घमंडी लड़की ने जिस बुजुर्ग आदमी को गरीब समझ कंपनी से बेइज्जती करके निकाला वो उसी कंपनी का,फिर जो हुआ
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गेट के बाहर से चेयरमैन तक : विक्रम सिंह की कहानी
मुंबई की व्यस्त सड़कों पर, जहां हर पल शोर और भागदौड़ का साम्राज्य था, वहीं मेहता इंडस्ट्रीज का मुख्य गेट खड़ा था। गेट के ठीक बाहर, हर रोज एक आदमी बैठा रहता था—विक्रम सिंह। उम्र करीब 45 साल, कपड़े फटे हुए, पुराने। लेकिन उसकी आंखों में एक रहस्यमयी चमक थी, जैसे कोई गहरा राज छुपा हो।
सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक, विक्रम वहीं बैठकर कंपनी की आने-जाने वाली लग्जरी कारों को निहारता रहता। कभी-कभी वह किसी ड्राइवर की खिड़की पर दस्तक देकर कहता, “भाई साहब, एक रोटी का इंतजाम हो जाए? तीन दिन से भूखा हूं।” ज्यादातर लोग नजरअंदाज कर निकल जाते, कुछ हंसते हुए ताना मारते, “अबे काम कर ना, भीख क्यों मांगता है?” और कुछ गुस्से में गालियां देकर चले जाते।
एक दिन कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड सुरेश ने विक्रम से कहा, “अरे यहां से हट जा। गेट की शोभा बिगाड़ रहा है तू। मालिक लोग क्या सोचेंगे? जा कहीं और जाकर बैठ।” विक्रम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सुरेश भाई, कोई बात नहीं। एक दिन यह गेट मैं खुद खोलूंगा।” सुरेश जोर से हंसा, “तू मालिक बनेगा यहां का? सपने देखना बंद कर। कोई नौकरी ढूंढ।” विक्रम की मुस्कान नहीं गई। वह जानता था कि लोग उसे पागल समझते हैं, लेकिन उसके पास एक ऐसा राज था, जो किसी को नहीं पता था।
कंपनी के अंदर मालकिन नेहा मेहता अपने लग्जरी केबिन में फाइलों में डूबी हुई थी। 28 साल की नेहा बेहद खूबसूरत थी, लेकिन उसके अंदर अहंकार की आग जल रही थी। वह खुद को सबसे ऊपर मानती थी। कर्मचारी उससे थर-थर कांपते थे क्योंकि वह छोटी सी गलती पर चीखती। “यह रिपोर्ट बकवास है, दोबारा बनाओ!” उसने अपने असिस्टेंट राहुल पर गरजा। “तुम सब निकम्मे हो, कुछ सही नहीं कर सकते।” राहुल चुपचाप फाइल लेकर चला गया। यही हाल हर कर्मचारी का था—डर का माहौल।

अचानक एक दिन तेज बारिश शुरू हो गई। नेहा अपनी मर्सिडीज से उतर कर ऑफिस की ओर भाग रही थी। तभी विक्रम एक पुराना छाता लेकर उसके पास आया। “मैडम जी, बारिश जोरदार है, भीग जाएंगी। यह छाता ले लीजिए।” नेहा ने छाता झटक दिया और गुस्से से बोली, “छूना मत मुझे। तेरे गंदे हाथों से एलर्जी हो जाएगी। हट जा रास्ते से।” विक्रम ने शांत स्वर में कहा, “गंदे तो हालात होते हैं मैडम, इंसान नहीं।” नेहा ने उसे घूरा और तेजी से अंदर चली गई। बाहर खड़े कर्मचारी हंस रहे थे, “देखा मैडम ने कैसे भगाया। इसे लगता है मैडम से दोस्ती हो जाएगी।” विक्रम ने सब अनसुना कर दिया। वह जानता था कि जल्द ही सब बदल जाएगा।
शाम को ऑफिस बंद होने पर विक्रम अकेला बैठा सोच रहा था। उसे अपनी पत्नी राधा की याद आई। पांच साल पहले कैंसर ने उसे छीन लिया था। उसके साथ ही उनका छोटा बेटा विवान भी एक भयानक कार एक्सीडेंट में चला गया। उस त्रासदी ने विक्रम को तोड़ दिया। वह एक सफल बिजनेसमैन था, करोड़ों की संपत्ति का मालिक। लेकिन परिवार खोने के बाद सब कुछ बेईमानी लगने लगा। उसने सब छोड़ दिया और सड़कों पर आ गया। लेकिन उसके दिल में अभी भी एक उम्मीद की किरण जल रही थी—एक सपना, जो उसे जीवित रखे हुए था।
अगले दिन विक्रम गेट पर पहुंचा तो कर्मचारी उसके बारे में फुसफुसा रहे थे। “यह रोज यहां क्यों बैठता है? पागल लगता है। कल मैडम को तंग कर रहा था।” विक्रम ने सुना लेकिन कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि लोग उसकी वजह नहीं समझ सकते। असल में मेहता इंडस्ट्री सिर्फ मेहता परिवार की नहीं थी, इसमें विक्रम का भी बराबर का हिस्सा था। लेकिन यह बात सिर्फ हरीश मेहता जानते थे। नेहा के पिता—हरीश और विक्रम कॉलेज के दिनों से गहरे दोस्त थे। दोनों ने मिलकर कंपनी की नींव रखी थी। नाम ‘मेहता इंडस्ट्रीज’ इसलिए रखा गया क्योंकि हरीश की पत्नी का नाम मीना था और विक्रम चाहता था कि कंपनी उसके दोस्त के नाम से चमके।
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