कचरे से करोड़पति: कबीर की कहानी
सुबह की धुंधली रोशनी में कबीर कचरे के ढेर पर खड़ा था। उसके हाथों में फटी बोरी थी और आंखों में बीते कल का दर्द। कभी वह एएसएमडी बैंक में सिक्योरिटी गार्ड था—साफ वर्दी, इज्जत और एक सभ्य जिंदगी। लेकिन एक दिन शिवानी मेहता ने उसे थप्पड़ मारकर जलील किया और नौकरी से निकाल दिया। अब कबीर की जिंदगी कचरा बीनने तक सीमित हो गई थी। हर सुबह वही रास्ता, वही तिरस्कार भरी नजरें, लेकिन इंसान को जीना होता है।
एक दिन, कबीर को कचरे के ढेर में एक भारी काली बोरी मिली। जब उसने उसे खोला, तो उसके होश उड़ गए—बोरी में नोटों के बंडल थे, कुल ₹15 लाख। कबीर ने पैसा छुपा लिया, डर था कि पुलिस या लोग उस पर शक करेंगे। उसने सोच-समझकर धीरे-धीरे अपनी जिंदगी बदलने की योजना बनाई। पहले होटल खोलने के लिए लोन लेने की बात फैलाई, फिर केबीआर होटल शुरू किया। मेहनत और ईमानदारी से उसका होटल चल निकला।
कुछ ही महीनों में कबीर का होटल शहर में मशहूर हो गया। उसने अपने पुराने दोस्तों को काम पर रखा—मोहन पाल, मनोज जाटव, सुरेश धाकड़ और विजय रावत। होटल की कमाई बढ़ी, कबीर ने दूसरा होटल भी खोल लिया। अब लोग उसे एक सफल बिजनेसमैन मानने लगे थे। कबीर ने अपने घर की मरम्मत करवाई, लेकिन दिखावा नहीं किया।
फिर एक दिन कबीर को पता चला कि एएसएमडी बैंक बिकने वाला है। उसने दो बड़े बिजनेसमैन से पार्टनरशिप की और बैंक खरीद लिया। अब वही कबीर, जिसे कभी अपमानित किया गया था, बैंक का मालिक बन गया। शिवानी मेहता अब साधारण क्लर्क बन गई, और कबीर ने उसे सबक सिखाया कि इज्जत छीनने से नहीं, देने से बढ़ती है।

कबीर ने होटल चेन और बैंक दोनों को सफल बनाया। उसने गरीब बच्चों की पढ़ाई, अस्पताल, और समाज सेवा के लिए खूब पैसा लगाया। उसकी सफलता की कहानी पूरे राज्य में मिसाल बन गई—कचरे से करोड़पति। लेकिन कबीर जानता था कि असली ताकत उसकी मेहनत, धैर्य और ईमानदारी में थी।
आज जब कबीर अपने बंगले की छत पर खड़ा होकर शहर को देखता है, तो उसे अपना पुराना घर और कचरे की बोरी याद आती है। वह मुस्कुराता है और सोचता है कि जिंदगी कितनी अजीब है—एक दिन इंसान कचरे के ढेर पर, दूसरे दिन शहर की ऊंची इमारत पर। लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि इंसान को अपनी मानवता कभी नहीं खोनी चाहिए। दौलत आनी-जानी चीज है, लेकिन संस्कार हमेशा साथ रहते हैं।
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