अरबपति ने देखा एक भिखारिन लड़की उसकी अपाहिज बेटी को हँसा रही है – आगे उसने जो किया ….

कहते हैं पैसा हर जख्म भर सकता है। हर खुशी खरीद सकता है। लेकिन उस आलीशान बंगले की खामोशी में यह कहावत हर रोज दम तोड़ देती थी। वो घर था अर्जुन मेहरा का। वह नाम जिसके आगे पूरा शहर झुकता था। जिनकी एक उंगली के इशारे पर करोड़ों के सौदे होते थे। लेकिन उनकी सारी दौलत, सारी शोहरत उस एक व्हीलचेयर के सामने बेबस थी, जिस पर उनकी आठ साल की बेटी प्रिया खामोश बैठी रहती थी।

प्रिया की कहानी

एक भयानक हादसे ने प्रिया को ना सिर्फ व्हीलचेयर पर ला दिया था बल्कि उसकी हंसी भी छीन ली थी। उसने बोलना बंद कर दिया था। उसकी आंखें बस एक तक छत को या खिड़की के बाहर के खाली आसमान को घूरती रहती थीं। अर्जुन मेहरा, जो दुनिया जीत सकता था, वो अपनी बेटी की एक मुस्कान के लिए तरस गया था।

हर शाम अर्जुन अपनी सबसे महंगी गाड़ी में प्रिया को बस यूं ही शहर का चक्कर लगवाते थे। इस बेबस उम्मीद में कि शायद कोई नजारा, कोई आवाज उसके अंदर के जम चुके समंदर में एक हलचल पैदा कर दे। गाड़ी के काले शीशों के उस पार दुनिया की चकाचौंध थी और इस पार एक बाप का मौन दर्द।

काव्या की जिंदगी

उसी शहर के एक सबसे व्यस्त ट्रैफिक सिग्नल पर दूसरी दुनिया बसती थी। वो दुनिया थी काव्या की। काव्या जिसके पास ना घर था, ना कल का कोई भरोसा। फटे पुराने मैले कपड़ों में लिपटी वो लड़की गाड़ियों के शीशों पर दस्तक देकर जिंदगी की भीख मांगती थी। उस शाम बारिश की हल्की फुहारें शुरू हो चुकी थीं।

अर्जुन की Rolls Royce उस लाल बत्ती पर रुकी। काव्या भीगते हुए उस काली चमचमाती गाड़ी की खिड़की तक आई। उसे अंदर बैठे अमीर बाप-बेटी से कोई उम्मीद नहीं थी। वो बस अपना हाथ फैलाने ही वाली थी। तभी उसकी नजर शीशे के पार उस उदास खामोश बैठी लड़की प्रिया पर पड़ी।

एक चमत्कार

काव्या एक पल के लिए रुकी। उसने भीख नहीं मांगी। उसने अपने हाथ में पकड़ी दो कंकड़ियों को हवा में उछाला और अपनी फटी हुई जेब से एक छोटा सा मटमैला कपड़ा निकाला। चंद सेकंड में उसने उस कपड़े से एक अजीब सी गुड़िया बनाई और उसे अपनी उंगलियों पर नचाने लगी। वो बारिश की बूंदों को पकड़ने की कोशिश करते हुए एक अजीब सा मजाकिया चेहरा बना रही थी।

अर्जुन जो यह तमाशा देखकर अपने गार्ड को इशारा करने ही वाला था, अचानक जम गया। उसने एक आवाज सुनी—एक हल्की सी खिलखिलाहट। उसने पलट कर देखा। प्रिया, उसकी बेटी, प्रिया सालों बाद मुस्कुरा रही थी। अर्जुन मेहरा ने कांपते हाथों से गाड़ी का वो काला शीशा नीचे किया।

एक अनोखा रिश्ता

उसने एक पल में एक अरबपति एक भिखारी लड़की के सामने खड़ा था। लेकिन आज भिखारी कोई और था। बारिश की बूंदें, सिग्नल का शोर और पीछे की गाड़ियों के हॉर्न सब कुछ अर्जुन के कानों में दूर बहुत दूर बज रहा था। उसका पूरा ध्यान सिर्फ दो चीजों पर टिका था—अपनी बेटी के होठों पर आई वो हल्की सी मुस्कान और वो मैली कुचली लड़की जो अभी भी अपनी उंगलियों पर वो अजीब सी गुड़िया नचा रही थी।

