देखो! ये औरत कीचड़ में कैसे फँसी – एक सबक़ देने वाली इस्लामी कहानी

ज़ारा एक छोटे से गांव में अपने पति रईस और दो प्यारी बेटियों के साथ रहती थी। ज़ारा का जीवन हमेशा से संघर्ष से भरा रहा था। शादी के पहले दिन से ही उसे एहसास हुआ कि रईस का स्वभाव कितना कठोर है। वह हमेशा बेटों की चाह में रहता था और ज़ारा पर दबाव डालता था कि उसे एक बेटा पैदा करना है। जब ज़ारा ने दो बेटियों को जन्म दिया, तो रईस का गुस्सा और बढ़ गया।

“तू तो वाकई मनहूस निकली,” उसने ज़ारा को घूरते हुए कहा। “अब मेरे घर में सिर्फ बेटियों की ही भरमार होगी।” ज़ारा की आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। वह अपने बच्चों के लिए जीती रही।

भाग 2: कठिनाइयों का सामना

एक दिन, ज़ारा खेतों में काम कर रही थी, तभी अचानक उसका पैर फिसल गया और वह गिर गई। उसके पैर की हड्डी टूट गई और उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। रईस और उसकी सास ने उसे बोझ समझा और उसे घर से निकालने की योजना बनाने लगे। ज़ारा की हालत बिगड़ती गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।

जब वह अस्पताल से घर लौटी, तो उसे व्हीलचेयर पर बैठना पड़ा। रईस ने बेरुखी से कहा, “मुझे माजूर औरत नहीं चाहिए।” ज़ारा ने अपने आंसुओं को छुपाते हुए कहा, “मैं अपनी बेटियों के लिए जीऊंगी।”

भाग 3: दरवाजे का बंद होना

एक रात, जब ज़ारा ने रईस से अपने हक की बात की, तो उसने उसे दरवाजे के बाहर फेंक दिया। “दरवाजे खोल दो अल्लाह के वास्ते,” ज़ारा ने चिल्लाते हुए कहा। लेकिन दरवाजा बंद हो चुका था और उसके साथ सब रिश्ते भी।

ज़ारा अब अपने अतीत में भटकने लगी। उसे अपने अब्बा की याद आई, जिन्होंने हमेशा उसे प्यार किया था। अब्बा की यादें उसे हिम्मत देती थीं। उसने सोचा, “मैं अपनी बेटियों के लिए जीऊंगी।”

भाग 4: एक नई पहचान

ज़ारा ने अपने अब्बा के पुराने घर में लौटने का फैसला किया। उसने अपनी बेटियों के साथ वहां नई जिंदगी शुरू की। उसने सिलाई का काम शुरू किया और धीरे-धीरे गांव की औरतों के कपड़े सिलने लगी। उसकी मेहनत ने उसके घर की रौनक वापस ला दी।

वक्त गुजरा और एक साल बीत गया। ज़ारा अब किसी की मोहब्बत की मोहताज नहीं थी। उसकी ताकत उसकी बेटियों की मुस्कान थी। एक दिन, जब वह अपने काम में व्यस्त थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला और सामने फैजान खड़ा था।

भाग 5: पुरानी यादें

फैजान, जो उसके बचपन का दोस्त था, उसकी आंखों में पछतावा था। ज़ारा ने कठोर स्वर में कहा, “तुम क्यों आए हो फैजान? मैं अब अपनी बेटियों के साथ खुश हूं। तुम्हारे लिए इस जिंदगी में कोई जगह नहीं बची।”

फैजान ने कहा, “मुझे पता है तुम सोचती हो मैंने तुम्हें धोखा दिया। लेकिन वह सब झूठ था। जिस दिन मैं तुम्हें फोन करने वाला था, उस दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया।”

ज़ारा की आंखों में आंसू आ गए। “क्या यह सच है?” उसने कहा। फैजान ने आगे कहा, “जब मुझे होश आया, मैंने तुम्हें ढूंढा, लेकिन तब तुम्हारे अब्बा का इंतकाल हो गया था।”

