गांव के मेले में बुजुर्ग ने एक छोटी गुड़िया खरीदी लोगों ने मज़ाक उड़ाया लेकिन उसकी वजह
गांव का मेला अपने पूरे रंग में था। ढोल-नगाड़ों की आवाज, बच्चों की खिलखिलाहट, रंग-बिरंगी झंडियां और हर तरफ चहल-पहल थी। गांव के हर कोने से लोग इकट्ठा हुए थे। कोई झूले पर बैठा था, कोई मिठाई खरीद रहा था, तो कोई खिलौनों की दुकान पर बच्चों की जिद पूरी कर रहा था।
इसी भीड़ के बीच एक बुजुर्ग व्यक्ति धीरे-धीरे मेले के रास्ते पर आया। उम्र सत्तर के पार थी। चेहरे पर झुर्रियां, आंखों में हल्की नमी, तन पर साधारण सफेद धोती-कुर्ता, पैरों में पुरानी चप्पलें और हाथों में हल्का सा कंपन। वह बिल्कुल अकेला था। ना साथ में कोई बच्चा, ना परिवार का कोई सदस्य। लोग उसे देखते और तुरंत नजर फेर लेते। शायद किसी को लगा कि वह यहां बस समय काटने आया है। लेकिन उसके कदम बहुत सोच-समझकर बढ़ रहे थे, जैसे किसी खास मकसद से आया हो।
कुछ देर बाद वह एक छोटे खिलौनों की दुकान पर रुका। दुकान पर तरह-तरह के खिलौने सजे थे—रंग-बिरंगी गाड़ियां, गुब्बारे, गुड़िया और ढोलकियां। बच्चों की भीड़ वहां लगी हुई थी और उनका शोर पूरे मेले में गूंज रहा था। बुजुर्ग ने कांपते हाथों से दुकानदार की ओर इशारा किया और धीरे से बोला,
“बेटा, वो छोटी सी गुड़िया दिखाना जरा।”
दुकानदार ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। आसपास खड़े बच्चों ने भी ध्यान दिया और खिलखिला कर हंस पड़े।
“दादा, इस उम्र में गुड़िया लेकर क्या करोगे? बच्चों के लिए छोड़ दो ना। आपको गुड़िया क्यों चाहिए?”
बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। वह बस उस छोटी सी गुड़िया को हाथ में लेकर देखता रहा, जैसे कोई अनमोल चीज हो। उसकी उंगलियां गुड़िया के सिर पर ऐसे फिर रही थीं मानो उसके भीतर छिपी कोई याद जिंदा हो गई हो। भीड़ में कुछ लोग फुसफुसाने लगे, “कितनी अजीब बात है, बूढ़ा आदमी गुड़िया खरीद रहा है। शायद पागल हो गया है। देखो पैसे भी बर्बाद करेगा।” कुछ लोगों ने हंसी भी उड़ाई।
दुकानदार मुस्कुराया और बोला,
“दादा, यह गुड़िया पांच रुपये की है। देंगे तो ले जाना।”

बुजुर्ग ने धीरे से अपने कपड़े के थैले से सिक्के निकाले, कांपते हाथों से पैसे गिने और दुकानदार को थमा दिए। उसने गुड़िया को बहुत सावधानी से अपनी छाती से लगाया और धीरे-धीरे भीड़ से निकल गया। पीछे खड़े लोग अब भी उसका मजाक बना रहे थे।
“देखा, पांच रुपये की गुड़िया खरीदी है। बच्चे नहीं हैं फिर भी गुड़िया खरीद रहा है। पागल लगता है सच में।”
लेकिन बुजुर्ग ने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया। उसकी आंखों में गहरी चुप्पी और चेहरे पर अजीब सी तसल्ली थी। वह गुड़िया को ऐसे थामे हुए चल रहा था मानो उसकी पूरी दुनिया उसी में सिमट गई हो।
भीड़ में एक किशोर लड़का खड़ा था जिसने यह पूरा दृश्य देखा। बाकी सब हंस रहे थे, लेकिन उस लड़के को अजीब सा एहसास हुआ। उसने सोचा—आखिर एक बुजुर्ग आदमी गुड़िया क्यों खरीद रहा होगा? इसमें कुछ तो है जो हम सब नहीं समझ पा रहे। उसका दिल कह रहा था कि इस रहस्य में कोई गहरी बात छिपी है। बुजुर्ग की धीमी चाल और उसके चेहरे की नमी ने उस किशोर के मन में एक बेचैनी जगा दी। उसने चुपचाप बुजुर्ग का पीछा करना शुरू कर दिया।
बुजुर्ग भीड़ से दूर निकलकर मेले के शोरशराबे से परे एक शांत रास्ते पर चल पड़ा। अब वहां हंसी नहीं थी, ना शोर। सिर्फ हवा का सन्नाटा और बुजुर्ग के पैरों की थकी हुई आहट। लड़के का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे लग रहा था कि वह किसी बहुत गहरे सच के सामने पहुंचने वाला है।
बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे मेले से बाहर निकल गया। उसके हाथ अब भी उस छोटी सी गुड़िया को कसकर पकड़े हुए थे, जैसे अगर वह ढीला छोड़ दे तो यादें बिखर जाएंगी। पीछे-पीछे वह किशोर लड़का चुपचाप चल रहा था। उसके दिल में अजीब सी जिज्ञासा और बेचैनी थी। मेले की रोशनी और शोरगुल पीछे छूट चुके थे। अब रास्ता सुनसान और शांत था। बुजुर्ग की चाल बहुत धीमी थी, हर कदम जैसे किसी भारी बोझ से दबा हुआ। लड़के को महसूस हुआ कि इस आदमी के भीतर कोई गहरी पीड़ा है जो उसके चेहरे पर तो नहीं, लेकिन उसकी झुकी हुई पीठ और थके कदमों से साफ झलक रही थी।
कुछ देर बाद वह एक पुराने रास्ते पर पहुंचा, जिसके दोनों ओर नीम और पीपल के पेड़ खड़े थे। हवा में हल्की ठंडक और पत्तों की सरसराहट थी। बुजुर्ग ने वहीं से बाएं मुड़कर कदम बढ़ाए। लड़के का दिल और तेज धड़कने लगा—आखिर यह कहां जा रहे हैं?
