खोई हुई बेटी स्टेशन पर जूते पोलिश करते हुए मिली | फिर बच्ची ने अपने पिता से कहा जो इंसानियत रो पड़े

“स्टेशन की मासूम मुस्कान: खोई बेटी की वापसी”

1. रेलवे स्टेशन की धूल में खिलती मासूमियत

शाम का वक्त था। भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन पर एक छोटी सी बच्ची जमीन पर बैठी थी। उसके हाथों में पॉलिश का डिब्बा, पैरों में टूटी-फूटी चप्पल, चेहरे पर धूल और आंखों में मासूमियत थी।
हर आने-जाने वाले से वह गुजारिश करती, “साहब, जूते पॉलिश करा लो, सिर्फ ₹5 लगेंगे।”
कुछ लोग उसे दुत्कारते, कुछ नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते। लेकिन वह बच्ची हर ठोकर खाकर भी मुस्कुराने की कोशिश करती थी।

उसका नाम था सोनू। स्टेशन ही उसका घर था। फर्श ही उसका बिस्तर और आसमान उसकी छत।
दिनभर की मेहनत के बाद कभी-कभी उसे सिर्फ ₹10-₹20 ही मिलते। उन्हीं पैसों से वह बासी ब्रेड या ठंडी समोसा खरीदकर खाती।
उसके पास कोई मां नहीं थी जो खाना बना सके, कोई बाप नहीं था जो उसकी देखभाल कर सके।
जब कोई पूछता, “बेटी, तेरा घर कहां है?”
वह बस इतना कहती, “मुझे याद नहीं। बस इतना याद है कि मैं बहुत छोटी थी और रोते-रोते यहां आ गई थी।”

रात को जब स्टेशन सुनसान हो जाता, सोनू किसी कोने में सिकुड़कर बैठ जाती। आसमान की तरफ देखकर फुसफुसाती,
“मां, पापा, आप कहां हो? मैं अकेली हूं।”
लेकिन उसकी आवाज का जवाब सिर्फ सीटी बजाती ट्रेनें देती थीं।

2. करोड़पति अरुण मल्होत्रा की तन्हाई

उसी शहर में करोड़पति अरुण मल्होत्रा का बंगला था।
अरुण अपने बंगले में बैठे थे, हाथ में एक पुरानी तस्वीर थी। तस्वीर उनकी खोई हुई बेटी अनाया की थी।
सालों पहले एक बरसात की रात अरुण और उनकी पत्नी संध्या अपनी बेटी को हमेशा के लिए खो बैठे थे।
अरुण के पास दौलत थी, शोहरत थी, लेकिन दिल खाली था।
हर रात वह भगवान से यही दुआ मांगते, “हे भगवान, मेरी बेटी को वापस लौटा दो।”

3. किस्मत का खेल: पहली मुलाकात

एक दिन अरुण मल्होत्रा किसी मीटिंग के सिलसिले में स्टेशन पहुंचे।
जैसे ही वह प्लेटफार्म पर आए, उनकी नजर सोनू पर पड़ी।
धूल से सना चेहरा, बिखरे बाल, फटे कपड़े… लेकिन आंखों में कुछ ऐसा था जिसने अरुण का दिल रोक दिया।

सोनू मासूमियत से बोली, “साहब, जूते पॉलिश करा लो, सिर्फ ₹5 लगेंगे।”
अरुण झुककर उसके चेहरे को गौर से देखने लगे।
दिल ने कहा, “यह आंखें मैंने कहीं देखी हैं… यह मासूमियत बिल्कुल अनाया जैसी है।”
पर तुरंत ही उन्होंने खुद को रोक लिया, “नहीं, यह कैसे हो सकता है? मेरी बेटी तो सालों पहले खो गई थी।”

अरुण ने पूछा, “बेटी, तू यह काम क्यों कर रही है? तेरे मां-बाप कहां हैं?”
सोनू ने पल भर को उसकी आंखों में देखा, फिर बोली, “मुझे नहीं पता साहब, जब से याद कर सकती हूं, यहीं हूं। स्टेशन ही मेरा घर है।”
अरुण की आंखों में आंसू छलक आए।
उन्होंने अपनी जेब से कुछ नोट निकालकर सोनू के हाथ में रख दिए, “यह रख ले बेटी, आज आराम कर ले।”
सोनू ने पैसे लौटा दिए, “नहीं साहब, मैं भीख नहीं लेती। अगर पैसे देने हैं तो जूते पॉलिश करा लो। मेहनत का पैसा चाहिए, यूं ही नहीं।”

अरुण सन्न रह गए। इतनी छोटी बच्ची और इतनी बड़ी बातें!
उन्होंने अपने सहायक से कहा, “इस बच्ची पर नजर रखना। मुझे इसके बारे में सब जानना है।”

