SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाई
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एसपी मैडम का पति पंचरवाला — अधूरी कहानी का नया अध्याय
शहर की सुबह हमेशा चहल-पहल से भरी रहती थी। हॉर्न की आवाजें, स्कूटी और बाइक की रफ्तार, दुकानों के शटर खुलने की कटरपटर, और लोग अपनी-अपनी मंजिलों की ओर भागते हुए नजर आते थे। इसी बीच एक महिला तेज़ कदमों से अपनी स्कूटी चलाती हुई अपने दफ्तर की ओर बढ़ रही थी। वह कोई और नहीं, बल्कि सीमा — शहर की सख्त, तेजतर्रार और ईमानदार पुलिस अफसर, यानी एसपी साहिबा थीं।
सीमा की सख्ती से अपराधी कांपते थे और आम जनता उन्हें देवता समान मानती थी। उनका व्यक्तित्व दमदार था, सफेद शर्ट और काली पट्टी में वह किसी से कम नहीं लगती थीं। उस दिन भी सीमा मीटिंग के लिए जल्दी पहुंचना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने सोचा सीधे दफ्तर जाकर तैयारी कर लेंगी। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही सोचा था।
रास्ते में उनकी स्कूटी से अचानक अजीब सी आवाज आने लगी। धीरे-धीरे आवाज बढ़ने लगी और स्कूटी हिलने लगी। सीमा ने तुरंत साइड लगाकर देखा तो पता चला पीछे का टायर पंचर हो चुका था। उन्होंने चारों ओर देखा और सड़क के कोने पर एक पुरानी पंचर की दुकान नजर आई। दुकान के बाहर एक आदमी धूप में बैठा था और किसी की साइकिल का टायर ठीक कर रहा था।
सीमा ने सोचा, “यहीं ठीक करवा लेती हूं।” स्कूटी वहीं खड़ी की और उस आदमी से कहा, “भाई, स्कूटी का टायर देखना, पंचर हो गया है।” आदमी ने सिर उठाया, उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, हाथ ग्रीस और धूल से सने हुए थे। उसकी आंखों में गहरी थकान और मजबूरी झलक रही थी।
लेकिन जब उसकी नजर सीमा पर पड़ी, तो उसका चेहरा अचानक बदल गया। वह कुछ पल के लिए स्थिर खड़ा रहा जैसे किसी ने उसे बिजली का झटका दे दिया हो। सीमा भी ठिठक गई। दोनों की नजरें टकराईं और समय जैसे थम सा गया। सामने खड़ा पंचर बनाने वाला कोई और नहीं, बल्कि सीमा का पति था, जिसे वह सालों पहले छोड़ चुकी थीं — या कहें कि हालात ने उनसे जुदा कर दिया था।
सीमा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। दिमाग में पुराने पल घूमने लगे — शादी के दिन, साथ बिताए लम्हे, और फिर अचानक आए तूफान की तरह सब कुछ बिखर जाना। वह खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसके होंठ बुदबुदा उठे, “तुम… तुम?” पति ने गहरी आवाज में कहा, “हाँ, मैं ही हूँ।” उसकी आंखों में ना खुशी थी ना नाराजगी, बल्कि एक अजीब सा खालीपन।
सीमा ने समझने की कोशिश की कि कैसे उनका पति, जो कभी पढ़ा-लिखा और सपनों से भरा इंसान था, आज एक छोटी सी पंचर की दुकान चला रहा था। उन्होंने गहरी सांस ली और पूछा, “तुम यहाँ इस हालत में कैसे?” पति ने हल्की सी हंसी के साथ कहा, “जिंदगी ने मुझे वहीं ला खड़ा किया जहाँ होना था।”
सीमा ने चारों ओर देखा कि कहीं कोई जानने वाला न देख ले क्योंकि वह एसपी थीं और उनकी इज्जत का सवाल था। लेकिन साथ ही उनके मन के अंदर छिपा हुआ पुराना रिश्ता जाग उठा था। उन्होंने सोचा, क्या यह सपना है या हकीकत? सामने खड़ा इंसान बिल्कुल असली था, उसकी झुकी हुई पीठ, मेहनत से भरे हाथ और संघर्ष की लकीरें सब कुछ बयां कर रही थीं।
धीमी आवाज में सीमा ने पूछा, “तुम्हें क्या हुआ? सब कुछ छोड़कर यहाँ?” पति ने सिर झुकाए कहा, “कहानी लंबी है, शायद तुम्हें सुनने का वक्त न मिले।”
सीमा ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं, मुझे सब जानना है, तुम बताओगे।” आदमी ने नजरें झुका लीं, “तुम्हें जानकर क्या मिलेगा? तुम अब वो नहीं जो कभी थी, और मैं वो नहीं जो तुम्हारा पति कहलाने लायक हूँ।”
सीमा ने भीगते स्वर में कहा, “पति तो तुम आज भी हो।” दोनों के बीच एक गहरी खामोशी छा गई। हवा में अजीब सा बोझ था। आदमी ने स्कूटी का टायर खोलना शुरू किया और सीमा चुपचाप उसे देखती रही। उनके मन में सवालों का सैलाब उमड़ पड़ा — आखिर कैसे उनका पति इस हाल में पहुंच गया? क्यों उसने कभी संपर्क नहीं किया? और क्यों तकदीर ने उन्हें इतने सालों बाद इस तरह मिलवाया?
