गरीब समझकर पति का अपमान किया… पर बाद में खुला करोड़ों का राज़!
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गरीब समझकर पति का अपमान किया… पर बाद में खुला करोड़ों का राज़!
दिल्ली हवाई अड्डे की भीड़भाड़ में एक युवक तेज़ी से भागता जा रहा था। उसका नाम था आदित्य। उसने साधारण सी कमीज़ पहन रखी थी, पैरों में घिसी हुई चप्पलें थीं, और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थीं। उसकी बेताबी की वजह थी लंदन की एक फ्लाइट, जहां उसका गुरु जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था। आदित्य के पास समय कम था, और पैसे तो उससे भी कम।
हवाई अड्डे के अधिकारी ने उसकी हालत देखकर उसे रोक लिया, “यह लाइन नहीं, उधर जाओ! साधारण यात्रियों के लिए दूसरी व्यवस्था है।” आदित्य ने विनती की, “मुझे जल्दी जाना है, मेरा गुरु अस्पताल में है।” लेकिन अधिकारी ने उसकी बात अनसुनी कर दी। आदित्य की आंखों में निराशा थी, लेकिन मजबूरी उससे भी बड़ी थी।
इस सब को कांच की दीवार के उस पार से देख रही थी नंदिनी—आदित्य की पत्नी। वह राय ग्रुप की मालकिन थी, देश की सबसे बड़ी व्यापारिक कंपनी की CEO। वह विदेशी निवेशकों के साथ मीटिंग के लिए एयरपोर्ट आई थी। आदित्य को इस अपमानजनक स्थिति में देखकर उसका चेहरा शर्म और गुस्से से सिकुड़ गया। उनकी शादी नंदिनी के दादाजी की जिद पर हुई थी। दादाजी ने मरने से पहले कहा था, “यह लड़का एक दिन तेरा कवच बनेगा।” लेकिन नंदिनी कभी भी सड़क किनारे खाने की दुकान चलाने वाले आदित्य को पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पाई थी। उसके महल जैसे घर में आदित्य की मौजूदगी एक अनचाही परछाई थी।
नंदिनी का बिजनेस पार्टनर और बचपन का दोस्त रोहन आदित्य को देखकर व्यंग्यात्मक हंसी हंस पड़ा, “नंदिनी, इस बोझ को कब तक ढोओगी? इसे कुछ पैसे देकर विदा कर दो। हमारे क्लाइंट्स ने देखा तो क्या सोचेंगे?” शर्मिंदगी छुपाने के लिए नंदिनी आदित्य के पास गई और ठंडी आवाज में बोली, “तुम यहां क्या कर रहे हो? मेरी इज्जत के साथ खेलने की और कोई जगह नहीं मिली? अभी घर लौट जाओ।” आदित्य की गिड़गिड़ाहट उस तक नहीं पहुंची। निराशा में डूबा आदित्य जैसे ही मुड़ने वाला था, तभी उसका जोरदार धक्का एक अहंकारी शख्स से लग गया।
वह शख्स था नीला आकाश एयरलाइंस का मालिक मिस्टर खन्ना। उनके महंगे सूट पर कॉफी गिर गई। आदित्य की साधारण पोशाक देखकर उनकी नफरत और बढ़ गई। “अंधा है क्या? जानता है मैं कौन हूं? तेरे जैसे सड़क के भिखारी यहां नहीं आते।” यह कहकर उन्होंने आदित्य के हाथ से लंदन की टिकट छीन ली और उसे फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
इस चरम अपमान ने आदित्य के भीतर सोए हुए शेर को जगा दिया। उसकी शांत आंखों में एक ठंडी आग भड़क उठी। उसने मिस्टर खन्ना की ओर देखकर शांत लेकिन खतरनाक आवाज में कहा, “आपने मेरा टिकट फाड़ा है। मैं आपको सिर्फ 10 मिनट देता हूं। इसके बाद आपकी विमान कंपनी इतिहास बन जाएगी।” खन्ना जोर से हंस पड़े, लेकिन उनकी हंसी जल्दी ही ठंडी पड़ गई। आदित्य ने जेब से एक साधारण सा फोन निकाला और सिर्फ एक कॉल किया।
अविश्वसनीय रूप से ठीक 10 मिनट बाद हवाई अड्डे के घोषणा सिस्टम और न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ छा गई—“धोखाधड़ी और भारी वित्तीय अनियमितताओं के कारण नीला आकाश एयरलाइंस का लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिया गया है और उनकी सारी संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।” खन्ना का चेहरा सूख गया। वह डर से कांपते हुए आदित्य के पैरों में गिर पड़ा। उसी वक्त काले सूट में कुछ लोग आए और आदित्य के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया। उनके नेता रमेश अंकल एक बुजुर्ग शख्स आदित्य के सामने आए और सिर झुकाकर बोले, “छोटे साहब, आपके लिए खास विमान की व्यवस्था हो चुकी है। गुरु जी की हालत स्थिर है लेकिन वह आपका इंतजार कर रहे हैं।”
