बाप रिक्शा चलाकर बेटी को डॉक्टर बनाया.. तभी एक गलती ने सब बर्बाद कर दिया – फिर जो हुआ!

बाबूजी का सपना – एक बेटी की अनमोल कुर्बानी
लखनऊ के पुराने इलाके अमीनाबाद की गलियों में एक रिक्शावाला था – रामकरण प्रसाद। उम्र 55 साल, झुकी कमर, हाथों में दरारें, आँखों में डर और दिल में एक ही सपना – अपनी इकलौती बेटी नसी को डॉक्टर बनाना। शांति देवी के गुजर जाने के बाद, रामकरण ने नसी के लिए अपनी ज़िन्दगी दांव पर लगा दी। किताबों के लिए खाना छोड़ना, फीस के लिए दवाइयाँ बंद करना, सबकुछ किया लेकिन बेटी की पढ़ाई में कभी कमी नहीं आने दी।
नसी बचपन से ही तेज थी, आँखों में जुनून था। रामकरण ने दिन-रात मेहनत कर उसे पढ़ाया। पाँच साल की कड़ी मेहनत के बाद नसी ने मेडिकल की परीक्षा पास की, एमबीबीएस में दाखिला लिया। जब नसी ने डिग्री हासिल की, पूरे मोहल्ले में जश्न था। रामकरण को लगा अब उनकी बेटी की ज़िन्दगी सुधर जाएगी। नसी ने अस्पताल में नौकरी शुरू की, फिर अपने माँ के नाम पर ‘शांति मेडिकल सेंटर’ खोला।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। रामकरण को कमजोरी महसूस होने लगी, सीने में दर्द, सांस फूलना, चक्कर आना – लेकिन उन्होंने बेटी को नहीं बताया। एक दिन रिक्शा चलाते वक्त वह गिर पड़े। नसी भागी-भागी आई, अस्पताल ले गई। टेस्ट हुए, रिपोर्ट आई – एडवांस स्टेज हार्ट डिजीज। डॉक्टरों ने कहा – 6 महीने से ज़्यादा बचना मुश्किल है।
नसी टूट गई, मगर हार नहीं मानी। इलाज में सबकुछ झोंक दिया, महंगी दवाइयाँ, बड़े डॉक्टरों से सलाह – लेकिन बीमारी काबू में नहीं आई। डॉक्टरों ने कहा – सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है, कम से कम 15 लाख चाहिए। नसी ने क्लीनिक का सामान बेच दिया, दोस्तों से उधार माँगा, लेकिन पैसे कम पड़ गए। रामकरण ने कहा – बेटा, अब मुझे जाने दे। नसी ने साफ मना कर दिया – “मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी।”
फिर एक दिन नसी ने रामकरण को क्लीनिक बुलाया। रामकरण को लगा – बेटी ने पैसों का इंतजाम कर लिया है। लेकिन नसी ने जो रिपोर्ट दी, उसमें लिखा था – “यह मेरी रिपोर्ट है। मैं अपना दिल आपको देने वाली हूँ।” रामकरण हिल गए – “तू मेरी जान है, मैं तेरी जान लेकर कैसे जी सकता हूँ?” नसी ने कहा – “आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी मेरे लिए दे दी, अब मेरी बारी है।”
रामकरण ने बहुत मना किया, लेकिन नसी ने जिद पकड़ ली। ऑपरेशन की तारीख तय हो गई। ऑपरेशन से एक रात पहले नसी ने बाबूजी के पैर छुए – “आशीर्वाद दीजिए कि सब ठीक हो जाए।” अगले दिन ऑपरेशन थिएटर में नसी को ले जाया गया। रामकरण बाहर बैठे रहे, भगवान से प्रार्थना करते रहे।
ऑपरेशन के दौरान डॉक्टरों को पता चला – नसी ने झूठ बोला था। उसका दिल भी कमजोर था, उसने रिपोर्टें छुपा दी थीं। ऑपरेशन के दौरान उसकी हालत बिगड़ गई। अगले 24 घंटे क्रिटिकल थे। रामकरण ने नसी का हाथ पकड़े रखा, उससे बातें की, माफी माँगी। लेकिन नसी की हालत बिगड़ती गई। आखिरकार मशीनों की आवाज़ें बंद हो गईं – नसी चली गई थी। अपने बाबूजी को बचाने की कोशिश में उसने अपनी जान गँवा दी।