प्रिया की आंखें, जो हमेशा खाली रहती थीं, आज काव्या पर टिकी थीं। उनमें एक चमक थी। एक जिंदगी थी। सिग्नल हरा हो गया। पीछे से हॉर्न बजने लगी। ड्राइवर ने घबराते हुए कहा, “सर, गाड़ी रोको!” अर्जुन लगभग चीखा। उसने जेब में हाथ डाला, नोटों की एक मोटी गड्डी निकाली और खिड़की से बाहर काव्या की तरफ बढ़ा दी।

काव्या की प्रतिक्रिया

काव्या ने पैसे की तरफ नहीं देखा। उसकी नजरें अभी भी प्रिया पर थीं, जो उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। काव्या ने भी अपनी जिंदगी में शायद पहली बार ऐसी निश्चल मुस्कान के जवाब में एक साफ मुस्कान दी। “सर, प्लीज चलिए, जाम लग रहा है,” ड्राइवर की आवाज में घबराहट थी।

अर्जुन ने पैसे वापस जेब में रख लिए। उसे एक झटके में एहसास हुआ कि यह लड़की, यह भीख मांगने वाली लड़की उसकी बेटी की हंसी की वजह नहीं थी। वो दुआ थी। वो दवा जो दुनिया के सबसे महंगे अस्पताल और सबसे काबिल डॉक्टर नहीं दे पाए थे।

एक नया मोड़

अर्जुन ने ड्राइवर की सीट के पीछे से इंटरकॉम दबाया। “शर्मा, दरवाजा खोलो।” ड्राइवर चौंक गया। “लेकिन सर यह—” “मैंने कहा दरवाजा खोलो!” अर्जुन की आवाज में वो रब था जिसने उसे अरबपति बनाया था। गाड़ी का भारी ऑटोमेटिक दरवाजा एक वश की आवाज के साथ खुला।

अर्जुन ने काव्या की तरफ देखा। उसकी आवाज, जो हजारों की भीड़ को काबू कर सकती थी, आज भीग रही थी। “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की सहम गई। “क-काव्या,” उसने कहा। “क्या तुम, क्या तुम मेरी बेटी के साथ खेलोगी?” काव्या को समझ नहीं आया। वो इस महंगी गाड़ी को, इस अमीर आदमी को और अंदर बैठी उस गुड़िया जैसी लड़की को देख रही थी।

काव्या का निर्णय

“अंदर आओ,” अर्जुन ने कहा। काव्या ने अपने फटे भीगे हुए कपड़ों को देखा। फिर उस गाड़ी की मखमली सीटों को। “मैं, मैं गंदी हूं,” साहब। प्रिया ने अपना छोटा सा हाथ, जो बरसों से बेजान पड़ा था, थोड़ा सा आगे बढ़ाया। अर्जुन की आंखों से आंसू बह निकले।

उसने हाथ जोड़ दिए। “प्लीज, मेरी बेटी के लिए बस थोड़ी देर के लिए तुम्हें जो चाहिए, मैं दूंगा।” सड़क पर तमाशा खड़ा हो गया था। लोग एक भिखारी लड़की को Rolls Royce में बुलाते एक अमीर आदमी को देख रहे थे।

एक नया रिश्ता

काव्या ने उस छोटी लड़की की आंखों में देखा। उसे पैसे या अमीरी समझ नहीं आती थी। उसे बस एक चीज समझ आई—एक और अकेली आंखें। उसने अपना हाथ बढ़ाया लेकिन गाड़ी को छूने के लिए नहीं। उसने अपनी उंगलियों से हवा में फिर से वो गुड़िया नचाई। प्रिया फिर से खिलखिलाई।

काव्या ने अपना कदम फुटपाथ से उठाकर उस अनजान दुनिया की दहलीज पर रख दिया। गाड़ी का दरवाजा बंद होते ही बाहर का शोर, बारिश और ट्रैफिक की दुनिया जैसे कट सी गई। अंदर एक अजीब सी खामोशी थी। काव्या मखमली सीट के कोने से चिपक कर बैठ गई।

