Bhikari Bachi Ny Crore Patti Business man Ki Tangon ka Ilaaj Kese Kiya
इमरान एक ऐसा व्यक्ति था जिसे लोग सफलता की पहचान मानते थे। वह एक बड़े कारोबारी समूह का मालिक था। उसकी कंपनी की शाखाएं न केवल पूरे देश में फैली हुई थीं, बल्कि विदेशों में भी उसके प्रोजेक्ट चल रहे थे। दौलत उसके कदमों की धूल थी, शोहरत उसके नाम से जुड़ी हुई थी और ताकत उसके इशारे पर झुकती थी। अखबारों के पहले पन्ने पर उसकी तस्वीरें छपतीं, टीवी चैनल उसकी कामयाबियों के किस्से सुनाते और कारोबारी दुनिया के लोग उसे अपना आदर्श मानते थे। लेकिन जिंदगी का एक लम्हा सब कुछ बदलने की ताकत रखता है, और इमरान की जिंदगी भी एक ही हादसे में पलट गई।
हादसा
यह हादसा एक हवाई सफर के दौरान पेश आया। इमरान अपनी टीम के साथ एक अहम मीटिंग के लिए सफर कर रहा था। आसमान साफ था, मगर अचानक जहाज ने संतुलन खो दिया। कुछ ही पलों में चीख पुकार से फिजा गूंज उठी। लोग दुआएं मांगने लगे। कोई सीट से बंधा रहा, कोई आंखें मूंद कर आखिरी पल का इंतजार करने लगा। इमरान ने भी मौत को करीब से देखा। धमाके की आवाज के साथ जहाज जमीन पर गिरा। मलबे में कई लोग जान से गए, मगर इमरान चमत्कारिक रूप से जिंदा बच गया।
नया जीवन
लेकिन इस चमत्कार के साथ उस पर एक बोझ भी आ गया। कमर के निचले हिस्से की हड्डियां टूट चुकी थीं और वह हमेशा के लिए अपंग हो गया। डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि इमरान अब कभी नहीं चल सकेगा। दुनिया के बेहतरीन अस्पतालों में उसका इलाज हुआ। अरबों रुपए खर्च किए गए। मशहूर न्यूरोसर्जन उसके पास बुलाए गए, लेकिन सब बेकार रहा। 6 महीने गुजर गए और इमरान का आत्मविश्वास टूटने लगा। जो कभी हजारों कर्मचारियों का मालिक था, अब एक व्हीलचेयर पर कैद हो चुका था। उसकी आंखों में जिंदगी की चमक बुझ चुकी थी। दोस्त रिश्तेदार धीरे-धीरे दूर होने लगे और वह अपने ही घर की चार दीवारी में कैदी बन गया।
सुकून की तलाश
एक दिन इमरान ने सोचा कि शायद माहौल की तब्दीली कुछ सुकून दे। वह एक होटल के बाग में बैठ गया। पेड़ों की हल्की-हल्की सरसराहट, परिंदों की आवाजें और ठंडी हवा उसके दिल को थोड़ा सुकून दे रही थी। उसके सामने खाने की एक प्लेट रखी थी, मगर भूख उससे कोसों दूर थी। वह सोचों में गुम था कि अचानक एक छोटी सी बच्ची उसके सामने आ खड़ी हुई। उम्र कोई छह साल, पहने हुए कपड़े साधारण मगर साफ सुथरे। चेहरे पर मासूमियत मगर आंखों में अजीब आत्मविश्वास।
जोया का प्रस्ताव
बच्ची ने इमरान की प्लेट की तरफ इशारा किया और नरम आवाज में कहा, “यह बचा हुआ खाना मुझे दे दो। मैं तुम्हें चलना सिखाऊंगी।” इमरान हैरान रह गया। पहले तो उसने सोचा, यह कोई मजाक है। शायद बच्ची भूखी है और बहाने से खाना मांग रही है। उसके होठों पर हल्की सी तंजिया मुस्कान आई और वह हंस पड़ा। लेकिन यह हंसी खाली और सूखी थी। उसकी आंखों में मजाक से ज्यादा हैरानी थी।
एक नई उम्मीद