रामकरण की ज़िन्दगी बदल गई। रिक्शा छोड़ दिया, नसी की बचत से छोटी दुकान खोल ली। लेकिन आँखों की चमक चली गई। हर रोज़ नसी की तस्वीर के सामने बैठते, उससे बातें करते। फिर एक दिन उन्होंने नसी की याद में उसके क्लीनिक को फिर से खोला – ‘डॉ. नसी प्रसाद फ्री क्लीनिक’। गरीबों का मुफ्त इलाज शुरू किया। नसी की बचत का पैसा इसमें लगा दिया।
आज भी वह क्लीनिक चल रहा है। रामकरण गरीब मरीजों की मदद करते हैं। उन्हें लगता है – जैसे नसी उनके साथ है, उनके कंधे पर हाथ रखकर कह रही है – “बाबूजी, आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मुझे आप पर गर्व है।” रामकरण मुस्कुरा देते हैं। उनकी आँखों में आँसू होते हैं, लेकिन चेहरे पर संतोष होता है। क्योंकि उन्हें पता है – उनकी बेटी भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मोहब्बत, उसका सपना, उसकी मेहनत आज भी ज़िन्दा है।
यह कहानी सिखाती है – प्यार सिर्फ ज़िन्दगी में नहीं, मरने के बाद भी ज़िन्दा रहता है।
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Title: बाबूजी का सपना – एक बेटी की अनमोल कुर्बानी
(एक भावुक, प्रेरणादायक और बेहद मार्मिक कहानी)
भाग 1: अमीनाबाद की गलियों में…
लखनऊ के अमीनाबाद की तंग गलियों में हर सुबह एक बूढ़ा रिक्शावाला निकलता था – रामकरण प्रसाद। उसकी उम्र 55 साल थी, लेकिन ज़िन्दगी के बोझ ने उसकी कमर को पहले ही झुका दिया था। हाथों में गहरी दरारें, चेहरे पर थकान की लकीरें, और आँखों में एक चुपचाप डर। लेकिन इन सबके बीच उसकी आँखों में एक सपना तैरता रहता था – अपनी इकलौती बेटी नसी को डॉक्टर बनाना।
रामकरण की पत्नी, शांति देवी, नसी के दसवें जन्मदिन पर ही दुनिया छोड़ गई थी। उस दिन के बाद से रामकरण और नसी ने मिलकर हर मुश्किल का सामना किया। रामकरण ने रिक्शा चलाकर बेटी को पढ़ाया, कभी किताबों के लिए खाना छोड़ दिया, कभी फीस के लिए अपनी दवाइयाँ बंद कर दीं। लेकिन नसी की पढ़ाई पर कभी आँच नहीं आने दी।
नसी बचपन से ही तेज थी, उसकी आँखों में कुछ कर गुजरने का जुनून था। मोहल्ले के लोग अक्सर कहते, “रामकरण, तेरी बेटी तो कमाल करेगी!” और रामकरण मुस्कुरा कर कहता – “बस भगवान उसे खुश रखे।”
भाग 2: सपनों की उड़ान
वक्त बीतता गया। नसी ने मेडिकल की परीक्षा पास की और एमबीबीएस में दाखिला ले लिया। वह दिन रामकरण की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दिन था। पूरे मोहल्ले में जश्न हुआ, मिठाई बँटी, लोग बधाई देने आए। नसी ने बाबूजी को गले लगाकर कहा, “अब आप चिंता मत कीजिए। मैं पढ़ूंगी और आपकी सारी तकलीफें दूर कर दूंगी।”
रामकरण ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। बाकी सब मैं संभाल लूंगा।” और सच में, अगले पाँच सालों तक रामकरण ने दिन में 18 घंटे रिक्शा चलाया। बारिश, धूप, सर्दी – कुछ भी हो, वह कभी नहीं रुका। कभी-कभी तो रात के 1-2 बजे तक सवारी ढूँढता रहता। खाना ढंग से नहीं खाता, दवाइयाँ तो कब की बंद कर दी थीं। उसके जीवन में सिर्फ एक ही धुन थी – नसी की फीस समय पर भरनी है।
नसी को इन सब बातों का पता था। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी? उसने मन में ठान लिया था कि जैसे ही डॉक्टर बनूंगी, बाबूजी को सारे दुख से निकाल लूंगी।
आखिरकार, पाँच साल की कड़ी मेहनत के बाद, नसी डॉक्टर बन गई। रामकरण की आँखों में खुशी के आँसू थे जब उसने नसी के हाथों में डिग्री देखी। मोहल्ले के लोग रामकरण को बधाई देने आए। लेकिन रामकरण को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि अब नसी की ज़िन्दगी सुधर जाएगी।