नया अनुभव

उसे अपने भीगे मैले कपड़ों से सीट पर पड़ रहे गंदे पानी के धब्बों से घिन आ रही थी। शर्म आ रही थी। कार के अंदर एक ऐसी खुशबू थी जो उसने कभी नहीं सूंघी थी। शायद गुलाब और चंदन की। या शायद अमीरी की खुशबू ऐसी ही होती है। वो डर के मारे कांप रही थी।

“यह अमीर लोग कहां ले जा रहे हैं? क्या वो उसे पुलिस को दे देंगे?” “घर चलो, शर्मा। जल्दी,” अर्जुन की आवाज में एक अजीब सी बेकरारी थी। गाड़ी चल पड़ी। अर्जुन मेहरा ने फोन उठाकर जो गाड़ी जितना ही महंगा लग रहा था, किसी को हुक्म दिया। “मैं 10 मिनट में पहुंच रहा हूं। आता, घर पर सब तैयार रखो। प्रिया के लिए एक मेहमान आ रही है।”

काव्या की सोच

काव्या ने यह शब्द सुना और और ज्यादा सहम गई। वो मेहमान नहीं, भिखारी थी। तभी प्रिया ने, जो अब तक खामोश उन्हें देख रही थी, अपनी व्हीलचेयर से थोड़ा सा आगे झुककर अपना कमजोर सा हाथ काव्या की फटी हुई फ्रॉक की तरफ बढ़ाया।

एक उंगली से उसने फ्रॉक के धागे को छुआ। काव्या ने उस नन्ही उंगली को देखा। उसने डरते-डरते प्रिया की तरफ देखा। प्रिया की आंखें कह रही थीं। काव्या का सारा डर, सारी झिझक एक पल में गायब हो गई। उसने अपनी जेब टटोली। वो कंकड़ तो सिग्नल पर ही गिर गए थे। लेकिन काव्या ने हार नहीं मानी।

खेल का जादू

उसने अपनी ही उंगलियों को मोड़तोड़कर एक छोटा सा कठपुतली का खेल दिखाना शुरू कर दिया। वो अपनी उंगलियों को एक दूसरे से लड़ा रही थी और मुंह से पिटपिट डिशुम की अजीब मजाकिया आवाजें निकाल रही थी। प्रिया इस बार खिलखिला कर हंस दी।

जोर से गाड़ी में जैसे धमाका हुआ। ड्राइवर ने घबरा कर आईने में देखा। अर्जुन ने अपनी आंखों को रगड़ा। उसने यह आवाज, यह असली बेबाक हंसी। उसने यह हंसी सालों से नहीं सुनी थी। उसने अपनी बेटी को देखा, जो उस गंदी सड़क पर रहने वाली लड़की की उंगलियों को देख रही थी। मानो वो दुनिया का सबसे बड़ा खजाना हो।

एक नया एहसास

अर्जुन मेहरा को उस पल एहसास हुआ। वो अपनी बेटी को दुनिया की हर चीज खरीद कर दे सकता था। सिवाय उस एक चीज के जो सच में मायने रखती थी—खुशी। और वो खुशी आज उसे भीख में मिली थी।

कुछ ही देर में गाड़ी एक आलीशान महल जैसे बंगले के ऊंचे लोहे के फाटकों से गुजरी। गार्ड्स, नौकर चाकर सब सुन्न रह गए। अर्जुन मेहरा अपनी Rolls Royce में एक भिखारी लड़की के साथ। शर्मा ने दौड़कर दरवाजा खोला।

काव्या का पहला अनुभव

काव्या ने बाहर की दूध जैसी सफेद संगमरमर की जमीन पर कदम रखा। वो किसी अजूबे की तरह उस घर को देख रही थी, जो उसके पूरे मोहल्ले से भी बड़ा था। वो वापस भागना चाहती थी। यह दुनिया उसकी नहीं थी। यह जगह बहुत साफ, बहुत बड़ी, बहुत डरावनी थी।