इमरान ने बच्ची की आंखों में झांका। वहां ना भूख थी, ना लालच, ना डर बल्कि एक खामोश सा यकीन था। ऐसा यकीन जो इमरान ने अपने अंदर बरसों से खो दिया था। उसने रुक गया। पहली बार 6 महीने में उसने महसूस किया कि कोई उससे झूठ नहीं बोल रहा। इमरान ने बच्ची को गौर से देखा। वह कोई आम भिखारी नहीं लग रही थी। उसके कपड़ों में सादगी जरूर थी, लेकिन सफाई और अनुशासन झलक रहा था।
जीशान और बिलाल की प्रतिक्रिया
इमरान के साथ उसका पुराना असिस्टेंट जीशान और बॉडीगार्ड बिलाल भी मौजूद थे। दोनों ने हालात देखकर तुरंत प्रतिक्रिया दी। जीशान झुककर इमरान के करीब आया और धीमी आवाज में बोला, “सर, यह बच्ची आपको परेशान कर रही है। मैं इसे अभी बाहर निकाल देता हूं।” बिलाल ने भी हामी भरी। उसके लिए यह बर्दाश्त से बाहर था कि कोई अजनबी बच्ची उनके बॉस के सामने इस तरह खड़ी हो। लेकिन इमरान ने पहली बार सख्त लहजे में उन्हें रोका। “कोई हरकत मत करना।”
सच्चाई का सामना
बच्ची ने फिर दोहराया, “मैं पैसे नहीं मांग रही। सिर्फ यह खाना चाहिए।” इमरान की पेशानी पर बल पड़ गए। वह चाहता तो अपनी जेब से हजारों रुपए निकालकर उसके हाथ में थमा देता और यह किस्सा खत्म हो जाता। उसने जेब से नोटों की गड्डी निकाली और मेज पर रख दी। “यह लो, तुम्हें इससे बेहतर क्या मिल सकता है?” इमरान ने कहा, लेकिन जोया ने ना नोटों की तरफ देखा और ना हाथ बढ़ाया। उसने खाने की प्लेट की तरफ दोबारा इशारा किया और नरमी से बोली, “मुझे यह नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ यह खाना चाहिए।”
इमरान का निर्णय
यह सुनकर इमरान के दिल के अंदर हलचल मच गई। उसने अपनी पूरी जिंदगी में बेशुमार लोग देखे थे। निवेशक, सियासतदान, कर्मचारी, गरीब लोग। लेकिन हर किसी का मकसद या तो पैसा था या फायदा। यह पहली बार था कि किसी ने उसके सामने दौलत को ठुकरा दिया। जीशान आगे बढ़ा। मगर इमरान ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया। उसने प्लेट की तरफ हाथ बढ़ाया। एक पल को रुका और फिर धीरे से प्लेट उठाकर जोया की तरफ बढ़ा दी।
पहला सबक
जोया ने दोनों हाथों से प्लेट थामी जैसे यह कोई खजाना हो। उसने खाने को एहतियात से अपने बैग में रखा। बैग की झिप बंद की और इमरान की आंखों में देखकर गंभीरता से कहा, “अब पहला सबक शुरू होगा।” यह अल्फाज बिजली की तरह इमरान के जेहन में गूंज गए। उसने पल भर को सोचा कि शायद यह बच्ची पागल है। लेकिन फिर उसे अपनी जिंदगी के पिछले छ महीने याद आए। कितने ही दावे, कितने ही वादे और सब झूठ।
नई दृष्टि
इमरान के दिल में एक चिंगारी सी जाग उठी। उसे लगा जैसे वह किसी नए तजुर्बे के दरवाजे पर खड़ा है। जोया के लहजे में कोई झूठ नहीं था और ना ही उसकी आंखों में खेल तमाशे का कोई शाइबा। जीशान ने दोबारा सरगोशी की। “सर, यह सब ड्रामा है। आपको बेवकूफ बनाया जा रहा है।” इमरान ने पलट कर देखा। उसकी निगाहों में वही सख्ती थी जो वह कारोबारी फैसलों में दिखाता था। “मैंने कहा, कुछ मत करो।”
एक नया अध्याय
