मासूम बच्ची ने || ठेले पर समोसे बेचने वाले से कहा आप मेरी मम्मी से शादी कर लो

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मासूम बच्ची की मासूमियत और समोसे वाले की इंसानियत: एक दिल छू लेने वाली कहानी

लोपटना जिले के एक छोटे शहर के चौराहे पर, रोज़ की तरह एक लड़का अपनी समोसे की दुकान लगाया करता था। उसका नाम अमित था। अमित का काम बहुत अच्छी तरह से चलता था, दुकान पर हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। समोसे की खुशबू दूर-दूर तक जाती थी और लोग उसके हाथों के बने समोसे खाने के लिए लाइन लगाते थे। अमित मेहनती था, उसका जीवन सादा था, लेकिन दिल बहुत बड़ा था।

एक दिन दोपहर का समय था। गर्मी अपने चरम पर थी, लेकिन दुकान पर ग्राहकों की भीड़ कम नहीं थी। अचानक काउंटर के नीचे से एक छोटी सी आवाज आई, “भैया, क्या मुझे समोसा मिलेगा?” अमित थोड़ा हैरान होकर झुककर देखता है तो एक छोटी सी बच्ची, जिसकी उम्र शायद पांच साल रही होगी, फटे-पुराने कपड़ों में खड़ी थी। उसके बाल उलझे हुए थे, चेहरा धूल से सना हुआ था, लेकिन आंखों में भूख और मासूमियत साफ झलक रही थी।

अमित ने पूछा, “बेटी, तुम्हारे पास पैसे हैं?” बच्ची ने सिर झुका लिया और बोली, “नहीं भैया, मेरे पास पैसे नहीं हैं।” अमित को महसूस हो गया कि यह बच्ची बहुत भूखी है। उसने तुरंत एक समोसा अखबार पर रखकर बच्ची को दे दिया और कहा, “बेटी, बैठो, मैं तुम्हारे लिए समोसा लगा देता हूं।”

जैसे ही बच्ची समोसा खाने लगी, तभी एक महिला की आवाज आई, “हमारे पास पैसे नहीं हैं, और हम भिखारी भी नहीं हैं। आप अपना समोसा ले जाइए।” अमित ने देखा कि वह महिला करीब 28 साल की थी, कपड़े मैले थे और चेहरा थका हुआ था। महिला ने कहा, “यह दो दिन से भूखी है, इसलिए मांग लिया।”

अमित को उनकी हालत देखकर बहुत दुख हुआ। उसने कहा, “आप बुरा मत मानिए, कोई बात नहीं। आप मेहनत कर लीजिए, मेरा छोटा सा काम कर दीजिए, उसके बदले में बच्ची को खाना खाने दीजिए।” इंसानियत अमित के अंदर कूट-कूट कर भरी थी। महिला ने हामी भर दी। अमित ने दोनों को समोसा खिलाया और फिर कुछ बर्तन धोने का काम दे दिया।

महिला का नाम स्नेहा था। उसने और उसकी बेटी अनन्या ने बर्तन धोए, प्याज काटी, मिर्ची काटी और अमित की दुकान में मदद की। अमित ने देखा कि उनके कपड़े तो अच्छे हैं, लेकिन हालत बहुत खराब है। उसने स्नेहा से पूछा, “अगर बुरा न मानो तो क्या मैं जान सकता हूं, आप लोगों की ऐसी हालत कैसे हो गई?”

स्नेहा की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपनी कहानी सुनाई—कैसे उसका पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, जमीन-जायदाद थी, लेकिन अचानक पति की मौत हो गई। दो महीने बाद ससुराल वालों ने उसे बेटी सहित घर से निकाल दिया। मायके में कोई नहीं था, मां भी शादी के दो साल बाद गुजर गई थी। मजबूरी में अपनी सहेली के घर गई, लेकिन वहां उसकी सहेली का पति बुरी नीयत रखने लगा। एक रात उसने स्नेहा को गलत तरीके से छूने की कोशिश की। स्नेहा ने इज्जत बचाने के लिए रात के अंधेरे में बेटी को लेकर घर छोड़ दिया। दो दिन से भूखी थी, सड़क पर भटक रही थी, तभी समोसे वाले अमित की दुकान पर पहुंच गई।