तभी उसे अपने हाथ पर एक हल्का सा स्पर्श महसूस हुआ। प्रिया, जिसे एक नौकरानी ने व्हीलचेयर पर बाहर निकाला था, ने अपना हाथ बढ़ाकर काव्या की उंगली पकड़ ली थी। प्रिया की वो पकड़ बहुत कमजोर थी। लेकिन उसमें इतनी ताकत थी कि वो काव्या को उस संगमरमर के ठंडे फर्श पर रोक सके।

एक नई शुरुआत

काव्या ने अपनी उंगली छुड़ाने की कोशिश नहीं की। वो बस उस महल के दरवाजे पर खड़ी अंदर की चकाचौंध को देख रही थी। बड़े-बड़े झूमर, दीवारों पर लगी तस्वीरें और इतनी खामोशी कि उसे अपने दिल की धड़कन भी सुनाई दे रही थी। “अंदर आओ,” अर्जुन ने कहा।

उसकी आवाज उस बड़े हॉल में गूंज उठी। घर के सारे नौकर चाकर, जो सफेद वर्दी में थे, एक लाइन में खड़े हो गए थे। उनकी आंखों में हैरानी, घबराहट और थोड़ी नफरत थी। वो समझ नहीं पा रहे थे कि उनके मालिक, जो गंदगी को बर्दाश्त नहीं करते, आज सड़क से यह कूड़ा क्यों उठा लाए हैं।

एक नया परिवार

एक अधेड़ उम्र की औरत, शायद घर की मालकिन, श्रीमती डिसूजा, आगे आई। “सर, ये ये काव्या है,” अर्जुन ने कहा। उसकी आवाज में एक अधिकार था। “और यह अब से प्रिया के साथ रहेंगी।” हॉल में एक सन्नाटा छा गया। मानो किसी ने बम फोड़ दिया हो।

“लेकिन सर, प्रिया की देखभाल के लिए हमारे पास नर्सें हैं, फिजियोथेरेपिस्ट हैं।” “यह गंदी…” अर्जुन ने उसकी बात काट दी। “आप सब हैं। दुनिया के बेहतरीन डॉक्टर हैं। लेकिन जो यह कर सकती है वो आप में से कोई नहीं कर सका।”

काव्या की अहमियत

उसने अपनी बेटी की तरफ इशारा किया, जो अभी भी काव्या की उंगली थामे उसे देख रही थी। अर्जुन ने काव्या की तरफ देखा। “तुम्हें नहाना होगा।” यह एक हुक्म नहीं, एक जरूरत थी। काव्या ने खुद को देखा। वो कीचड़, बारिश के पानी और ना जाने कितनी रातों की गंदगी में लिपटी थी।

“श्रीमती डिसूजा,” अर्जुन ने कहा, “इन्हें साफ कपड़े दो और खाने के लिए कुछ। यह प्रिया के कमरे के पास वाले गेस्ट रूम में रहेंगी।” गेस्ट रूम में श्रीमती डिसूजा की आंखें फैल गईं। “वो कमरा तो खास मेहमानों के लिए था।” “मैंने जो कहा वो करो,” अर्जुन की आवाज ठंडी हो गई।

बदलाव का समय

काव्या को लगा जैसे उसे जबरदस्ती खींचा जा रहा हो। दो नौकरानियों ने उसे लगभग घसीटते हुए एक बाथरूम की तरफ धकेला, जो उसके रहने की पूरी जगह से बड़ा था। उन्होंने उसे गर्म पानी के नीचे खड़ा कर दिया। काव्या पहले तो चीखी। उसने ऐसा गर्म पानी कभी महसूस नहीं किया था।

उन्होंने उसे रगड़ रगड़ कर नहलाया। मानो वो कोई चीज हो, इंसान नहीं। उसके फटे पुराने कपड़े कूड़ेदान में फेंक दिए गए और उसे एक नरम सा फ्रॉक पहनने को दी गई। जब वह बाहर आई तो वह खुद को पहचान नहीं पा रही थी।

काव्या का नया रूप

वो अब भी काव्या थी लेकिन उसकी गंदगी, उसका कवच छीन गया था। वो अब इस साफ सुथरी दुनिया में नंगी खड़ी थी। अर्जुन मेहरा उसका इंतजार कर रहे थे। प्रिया उनके बगल में व्हीलचेयर पर बैठी थी। अर्जुन ने अपने बटुए से नोटों की एक और गड्डी निकाली।