गाड़ी पुरसुकून अंदाज में चल रही थी। बिलाल ड्राइविंग पर, इमरान व्हीलचेयर के साथ और जोया खामोश उसके सामने बैठी थी। उसके चेहरे पर ताज्जुब ना था। इमरान बार-बार सोचता, यह बच्ची कौन है? घर पहुंचे तो महलनुमा बंगले के दरवाजे खुल गए। ऊंचे स्तंभ, खिड़कियां, बाग जवाई या सब शान और शौकत की निशानी। लेकिन जोया की आंखों में कोई हैरानी ना थी, जैसे यह सब बेईमानी हो।
खुद से सामना
इमरान ने कहा, “यह वह जगह है जहां दुनिया रश्क करती है। तुम्हें फर्क ही नहीं पड़ा।” जोया मुस्कुराई। “घर पत्थरों से नहीं मकसद और सुकून से बनता है।” यह जुमला दिल में चुभ गया। इमरान ने हमेशा घर को कामयाबी समझा था। आज पहली बार किसी ने उसे खाली कहा।
सबक की शुरुआत
वे दफ्तर में गए। होलोग्राफिक प्रोजेक्टर, बड़ी स्क्रीनें, महंगा फर्नीचर सब कुछ था। लेकिन जोया फर्श पर बैठ गई। इमरान ने पूछा, “कुर्सियां मौजूद हैं। फर्श पर क्यों?” जोया बोली, “सबक फर्श से शुरू होता है। जब जमीन को महसूस करोगे तो हकीकत को पहचानोगे।” फिर उसने कहा, “कॉपी और पेंसिल दो।” जीशान फौरन नोटबुक ले आया। जोया ने गोद में रखकर आंखें बंद की। फिर तेजी से लकीरें खींचने लगी।
निजाम का सबक
15 मिनट बाद नोटबुक इमरान को दे दी। “यह पहला सबक है।” इमरान ने देखा अजीबोगरीब लकीरें। तंजिया हंसी-हंसा। “यह क्या है, बच्चों का खेल?” जोया ने कहा, “यह निजाम है। सिर्फ एक घंटा देखते रहो।” इमरान ने सोचा, यह फिजूल है। लेकिन याद आया कि 6 महीने के इलाज बेफायदा निकले।
समझने की प्रक्रिया
धीरे-धीरे दिमाग ने लकीरें समझना शुरू कर दी। बेसिर पैर निशान पैटर्न बनने लगे। एक नई दुनिया खुलती गई। एक घंटा बाद जोया आई तो इमरान की आंखों में हैरत थी। “यह महज लकीरें नहीं थीं। यह वाकई निजाम था।” जोया मुस्कुराई। “अब तुम समझने लगे हो। कल दूसरा सबक होगा। याद रखो, हर सबक पिछले से ज्यादा मुश्किल होगा।”
आगे का सफर
इमरान ने गहरी सांस ली। बरसों बाद लगा कि जिंदगी दोबारा शुरू होने वाली है। अगली सुबह उसके दिल में बेचैनी और ताज्जुब था। रात को जोया की तस्वीर पर घूरने के बाद दिमाग जैसे जाग उठा था। वह जानता था, आज का सबक पहले से ज्यादा अजीब होगा।
खड़ा होने की चुनौती
दिन के 10:00 बजे जोया आई। जीशान ने कहा, “सर, मुझे लगता है यह बच्ची खेल रही है। यह सब ड्रामा है।” इमरान की आंखों में फैसला कुंद चमक उभरी। “जीशान, मैंने कहा था, यह मेरा मामला है।” जीशान खामोश हो गया।
पहला कदम उठाना
जोया सामने आई। “आज का सबक मुश्किल है। तुम्हें व्हीलचेयर छोड़नी होगी। जमीन पर आना होगा।” यह जुमला इमरान पर बिजली बनकर गिरा। 6 महीने में वह कुर्सी के बगैर एक कदम ना बढ़ा सका था। उसने कहा, “यह मुमकिन नहीं, मेरी कमर टूटी है। मैं जमीन पर कैसे आ सकता हूं?” जोया ने संजीदगी से कहा, “तुम्हारे जिस्म ने याददाश्त खो दी है। तुम्हें दोबारा सिखाना होगा। जमीन को महसूस करो। अपनी ताकत जगाओ।”
हिम्मत जुटाना