दूर से नंदिनी और रोहन यह दृश्य देखकर सन्न रह गए। देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक रमेश अंकल जिसे बड़े-बड़े उद्योगपति सम्मान देते हैं, वह इस साधारण से आदित्य को छोटे साहब कहकर संबोधित कर रहा था। नंदिनी के मन में पहली बार उसके दादाजी की बातें एक नए अर्थ के साथ लौटी।
लंदन से लौटकर आदित्य फिर अपनी पुरानी जिंदगी में लौट गया। शहर के एक कोने में उसकी छोटी सी खाने की दुकान थी, जहां वह अपने हाथों से पकोड़े बनाकर बेचता था। उसकी यह साधारण जिंदगी एक गहरा रहस्य छुपाए हुए थी। हवाई अड्डे की घटना के बाद से नंदिनी के मन में एक तूफान सा चल रहा था। उस रात जब वह थकी और टूटी हुई वापस घर लौटी तो चारों ओर सन्नाटा था। अपने विशाल घर की रसोई के एक कोने में एक टिमटिमाती रोशनी जल रही थी। उत्सुकता में वह वहां गई और देखा कि आदित्य शांति से रोटी बना रहा था और सब्जी गर्म कर रहा था।
नंदिनी गुस्से में कुछ कहने वाली थी, तभी उसने देखा कि आदित्य वह खाना घर के बुजुर्ग चौकीदार के लिए पैक कर रहा था, जिसकी तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी। चौकीदार संकोच में कुछ मांग नहीं पाया था, लेकिन आदित्य ने उसका ख्याल रखा। आदित्य बड़े प्यार से खाना लेकर चला गया। यह साधारण लेकिन गहरा मानवीय दृश्य नंदिनी के दिल को झकझोर गया। जो इंसान एक फोन कॉल से पूरी विमान कंपनी को बर्बाद कर सकता है, वही इंसान एक साधारण चौकीदार की इतनी चिंता करता है। नंदिनी ने पहली बार आदित्य की ताकत के पीछे छुपे इंसान को देखने की कोशिश की। उसके मन में एक अनजाना संदेह जागा।
कुछ दिन बाद राय ग्रुप पर असली आघात आया। एक बेहद अहम सरकारी कॉन्ट्रैक्ट उनके हाथ से निकल गया और वह उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी शर्मा इंडस्ट्रीज को मिल गया। इस खबर के साथ कंपनी के शेयर गिरने लगे और निवेशक मुंह फेरने लगे। नंदिनी अपने दादाजी के बनाए साम्राज्य को बचाने के लिए दिन-रात एक कर रही थी, लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। कंपनी का सबसे भरोसेमंद पुराना कर्मचारी महेश जी उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि इसके पीछे एक गहरी साजिश है।
बोर्डरूम की एक तनावपूर्ण मीटिंग में जब सबने लगभग हार मान ली थी, तभी आदित्य एक कटोरी खाना लिए वहां पहुंचा। उसे देखकर रोहन ने फिर तंज कसा, “देखो संकट के समय हमारा उद्धारक आ गया। अब क्या पकोड़े बेचकर कंपनी बचाएगा?” सब हंस रहे थे। तभी नंदिनी ने सबको चुप करा दिया। उसके मन में हवाई अड्डे की वह खतरनाक शक्ति और बीती रात का वह मानवीय चेहरा एक साथ उभर आया। उसने अपने दादाजी की आखिरी बातें याद की—“जब भेड़िए भेड़ की खाल में तेरा साम्राज्य हड़पने आएंगे तब भेड़ की खाल में छुपा शेर ही उसे बचाएगा।”
