कहानी: “इंसाफ की लड़ाई: आईपीएस अधिकारी प्रिया गुप्ता की बहादुरी”

माधवपुर जिले का हाईवे मानो जंगल का कानून था। दिन-दहाड़े भी इस सड़क से गुजरने से लोग डरते थे। वजह थी इंस्पेक्टर राजेश सिंह, जो पुलिस कम और गुंडा ज्यादा था। उसका हर माल लदे वाहन से जबरन वसूली करना और विरोध करने वालों को धमकाना, उसकी रोजमर्रा की आदत बन चुकी थी। गरीब ट्रक ड्राइवर इब्राहिम चाचा जैसे लोग उसकी क्रूरता का शिकार होते थे।

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लेकिन, जिले में एक नई आईपीएस अधिकारी प्रिया गुप्ता का आगमन हुआ। वह युवा, तेज और न्यायप्रिय थी। जब राजेश सिंह के खिलाफ शिकायतों का अंबार उनके पास पहुंचा, तो उन्होंने ठान लिया कि इस भ्रष्टाचार का अंत करना है।

प्रिया ने एक गुप्त योजना बनाई। वह अपने असली रूप को छोड़कर एक साधारण ट्रक हेल्पर “शालिनी” बन गईं। पुरानी सलवार-कमीज पहनकर, चेहरे पर कालिख लगाकर, और देहाती लहजे में बात करते हुए, उन्होंने खुद को पूरी तरह बदल लिया। उनके साथ उनका भरोसेमंद अधिकारी ट्रक ड्राइवर बना।

रात के अंधेरे में, प्रिया का ट्रक उस हाईवे पर पहुंचा, जहां इंस्पेक्टर राजेश सिंह अपने शिकार का इंतजार कर रहा था। जैसे ही ट्रक रुका, राजेश ने अपनी लालची नजरें ट्रक पर डालीं। उसने ट्रक ड्राइवर से पैसे मांगे और “शालिनी” को देखकर व्यंग्य किया। लेकिन, जब प्रिया ने विरोध किया, तो राजेश सिंह आगबबूला हो गया। उसने डंडा उठाकर प्रिया को धमकाया।

इसी बीच, प्रिया ने अपनी असली पहचान उजागर की। उन्होंने अपने मोबाइल से सायरन बजाने का संकेत दिया। कुछ ही देर में पुलिस की जीपें वहां पहुंचीं। जिले के डीआईजी और अन्य बड़े अधिकारी प्रिया को सैल्यूट करने लगे। राजेश सिंह की आंखें खुली की खुली रह गईं। वह समझ गया कि वह अब बच नहीं सकता।

प्रिया ने राजेश सिंह को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उसकी भ्रष्टाचारी हरकतों का अंत हुआ। इस घटना के बाद, पूरे जिले में ईमानदारी और न्याय की लहर दौड़ गई। प्रिया ने साबित कर दिया कि कानून से बड़ा कोई नहीं।

इस कहानी ने यह संदेश दिया कि अन्याय चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो, न्याय के सामने उसे झुकना ही पड़ता है।