“यह लो।” काव्या ने पैसों की तरफ देखा। “यह एडवांस है,” अर्जुन ने कहा, “एक बिजनेसमैन की तरह। तुम्हें यहां रहना है। मेरी बेटी के साथ उसे हंसाना है। बस यही तुम्हारा काम है। इसके बदले तुम्हें इतना पैसा मिलेगा कि तुम्हारी सात पुश्तों को भीख नहीं मांगनी पड़ेगी।”

काव्या का निर्णय

काव्या ने पैसे नहीं उठाए। उसने उस अमीर आदमी की आंखों में देखा। फिर उस व्हीलचेयर पर बैठी लड़की की आंखों में देखा। उसने वो गड्डी वापस अर्जुन की तरफ बढ़ा दी। “मुझे, मुझे यह नहीं चाहिए।” अर्जुन चौंक गया। “क्या मतलब? तुम्हें क्या चाहिए? सोना? बड़ा घर? बोलो, तुम जो मांगोगी मिलेगा।”

काव्या ने एक गहरी सांस ली। उस साफ सुथरी फ्रॉक में, उस महल जैसे घर में वो खुद को बहुत छोटा और बहुत बेतुका महसूस कर रही थी। “साहब,” उसने धीरे से कहा। उसकी नजरें प्रिया पर टिकी थीं। “पैसा वो तो पापी पेट के लिए होता है। भीख में मिलता है। लेकिन खेलना खेलना पेट के लिए नहीं होता।”

अर्जुन का दुख

उसने प्रिया की व्हीलचेयर को छुआ। “यह यह दुखी है।” अर्जुन की सारी अकड़, सारा बिजनेसमैन वाला अंदाज उस एक पल में बिखर गया। वो पास ही रखे एक बेहद महंगे सोफे पर धम्म से बैठ गया। मानो उसके पैरों में जान ही ना बची हो।

“वो वो ऐसी नहीं थी,” अर्जुन की आवाज भररा गई। उसने अपनी आंखें मोह ली। जैसे किसी पुराने जख्म को कुरेद रहा हो। काव्या ने कुछ नहीं कहा। वो बस इंतजार करती रही। खामोशी में दर्द बेहतर सुनाई देता है।

अर्जुन का कबूलनामा

यह उसने सड़क पर सीखा था। 2 साल पहले अर्जुन ने टूटी आवाज में कहना शुरू किया। “एक कार एक्सीडेंट हुआ था। मैं मैं गाड़ी चला रहा था। मेरी पत्नी, प्रिया की मां, वो भी साथ थी।” उसने एक लंबी कांपती हुई सांस ली। “बारिश बहुत तेज थी। हमारा झगड़ा हो रहा था और मैंने ध्यान नहीं दिया।”

प्रिया का दर्द

जब मेरी आंख खुली, मैं अस्पताल में था। मुझे बस खरोचे आई थीं, लेकिन मेरी पत्नी वो चली गई और प्रिया, प्रिया पीछे की सीट पर थी। उसने उसने सब कुछ अपनी आंखों से देखा। अपनी मां को। अर्जुन का चेहरा आंसुओं से भीग गया। “उसके पैरों ने काम करना बंद कर दिया। और उस दिन के बाद उसकी आवाज निकली। डॉक्टरों ने कहा यह पोस्ट ट्रॉमेटिक शॉक है। उसका दिमाग उसने खुद को दुनिया से बंद कर लिया है। उसने उस दिन के बाद कभी एक आंसू भी नहीं बहाया। वो बस खामोश हो गई।”

काव्या का सहारा

अर्जुन मेहरा, वो आदमी जिसने दुनिया जीत ली थी, आज अपनी ही बेटी के सामने हार गया था। काव्या ने पूरी कहानी सुनी। उसने उस अमीर आदमी के आंसुओं को देखा। फिर उसने उस खामोश लड़की को देखा। काव्या को शौक या ट्रॉमा जैसे बड़े शब्द समझ नहीं आए। उसे बस एक चीज समझ आई। इस लड़की के अंदर बहुत दर्द जम गया है।