भाग 3: नई शुरुआत, नये सपने
नसी ने शहर के एक अच्छे अस्पताल में नौकरी शुरू की। कुछ महीनों बाद उसने अपना छोटा सा क्लीनिक भी खोल लिया। क्लीनिक का नाम रखा – शांति मेडिकल सेंटर, अपनी माँ के नाम पर। रामकरण को लगता था कि उनके जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया है। अब वह चाहते थे कि रिक्शा चलाना बंद कर दें, आराम करें। लेकिन नसी ने कहा, “बाबूजी, अभी मैं सेटल हो रही हूँ। थोड़ा समय दीजिए।”
रामकरण ने मान लिया। लेकिन पिछले कुछ महीनों से रामकरण को अजीब सी कमजोरी महसूस हो रही थी। सीने में दर्द, सांस फूलना, चक्कर आना – लेकिन उन्होंने नसी को कुछ नहीं बताया। सोचते रहे कि बेटी अभी-अभी सेटल हुई है, उसे परेशान नहीं करना चाहिए।
भाग 4: चुप्पी का दर्द
एक दिन रामकरण रिक्शा चला रहे थे, तभी अचानक उनकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वह रिक्शे से गिर पड़े। लोग इकट्ठा हो गए। किसी ने नसी को फोन किया। नसी भागी-भागी आई, बाबूजी को अस्पताल ले गई। टेस्ट हुए – खून, ईसीजी, एक्सरे। रिपोर्ट आई – एडवांस स्टेज हार्ट डिजीज। डॉक्टरों ने कहा – अगर तुरंत इलाज ना हुआ तो 6 महीने से ज्यादा बचना मुश्किल है।
नसी को जैसे सांप सूंघ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बाबूजी को इतनी बड़ी बीमारी कैसे हो गई और उन्होंने बताया क्यों नहीं। उसने रामकरण से पूछा तो उन्होंने कहा, “बेटा, तू अभी-अभी सेटल हुई है। मैं तुझे परेशान नहीं करना चाहता था।”
नसी फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने कहा, “बाबूजी, आप मेरे लिए जान देते रहे और मुझे पता भी नहीं चला कि आप कितने बीमार हैं। अब मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी।”
रामकरण ने बेटी का सिर सहलाया और कहा, “अब तो तू डॉक्टर है ना, तू मुझे ठीक कर देगी।” नसी ने सिर हिलाया, “हाँ बाबूजी, बिल्कुल ठीक कर दूंगी।”
भाग 5: संघर्ष की आखिरी सीमा
उसके बाद नसी ने रामकरण के इलाज में अपना सब कुछ झोंक दिया। बड़े-बड़े डॉक्टरों से सलाह ली, महंगी दवाइयाँ मंगवाईं, लेकिन बीमारी इतनी बढ़ चुकी थी कि दवाइयों से काबू में नहीं आ रही थी। डॉक्टरों ने कहा – अब सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है। लेकिन सर्जरी के लिए कम से कम 15 लाख चाहिए थे।
नसी के पास इतने पैसे नहीं थे। उसने अपना सारा क्लीनिक का सामान बेच दिया, दोस्तों से उधार माँगा, लेकिन फिर भी पैसे कम पड़ गए। रामकरण ने जब यह सब देखा तो उसने नसी से कहा, “बेटा, तू इतना मत कर। मेरी उम्र हो गई है। अब मुझे जाने दे।” लेकिन नसी ने साफ मना कर दिया, “बाबूजी, मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी। चाहे कुछ भी करना पड़े।”
भाग 6: बेटी का फैसला
एक दिन नसी ने रामकरण को अपने क्लीनिक में बुलाया। रामकरण को लगा – शायद बेटी ने पैसों का इंतजाम कर लिया है और अब सर्जरी हो जाएगी। वह खुशी-खुशी क्लीनिक पहुँचे। नसी ने उन्हें बैठाया और फिर एक रिपोर्ट उनके सामने रख दी। रामकरण ने कांपते हाथों से वह रिपोर्ट उठाई और पढ़ने लगे। लेकिन मेडिकल की भाषा उन्हें समझ नहीं आई। उन्होंने नसी की तरफ देखा और पूछा, “बेटा, यह क्या है?”
