भीख माँगते बच्चे को देखकर DM मैडम रह गई हैरान, जब पता चला वो उनका ही बेटा है
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पंद्रह साल बाद…
प्रस्तावना
रात का अंधेरा गहराता जा रहा था। जिला अधिकारी सोनम सिंह अपने दफ्तर की खिड़की से बाहर देख रही थीं। शहर की हलचल, गाड़ियों की आवाज़ें, दूर कहीं मंदिर की घंटियाँ… सब कुछ उन्हें किसी और दुनिया का हिस्सा लग रहा था। उनके भीतर एक खालीपन था, एक दर्द था, जो पिछले पंद्रह सालों से उनके साथ था।
हर किसी ने उन्हें मजबूत, सख्त और अनुशासित अफसर के रूप में देखा था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि वह हर दिन अपने खोए हुए बेटे की याद में टूटती थीं।
अध्याय 1: वह सुबह
सुबह के सात बजे थे। सोनम सिंह अपनी सफेद इनोवा में बैठी, जिले के दौरे पर निकल रही थीं। आज राज्य सरकार के एक बड़े प्रोजेक्ट का उद्घाटन था। ड्राइवर कमलेश गाड़ी चला रहा था। सोनम जी खिड़की से बाहर देख रही थीं। सड़क पर बच्चे स्कूल जा रहे थे। हर बच्चे को देख उनका दिल कसक उठता। आँखों में एक अजीब सी उदासी थी।
पंद्रह साल पहले उनका बेटा अनीश कहीं खो गया था। हर सुबह, हर शाम, हर त्योहार, हर जन्मदिन… सब कुछ अधूरा था।
गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी कि अचानक सामने भीड़ नजर आई।
“मैडम, आगे कुछ गड़बड़ लग रही है,” कमलेश ने कहा।
“गाड़ी रोकिए,” सोनम जी ने आदेश दिया।
अध्याय 2: सड़क पर घायल बच्चा
गाड़ी रुकते ही सोनम जी उतर गईं। भीड़ के पास पहुंचीं तो देखा, सड़क के बीचोंबीच एक बच्चा बेहोश पड़ा था। उसके कपड़े फटे हुए थे, सिर से खून बह रहा था। लोग तमाशा देख रहे थे, कोई मदद नहीं कर रहा था।
“यह क्या हो रहा है यहाँ?” सोनम जी ने सख्त आवाज़ में पूछा।
एक बुजुर्ग आदमी ने कांपती आवाज में बताया, “मैडम, ट्रक वाले ने बच्चे को टक्कर मार दी और भाग गया। बच्चा दस मिनट से यहीं पड़ा है।”
सोनम जी का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह तुरंत बच्चे के पास गईं, घुटनों के बल बैठ गईं। बच्चा लगभग पंद्रह साल का था। चेहरा खून और मिट्टी से सना था, लेकिन बहुत मासूम और प्यारा लग रहा था।
उन्होंने बच्चे का चेहरा ध्यान से देखा, तो शरीर में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई। यह चेहरा, ये आंखें… कुछ जाना-पहचाना सा लगा।
लेकिन सोचने का वक्त नहीं था। उन्होंने तुरंत फोन निकाला।
“हेलो, मैं डीएम सोनम सिंह बोल रही हूँ। मुझे तुरंत एंबुलेंस चाहिए।”
भीड़ से कहा, “सब लोग पीछे हटिए। बच्चे को सांस लेने दीजिए।”
एंबुलेंस आने में देर हो रही थी। बच्चे की सांसें धीमी पड़ रही थीं।
“कमलेश, गाड़ी लेकर आओ!” वह चिल्लाईं।
बड़े प्यार से बच्चे को अपनी बाहों में उठा लिया। जैसे ही उन्होंने उसे गोद में लिया, एक अजीब सा एहसास हुआ। जैसे यह लम्हा उन्होंने पहले भी जिया हो।

अध्याय 3: अस्पताल की दौड़
गाड़ी आते ही बच्चे को पीछे की सीट पर लिटाया गया।
“सीधा सिटी हॉस्पिटल चलो, जितनी तेज हो सके!”