वो घुटनों के बल जमीन पर बैठ गई। प्रिया की व्हीलचेयर के ठीक सामने। उसकी नजरें प्रिया की खाली आंखों से मिलीं। उसने अपनी नई फ्रॉक की जेब टटोली। खाली थी। उसके कंकड़, उसकी गुड़िया सब उस पुरानी जिंदगी में छूट गए थे।

काव्या का खेल

उसने आसपास देखा। पास की मेज पर रात के खाने के लिए चांदी के चम्मच रखे थे। काव्या ने एक चम्मच उठाया। उसने चम्मच को अपनी नाक पर रखने की कोशिश की। वो गिर गया। उसने फिर कोशिश की। वो फिर गिर गया। काव्या ने जानबूझकर अपनी आंखें मटकाई और एक बेवकूफी भरी ओ ही की आवाज निकाली।

प्रिया की खामोश आंखों में एक हल्की सी, बहुत हल्की सी हलचल हुई। काव्या ने इस बार चम्मच को अपने माथे पर टिकाया और एक जोकर की तरह मुस्कुराई। एक हल्की सी खनकती हुई हंसी। प्रिया मुस्कुरा रही थी। अर्जुन ने अपनी सांस रोक ली।

प्रिया का बदलाव

पीछे दरवाजे पर खड़ी श्रीमती डिसूजा का मुंह नफरत से सिकुड़ गया। वो इस गंदी लड़की को उनकी साफ सुथरी हवेली में चांदी के चम्मचों से खेलते देख बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। लेकिन मालिक के सामने वह बेबस थी। अर्जुन ने काव्या की तरफ देखा। जो अब चम्मच को कान पर लटकाने की कोशिश कर रही थी।

वो पैसे की तरफ नहीं देख रही थी। वह बस उस लड़की को हंसाने में मग्न थी। श्रीमती डिसूजा ने अर्जुन की आवाज बहुत शांत लेकिन बर्फ से भी ज्यादा ठंडी थी। “सर, वो मैं ये लड़की…”

काव्या का स्थान

अर्जुन ने उसकी बात काट दी। “अभी इसी वक्त अपना सामान पैक करेंगी और यहां से चली जाएंगी।” डिसूजा की आंखें फैल गईं। “सर, मैं मैं 30 साल से आपके परिवार के साथ हूं।” “इस सड़क की गंदगी के लिए…”

बिल्कुल अर्जुन ने एक कदम आगे बढ़ाया। वो अपनी बेटी के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखा। “यह सड़क की गंदगी जैसा आप कह रही हैं। इसने वो किया जो आप अपने 30 साल के तमीज मौस में नहीं कर पाई।”

एक नया रिश्ता

“इसने मेरी बेटी को एहसास करना सिखाया। उसने काव्या की तरफ देखा जो अभी भी जमीन पर बैठी सहम हुई थी। आज मेरी बेटी ने किसी और के दर्द के लिए गुस्सा किया। उसने उसे बचाया। अर्जुन की आवाज भररा गई। “और आपने उसकी इकलौती दोस्त को चोट पहुंचाई।”

“गेट आउट!” वो इस बार चीखा। श्रीमती डिसूजा के पास कोई रास्ता नहीं था। वो नफरत भरी नजरों से काव्या को घूरती हुई वहां से चली गई।

एक नया परिवार

अर्जुन मेहरा घुटनों के बल काव्या के सामने बैठ गए। “मुझे माफ कर दो बेटी,” उसने कहा। यह पहली बार था कि उसने काव्या को बेटी कहा था। “मेरे घर में तुम्हारा अपमान हुआ।” काव्या ने कुछ नहीं कहा। उसने बस अपने आंसू पोंछे और प्रिया की व्हीलचेयर को थाम लिया।

उस दिन के बाद उस घर में सब कुछ बदल गया। काव्या अब मेहमान नहीं थी। वो घर का हिस्सा थी। अर्जुन ने बाकी सारे स्टाफ को सख्त हिदायत दी। “यह प्रिया की बहन है। इसे वही इज्जत मिलेगी जो प्रिया को मिलती है।”