अमित की आंखों में भी आंसू आ गए। उसने स्नेहा और अनन्या को अपनी दुकान के पीछे बने छोटे से झोपड़े में रहने की जगह दी। कहा, “यह सरकारी जगह है, लेकिन मैंने झोपड़ी बनाई है। आप यहां रह सकते हैं, जब तक काम न मिले, मेरी दुकान पर काम कर सकती हैं।”

स्नेहा ने झोपड़ी को व्यवस्थित किया, पुरानी चादर से बाथरूम बनाया, दोनों मां-बेटी ने नहाया और पहली बार चैन से सोईं। अगले दिन स्नेहा ने अमित की दुकान पर मदद करना शुरू किया—समोसे की छटनी, सब्जी बनाना, समोसे तलना। अमित ने पूछा, “क्या तुम्हें जलेबी बनानी आती है?” स्नेहा ने कहा, “हां, मुझे आती है।” अमित ने जलेबी बनाने का सामान ला दिया और दुकान के एक कोने में जलेबी की कढ़ाई रखवा दी।

स्नेहा ने जलेबी बनाई, उसकी खुशबू ने ग्राहकों को आकर्षित किया। अमित ने जलेबी बेचना शुरू किया और दुकान की कमाई बढ़ गई। अमित ने जलेबी के पैसे स्नेहा को देने चाहे, स्नेहा ने मना किया, लेकिन अमित ने समझाया, “घर चलाने के लिए पैसे चाहिए, कपड़े खरीदो, चूल्हा चलाओ।” धीरे-धीरे स्नेहा की जलेबी की बिक्री बढ़ गई, अनन्या भी मां का हाथ बटाने लगी।

लेकिन समाज की नजरें टेढ़ी थीं। पड़ोसियों ने बातें बनानी शुरू कर दी—”देखो, विधवा महिला के साथ दुकान चला रहा है, बदनामी कर रहा है।” ये बातें अमित तक पहुंचीं, लेकिन उसने नजरअंदाज कर दिया।

एक दिन अनन्या खेलते-खेलते अमित के पास आई और मासूमियत से पूछने लगी, “क्या आप मेरी मम्मी से शादी करोगे?” अमित हैरान रह गया। उसने पूछा, “बेटी, ऐसा क्यों कह रही हो?” अनन्या बोली, “आप मेरी मम्मी को खुश रखते हो, पहले पापा रखते थे। अब आप में ही मुझे पापा दिखते हैं।”

अमित की आंखों में आंसू आ गए। उसने स्नेहा से बात करने की ठानी। एक दिन दुकान खाली थी, अमित ने स्नेहा से कहा, “अनन्या कह रही थी, क्या आप मेरी मम्मी से शादी कर सकते हो?” स्नेहा चुप हो गई, बोली, “वह तो बच्ची है, उसकी बातों को बुरा मत मानो।”

अमित ने कहा, “क्या मेरी शक्ल या व्यवहार ठीक नहीं है?” स्नेहा बोली, “ऐसा नहीं है, लेकिन लोग बातें बनाएंगे।” अमित ने कहा, “जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा, मन में अलग भाव आए, तुम्हारी मदद की, कभी गलत फायदा नहीं उठाया। लेकिन अब लगता है, हमें शादी कर लेनी चाहिए।”

स्नेहा बेसहारा थी, उसने हामी भर दी। अमित ने अपनी मां से मिलवाया, मां ने भी स्वीकार कर लिया। दोनों की शादी रीति-रिवाज से हो गई। समाज के लोगों के मुंह बंद हो गए। स्नेहा और अमित अब उसी चौराहे पर दुकान चलाते हैं, अनन्या अच्छे स्कूल में पढ़ती है, उनका एक बेटा भी है। परिवार खुशियों से भरा है।

अब स्नेहा कम दुकान पर आती है, त्योहारों पर ही जाती है, बाकी समय घर संभालती है। अमित और स्नेहा का जीवन सुखमय हो गया है।

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