ट्रेन में बैग बदले गए, एक बैग में कीमती सामान था, लड़की ने उसे उसके मालिक को लौटा दिया…

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे अलवर में रहने वाली रोशनी एक साधारण पर बेहद होशियार लड़की थी। उसके पिता, श्री रामनिवास, एक रिटायर्ड स्कूल मास्टर थे और मां एक गृहिणी। घर में कमाने वाला कोई नहीं था, और पिता की पेंशन से घर चलाना बेहद मुश्किल होता जा रहा था। रोशनी ने अपनी पढ़ाई जयपुर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से पूरी की थी, जहां उसने एमबीए किया। यह पढ़ाई उसके माता-पिता की जमा पूंजी और कुछ कर्ज लेकर पूरी हुई थी। परिवार को उम्मीद थी कि रोशनी जल्दी ही एक अच्छी नौकरी पाएगी और घर की हालत सुधर जाएगी।

लेकिन किस्मत ने जैसे परीक्षा लेने की ठान रखी थी। छह महीनों से रोशनी जगह-जगह इंटरव्यू दे रही थी लेकिन हर जगह से उसे निराशा ही मिलती। कभी अनुभव की कमी आड़े आती, तो कभी कोई सिफारिश। परिवार की हालत बिगड़ती जा रही थी। पिता की दमे की बीमारी बढ़ रही थी और छोटी बहन की कॉलेज फीस भी सिर पर थी।

फिर एक दिन रोशनी को गुड़गांव की एक प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी, ग्लोबल टेक सॉल्यूशंस से इंटरव्यू कॉल आया। यह एक बहुत बड़ा मौका था। अगर उसे यह नौकरी मिल जाती, तो उसकी सारी मुश्किलें आसान हो सकती थीं।

इंटरव्यू के दिन वह अपनी मां और पिता का आशीर्वाद लेकर, अपने पुराने लेकिन मजबूत काले रंग के सूटकेस के साथ जयपुर से शताब्दी एक्सप्रेस में सवार हुई। उसी ट्रेन में दिल्ली का एक प्रसिद्ध बिजनेसमैन, अजय सिंघानिया भी सफर कर रहा था। अजय, सिंघानिया इंडस्ट्रीज का मालिक, एक अनुशासित और ईमानदार उद्यमी था। उस दिन वह जयपुर से दिल्ली अपने एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के दस्तावेज और एक गुप्त प्रोटोटाइप के साथ लौट रहा था। उसके पास भी वैसा ही एक काले रंग का सूटकेस था।

जयपुर स्टेशन पर ट्रेन कुछ मिनटों के लिए रुकी। अफरातफरी में एक कुली ने गलती से रोशनी और अजय के सूटकेस बदल दिए। ना अजय को पता चला, ना रोशनी को।

गुड़गांव पहुंचकर रोशनी सीधे इंटरव्यू देने पहुंची। इंटरव्यू कठिन था, पैनल ने अनुभव आधारित सवाल पूछे। रोशनी ने पूरी मेहनत की, लेकिन उसे लगा कि शायद वो उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। भारी मन से वह पास के एक सस्ते गेस्ट हाउस में चली गई, जहां उसने बैग खोलते ही देखा कि ये उसका बैग नहीं है।

बैग में ब्रांडेड कपड़े, गोपनीय दस्तावेज और एक बेहद कीमती घड़ी थी। कुछ पल को वो घबरा गई। यह घड़ी इतनी कीमती थी कि उसके परिवार का कर्ज चुक सकता था। लेकिन फिर उसे अपने पिता की बात याद आई— “बेटी, दौलत तो आएगी-जाएगी, लेकिन चरित्र सबसे बड़ी पूंजी है।”

भीतर एक जबर्दस्त लड़ाई के बाद रोशनी ने सही फैसला किया। उसने दस्तावेजों में से एक विजिटिंग कार्ड खोज निकाला— अजय सिंघानिया, सीईओ, सिंघानिया इंडस्ट्रीज। उसने ऑटो लिया और सीधे उस पते पर पहुंची।

दूसरी तरफ अजय को जैसे ही बैग बदलने का पता चला, उसके होश उड़ गए। वह बैग अरबों की डील का आधार था। वह मान बैठा कि किसी ने चोरी की है। अपनी सिक्योरिटी टीम को लगा दिया और गुस्से में उबल रहा था।

तभी रिसेप्शन से खबर आई— “एक लड़की आई है, कहती है कि उसके पास आपका बैग है।” अजय ने गार्ड्स को बुलवाया और रोशनी को अंदर लाया गया।

अजय ने बिना रोशनी की बात सुने उस पर चोर होने का आरोप लगा दिया। लेकिन रोशनी ने बहुत शांति और आत्मसम्मान के साथ सारी बात बताई। उसने सूटकेस मेज पर रखा और कहा, “यह आपकी अमानत है। गलती से मेरे पास आ गई थी। मैं बस लौटाने आई हूं।”

अजय ने जब बैग खोला, तो सब कुछ जस का तस था। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। पहली बार उसने रोशनी को ध्यान से देखा— थकी हुई आंखें, सफर की धूल, पर उनमें एक गहरी ईमानदारी और आत्मविश्वास था।

“तुम्हारा इंटरव्यू कैसा रहा?” अजय ने पूछा।

“अच्छा नहीं रहा। शायद मैं उस नौकरी के लायक नहीं थी,” रोशनी बोली।

अजय ने उसे रोक लिया और कहा, “जिस कंपनी ने तुम्हें रिजेक्ट किया, उसने सबसे बड़ी गलती की। मुझे अपनी कंपनी में डिग्रियों से ज़्यादा ईमानदारी चाहिए।”

फिर उसने एचआर को बुलाया और कहा, “इन्हें हमारी कंपनी में असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर नियुक्त करो।”

रोशनी की आंखों में आंसू आ गए। यह सैलरी उसकी सोच से भी ज्यादा थी। उसकी ईमानदारी ने उसकी किस्मत बदल दी थी।

अजय ने कहा, “जिस चीज को तुमने लौटाया, अब उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी है।”

इस तरह रोशनी की जिंदगी बदल गई। उसकी ईमानदारी ने उसे वो दिलाया जिसकी उसने कभी सिर्फ कल्पना की थी। यह कहानी हमें सिखाती है कि—

ईमानदारी देर से सही, पर हमेशा जीतती है।
चरित्र ही इंसान की सबसे बड़ी पहचान है।

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