काव्या की नई जिंदगी

हफ्ते महीनों में बदलने लगे। काव्या के लिए एक ट्यूटर रखा गया। वो लड़की जो सिग्नल पर भीख मांगती थी, अब तेजी से अंग्रेजी और गणित सीख रही थी। उसका दिमाग एक सूखे स्पंज की तरह था जो हर नई चीज को सोख रहा था। लेकिन वो बदली नहीं।

वो आज भी प्रिया को जमीन पर बैठकर कंकड़ों से खेलना सिखाती। वो उसे अपनी बनाई हुई कहानियां सुनाती। वो उसे सिखाती कि कैसे बारिश की बूंदों को जीभ पर पकड़ते हैं। प्रिया की खामोशी अब पहले जैसी खामोशी नहीं रही। उसमें अब सुकून था। वो मुस्कुराती थी। कभी-कभी खिलखिलाती भी थी।

प्रिया की आवाज

लेकिन वो अभी भी बोलती नहीं थी। एक रात बाहर झुरों की बारिश हो रही थी। बिल्कुल वैसी ही बारिश जैसी उस एक्सीडेंट वाली रात को हुई थी। काव्या ने देखा कि प्रिया खिड़की से बाहर देख रही है और उसका छोटा सा शरीर कांप रहा है। वो उस रात को याद कर रही थी।

काव्या ने प्रिया की व्हीलचेयर को छुआ। “डर लग रहा है?” प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया। बस खिड़की को घूरती रही। काव्या ने प्रिया का हाथ अपने हाथ में ले लिया। “पता है,” काव्या ने धीरे से कहा। “जब मैं सड़क पर सोती थी और बारिश आती थी तो मैं भी बहुत डर जाती थी। सब भीग जाता था।”

काव्या का सहारा

प्रिया ने पलट कर काव्या को देखा। “लेकिन फिर मैं अपनी आंखें बंद करती थी,” काव्या ने कहा और सोचती थी कि यह बारिश नहीं है। “यह तो ऊपर आसमान में कोई फवारा चला रहा है और मैं उसमें नहा रही हूं।” वो मुस्कुराई। “डर डर यहां होता है।”

काव्या ने प्रिया के माथे पर उंगली रखी। “यहां नहीं।” प्रिया ने काव्या की आंखों में देखा। बाहर बिजली कड़की। प्रिया जोर से कांप गई। उसकी आंखें बंद हो गईं और दो साल में पहली बार उन सूखी आंखों से आंसू की एक धार बह निकली।

प्रिया का पहला शब्द

उसके होंठ कांपे और एक आवाज निकली। एक सिसकी, एक शब्द जो उस घर ने दो साल से नहीं सुना था। “मां!” वह एक शब्द उस आलीशान खामोश बंगले में किसी धमाके की तरह गूंजा। अर्जुन, जो अपने कमरे में काम करने की कोशिश कर रहे थे, उस आवाज को सुनकर जम गए।

क्या, क्या उन्होंने सही सुना या यह उनके तरसते हुए दिल का वहम था? वो अपनी कुर्सी से लगभग गिरते हुए उठे और प्रिया के कमरे की तरफ भागे। जब वह दरवाजे पर पहुंचे तो वह वहीं रुक गए। अंदर का नजारा कुछ ऐसा था जिसने उनकी आत्मा को झिंझोड़ दिया।

एक नया परिवार

प्रिया, उनकी खामोश बेटी, अपनी व्हीलचेयर पर आगे की तरफ झुकी हुई थी और जोर-जोर से रो रही थी। यह वो शांत आंसू नहीं थे जो आज निकले थे। ये ये एक तूफानी सिसकी थी। दो साल का दबा हुआ दर्द, डर और वो खौफनाक याद सब एक साथ बाहर फूट पड़ा था।

और काव्या, वो उस अमीर लड़की की व्हीलचेयर के पास जमीन पर बैठी थी। उसने प्रिया को कसकर गले लगा लिया था। वो प्रिया के बालों को सहला रही थी। मानो एक मां अपने डरे हुए बच्चे को पनाह दे रही हो।