नसी की आँखें नम थीं। उसने गहरी सांस ली और कहा, “बाबूजी, यह मेरी रिपोर्ट है।” रामकरण चौंक गए, “तेरी रिपोर्ट? लेकिन क्यों? तू तो बिल्कुल ठीक है ना?”
नसी ने सिर हिलाया, “हाँ बाबूजी, मैं ठीक हूँ। लेकिन मैंने यह रिपोर्ट इसलिए करवाई क्योंकि मैं अपना दिल आपको देने वाली हूँ।”
रामकरण को जैसे बिजली का करंट लग गया। उनके हाथ से रिपोर्ट छूटकर नीचे गिर गई। उन्होंने अविश्वास से नसी की तरफ देखा और कहा, “क्या बोल रही है तू? पागल हो गई है क्या?”
नसी ने शांति से कहा, “नहीं बाबूजी, मैं बिल्कुल होश में हूँ। मैंने सब सोच-समझकर फैसला किया है। आपको हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है और मेरा ब्लड ग्रुप आपसे मैच करता है। मैं अपना दिल आपको दे सकती हूँ।”
रामकरण के होश उड़ गए। उन्होंने चीख कर कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं। मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा। तू मेरी बेटी है, मेरी जान है। मैं तेरी जान लेकर कैसे जी सकता हूँ?”
नसी ने रामकरण के हाथ पकड़े और कहा, “बाबूजी, आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी मेरे लिए दे दी। आपने अपनी सेहत खराब कर ली। अपना खाना-पीना छोड़ दिया, दवाइयाँ बंद कर दीं – सिर्फ मेरे लिए। आज जो मैं हूँ, वह सिर्फ आपकी वजह से हूँ। अब मेरी बारी है आपके लिए कुछ करने की।”
रामकरण ने गुस्से में कहा, “यह कुछ करना नहीं है। यह तो आत्महत्या है। तू अपनी जान देकर मुझे बचाएगी तो मैं कैसे जी पाऊंगा? मैं एक पल भी नहीं जी पाऊंगा।”
नसी ने कहा, “बाबूजी, आप जी पाएंगे क्योंकि आपको जीना होगा। आपने मेरे लिए इतना किया है, अब आपको अपने लिए भी जीना होगा। और वैसे भी मेडिकल साइंस में ऐसा संभव है। मैंने बड़े-बड़े डॉक्टरों से बात की है, वह कह रहे हैं कि ऑपरेशन सफल हो सकता है।”
रामकरण ने रोते हुए कहा, “नहीं बेटा, मैं नहीं मानूंगा। मुझे मरने दे। मैंने अपनी ज़िन्दगी जी ली है। अब तेरी बारी है। तू अपनी ज़िन्दगी जी, शादी कर, अपना घर बसा, बच्चे पैदा कर। मुझे देखकर खुश हो। मैं इसी में खुश हूँ।”
नसी ने कहा, “बाबूजी, आप नहीं रहेंगे तो मैं यह सब कुछ किसके लिए करूँगी? आप ही तो मेरी पूरी दुनिया हैं। मैंने आपके बिना कभी सोचा ही नहीं है। मेरे लिए आपकी ज़िन्दगी सबसे ज़रूरी है।”
रामकरण और नसी दोनों रो रहे थे। रामकरण ने नसी को गले लगाया और कहा, “बेटा, तू मेरी जान है, लेकिन मैं तेरी जान नहीं ले सकता। यह मुझसे नहीं होगा।”
नसी ने रामकरण को पीछे हटाया और कहा, “बाबूजी, मैंने फैसला कर लिया है और मैं इसे बदलने वाली नहीं हूँ। अगले हफ्ते ऑपरेशन होगा। मैंने सारी तैयारी कर ली है।”
