दुबई में लेबर लड़के ने लौटाया अरब इंजिनियर का खोया हुआ पर्स ,फिर लेबर को जो मिला जानकर होश उड़ जायेंगे

समीर की ईमानदारी और किस्मत बदलने वाली कहानी

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बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गाँव रामपुर में समीर नाम का एक होनहार नौजवान रहता था। उसके सपनों की ऊँचाई आसमान छूती थी, लेकिन हालात की जंजीरों ने उसे मजदूर की नीली वर्दी पहनने पर मजबूर कर दिया। समीर ने कॉमर्स में फर्स्ट क्लास ग्रेजुएशन किया था, अंग्रेजी बोलना और कंप्यूटर चलाना उसे खूब आता था। उसका सपना था बड़ा अकाउंटेंट बनकर अपने परिवार को गरीबी से निकालना। लेकिन किस्मत ने उसे दुबई के लेबर कैंप में मजदूरी करने भेज दिया।

दुबई की चमकती इमारतों के पीछे समीर की गुमनामी छिपी थी। रोज़ सुबह 4 बजे उठकर, ठंडे पानी से नहा कर, कंस्ट्रक्शन साइट पर सीमेंट की बोरियां और लोहे की सरिया ढोना उसका काम था। सबके सामने वह बस एक मजदूर था, लेकिन उसकी आँखों में अपने परिवार के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा था। अपने गाँव, अपने पिता की बीमारी, बहन की पढ़ाई और शादी की चिंता उसे हर पल सताती थी।

एक दिन, साइट के हेड इंजीनियर अहमद अल मंसूरी का महंगा बटुआ 50वीं मंजिल पर गिर गया। उस बटुए में हजारों दरहम, क्रेडिट कार्ड्स और अहमद के पिता की एक पुरानी तस्वीर थी। अहमद को पैसों की चिंता नहीं थी, उसे अपने पिता की आखिरी निशानी खोने का दुख था। समीर को सफाई करते समय वह बटुआ मिला। नोटों की गड्डियाँ देखकर उसके मन में एक पल को लालच आया—यह पैसा उसकी सारी मुश्किलें खत्म कर सकता था। लेकिन बटुए में रखी उस तस्वीर ने उसे उसके पिता के संस्कार याद दिलाए: “हराम की एक रोटी से हजार गुना बेहतर है हलाल की आधी रोटी।”

समीर ने तय किया कि वह बटुआ लौटाएगा। बहुत कोशिशों के बाद, उसने अहमद से मुलाकात की और अंग्रेजी में बात कर बटुआ लौटा दिया। अहमद उसकी ईमानदारी, शिक्षा और स्वाभिमान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने समीर को अपनी कंपनी में परचेसिंग मैनेजर की नौकरी दे दी। उसकी तनख्वाह मजदूरी से 20 गुना ज्यादा थी, उसे अच्छे फ्लैट में शिफ्ट किया गया और परिवार को भी दुबई बुलाने का इंतजाम हुआ।

समीर ने मेहनत और ईमानदारी से कंपनी का करोड़ों बचाया, घर का कर्ज चुकाया, बहन का अच्छे कॉलेज में एडमिशन करवाया। एक साल बाद, जब बुर्ज अल अमल का उद्घाटन हुआ, समीर अपने आलीशान ऑफिस से नीचे देख रहा था। उसे याद आया—यही इमारत कभी उसके टूटे सपनों का कब्रिस्तान थी, आज उसकी मेहनत का प्रमाण बन गई।

यह कहानी सिखाती है कि हालात चाहे कितने भी मुश्किल हों, ईमानदारी और उसूल कभी बेकार नहीं जाते। इंसानियत और नेकी का रास्ता हमेशा सोना बनाता है। समीर की ईमानदारी और अहमद की दरियादिली ने साबित कर दिया कि अच्छाई का फल जरूर मिलता है।

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