4. अतीत की परछाईं और अनाया की यादें

उस रात अरुण अपने कमरे में बैठकर अनाया की तस्वीरें देखने लगे।
वो गोलगोल आंखें, मासूम मुस्कान…
उन्हें याद आया स्टेशन पर मिली सोनू की आंखें।
अरुण का दिल मानने को तैयार नहीं था कि वह बच्ची कोई अजनबी है।

दूसरी ओर सोनू अपने छोटे से कोने में बैठकर पैसे गिन रही थी।
उसका सपना था, “एक दिन मैं पढ़ाई करूंगी और कोई बड़ा काम करूंगी।”
पर उसे यह कहां पता था कि उसकी असली पहचान उससे कहीं बड़ी है।

5. सच की तलाश: दूसरी मुलाकात

कुछ दिनों बाद अरुण फिर से स्टेशन पर आए।
इस बार उन्होंने अपने जूते सोनू के आगे बढ़ा दिए।
सोनू झुककर उन्हें चमकाने लगी।
अरुण ने पूछा, “बेटी, तेरा नाम क्या है?”
सोनू ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “सोनू।”

अरुण ठिठक गए।
झ सोनू… अनाया को भी वो प्यार से यही बुलाते थे।
उन्होंने कांपते होठों से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम सोनू किसने रखा?”
सोनू ने मासूमियत से जवाब दिया, “पता नहीं साहब, जब से होश संभाला है, सब मुझे सोनू ही कहते हैं। किसी ने असली नाम कभी नहीं बताया।”

अरुण के पैरों तले जमीन खिसक गई।
उनके मन में शक की जगह अब उम्मीद थी।

6. खोने की कहानी: बरसों पुराना दर्द

अरुण और संध्या की 5 साल की बेटी अनाया एक शाम मंदिर के बाहर भीड़ में गुम हो गई थी।
पुलिस से लेकर अखबार, हर जगह खोजबीन हुई, लेकिन अनाया का कोई सुराग नहीं मिला।
वक्त के साथ अरुण और संध्या के रिश्ते में भी दरार आ गई।
अरुण रोज अपनी बेटी को खोजने की कसम खाते रहे।

7. पहचान की निशानी

अरुण ने कांपते हाथों से सोनू का चेहरा पकड़ लिया, “बेटा, क्या तुम्हारे पास कोई पुरानी तस्वीर है? कोई याद, कोई निशानी?”
सोनू ने सिर झुका लिया, “साहब, मेरे पास कुछ नहीं है। बस यह पायल है, बचपन से है।”

अरुण ने उसके पैर देखे।
वही चांदी की पायल थी जो उन्होंने अपनी बेटी अनाया के पहले जन्मदिन पर खुद बनवाकर पहनाई थी।
अरुण फूट-फूटकर रोने लगे, “बेटा, तू मेरी अनाया है। देख, यह पायल तेरे पैरों में मैंने पहनाई थी।”

बच्ची की आंखों में उलझन थी।
वो धीरे-धीरे पीछे हट गई, “नहीं साहब, आप गलती कर रहे हो। मैं अनाया नहीं हूं, मैं तो बस सोनू हूं।”

अरुण ने हाथ जोड़कर कहा, “बेटा, तू मुझे पहचान नहीं रही, लेकिन मैं तुझे अपनी रग-रग से पहचानता हूं।”

भीड़ इकट्ठी होने लगी।
कोई कह रहा था, “यह करोड़पति साहब हैं और रो रहे हैं एक जूते साफ करने वाली बच्ची के लिए।”
कोई कह रहा था, “शायद सच में यह उनकी खोई हुई बेटी हो।”

बच्ची डर गई।
उसने हाथ छुड़ाया और कांपती आवाज में बोली, “नहीं, मुझे जाने दो। आप भी सब जैसे हो।”
वह तेजी से भीड़ में गुम हो गई।

8. उम्मीद की सुबह

अरुण रात भर चैन से नहीं सो पाए।
उनके मन में कोई शक नहीं रहा—वह बच्ची उनकी अनाया ही है।
सुबह होते ही अरुण स्टेशन की ओर निकल पड़े।
भीड़ में खोजते-खोजते आखिर वही बच्ची मिली।

अरुण दौड़कर उसके पास पहुंचे, “अनाया बेटा…”
बच्ची ने डर और गुस्से से कहा, “फिर आप आ गए? क्यों पीछा कर रहे हो मेरा? मैंने कहा ना, मैं आपकी बेटी नहीं हूं।”