रामकरण ने हाथ जोड़कर कहा, “नहीं बेटा, मैं तुझसे हाथ जोड़ता हूँ। मुझे माफ कर दे, लेकिन यह मत कर।”
नसी ने कहा, “बाबूजी, आप मुझे माफ कर दीजिए, क्योंकि इस फैसले को बदलने की ताकत मुझ में नहीं है।”
भाग 7: ऑपरेशन की रात
उसके बाद के दिन रामकरण के लिए बेहद मुश्किल थे। वह नसी को समझाने की कोशिश करते रहे, लेकिन नसी अपनी जिद पर अड़ी रही। उसने सारी तैयारियाँ कर लीं। ऑपरेशन की डेट फिक्स हो गई। डॉक्टरों की टीम तैयार थी। सब कुछ सेट था।
रामकरण को हर पल लगता था जैसे कोई बुरा सपना देख रहे हैं। वह रात को सो नहीं पाते थे। बस नसी के बचपन की यादें आँखों के सामने घूमती रहती थीं। कैसे वह छोटी सी थी और उसके हाथ पकड़कर स्कूल जाते थे। कैसे वह बीमार पड़ती थी तो रात भर जागकर उसकी देखभाल करते थे। कैसे उसने पहली बार “बाबूजी” कहा था। सब कुछ याद आता रहता था। और अब वही बेटी अपनी जान देकर उन्हें बचाना चाहती थी।
ऑपरेशन से एक रात पहले नसी रामकरण के पास आई। उसने उनके पैर छुए और कहा, “बाबूजी, मुझे आशीर्वाद दीजिए कि कल सब कुछ ठीक हो जाए।” रामकरण की आँखों से आँसू बह रहे थे। उन्होंने नसी का सिर अपनी गोद में रखा और कहा, “बेटा, तूने मुझे बहुत खुश रखा। तू दुनिया की सबसे अच्छी बेटी है। मैं तेरे बिना कैसे जिऊंगा।”
नसी ने कहा, “बाबूजी, आप जिएंगे क्योंकि आपको जीना है। आपको मेरे सपनों को पूरा करना है। मैं चाहती थी कि आप एक अच्छी ज़िन्दगी जीएं। अब आप वह ज़िन्दगी मेरी तरफ से भी जी लीजिएगा।”
रामकरण कुछ बोल नहीं पाए। बस रोते रहे।
भाग 8: ऑपरेशन थिएटर
अगले दिन सुबह ऑपरेशन थिएटर की तैयारी हो गई। नसी को स्ट्रेचर पर लिटाकर ले जाया गया। उसने आखिरी बार रामकरण को देखा और मुस्कुराई। रामकरण उसके पीछे-पीछे जा रहे थे। उनके पैर कांप रहे थे, दिल बैठा जा रहा था। ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे पर डॉक्टरों ने उन्हें रोक दिया। कहा, “आप बाहर इंतजार कीजिए। हम सब कुछ ठीक कर देंगे।”
रामकरण वहीं बैठ गए। घंटों बीत गए। ऑपरेशन चल रहा था। रामकरण बस भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह उनकी बेटी बच जाए। उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं थी, बस नसी सही सलामत रहे।
लेकिन तभी अचानक ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला। एक डॉक्टर बाहर आया। उसके चेहरे पर अजीब सा भाव था। रामकरण तुरंत उठकर डॉक्टर के पास गए और घबराकर पूछा, “डॉक्टर साहब, मेरी बेटी कैसी है? सब ठीक तो है ना?”