पूरे रास्ते सोनम जी बच्चे का माथा सहलाती रहीं। उसकी नब्ज चेक करती रहीं।
“बेटा, आंख खोलो। कुछ नहीं हुआ है। सब ठीक हो जाएगा।”
उनकी आवाज़ में एक मां की करुणा और बेचैनी साफ झलक रही थी।
हॉस्पिटल पहुंचते ही डॉक्टरों को आवाज दी,
“डॉक्टर साहब, इस बच्चे का तुरंत इलाज कीजिए। पैसों की कोई चिंता नहीं है।”
बच्चे को आईसीयू में ले जाया गया। सोनम जी बाहर बेंच पर बैठकर बेचैनी से इंतजार करने लगीं। उनके हाथ कांप रहे थे। आँखों में डर और उम्मीद दोनों थे।
कई घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए।
“मैडम, सिर में चोट थी लेकिन अब खतरा टल गया है।”
अध्याय 4: पहली मुलाकात
तीन घंटे बाद जब बच्चा होश में आया, उसने सबसे पहले सोनम जी को देखा।
“आंटी, मैं कहाँ हूँ?” उसकी आवाज़ कमजोर थी।
“बेटा, तुम हॉस्पिटल में हो। तुम्हें चोट लगी थी लेकिन अब तुम बिल्कुल ठीक हो।” उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
“मेरा नाम अनीश है,” बच्चे ने धीरे से कहा।
यह नाम सुनते ही सोनम जी की सांस रुक सी गई। पंद्रह साल पहले उनके बेटे का नाम भी अनीश ही था।
“अनीश… कितना प्यारा नाम है,” उन्होंने कहा, लेकिन आँखों में आंसू आ गए।
“तुम्हारे मम्मी-पापा कहाँ हैं बेटा?”
इस सवाल पर बच्चे की आंखें भर आईं।
“मेरे मम्मी-पापा नहीं हैं आंटी। मैं अनाथ आश्रम में रहता हूँ।”
यह सुनकर सोनम जी का दिल टूट गया। पंद्रह साल का बच्चा बिल्कुल अकेला।
“कोई बात नहीं बेटा। अब मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।”
उन्होंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
अध्याय 5: नए रिश्ते की शुरुआत
अगले दो दिन सोनम जी उसी के पास रहीं। वह उसे खाना खिलातीं, कहानियाँ सुनातीं, रात में सुलातीं। डॉक्टर हैरान थे। एक अजनबी बच्चे के लिए डीएम साहिबा इतनी फिक्रमंद क्यों हैं?
तीसरे दिन जब अनीश को डिस्चार्ज मिला तो सामने सबसे बड़ा सवाल था – क्या उसे वापस अनाथ आश्रम भेजा जाए?
डॉक्टर बोले, “मैडम, यह लीगल मामला है।”
सोनम जी का दिल मानने को तैयार नहीं था।
“क्या मैं इस बच्चे को अपने साथ रख सकती हूँ? मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी लूंगी।”
डॉक्टर ने कहा, “मैडम, आपको अनाथ आश्रम से अनुमति लेनी होगी।”
सोनम जी उसी वक्त वहाँ पहुंचीं।
“सर, मैं अनीश को गोद लेना चाहती हूँ। सारी लीगल फॉर्मेलिटी पूरी कर दूंगी।”
सुपरिंटेंडेंट मुस्कुराया, “मैडम, यह हमारे लिए गर्व की बात होगी।”
एक हफ्ते बाद सारे कागज पूरे हो गए और अनीश उनके घर आ गया।
वो घर जो पंद्रह साल से सुनसान था, अब फिर से रोशनी से भर गया।
अध्याय 6: घर की रौनक
सोनम जी ने उसके लिए एक खूबसूरत कमरा तैयार किया था। नए कपड़े, खिलौने और दीवारों पर रंगीन पोस्टर।
“यह सब मेरा है?” अनीश ने चमकती आंखों से पूछा।
“हाँ बेटा, अब यह तुम्हारा घर है।” उन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा।
पहली बार उस घर में फिर से हंसी की आवाज गूंजी।
शाम को जब सोनम जी ऑफिस से लौटीं, अनीश दौड़ कर उनके पास आया।
“मम्मी, आप आ गईं।”
यह शब्द सुनते ही सोनम जी की आंखों से आंसू निकल आए। पंद्रह साल बाद किसी ने उन्हें मम्मी कहा था।
रात के खाने के दौरान अनीश ने पूछा,
“मम्मी, आपके कोई बच्चे नहीं हैं?”