टायर से हवा निकालते हुए उसकी उंगलियां जैसे समय के पुराने घाव कुरेद रही थीं। सीमा खामोश खड़ी सब देख रही थी। बाहर से वह उतनी ही सख्त और ठंडी नजर आ रही थी, लेकिन अंदर से टूट चुकी थी। आदमी ने रबर का टुकड़ा काटा, उसे गर्म किया और ट्यूब पर चिपकाने लगा। हर छोटी-छोटी हरकत में बरसों का अनुभव झलक रहा था, जैसे जिंदगी ने उसे मेहनत की चक्की में खूब पीसा हो।
सीमा बार-बार सोचती थी कि वह यहाँ क्यों खड़ी है, क्यों उसका दिल इस तरह धड़क रहा है, क्यों वह उन आंखों को पढ़ने की कोशिश कर रही है जो कभी उसके लिए दुनिया थीं, लेकिन अब अजनबी लग रही थीं। वह खुद को समझाने लगी कि यह बस एक इत्तेफाक है, उसे काम पर जाना है, वर्तमान में जीना है। लेकिन फिर भी अतीत का वो चेहरा उसके सामने था, और अतीत को अनदेखा करना आसान नहीं होता।
आदमी ने टायर जोड़कर कंप्रेसर से हवा भरनी शुरू की। आवाज चारों ओर गूंज उठी, लेकिन उस शोर के बीच भी दोनों के बीच खामोशी का पहाड़ खड़ा था। सीमा ने हिम्मत जुटाई और पूछा, “तुम इतने साल कहां थे? कोई खबर तक नहीं दी।”
आदमी ने गर्दन झुकाए कहा, “खबर देता तो क्या बदल जाता? तुम्हारी दुनिया अलग हो चुकी थी, मेरी दुनिया अलग। तुम अपने सपनों और कर्तव्य में आगे बढ़ गईं, मैं अपने बोझ और असफलताओं में दब गया।”
सीमा की आंखों में हल्की नमी तैर गई। उन्होंने सोचा कि यह वही इंसान है जिसके साथ उन्होंने सात फेरे लिए थे, जिसने हाथ थाम कर वादे किए थे कि चाहे कैसी भी आंधी आए, दोनों साथ रहेंगे, लेकिन वह सब टूट गया था।
आदमी ने बिना देखे कहा, “तुम्हारे पास अब भी वक्त है, मीटिंग के लिए नहीं निकलना।”
सीमा चौंक गई, लेकिन जानती थी कि वह यहाँ से बिना कुछ जाने नहीं जा सकती। उन्होंने कठोर आवाज में कहा, “मीटिंग इंतजार कर सकती है, मगर मेरा दिल नहीं।”
आदमी ने हल्की हंसी में कहा, “तुम अब भी वही हो, सख्त और जिद्दी।”
टायर ठीक करने के बाद उसने कहा, “हो गया, तुम जा सकती हो।”
सीमा ने स्कूटी की चाबी उठाई, पर बैठने से पहले ठहर गई। मन का बोझ उसे आगे बढ़ने नहीं दे रहा था। धीरे से कहा, “मैं आज रात तुम्हें मिलना चाहती हूं, सब कुछ जानना चाहती हूं।”
आदमी चौंका, उसकी आंखों में डर और आश्चर्य था। “क्यों? इतने साल बीत गए, अब क्या रह गया है जानने को?”
सीमा ने गहरी आवाज में कहा, “रह गया है मेरा अतीत जो अब मेरे सामने खड़ा है।”
आदमी ने थकान भरे स्वर में कहा, “ठीक है, रात को आना।”
सीमा ने बिना कुछ कहे स्कूटी स्टार्ट की और निकल गई, पर दिल पीछे रह गया था। दफ्तर पहुंचकर उन्होंने मीटिंग पूरी की, सबके सामने वही सख्त एसपी थीं, लेकिन भीतर उनका मन बिखरा हुआ था। यादें खुलने लगीं — शादी, सपने, पति की पढ़ाई बीच में छूट जाना, पिता की मौत, घर की जिम्मेदारी, पति का संघर्ष, सीमा की सफलता, और फिर दूरी।
रात को सीमा दुकान पर पहुंचीं। दुकान के अंदर दीया जल रहा था, हल्की रोशनी फैला रहा था। पति ने कहा, “तुम सच में आ गई?”
