इंस्पेक्टर को लगा कि आईपीएस कोई टायर रिपेयर करने वाली है, इसलिए उसने हाथ उठा दिया। तो फिर इंस्पेक्टर का क्या हुआ…
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इंस्पेक्टर ने साधारण महिला समझकर डीएम को थप्पड़ मार दिया, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो क्या हुआ… | भावनात्मक कहानी |
सुबह-सुबह जिले की सबसे बड़ी अधिकारी डीएम कविता सिंह अपनी स्कूटी पर ऑफिस जा रही थीं। गुलाबी साड़ी पहने, साधारण महिला जैसी दिखतीं, उनके चेहरे पर जिम्मेदारी का भाव था। ऑफिस की फाइलें बैग में रखीं, मन में दिनभर के कामों की योजना। जैसे ही वे बाजार के पास पहुँची, अचानक उनकी स्कूटी पंचर हो गई। वे परेशान हो उठीं—”अब देर हो जाएगी, मीटिंग भी है।”
कविता सिंह ने आसपास खड़े एक आदमी से पूछा, “भाई, यहाँ पास में कोई पंचर की दुकान है?” आदमी ने इशारे से बताया, “आगे थोड़ा चलिए, बाईं तरफ एक पंचर वाला मिलेगा।” कविता सिंह धीरे-धीरे स्कूटी घसीटते हुए दुकान तक पहुँचीं। “भाई, मेरी स्कूटी पंचर हो गई है, जल्दी ठीक कर दीजिए,” उन्होंने कहा।
पंचर वाला काम में लग गया। तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर आदित्य वर्मा अपनी गाड़ी लेकर वहाँ पहुँचा। उसकी गाड़ी भी पंचर थी। वह गुस्से में चिल्लाया, “अरे मेरा पंचर पहले ठीक करो! मुझे बहुत जरूरी काम है, जल्दी करो!” पंचर वाले ने विनम्रता से कहा, “साहब, अभी मैडम की स्कूटी का पंचर बना रहा हूँ, बस 10 मिनट में आपका कर दूँगा।” इंस्पेक्टर तिलमिला उठा, “10 मिनट? मैं नहीं बैठूंगा! पहले मेरा पंचर बनाओ, ज्यादा बकवास मत करो!”
कविता सिंह ने शांत स्वर में कहा, “सर, मुझे भी ऑफिस जाना है, कृपया पहले मेरा बना दीजिए, आपका भी बन जाएगा।” इंस्पेक्टर और भड़क गया, “तुम हमसे जुबान लड़ाओगी? दिख नहीं रहा मैं कौन हूँ? अभी दो थप्पड़ मार दूँगा!” आसपास के लोग सहम गए। किसी को अंदाजा नहीं था कि ये महिला जिले की डीएम है।
कविता सिंह ने दृढ़ता से कहा, “देखिए, सबको अपना-अपना काम है, आप भी इंतजार कर सकते हैं।” इंस्पेक्टर ने अचानक कविता सिंह को थप्पड़ मार दिया, “तू मुझे जानती नहीं है! मैं थाने का दरोगा हूँ, चाहूँ तो तुझे बहुत मार दूँ!” पंचर वाला घबरा गया, सोचने लगा कि पुलिस वाले को मनाना ही सही होगा। उसने इंस्पेक्टर की गाड़ी का पंचर बनाना शुरू किया।
कविता सिंह खुद को संभालकर वहीं बैठी रहीं। थोड़ी देर में इंस्पेक्टर की गाड़ी का पंचर ठीक हो गया। इंस्पेक्टर गाड़ी स्टार्ट करने लगा तो पंचर वाले ने कहा, “साहब, आपके पैसे तो दीजिए!” इंस्पेक्टर फट पड़ा, “पैसे? मैं पुलिस वाला हूँ, मुझसे पैसे मांगेगा?” वह बिना पैसे दिए जाने लगा।
कविता सिंह ने कहा, “साहब, मेहनत का पैसा देना चाहिए। आपने इनका काम कराया है, इनका हक है। अगर आप बिना पैसे दिए चले गए तो इनके घर का चूल्हा कैसे जलेगा?” इंस्पेक्टर फिर भड़क गया, “फिर से जुबान चल रही है? देख, एक थप्पड़ पड़ा है, फिर पड़ेगा!” पंचर वाला हाथ जोड़कर बोला, “सर, हम गरीब हैं। रोज कमाते हैं, परिवार चलता है। हमारी मेहनत का पैसा दीजिए।” इंस्पेक्टर ने गुस्से में पंचर वाले को भी थप्पड़ मार दिया।
अब कविता सिंह का स्वर कठोर हो गया, “आप कानून के रक्षक हैं, लेकिन कानून का मजाक बना रहे हैं। आपने मुझ पर भी हाथ उठाया है, यह अपराध है। मैं आपके खिलाफ कार्यवाही करूंगी। आप नहीं जानते कि मैं कौन हूँ। मैं इस जिले की डीएम कविता सिंह हूँ।” इंस्पेक्टर हँस पड़ा, “तू डीएम है? तेरी शक्ल तो भीख मांगने जैसी है।”
कविता सिंह चुप रहीं, स्कूटी का पंचर ठीक कराया, अपने और इंस्पेक्टर दोनों के पैसे पंचर वाले को दिए। पंचर वाला मना करता रहा, लेकिन कविता सिंह ने कहा, “आपका हक आपको ही मिलना चाहिए।” फिर वे ऑफिस के लिए निकल गईं।
