कहानी: “मां का सम्मान”
गुजरात के राज नगर में ओमती देवी, बेटे राघव और बहू यशोदा के साथ रहती थीं। ओमती देवी ने पति की मृत्यु के बाद अकेले संघर्ष करके बेटे को पाला-पोसा, उसकी शिक्षा-दीक्षा की और जीवन भर त्याग किया। राघव अपनी मां से बहुत प्यार करता था, लेकिन बहू यशोदा का व्यवहार सास के लिए अच्छा नहीं था। जब तक राघव घर पर रहता, यशोदा मीठी बातें करती, लेकिन जैसे ही वह बाहर जाता, यशोदा का चेहरा बदल जाता। वह सास से भारी-भरकम काम करवाती, और अगर ओमती देवी थकान से कह देतीं कि अब उम्र हो गई है, तो यशोदा ठंडे लहजे में बोलती, “अगर काम नहीं करोगी तो खाने का इंतजाम खुद करना।”
ओमती देवी बेटे का घर बचाने के लिए चुप रहतीं। अपने कमरे में बैठकर पति की तस्वीर देखतीं और सोचतीं कि कैसे उन्होंने 25 साल की उम्र में विधवा होकर बेटे को पाला था। अब राघव का बिजनेस ठीक से नहीं चल पा रहा था। एक दिन उसके दोस्त ने सलाह दी कि विदेश में काम ज्यादा अच्छा चलता है। राघव ने मां से कहा, “मां, सोच रहा हूं कुछ साल के लिए विदेश चला जाऊं। वहां जाकर बिजनेस करूंगा, पैसा ज्यादा मिलेगा, फिर हम अच्छा घर बना पाएंगे।” मां ने बेटे की आंखों में चमक और उम्मीद देखकर उसे इजाजत दे दी।
राघव विदेश चला गया। शुरुआत में रोज फोन आता, मां-बेटे की लंबी बातें होतीं। लेकिन वक्त के साथ घर का माहौल बदल गया। अब यशोदा को खुला मौका मिल गया। उसने अपनी मां को फोन पर बताया, “अब तो राघव चला गया है, मैं सास से खूब काम करवाऊंगी।” उसकी मां ने भी सलाह दी, “तेरी सास पहले भी लोगों के घर काम करती थी, अब भी कर सकती है।”
अगले ही दिन यशोदा ने ओमती देवी से कहा, “मां जी, आपको फिर से बाहर जाकर काम करना होगा। राघव का बिजनेस मुश्किल में है, पैसों की जरूरत है।” ओमती देवी ने कांपती आवाज में कहा, “बेटी, अब उम्र हो गई है, सांस फूलने लगता है।” लेकिन यशोदा ने इमोशन पर वार किया, “यह तुम्हारे बेटे के लिए है, उसका घर बचाने के लिए है।” मां का दिल पिघल गया। उन्होंने सोचा, अगर मेरी मेहनत से बेटे का सहारा बन सकता है तो क्यों ना करूं।
ओमती देवी सालों बाद फिर दूसरों के घर काम पर जाने लगीं। सर्दी, गर्मी, बारिश—हर मौसम में तीन-तीन घरों में काम करतीं। उनके हाथों की त्वचा खुरदरी हो गई, उंगलियों पर कट और जलने के निशान पड़ गए। लेकिन बहू के शब्द कानों में गूंजते, “यह तुम्हारे बेटे के लिए है।” हर महीने जो थोड़ा पैसा मिलता, वह बिना एक रुपया अपने पास रखे बहू को दे देतीं। राघव को फोन पर सिर्फ इतना कहतीं, “बेटा, सब ठीक है। अपना ख्याल रखना।”
एक दिन काम करते-करते उनकी सांस इतनी तेज हो गई कि उन्हें कुर्सी पर बैठना पड़ा। मालकिन ने पानी दिया, “अम्मा, अब आपकी उम्र आराम करने की है। यह सब क्यों कर रही हैं?” ओमती देवी ने हल्की मुस्कान दी, “बेटा, यह मेरी मजबूरी है।”
फिर एक सुबह किस्मत ने करवट बदली। ओमती देवी रोज की तरह काम पर जाने निकलीं, लेकिन चश्मा भूल गईं। वापस लौटीं तो दरवाजे के पास यशोदा और उसकी मां की बातें सुनाई दीं। यशोदा कह रही थी, “अरे बुढ़िया अच्छा खासा काम कर रही है। मुझे तो आराम ही आराम है। राघव को तो पता भी नहीं कि उसका बिजनेस वहां खूब चल रहा है। मैंने उसे कह रखा है कि यहां पैसों की तंगी है ताकि सास को काम पर भेज सको और खुद आराम करो।”
ओमती देवी का दिल टूट गया। साल भर की मेहनत, त्याग—सब एक झूठ पर टिका था। उन्होंने दरवाजा खोला और अंदर जाकर पूछा, “जब बेटे को पैसों की जरूरत ही नहीं थी तो तूने मुझे नौकरानी क्यों बनाया?” यशोदा घबरा गई, फिर बोली, “अगर तुमने यह बात राघव को बताई तो मैं घर छोड़ दूंगी, तुम्हारा बेटा अकेला रह जाएगा।” ओमती देवी ने भर्राई आवाज में कहा, “बेटी, मुझे अस्थमा है, यह काम मुझसे नहीं होता।” यशोदा ने तिरछी हंसी में कहा, “अभी तो हड्डियों में बहुत जान है। मरना ही है, तब तक काम करती रहो।”