बिलाल आगे बढ़ा। इमरान को सहारा दिया। धीरे-धीरे उसे व्हीलचेयर से उतारा और जमीन पर लिटा दिया। कालीन नरम था लेकिन इमरान की धड़कन तेज। उसके लिए जमीन पर लेटना भी सजा जैसा था। वह बेबस महसूस करने लगा जैसे इज्जत छीन ली गई हो। जोया झुकी और उसके करीब आकर बोली, “अब हाथों के बल रेंगने की कोशिश करो। जैसे एक नन्हा बच्चा रेंगना सीखता है। तुम्हें भी शुरू से सीखना होगा।”
पहली कोशिश
इमरान का चेहरा पसीने से भीग गया। उसने दोनों हाथ जमीन पर रखे, दबाव डाला और अपने जिस्म को आगे खींचने की कोशिश की। लेकिन कुछ पलों बाद वह ढेर हो गया। उसके बाजू कांप रहे थे और सांस फूल गई थी। “मैं नहीं कर सकता,” उसने हाफते हुए कहा। जोया की आवाज इस बार पहले से ज्यादा सख्त थी। “कर सकते हो। तुम्हारे जिस्म में ताकत है। तुम्हारे दिमाग में इरादा है। बस दोनों को जगाने की जरूरत है। दोबारा कोशिश करो।”
सफलता का पहला कदम
इमरान ने हिम्मत की। एक बार फिर हाथ आगे बढ़ाया, जिस्म को घसीटा। इस बार वह कुछ इंच आगे बढ़ने में कामयाब हुआ। उसने रुक कर सांस ली। फिर दोबारा कोशिश की। धीरे-धीरे उसके बाजू हरकत करने लगे। वह लड़खड़ाता, गिरता, फिर उठता। कई बार नाकाम हुआ, लेकिन हर बार उठ खड़ा हुआ। आखिरकार उसने जमीन पर कुछ कदम रेंग कर तय किए। वह लम्हा उसके लिए किसी चमत्कार से कम ना था।
नई पहचान
बिलाल और जीशान अपनी आंखों पर यकीन ना कर सके। वह शख्स जो 6 महीने से व्हीलचेयर पर कैद था, अब अपने हाथों के बल जमीन पर आगे बढ़ रहा था। इमरान के चेहरे पर थकान और पसीने के बावजूद एक चमक थी। उसके अंदर एक नई उम्मीद जाग उठी थी। जोया ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह है यह, यह है दूसरा सबक। तुमने अपने जिस्म को जगाना शुरू कर दिया है। यह सिर्फ आगाज है। कल हम अगला कदम उठाएंगे।”
तीसरे दिन की तैयारी
अगले दिन सुबह इमरान के अंदर एक अजीब सा जोश था। उसने रात भर ज्यादा नींद नहीं ली, मगर उसके जिस्म में एक ऊर्जा सी महसूस हो रही थी। पिछले दिन जब वह अपने हाथों के बल रेंगने में कामयाब हुआ था, वह लम्हा उसके लिए जिंदगी का एक नया आगाज था। आज के सबक का इंतजार करते हुए उसके दिल में डर भी था और उम्मीद भी।
खड़ा होने की चुनौती
10:00 बजे जोया हसबे वादा आ पहुंची। उसने इमरान की आंखों में सीधे देखा और कहा, “आज तुम्हें खड़ा होना है।” इमरान के दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने घबराकर बिलाल की तरफ देखा जैसे मदद मांग रहा हो। बिलाल आगे बढ़ा लेकिन जोया ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया। “नहीं, आज वह खुद खड़ा होगा।”
पहला कदम
इमरान के लिए यह जुमला एक चुनौती था। उसने अपने दोनों हाथ जमीन पर रखे, बाजुओं पर जोर डाला और धीरे-धीरे अपने जिस्म को ऊपर उठाने की कोशिश की। मगर जैसे ही कमर पर दबाव आया, वह दोबारा जमीन पर गिर पड़ा। उसके चेहरे पर मायूसी छा गई। “यह नामुमकिन है। मैं गिर जाऊंगा। मेरा जिस्म मेरा साथ नहीं देता,” इमरान ने थके हुए लहजे में कहा।
जोया का विश्वास
