर हर स्टाफ के पास बारी-बारी जाकर माफी मांग रहा था। उसे अपनी असली औकात पता चल चुकी थी। उसका घमंड और ईगो उसके आंसुओं के साथ बाहर निकल रहा था। वो समझ गया था कि असली पावर कुर्सी या किसी पोस्ट में नहीं बल्कि आदमी के डायरेक्टर में होती है।
डायरेक्टर कपड़ों का मोहताज नहीं होता। आज उसने सच में अपनी आंखों से देख लिया था। वो बुजुर्ग मैनेजर से बोले, “अब तुम्हारा भविष्य इस शोरूम के नई मैनेजर काव्या सिंह के हाथ में है। अब काव्या जो भी डिसीजन लेगी वो हम सबको मंजूर होगा।”
भाग 25: काव्या का सम्मान
सभी स्टाफ और कस्टमर्स काव्या के लिए तालियां बजा रहे थे। काव्या की आंखों में अब भी आंसू थे। लेकिन यह आंसू थे उस खुशी के जो उसे ऊपर वाले ने उसकी ईमानदारी के लिए दी थी। काव्या ने मैनेजर को एक मौका और देकर उसे 6 महीने की ट्रेनिंग और ऑफिस से हटाकर 6 महीने फील्ड में काम करने की सजा दी थी। ताकि उसे एक बार फिर से अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो सके।
समापन:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली ताकत किसी व्यक्ति के कपड़ों या पद में नहीं होती, बल्कि उसके चरित्र और उसके दृष्टिकोण में होती है। विनय कुमार ने साबित कर दिया कि आत्म-सम्मान और ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण हैं।
कभी-कभी हमें अपनी आवाज उठाने के लिए खड़ा होना पड़ता है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें किसी की बाहरी दिखावट से उसके मूल्य का आकलन नहीं करना चाहिए।
कहानी समाप्त।
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