अर्जुन का एहसास

काव्या को ट्रॉमा या एक्सीडेंट की बातें समझ नहीं आई थीं। उसे बस यह पता था कि उसकी दोस्त दर्द में है और उसे सहारे की जरूरत है। “कोई बात नहीं,” काव्या धीरे से फुसफुसा रही थी। “रो ले, सब बाहर निकाल दे। मैं यहीं हूं। मैं कहीं नहीं जाऊंगी।”

“वो मुझे मुझे छोड़ गई,” प्रिया टूटे-फूटे शब्दों में सिसक रही थी। “अंधेरा बहुत, बहुत डर!” “हां,” काव्या ने कहा, “लेकिन अब देख, आंख खोल। मैं हूं ना, अंधेरा नहीं है। मैं तेरा हाथ पकड़े हूं।”

एक नया जीवन

अर्जुन दरवाजे पर खड़े कांप रहे थे। उनके डॉक्टर, उनके मनोचिकित्सक सबने कहा था कि प्रिया को पहले उस दर्द को बाहर निकालना होगा। वो दो साल से उस जख्म को दबाए बैठी थी। आज इस सड़क पर मिली लड़की ने, जिसने खुद हजारों तूफान देखे थे, प्रिया को रोने की, ठीक होने की इजाजत दे दी थी।

अर्जुन धीरे-धीरे अंदर आए। उनके कदमों की आहट सुनकर काव्या ने सिर उठाया। प्रिया ने भी अपने आंसू भरे चेहरे को काव्या के कंधे से उठाया और अपने पिता को देखा। “पापा!” वो कांपते हुए होठों से बोली। अर्जुन मेहरा वहीं फर्श पर घुटनों के बल बैठ गए।

एक नया परिवार

वो अपनी बेटी तक पहुंचने के लिए लगभग रेंग रहे थे। उन्होंने प्रिया का चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके माथे को चूम लिया। “हां, मेरी बच्ची, हां पापा, यहीं है।” उस रात, उस महंगे कमरे में संगमरमर के ठंडे फर्श पर वो तीनों बैठे थे।

एक अरबपति बाप, उसकी टूटी हुई बेटी और वो भिखारी लड़की, जो उन दोनों की जिंदगी का सबसे मजबूत धागा बन गई थी। वो बारिश की परवाह किए बिना एक दूसरे को थामे बस रोते रहे। खुशी के, दर्द के और एक नए सिरे से जुड़ने के आंसू।

अंतिम फैसला

अर्जुन मेहरा ने उस रात एक फैसला किया। काव्या सिर्फ उनकी बेटी की दोस्त नहीं थी। वो उनकी बेटी थी। अगली सुबह अर्जुन ने अपने वकीलों को फोन किया। “मुझे एक बच्ची को गोद लेना है। उसका नाम काव्या है। मुझे नहीं पता उसके मां-बाप कौन हैं या वो कहां से आई है। मुझे बस उसे कानूनी तौर पर अपना नाम देना है। जल्द से जल्द।”

लेकिन वकील की आवाज में झिझक थी। “सर, यह इतना आसान नहीं होगा। आपके परिवार के बाकी लोग, आपकी बहन, आपके जीजाजी, वो कंपनी के बोर्ड में हैं। वो एक एक लावारिस लड़की को मेहरा खानदान का वारिस बनते देख…”

एक नया अध्याय

अर्जुन ने उसकी बात काट दी। “मुझे परवाह नहीं। जो जरूरी है वो करो।” अर्जुन नहीं जानते थे कि उनका यह एक फैसला उनकी जिंदगी में खुशी के साथ-साथ एक ऐसे तूफान को भी न्योता दे रहा था, जो उस रात की बारिश से कहीं ज्यादा खौफनाक होने वाला था।

निष्कर्ष

इस तरह, एक भिखारी लड़की ने एक अरबपति परिवार में न केवल खुशी की लहर लाई, बल्कि एक नए रिश्ते की शुरुआत भी की। काव्या ने प्रिया को वो खुशियां दीं, जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती थीं। और अर्जुन ने सीखा कि असली अमीरी सिर्फ दौलत में नहीं, बल्कि सच्चे रिश्तों और भावनाओं में होती है।

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