उसने एक अविश्वसनीय फैसला लिया। उसने आदित्य की ओर देखकर कहा, “बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो?” आदित्य ने इस अप्रत्याशित मौके का फायदा उठाते हुए शांति से कहा, “अगर मैं कहूं कि यह संकट जानबूझकर बनाया गया है? अगर मैं कहूं कि हमारे बीच से ही कोई शर्मा इंडस्ट्रीज की मदद कर रहा है?” उसकी नजर सीधे रोहन पर गई। उसने कंपनी के वित्तीय दस्तावेज देखने की इजाजत मांगी। नंदिनी की मंजूरी के बाद आदित्य ने देर रात तक कंपनी के सारे दस्तावेज खंगाले। उसकी तेज बुद्धि ने कुछ ही समय में साजिश का जाल पकड़ लिया। उसे सबूत मिल गया कि रोहन ने कंपनी की गोपनीय जानकारी शर्मा इंडस्ट्रीज को दी थी और झूठी खबरें फैलाकर निवेशकों को डराया था।
अगले दिन बोर्डरूम में आदित्य ने सारे सबूत पेश किए। रोहन का चेहरा डर से फीका पड़ गया। लेकिन उसने घमंड से कहा, “सबूत तो ठीक है, लेकिन कंपनी तो दिवालिया होने की कगार पर है। अब क्या करोगे?” आदित्य मुस्कुराया और बोला, “समाधान बहुत आसान है।” उसने वही साधारण फोन निकाला और रमेश अंकल को कॉल किया। इस बार उसने लाउडस्पीकर पर बात की। रमेश अंकल की भरोसेमंद आवाज आई, “छोटे साहब, आपका हुक्म?” आदित्य ने निर्देश दिया, “पहले राय ग्रुप के जितने शेयर बाजार में हैं, सब खरीद लो। दूसरा, शर्मा इंडस्ट्रीज के खिलाफ हमारे पास मौजूद सबूतों के साथ उनकी कंपनी को अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करो। तीसरा, राय ग्रुप और सूरज एंटरप्राइज के बीच रणनीतिक साझेदारी की घोषणा कर दो। और हां, रोहन को इस कमरे से बाहर ना जाने दो।”
सूरज एंटरप्राइज का नाम सुनते ही बोर्डरूम में जैसे परमाणु बम फट गया। आदित्य उस रहस्यमई साम्राज्य का छोटा सा हब था। कुछ ही मिनटों में खेल पलट गया। राय ग्रुप के शेयर आसमान छूने लगे और रोहन के हाथों में पुलिस की हथकड़ी चढ़ गई। पुलिस के तेज कदमों की आवाज के बाद एक गहरी खामोशी छा गई। नंदिनी एक कोने में खड़ी थी जैसे तूफान के केंद्र में अकेली। ना सिर्फ उसकी कंपनी बची थी बल्कि उसका जाना पहचाना संसार, उसका सारा घमंड और विश्वास टुकड़े-टुकड़े हो गया था।
आदित्य उस खामोशी के बीच धीरे-धीरे उसके पास आया। उसकी आंखों में ना घमंड था, ना कोई शिकायत। उसने एक गिलास पानी नंदिनी की ओर बढ़ाया। इस अरबों रुपए के तूफान के बीच एक अविश्वसनीय रूप से शांत साधारण इशारा। नंदिनी ने कांपते हाथों से गिलास लिया। वह पानी उसे सिर्फ पानी नहीं लगा, बल्कि एक उफनते समुद्र में तैरता हुआ एक टुकड़ा आश्रय लगा। उसका सारा गुस्सा, नफरत, उपेक्षा सब कुछ पश्चाताप की एक प्रचंड बाढ़ में बह गया। उसने टूटी आवाज में पूछा, “जिस इंसान को मैं 2 साल से सिर्फ तिरस्कार देती आई, तुम आखिर हो कौन?”
आदित्य की शांत आंखों में एक गहरे समुद्र की स्थिरता थी। उसने कहा, “मैं तुम्हारे दादाजी से किया एक वादा हूं। उन्होंने एक ऐसे शख्स की तलाश की थी जो तूफान में पेड़ को बचा ले, लेकिन तूफान थमने के बाद उस पेड़ पर हक ना जताए।” नंदिनी स्तब्ध रह गई। आदित्य ने फिर कहा, “बाहर की दुनिया का छोटा साहब सिर्फ एक कवच है। मेरी असली शांति इस शक्ति के शिखर पर नहीं, बल्कि मेरी उस छोटी सी दुकान में है। साधारण लोगों की हंसी में।”
उसके शब्द नंदिनी के दिल में गहरे उतर गए। आदित्य ने उसके थके हुए चेहरे की ओर देखकर हल्के से कहा, “बहुत हो गया। यह कांच का महल, यह शक्ति का खेल, इन सब से बहुत दूर। चलो घर चलें। आज मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खिचड़ी बनाऊंगा।” यह साधारण सा प्रस्ताव एक नए रिश्ते की नींव की तरह था। हजारों करोड़ की मालकिन ने उस दिन पहली बार समझा कि सबसे बड़ा आश्रय शक्ति के सिंहासन पर नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद हाथ की गर्माहट में होता है।
उसने चुपचाप सिर हिलाया। उसकी आंखों से बहते आंसू अब दर्द के नहीं, मुक्ति के थे।
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