भाग 6: एक नया मोड़

फैजान ने कहा, “मैं अब भी तुम्हारे लिए यहां हूं। अगर तुम चाहो, तो हम फिर से अपनी जिंदगी सी सकते हैं।” ज़ारा ने अपनी बेटियों की ओर देखा। उनकी आंखों में उम्मीद थी। उसने गहरी सांस ली और कहा, “जो रिश्ते तकदीर तोड़ दें, उन्हें इंसान के हाथ नहीं जोड़ सकते।”

फैजान की आंखों में आंसू थे। उसने कहा, “मैं तुम्हें नाम दूंगा, इज्जत दूंगा।” ज़ारा ने सिर झुका लिया। “अगर यह मेरी किस्मत का लिखा है, तो मैं इंकार कैसे करूं?”

भाग 7: नई जिंदगी की शुरुआत

उनका निकाह सादगी से हुआ। फैजान ने ज़ारा और उसकी बेटियों को लेकर शहर चला गया। वहां उसका एक बड़ा सा घर था और उससे भी बड़ा दिल। ज़ारा ने फिर से चलना शुरू किया और उसकी उम्मीदें भी लौट आईं।

फैजान ने कभी उसे यह एहसास नहीं होने दिया कि वह किसी की छोड़ी हुई औरत है। वह उसकी बेटियों से ऐसे पेश आता जैसे वे उसकी अपनी हों। ज़ारा हर रात सजदे में गिरती और अल्लाह का शुक्रिया अदा करती।

भाग 8: रईस की बर्बादी

उधर, रईस की जिंदगी बर्बादी की दास्तान बन चुकी थी। जिस औरत के लिए उसने ज़ारा को ठुकराया था, वही अब उसके सारे पैसे लेकर फरार हो चुकी थी। रईस की मां भी बीमारी में दुनिया छोड़ गई।

रईस, जो कभी दूसरों पर हुक्म चलाता था, अब सड़कों पर भीख मांग रहा था। वह अक्सर खुद से कहता, “मैंने उस औरत को ठुकराया जो फरिश्ता थी और थाम लिया उस हाथ को जो शैतान निकला।”

भाग 9: न्याय का दिन

एक दिन, ज़ारा अपनी बेटियों को स्कूल से लेने निकली। सड़क किनारे एक कमजोर दुबला-पतला भिखारी बैठा था। ज़ारा ने बिना देखे अपनी पर्स से कुछ पैसे निकाले और उसके कटोरे में डाल दिए। भिखारी ने सिर उठाया। वह रईस था।

उसकी आंखों में पछतावे का समंदर उभर आया। ज़ारा ने शांत सुकून भरी मुस्कान के साथ कहा, “अल्लाह ने इंसाफ कर दिया। तुमने मुझे ठुकराया था और आज वहीं ठुकराया हुआ इंसान तुम्हारे सामने सिर उठाकर खड़ा है।”

भाग 10: सब्र की मिसाल

ज़ारा ने अपनी बच्चियों का हाथ थामा और आगे बढ़ गई। रईस वहीं बैठा रह गया, आंसुओं में डूबा हुआ, अपने गुनाहों में जलता हुआ। उसके होंठ कांपे, “काश मैंने उस वक्त सब्र किया होता।”

ज़ारा अब सब्र की मिसाल बन चुकी थी। उसने खुद अपनी तकदीर की इमारत खड़ी की। उसकी जिंदगी में अब सुकून था, और उसने साबित कर दिया कि सब्र का फल मीठा होता है।

इस तरह ज़ारा ने अपने जीवन में जो संघर्ष किया, वह न केवल उसकी ताकत बना बल्कि उसने अपने बच्चों को भी एक नई राह दिखाई। उसकी कहानी हर उस औरत के लिए प्रेरणा बन गई, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रही है।

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