थोड़ी दूर चलने के बाद वह जगह आई जहां चारों तरफ सन्नाटा था। यह गांव का श्मशान घाट था। आसपास जली हुई लकड़ियों की गंध और पुरानी राख की धुंधली परछाईं हवा में तैर रही थी। बुजुर्ग उस जगह पहुंचा जहां नीम के पेड़ की छाया के नीचे एक छोटा सा कब्र जैसा टीला बना था। मिट्टी से उभरी हुई एक छोटी ढेरी, जिसके ऊपर पुरानी ईंटें और सूखे फूल पड़े थे।
लड़का वहीं रुक गया। उसकी आंखें चौड़ी हो गईं—यह तो बच्चों की कब्र लगती है। बुजुर्ग धीरे-धीरे घुटनों के बल बैठ गए। कांपते हाथों से उन्होंने अपनी छाती से गुड़िया निकाली और बहुत प्यार से उस छोटे टीले पर रख दी। उनकी आंखों से आंसू बह निकले। होंठ बुदबुदा रहे थे,
“जन्मदिन मुबारक हो मेरी गुड़िया। बाबा आज भी आया है। जब तुम जिंदा थी तब खिलौना नहीं दिला पाया, लेकिन आज दिल से यह अधूरा वादा पूरा कर रहा हूं।”
उनकी आवाज इतनी धीमी थी कि हवा में घुल गई, लेकिन उस किशोर लड़के के कानों तक सब पहुंच गया। उसका दिल कांप उठा, उसकी आंखें भर आईं। अभी कल तक जो दृश्य उसने देखा था—लोगों का हंसना, बच्चों का मजाक उड़ाना, दुकानदार की बेरुखी—सब उसकी आंखों के सामने घूम गया। अब उसे अपनी हंसी शर्मिंदगी में बदलती महसूस हुई।
“हमने सोचा यह पागल है, बुजुर्ग होकर गुड़िया क्यों खरीद रहा है? पर असलियत तो कितनी दर्दनाक है। यह आदमी अपने बच्चे के लिए गुड़िया लाया था, उसके लिए जो अब इस दुनिया में नहीं।”
बुजुर्ग वहीं मिट्टी पर बैठ गए, हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद की। उनका शरीर कांप रहा था, लेकिन चेहरे पर एक सुकून भी था, जैसे उन्होंने अपने दिल का बोझ हल्का कर दिया हो।
लड़का अब अपने आंसू रोक नहीं पाया। उसके कदम खुद-ब-खुद आगे बढ़ गए। उसने बुजुर्ग के पास जाकर धीरे से उनके कंधे पर हाथ रखा। बुजुर्ग ने सिर उठाया। उसकी आंखों में नमी और थकान थी। लड़के ने रोते हुए कहा,
“दादा, हमें माफ कर दीजिए। हमने आपको समझा ही नहीं।”
बुजुर्ग ने हल्की सी मुस्कान दी और बोले,
“बेटा, लोग अक्सर दूसरों के दर्द को नहीं समझते। हर चीज को मजाक समझ लेते हैं। लेकिन याद रखना, हम चीजें नहीं खरीदते, हम यादें संजोते हैं।”
यह कहते-कहते बुजुर्ग फिर से गुड़िया को टीले पर टिका कर उठ खड़े हुए। उनका हर कदम धीमा था, लेकिन आंखों में अजीब सा हल्कापन था।
गांव का किशोर लड़का, जिसने सब देखा था, अब चुप नहीं रह सका। वह दौड़ते हुए वापस मेले की तरफ गया। उसकी आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। वह लोगों से बार-बार कह रहा था,
“तुम सब ने मजाक उड़ाया था ना? चलो, चल कर देखो, देखो उस गुड़िया की असली वजह।”
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