ओमती देवी की आंखों से आंसू निकल आए। अब वह सिर्फ थकी नहीं, अंदर से टूट चुकी थीं। मजबूरी में अगले दिन फिर काम पर निकल पड़ीं।
एक दिन जिन फ्लैट में वह काम करती थीं, वहां एक युवक ने कहा, “अम्मा, मेरे लिए भी खाना बना दिया करो।” ओमती देवी ने पहले मना किया, लेकिन उसके अकेलेपन और आदर ने उनका मन बदल दिया। अब वह रोज उसके घर जाकर खाना बनाने लगीं। एक दिन उसकी टेबल पर फोन था, स्क्रीन पर राघव की फोटो थी। ओमती देवी ने पूछा, “बेटा, यह फोटो तेरे फोन में क्यों है?” युवक ने कहा, “अम्मा, यह हमारे सप्लायर हैं, विदेश से माल भेजते हैं।” इतना सुनते ही ओमती देवी की आंखों से आंसू छलक पड़े। उन्होंने सारी सच्चाई युवक को बता दी।
युवक ने कहा, “अम्मा, यह तो बहुत गलत हुआ है। मैं आपके बेटे को जानता हूं। अगर उन्हें पता चल जाए तो वह एक पल भी चैन से नहीं बैठेंगे।” ओमती देवी ने कहा, “नहीं बेटा, यशोदा धमकी देती है, अगर मैंने कुछ बताया तो वह घर छोड़ देगी।” युवक ने दृढ़ आवाज में कहा, “घर वो नहीं है जिसमें चार दीवारें हों, घर वो है जिसमें मां-बाप को इज्जत मिले।”
युवक ने उसी समय राघव को वीडियो कॉल मिलाया। राघव ने मां को थका हुआ, कमजोर देखकर कांपती आवाज में पूछा, “मां, यह हालत कैसे हो गई आपकी?” ओमती देवी ने कहा, “यशोदा कहती थी कि अगर मैंने तुझसे कुछ कहा तो वह घर छोड़ देगी, इसलिए चुप रही।” राघव की आंखें लाल हो गईं, “मां जिसने आपको इस हालात में पहुंचाया है, उसे अब हिसाब देना होगा। मैं आ रहा हूं।”
दो दिन बाद राघव घर आ गया। मां को देख कर उसकी आंखें भर आईं। वह मां को बाहों में लेकर रोने लगा, “मां, मुझसे बहुत गलती हो गई। मैंने आपको अकेला छोड़ दिया।” ओमती देवी ने कहा, “बेटा, अब जो भी करना सोच समझ कर करना। घर जोड़ना मुश्किल है।”
राघव ने मां का हाथ थामा, “अब चलो घर चलते हैं, आज सच का सामना होगा।” घर पहुंचकर यशोदा से पूछा, “तुम्हारा धंधा अब खत्म हो गया है। तुम्हारी चाल, तुम्हारा झूठ, तुम्हारा जुल्म सब पता चल चुका है। साल भर मेरी मां को नौकरानी बना रखा, अब जवाब देना होगा।” यशोदा रोने लगी, “मां जी, मुझसे गलती हो गई। लालच और अपनी मां की बातों में आकर आपको बहुत तकलीफ दी। मुझे एक मौका और दे दीजिए, मैं बदल जाऊंगी।”
ओमती देवी ने कहा, “अगर तू सच में अपनी गलती मान रही है और बदलना चाहती है तो मैं तुझे माफ करती हूं। गलती इंसान से होती है, लेकिन उसे मानना और सुधारना ही इंसानियत है।” राघव ने मां की तरफ देखा, “मां, अब वाकई माफ करना चाहती हो?” ओमती देवी ने कहा, “बेटा, बदला लेने से घर नहीं बसते, माफी देने से बचते हैं।”
उस दिन के बाद घर का माहौल बदलने लगा। यशोदा ने सच में खुद को बदलने की कोशिश की। सास का सम्मान करने लगी, घर का काम अपने हाथ से करने लगी। धीरे-धीरे मां, बेटे और बहू के बीच की दूरी कम होने लगी। राघव ने भी तय किया कि अब वह मां को अकेला छोड़कर कभी विदेश नहीं जाएगा।
समय के साथ इस घर में रिश्तों की दरार भरने लगी। लेकिन उस दिन का दर्द, वह सीख तीनों के दिल में हमेशा के लिए छप गई।
सीख:
माता-पिता का सम्मान करना केवल फर्ज नहीं, वह कर्ज है जिसे हम कभी चुका नहीं सकते। लालच और झूठ एक दिन सामने आ ही जाते हैं। माफी और सुधार ही रिश्तों को जोड़ते हैं। घर की नींव विश्वास, सम्मान और माफी पर टिकती है। यही असली सुख और यही असली धन है जो जीवन भर हमें सलामती और शांति देता है।
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