अरुण ने हाथ जोड़ लिए, “बेटा, एक बार मेरी बात मान ले। अगर तू मेरी अनाया नहीं निकली तो मैं तुझे दोबारा परेशान नहीं करूंगा। बस सच जानने दे।”

बच्ची चुप हो गई।
उसकी आंखों में थकान थी, “मुझे अपना असली नाम तक नहीं पता। जिन लोगों ने मुझे पाला, उन्होंने बस यही कहा कि मुझे रेलवे प्लेटफार्म पर अकेला पड़ा पाया था। शायद मेरे मां-बाप मुझे छोड़कर चले गए।”

अरुण की आंखों में फिर आंसू आ गए, “नहीं बेटा, तेरे मां-बाप तुझसे बहुत प्यार करते थे।”

9. सच्चाई की कसौटी: DNA टेस्ट

अरुण ने कहा, “अगर तू चाहती है तो हम टेस्ट करवा सकते हैं। DNA टेस्ट से सब साबित हो जाएगा। अगर तू मेरी बेटी नहीं निकली तो मैं तुझसे कभी कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन अगर तू मेरी अनाया निकली तो मैं तुझे इस नरक से निकालकर अपने घर ले जाऊंगा।”

बच्ची के दिल में हलचल मच गई।
वह धीरे से बोली, “अगर मैं आपके साथ गई और आप झूठे निकले तो मैं फिर कहां जाऊंगी?”

अरुण ने उसका चेहरा थाम कर कहा, “बेटा, भगवान की कसम, मैं तुझे कभी धोखा नहीं दूंगा। अगर तू मेरी बेटी नहीं भी निकली, तो भी मैं तुझे अपनी बेटी बनाकर रखूंगा।”

बच्ची की आंखें भर आईं, “पहली बार किसी ने मुझे अपनेपन से देखा है।”

अरुण ने उसका हाथ थाम लिया, “अनाया, चाहे तू मानो या ना मानो, पर मेरा दिल कह रहा है कि तू ही मेरी खोई हुई बेटी है। चल मेरे साथ।”

10. सच्चाई का उजाला

अरुण उसे अस्पताल ले गए।
DNA टेस्ट के लिए सैंपल दिए गए।
अरुण की हर सांस रुक-रुक कर चल रही थी।

आखिरकार रिपोर्ट आई।
डॉक्टर ने मुस्कुराकर कहा, “मिस्टर अरुण, बधाई हो। यह बच्ची सचमुच आपकी ही बेटी है।”

अरुण की आंखों से झरझर आंसू बह निकले।
उन्होंने बच्ची को कसकर गले से लगा लिया, “अनाया, मेरी गुड़िया, तू सच में मेरी बेटी है।”

बच्ची भी रोते हुए उनके सीने से लिपट गई, “पापा, सच में मेरे पापा!”

11. परिवार का पुनर्मिलन

अरुण ने सबसे पहला काम किया—संध्या को फोन किया।
सालों की दूरी और नाराजगी सब भूलकर बस यही कहा, “संध्या, अनाया मिल गई है। हमारी बेटी मिल गई।”

संध्या अस्पताल पहुंच गई।
जैसे ही उसने अनाया को देखा, वह दौड़ पड़ी, “अनाया, मेरी बच्ची!”

मां-बेटी का गले मिलना देखकर पूरा अस्पताल भावुक हो उठा।
अनाया अपनी मां की गोद में सिसक-सिसक कर रो रही थी, “मम्मा, मुझे लगा आप मुझे छोड़ गई थी।”
संध्या ने रोते हुए उसके माथे पर चुंबन दिया, “नहीं गुड़िया, हम तो तुझे हर दिन ढूंढ रहे थे।”

12. नई शुरुआत

अरुण, संध्या और अनाया तीनों बरसों बाद एक साथ खड़े थे।
लोगों की भीड़ ताली बजा रही थी, कोई दुआएं दे रहा था।
अरुण ने आकाश की ओर देखा, “धन्यवाद भगवान, तूने हमें फिर से एक कर दिया।”

अनाया ने दोनों का हाथ कसकर पकड़ लिया, “अब हम कभी अलग नहीं होंगे, है ना पापा?”
अरुण और संध्या दोनों ने एक साथ कहा, “कभी नहीं बेटा, कभी नहीं।”

13. कहानी की सीख

कभी-कभी जिंदगी हमें परखती है, बिछड़ाकर आंसू देती है।
पर सच्चा प्यार और अपनेपन का रिश्ता कितना भी टूटा हो, वक्त के साथ फिर जुड़ जाता है।
अरुण, संध्या और अनाया की कहानी यही साबित करती है कि खून के रिश्ते और दिल का प्यार किसी भी दूरी, किसी भी गलतफहमी से बड़े होते हैं।

समाप्त