यह सवाल सुनते ही सोनम जी का दिल थम गया।
कुछ पल चुप रहीं, फिर बोलीं,
“बेटा, पहले थे। लेकिन अब तुम हो ना?”
अनीश मुस्कुराया और वह चुपचाप समझ गया।
कभी-कभी रिश्ते खून से नहीं दिल से बनते हैं।
अध्याय 7: अतीत की परछाइयाँ
उस रात सोनम जी अपने कमरे में अकेली बैठी थीं। बाहर हल्की हवा चल रही थी। पर उनके भीतर यादों का तूफान उठ रहा था।
वह अपने अतीत में खो गई थीं। पंद्रह साल पहले की वह जिंदगी जब सब कुछ कितना खूबसूरत था। पति मनोज एक सच्चे नेक दिल और ईमानदार आईएएस अफसर थे। दोनों का जीवन किसी सपने से कम नहीं था। दो साल बाद उनके घर नन्हा अनीश आया। गोलमटोल चेहरा, मासूम सी मुस्कान और आँखों में चमक।
एक दिन मनोज किसी सरकारी काम से बाहर गए थे। साथ में अनीश भी था। लेकिन उस दिन शाम तक वह वापस नहीं आए। धीरे-धीरे चिंता ने बेचैनी का रूप ले लिया। जब उन्होंने फोन मिलाया, नंबर स्विच्ड ऑफ था। रात के दस बजे गए लेकिन कोई खबर नहीं।
अगली सुबह पुलिस ने खबर दी –
“मैडम, आपके पति का एक्सीडेंट हुआ है। वह अस्पताल में हैं।”
“मेरा बच्चा?” सोनम जी चीख पड़ीं।
पुलिस वाले ने नजर झुका ली।
“मैडम, कार में सिर्फ आपके पति मिले। बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला।”
उस पल जैसे सोनम जी की जमीन खिसक गई।
अध्याय 8: तलाश और तन्हाई
दो महीने तक पुलिस ने हर कोना छाना, हर गाँव, हर अस्पताल, हर अनाथालय तक तलाश की।
पर अनीश का कोई निशान नहीं मिला।
मनोज की हालत भी गंभीर थी। एक्सीडेंट में उन्हें गहरी चोट आई थी और जब होश आया तो याददाश्त जा चुकी थी। उन्हें कुछ भी याद नहीं था। यहाँ तक कि उनका बेटा भी नहीं।
कुछ हफ्तों बाद मनोज ने हमेशा के लिए आँखें बंद कर लीं।
अब सोनम जी अकेली रह गई थीं। एक मां जिसने अपना बेटा खो दिया और एक पत्नी जिसने अपना जीवन साथी।
उन्होंने हर दरवाजा खटखटाया, हर अखबार में इश्तहार दिया।
लेकिन उम्मीद धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी और फिर उन्होंने अपने दर्द को अपने काम में दफना दिया।
वक्त बीतता गया। वह एक सख्त, ईमानदार और कामयाब डीएम बन गईं।
लेकिन दिल में एक कोना हमेशा खाली रहा।
अध्याय 9: किस्मत का करिश्मा
अगले दिन अनीश स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था। सोनम जी ने उसके लिए शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला करवाया था।
“मम्मी, मैं स्कूल जाने से डर रहा हूँ। सब बच्चे पूछेंगे कि मेरे असली मम्मी-पापा कहाँ हैं?”