ऑफिस पहुँचकर कविता सिंह ने आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को फोन किया। पूरी घटना बताई—”एक इंस्पेक्टर ने सड़क पर गरीब पंचर वाले को पीटा, मेरा हक छीना और मुझ पर भी हाथ उठाया।” किरण बेदी गुस्से से तिलमिला उठीं, “ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं करूंगी। मैं आज ही इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई शुरू करूंगी।”
थोड़ी देर बाद किरण बेदी थाने पहुँचीं। अंदर का माहौल अजीब था। इंस्पेक्टर अपनी कुर्सी पर पैर फैलाए बैठा था। किरण बेदी को देखते ही घबरा गया, “नमस्ते मैडम, कोई काम था क्या?” किरण बेदी ने सख्त आवाज में कहा, “हाँ, बड़ा काम है। तुम्हारी शिकायत आई है। कल तुमने सड़क पर गरीब पंचर वाले को पीटा, उसका मेहनत का पैसा छीन लिया, और जिले की डीएम पर भी हाथ उठाया।”
इंस्पेक्टर के होश उड़ गए। “मैडम, मुझे नहीं पता था वह डीएम हैं। गलती से हाथ उठा दिया।” किरण बेदी भड़क उठीं, “चुप रहो! तुमने कानून का उल्लंघन किया है। तुम्हें कल मीटिंग हॉल में प्रेस के सामने जवाब देना होगा।”
अगले दिन जिले के सबसे बड़े मीटिंग हॉल में मीडिया और आम जनता की भारी भीड़ थी। हर कोई चर्चा कर रहा था—”इंस्पेक्टर ने डीएम को थप्पड़ मार दिया? गरीब पंचर वाले को भी पीट दिया?” हॉल के अंदर कविता सिंह, किरण बेदी और एसडीएम अनिल वर्मा बैठे थे। पुलिस के दो जवानों के साथ इंस्पेक्टर आदित्य वर्मा अंदर आया। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था।
डीएम कविता सिंह ने माइक उठाया, “कल सड़क पर जो हुआ, वह पूरे सिस्टम की साख से जुड़ा है। कानून सबके लिए बराबर है। आज सार्वजनिक जांच और फैसला होगा।” भीड़ तालियों से गूंज उठी।
सबसे पहले पंचर वाले को बुलाया गया। उसके चेहरे पर कल के थप्पड़ का निशान था। उसने हाथ जोड़कर कहा, “मैडम, मैं गरीब आदमी हूँ। रोज कमाता हूँ, रोज खाता हूँ। कल मैडम का स्कूटी पंचर बना रहा था, तभी इंस्पेक्टर साहब आ गए। उन्होंने जबरदस्ती की, मैडम ने भी कहा सबको बराबरी का हक है। फिर उन्होंने मैडम को थप्पड़ मार दिया, मेरे ऊपर भी हाथ उठा दिया और पैसे देने से मना कर दिया।”
पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। अब कविता सिंह ने खुद सारी घटना बयान की। “अगर जिले का इंस्पेक्टर सड़क पर खुलेआम इस तरह की हरकत कर सकता है, तो आम जनता का क्या हाल होगा? हमें सोचना होगा कि हम कानून का पालन करवाने वाले हैं या कानून तोड़ने वाले।”
अब बारी इंस्पेक्टर की थी। वह कांपते हुए बोला, “मैडम, मुझसे गलती हुई। बहुत काम था, तनाव में था, गुस्से में आकर ऐसा कर दिया।” किरण बेदी ने टोक दिया, “यह बहाने यहाँ नहीं चलेंगे। वर्दी का मतलब सेवा है, गुंडागर्दी नहीं।”
भीड़ से आवाजें उठीं, “सस्पेंड करो इसे! गरीब को मारने वाले इंसाफ के लायक नहीं है।” किरण बेदी ने सख्त लहजे में बोला, “इंस्पेक्टर आदित्य वर्मा, तुम्हारे खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। डीएम मैडम और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के आधार पर तुम्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। विभागीय जांच होगी, दोषी पाए गए तो नौकरी से बर्खास्त और आपराधिक मुकदमा भी चलेगा।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। पंचर वाले की आँखों में राहत के आँसू थे। उसने हाथ जोड़कर डीएम और आईपीएस को धन्यवाद दिया। कविता सिंह ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “अब तुम्हें कोई डरने की जरूरत नहीं। कानून सबके लिए बराबर है। तुम्हारे हक की रक्षा करना हमारा फर्ज है।”
किरण बेदी ने भीड़ की तरफ देखा, “यह संदेश हर नागरिक तक जाना चाहिए—चाहे कोई कितना भी बड़ा पदाधिकारी क्यों न हो, अगर वह कानून तोड़ेगा तो उसे सजा मिलेगी। कानून से बड़ा कोई नहीं है।”
दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे जरूर शेयर करें। बताएं, अगर आप उस पंचर वाले या डीएम की जगह होते तो क्या करते? इंसानियत और कानून की रक्षा के लिए आवाज उठाना ही असली नागरिकता है।
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