डॉक्टर ने उनकी तरफ देखा और कहा, “मिस्टर प्रसाद, आप अंदर आइए।”
रामकरण के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। वह डॉक्टर के पीछे-पीछे अंदर गए। जैसे ही वह अंदर पहुँचे, देखा – नसी बिस्तर पर लेटी हुई है, उसकी आँखें बंद हैं। उसके शरीर पर कई तरह की मशीनें लगी हुई थीं।
रामकरण की सांसें रुक गईं। उन्होंने डॉक्टर की तरफ देखा और कांपती आवाज़ में पूछा, “यह क्या हुआ डॉक्टर साहब? मेरी बेटी को क्या हो गया?”
डॉक्टर ने गहरी सांस ली और कहा, “मिस्टर प्रसाद, हमें आपसे कुछ बात करनी है। दरअसल जब हमने ऑपरेशन शुरू किया तो हमें पता चला कि नसी ने आपसे झूठ बोला था।”
रामकरण चौंक गए, “झूठ? कैसा झूठ?”
डॉक्टर ने कहा, “नसी का दिल बिल्कुल स्वस्थ नहीं था। उसे भी एक गंभीर बीमारी थी, जो धीरे-धीरे बढ़ रही थी। उसे खुद पता था कि उसका दिल कमजोर हो रहा है, लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। उसने अपनी रिपोर्टें छुपा दीं और झूठी रिपोर्ट्स बनवाकर हमें दिखाई। हमें लगा कि उसका दिल स्वस्थ है, इसलिए हमने ऑपरेशन की तैयारी कर ली। लेकिन जब हमने ऑपरेशन शुरू किया तो हमें असलियत पता चली।”
रामकरण के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने कहा, “लेकिन डॉक्टर साहब, अब क्या होगा? मेरी बेटी बचेगी ना?”
डॉक्टर ने सिर झुका लिया और कहा, “मिस्टर प्रसाद, हमने पूरी कोशिश की, लेकिन नसी की हालत बहुत नाजुक है। उसका दिल पहले से ही कमजोर था और ऑपरेशन के दौरान उस पर बहुत दबाव पड़ गया। हम उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अगले 24 घंटे बहुत क्रिटिकल हैं।”
भाग 9: अंतिम संघर्ष
रामकरण को लगा जैसे किसी ने उनके सीने में छुरा घोंप दिया हो। उन्होंने नसी की तरफ देखा और उसके पास जाकर घुटनों के बल बैठ गए। उसके हाथ पकड़े और रोते हुए कहा, “नसी बेटा, आँखें खोल, मुझे देख। तूने यह क्या कर दिया? तूने मुझसे झूठ क्यों बोला? तू खुद बीमार थी और तूने मुझे बताया नहीं? तूने अपनी जान खतरे में क्यों डाली?”
लेकिन नसी की आँखें नहीं खुलीं। रामकरण फूट-फूट कर रो पड़े। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की, “मेरी बेटी को बचा लो। मुझे ले लो, लेकिन मेरी बेटी को कुछ मत करना। मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ।”
अगले 24 घंटे रामकरण के लिए जहन्नुम से कम नहीं थे। वह नसी के पास बैठे रहे, उसका हाथ पकड़े रहे। डॉक्टर आते-जाते रहे, मशीनों की आवाजें आती रहीं। लेकिन नसी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
रामकरण को अपनी ज़िन्दगी के सारे पल याद आ रहे थे। वह सोच रहे थे – क्या उन्होंने अपनी बेटी पर इतना बोझ डाल दिया था कि उसने अपनी जान तक दे दी? क्या उन्हें नसी को इतना पढ़ाना चाहिए था? क्या उन्हें उसे डॉक्टर बनाना चाहिए था? शायद अगर नसी पढ़ी-लिखी नहीं होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।
लेकिन तभी अचानक नसी की उंगलियाँ हिलीं। रामकरण ने देखा और तुरंत डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर आए और चेक किया। धीरे-धीरे नसी की आँखें खुलने लगीं। रामकरण की सांस में सांस आई।
नसी ने धीमी आवाज़ में कहा, “बाबूजी…”
रामकरण ने तुरंत उसका हाथ पकड़ा, “हाँ बेटा, मैं यहीं हूँ। तू ठीक है ना?”