सोनम जी ने उसे प्यार से गले लगाया,
“बेटा, बस इतना कहना कि मैं ही तुम्हारी मम्मी हूँ। तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है।”
स्कूल में प्रिंसिपल ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैडम, अनीश बहुत इंटेलिजेंट बच्चा है। एंट्रेंस टेस्ट में उसने टॉप किया।”
शाम को अनीश घर लौटा।
“मम्मी, मेरे बहुत सारे दोस्त बन गए। टीचर ने कहा कि मैं बहुत स्मार्ट हूँ।”
सोनम जी ने उसके सिर पर हाथ फेरा,
“मेरा बेटा तो सच में बहुत होशियार है।”
अध्याय 10: सच्चाई की खोज
कुछ दिन यूं ही बीत गए। फिर एक दिन ऑफिस में फोन बजा।
“मैडम, मैं सिटी अनाथ आश्रम से बोल रहा हूँ। हमारे पास अनीश के बारे में कुछ जानकारी है जो शायद आप जानना चाहेंगी।”
“क्या कहा?” सोनम जी की सांसें तेज हो गईं।
“मैडम, पंद्रह साल पहले एक बच्चा हमारे यहाँ लाया गया था। करीब एक साल का, रेलवे स्टेशन के पास मिला था। उसके गले में एक छोटी सी चैन थी जिस पर ‘अनीश’ लिखा था।”
सोनम जी का दिल जोर से धड़कने लगा। वही चैन, वही नाम…
“क्या वह चैन अभी आपके पास है?” उन्होंने कांपती आवाज़ में पूछा।
“जी हाँ, मैडम। हमारे पास रिकॉर्ड में मौजूद है।”
सोनम जी तुरंत अनाथ आश्रम पहुंचीं। जैसे ही सुपरिंटेंडेंट ने वह चैन दिखाई, उनकी आँखों के सामने धुंध छा गई। वही पतली सोने की चैन, जिस पर ‘अनीश’ खुदा था। वही जो उन्होंने अपने बेटे के जन्म के एक महीने बाद पहनाई थी।
“यह… यह वही है…” उनके होंठ बुदबुदाए।
घर लौटकर उन्होंने वह चैन अनीश को दिखाई।
“बेटा, यह तुम्हारी है?”
अनीश की आंखें चमक उठीं।
“हाँ मम्मी, यह मेरे पास थी जब मैं छोटा था।”
अब संदेह की कोई जगह नहीं बची थी। सब कुछ उसी ओर इशारा कर रहा था। यही उनका खोया हुआ बेटा था।
अध्याय 11: अंतिम पुष्टि
फिर भी उन्होंने सबूत पुख्ता करने के लिए डॉक्टर से बात की। मेडिकल रिकॉर्ड्स निकाले। अनीश का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। बिल्कुल वैसा ही जैसा उनके असली बेटे का।
और जब उन्होंने पुराने एल्बम से अपने एक साल के बेटे की फोटो उठाई तो सब कुछ साफ था। वही आंखें, वही मुस्कान, वही भोला चेहरा।
लेकिन सच्चाई बताने का वक्त कब होगा? यह फैसला सबसे कठिन था।
अध्याय 12: पुनर्मिलन
एक शाम अनीश रोता हुआ घर लौटा।
“मम्मी, स्कूल में एक बच्चे ने कहा कि मैं अडॉप्टेड हूँ, कि आप मेरी असली मम्मी नहीं हैं।”
सोनम जी का दिल टूट गया। उन्होंने उसे पास बिठाया।
“बेटा, मेरे लिए तुम सबसे कीमती हो। चाहे तुम अडॉप्टेड हो या नहीं। लेकिन मैं तुम्हें एक सच बताना चाहती हूँ।”
अनीश ने आंसुओं से भरी आंखों से पूछा,
“क्या मैं सच में आपका बेटा नहीं हूँ?”
सोनम जी ने गहरी सांस ली।
“नहीं बेटा, तुम मेरे ही बेटे हो। पंद्रह साल पहले मेरा बेटा खो गया था। उसका नाम भी अनीश था। मैंने उसे हर जगह ढूंढा, पर नहीं मिला। और अब जब तुमसे मिली हूँ तो मुझे पूरा यकीन है तुम वहीं हो।”
कुछ पल की खामोशी के बाद अनीश ने धीमे से पूछा,
“तो मतलब आप मेरी असली मम्मी हैं?”
“हाँ बेटा,” सोनम जी की आवाज कांप गई।
“मैं तुम्हारी असली मम्मी हूँ।”
अनीश फूट पड़ा और सोनम जी की बाहों में समा गया।
“मम्मी, आप मुझे छोड़कर क्यों चली गई थीं?”