सीमा ने कुर्सी खींची और बैठ गईं, “हाँ, मेरे मन के सवाल अब और दबे नहीं रह सकते।”
पति ने कहानी सुनाई — पिता की मौत के बाद घर का बोझ, मां की बीमारी, छोटे भाई की पढ़ाई, बहन की शादी, खुद की असफलता, दिन-रात मेहनत, रिक्शा खींचना, मजदूरी करना, फिर पंचर की दुकान खोलना।
सीमा ने कहा, “क्या तुमने कभी सोचा कि मुझे ढूंढो?”
पति ने कांपते स्वर में कहा, “सोचा था, पर दिल ने कहा तुम बहुत आगे बढ़ चुकी हो, तुम्हें मेरी जरूरत नहीं।”
सीमा ने गुस्से और दर्द में कहा, “तुम्हें हक था मेरी जिंदगी में रहने का, चाहे हालात कैसे भी हों।”
पति ने कहा, “डर था कि तुम मुझे बोझ समझोगी, शर्म आएगी।”
सीमा ने कहा, “मायने नहीं रखता सफलता या असफलता, मायने रखता है कि हम साथ हों।”
आदमी ने कहा, “जब मैं तुम्हारी तस्वीरें देखता, गर्व होता, पर लगता मैं उसके लायक नहीं।”
सीमा ने हाथ थामा, “लायकी नौकरी से नहीं, रिश्ते निभाने से होती है।”
आदमी ने कहा, “शायद अब बहुत देर हो चुकी है।”
सीमा ने दृढ़ आवाज में कहा, “देर तभी होती है जब इंसान कोशिश छोड़ देता है।”
आदमी ने कहा, “ज़िंदगी नदी की तरह है, अगर किनारे छूट जाएं तो लहरें दोबारा नहीं मिलतीं।”
सीमा ने कहा, “पर नदी वही है, और हम भी।”
आदमी ने कहा, “तुम एसपी हो, मैं पंचरवाला, मेरी औकात क्या?”
सीमा ने कहा, “औकात मेहनत से होती है, तुमने मेहनत की है।”
आदमी ने कहा, “मैं तुम्हारा सहारा नहीं बन सका।”
सीमा ने कहा, “अगर चाहें तो जीत सकते हैं।”
आदमी ने कहा, “लोग क्या कहेंगे?”
सीमा ने कहा, “लोग क्या कहेंगे, इससे फर्क नहीं पड़ता।”
आदमी ने कहा, “जब मैं दुकान पर बैठता हूं, सोचता हूं शायद मेरी जिंदगी यही है।”
सीमा ने कहा, “शायद भगवान ने हमें दूसरा मौका दिया है।”
दोनों के बीच शांति छा गई, लेकिन तभी फोन बजा। एक बड़ा केस सामने आया था। सीमा ने कहा, “मुझे जाना होगा, लेकिन लौटकर आऊंगी।”
स्कूटी स्टार्ट की, निकल गई। पीछे रह गया वह आदमी, जिसकी जिंदगी में उम्मीद की किरण जगी थी।
अगले दिन सीमा ने केस में जुटकर अपराधियों को पकड़ा। सफलता के बाद भी उनका मन पति के साथ मिलने को तरस रहा था। शाम को दुकान पर पहुंची, पति ने कहा, “तुम सुरक्षित लौट आई, यही मेरी सबसे बड़ी जीत है।”
सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरी जीत तब होगी जब तुम मेरे साथ चलोगे।”
पति ने पूछा, “क्या तुम सचमुच कर पाओगी?”
सीमा ने कहा, “हां, मैं मजबूत अफसर हूं और तुम्हारा साथ है।”
दोनों ने मिलकर जिंदगी का नया अध्याय शुरू किया। पति ने दुकान को सर्विस सेंटर में बदला, सीमा ने ड्यूटी और परिवार को संतुलित किया। समाज की बातें आईं, पर सीमा ने कहा, “मेरा पति मेरी ताकत है।”
धीरे-धीरे लोगों की बातें थम गईं। पति ने वादा किया, “अब तुम्हें कभी छोड़ूंगा नहीं।”
सीमा ने कहा, “कठिनाइयां रिश्ते को मजबूत बनाती हैं।”
उनकी कहानी अब एक नई किताब बन चुकी थी — प्यार, त्याग और विश्वास की। बरसों बाद अधूरी कहानी पूरी हुई, और उनका दिया अब अकेला नहीं था, बल्कि उनके साथ के उजाले में जल रहा था।
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