नसी ने मुस्कुराने की कोशिश की, “बाबूजी, माफ कीजिए। मैंने आपसे झूठ बोला। मुझे पता था कि मेरा दिल कमजोर है, लेकिन मैं आपको बचाना चाहती थी। मुझे आपके बिना इस दुनिया में कुछ नहीं चाहिए था। अगर आप नहीं रहते तो मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब नहीं था।”
रामकरण ने रोते हुए कहा, “पागल लड़की, तूने ऐसा क्यों किया? तू मेरी जान है। मैं तेरे बिना कैसे जी पाऊंगा?”
नसी ने कहा, “बाबूजी, आप जिएंगे क्योंकि आपको मेरे लिए जीना है। मैं चाहती हूँ कि आप खुश रहें। आप अपनी ज़िन्दगी अच्छे से जिएँ। अब रिक्शा मत चलाइएगा। आराम से रहिएगा। मैंने अपनी सारी बचत आपके नाम कर दी है। आप उससे अपना ख्याल रखिएगा।”
रामकरण ने कहा, “नहीं बेटा, मुझे तेरे पैसों की ज़रूरत नहीं है। मुझे तेरी ज़रूरत है। तू मेरे साथ रह। हम दोनों मिलकर खुशी से रहेंगे।”
लेकिन तभी अचानक नसी के चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आईं। मशीनों की आवाजें तेज हो गईं। डॉक्टर दौड़ कर आए। उन्होंने रामकरण को एक तरफ हटाया और नसी को बचाने की कोशिश करने लगे। लेकिन कुछ देर बाद मशीनों की आवाजें एक सीधी लाइन में बदल गईं।
डॉक्टर ने रामकरण की तरफ देखा और सिर हिला दिया।
रामकरण को समझ आ गया – नसी चली गई थी।
रामकरण चीख कर रो पड़े। उन्होंने नसी को गले लगाया और कहा, “नहीं बेटा, मुझे छोड़कर मत जा। मैं तेरे बिना नहीं जी पाऊंगा। तू मेरी ज़िन्दगी थी। तू वापस आजा।”
लेकिन नसी वापस नहीं आई। वह हमेशा के लिए चली गई थी। अपने बाबूजी को बचाने की कोशिश में अपनी जान गँवा दी थी।
भाग 10: प्यार की विरासत
रामकरण की ज़िन्दगी उस दिन के बाद बदल गई। उन्होंने रिक्शा चलाना बंद कर दिया। नसी की बचत से एक छोटी सी दुकान खोल ली। लेकिन उनकी आँखों में वह चमक कभी वापस नहीं आई। हर रोज़ नसी की तस्वीर के सामने बैठते और घंटों उससे बातें करते। लोग कहते – “रामकरण पागल हो गए हैं।” लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी। वह बस अपनी बेटी को याद करते रहते।
एक दिन रामकरण ने फैसला किया कि वह नसी की याद में कुछ करेंगे। उन्होंने नसी के क्लीनिक को फिर से खोला। इस बार उसका नाम रखा – “डॉ. नसी प्रसाद फ्री क्लीनिक”। गरीब लोगों के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था की। नसी की बचत का पैसा इसी में लगा दिया। आज भी वह क्लीनिक चल रहा है और रामकरण हर रोज़ वहाँ जाते हैं। गरीब मरीजों की मदद करते हैं। उन्हें लगता है जैसे नसी उनके साथ है। जैसे वह उनके कंधे पर हाथ रखकर कह रही है – “बाबूजी, आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मुझे आप पर गर्व है।”
रामकरण मुस्कुरा देते हैं। उनकी आँखों में आँसू होते हैं, लेकिन चेहरे पर संतोष होता है। क्योंकि उन्हें पता है – उनकी बेटी भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मोहब्बत, उसका सपना, उसकी मेहनत आज भी ज़िन्दा है।
भाग 11: कहानी का सबक
यह कहानी सिखाती है –
प्यार सिर्फ ज़िन्दगी में नहीं, मरने के बाद भी जिंदा रहता है।
बेटी की मोहब्बत, पिता की कुर्बानी, सपनों की ताकत, और इंसानियत की मिसाल – यही है रामकरण और नसी की कहानी।
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जय हिंद। वंदे मातरम।
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