सोनम जी रो पड़ीं,
“मैंने तुम्हें कभी नहीं छोड़ा बेटा। मैंने तुम्हें हर जगह ढूंढा था। पर कोई नहीं जानता था तुम कहाँ हो।”
अनीश ने अपने नन्हे हाथों से उनके आंसू पोंछे,
“मम्मी, अब मैं आपके पास हूँ ना। अब मैं आपको कभी नहीं छोड़ूंगा।”
उस पल जैसे पंद्रह साल का सूना आंगन फिर से हंसी से भर गया।
अध्याय 13: DNA टेस्ट और अंतिम सबूत
अगले दिन सोनम जी ने फैसला किया कि अब सच्चाई को पूरी तरह पक्का कर लेना चाहिए। उन्होंने डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया।
“मम्मी, यह टेस्ट क्यों जरूरी है? मुझे तो यकीन है कि आप ही मेरी मम्मी हैं।”
सोनम जी ने मुस्कुराते हुए उसके बाल सहलाए,
“बेटा, यह सिर्फ कंफर्मेशन के लिए है, ताकि ऑफिशियली भी साबित हो जाए कि तुम मेरे ही बेटे हो।”
टेस्ट के रिजल्ट आने में तीन दिन लगे।
हर दिन सोनम जी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
आखिरकार तीसरे दिन फोन आया।
“कांग्रेचुलेशंस मैडम, टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव है। अनीश आपका बायोलॉजिकल सन है।”
यह सुनते ही सोनम जी के हाथ कांपने लगे। आँखों से आंसू बह निकले। पंद्रह साल की तलाश, पंद्रह साल की तन्हाई… आज सब खत्म हो गया था। उनका खोया हुआ बेटा आखिरकार उन्हें मिल गया था।
अध्याय 14: नया जीवन
जब उन्होंने अनीश को यह खबर दी तो वह खुशी से उछल पड़ा।
“मम्मी, अब मैं ऑफिशियली आपका बेटा हूँ!”
“हाँ बेटा,” सोनम जी ने उसे सीने से लगाते हुए कहा,
“अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता।”
इस खबर ने पूरे शहर में सनसनी मचा दी। डीएम साहिबा को उनका खोया हुआ बेटा मिल गया। अखबारों में यही हेडलाइन थी। हर जगह लोग इस कहानी की चर्चा कर रहे थे।
अध्याय 15: समाज के लिए संदेश
कुछ महीने बाद सोनम जी ने अनीश के साथ अपने पति मनोज की कब्र पर जाने का निर्णय लिया।
“अनीश, चलो आज हम अपने पापा से मिलने चलते हैं।”
कब्रिस्तान पहुंचकर अनीश ने अपने पापा की कब्र पर फूल चढ़ाए और बोला,
“पापा, मैं आपका बेटा अनीश हूँ। मैं अब मम्मी के साथ बहुत खुश हूँ। आप चिंता मत करना। मैं हमेशा मम्मी का ख्याल रखूंगा।”
सोनम जी की आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उन्होंने कब्र की ओर देखा,
“मनोज, हमारा बेटा वापस आ गया है। अब मैं अकेली नहीं हूँ।”
वापसी में अनीश ने पूछा,
“मम्मी, क्या पापा को पता चल गया होगा कि मैं वापस आ गया हूँ?”
सोनम जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“हाँ बेटा, पापा को सब पता है। वह ऊपर से हमें देख रहे हैं और बहुत खुश होंगे।”
समाप्ति
अब अनीश पढ़ाई में अव्वल था। वह बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता था। सोनम जी ने उसे हर कदम पर प्रोत्साहित किया। अनीश अपने स्कूल में “हेल्प द नीडी” क्लब चलाता था, गरीब बच्चों की मदद करता था।
पंद्रह साल की दूरी, अनगिनत आंसू, और फिर किस्मत का करिश्मा।
एक मां को उसका बेटा वापस मिल गया।
कभी-कभी रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।
सीख:
कभी उम्मीद मत छोड़िए।
किस्मत जब करवट लेती है, तो चमत्कार हो जाते हैं।
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