जोया ने करीब आकर संजीदगी से जवाब दिया, “यह जिस्म नहीं, तुम्हारा दिमाग है जो हार मान चुका है। जिस्म एक आलात है। अगर दिमाग हुक्म दे तो जिस्म मानता है। फिर से कोशिश करो।” इमरान ने गहरी सांस ली और दोबारा जोर लगाया। इस बार उसने बाजुओं को ज्यादा मजबूती से जमीन पर दबाया और घुटनों को मोड़ने की कोशिश की।
खुद पर विश्वास
उसके बाजू कांप रहे थे। पसीना माथे से बह रहा था। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारा। चंद लम्हों बाद वह घुटनों के बल उठ खड़ा हुआ। बिलाल और जीशान ने बेइख्तियार तालियां बजाई। उनकी आंखों में हैरत थी। लेकिन जोया ने अब भी सुकून से कहा, “यह काफी नहीं है। तुम्हें मुकम्मल तौर पर खड़ा होना है।”
दूसरा कदम
इमरान ने दोबारा कोशिश की। वह घुटनों से धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा। उसके पांव लड़खड़ा रहे थे। टांगें जैसे बरसों बाद जाग रही हों। उसने दोनों हाथ एक तरफ फैलाए जैसे तवाजुन कायम कर रहा हो। लम्हालम्हा उसके लिए सख्त था। मगर आखिरकार वह पूरी तरह खड़ा हो गया। वह लम्हा इमरान के लिए दुनिया का सबसे बड़ा इनाम था।
एक नई पहचान
उसके कदम कांप रहे थे। मगर वह अपने पैरों पर खड़ा था। व्हीलचेयर के बगैर, किसी के सहारे के बगैर, उसकी आंखों से बेख्तियार आंसू निकल आए। उसने जोया की तरफ देखा और कांपती आवाज में कहा, “मैंने सोचा था यह दिन कभी वापस नहीं आएगा। मगर आज मैं फिर खड़ा हूं।” जोया के लबों पर हल्की सी मुस्कान आई। उसने कहा, “यही पहला कदम है। तुमने अपने जिस्म को मकसद दिया और उसने मान लिया। याद रखो, अगर मकसद वाजे हो तो जिस्म कभी इंकार नहीं करता।”
नए रास्ते की ओर
इमरान के दिल में एक तूफान सा बरपा था। 6 महीनों से वह जिस अंधेरे में कैद था, उस अंधेरे में आज पहली बार रोशनी की किरण उतरी थी। उसने अपने हाथ आसमान की तरफ फैलाए जैसे खालिक का शुक्र अदा कर रहा हो। जीशान ने धीरे से कहा, “सर, यह किसी चमत्कार से कम नहीं।” इमरान ने आंखों में चमक के साथ जवाब दिया, “यह चमत्कार नहीं, यह यकीन है।”
नए सबक की शुरुआत
अगली सुबह इमरान मामूल से पहले जाग गया। पिछली रात उसके अंदर जो खुशी और सुकून आया था, वह बरसों बाद महसूस हुआ। वह बिस्तर पर सीधा बैठा और अपनी टांगों को गौर से देखा। अब भी उनमें कमजोरी थी। मगर उस कमजोरी के साथ-साथ एक नया एहसास भी था, यकीन का।
दौड़ने की चुनौती
जब घड़ी ने 10:00 बजे, जोया दरवाजे पर नमूदार हुई। उसकी आंखों में वही एतमाद था जो इमरान को हर बार हैरान कर देता था। उसने इमरान को देखा और सीधा कह दिया, “आज का सबका दौड़ने का है।” इमरान ने एक लम्हे को गहरी सांस ली। उसने अपने अंदर मौजूद डर को दबाया।
खुद पर विश्वास
बिलाल फौरन आगे बढ़ा ताकि सहारा दे। मगर जोया ने उसे रोक दिया। “नहीं, आज वह खुद चलेगा। तुम सिर्फ देखो।” जीशान भी करीब खड़ा था। उसके चेहरे पर अब भी शक और बेयकीनी थी। उसने दबे अल्फाज में कहा, “सर, यह खतरनाक है। अगर आप गिर गए तो फिर…” लेकिन इमरान ने उसकी बात काट दी। उसकी आवाज में वही मजबूती थी जो किसी जमाने में बड़े-बड़े कारोबारी मुवाहिदों में सुनी जाती थी। “जीशान, आज मैं गिरने से नहीं डरता।”
दौड़ने की शुरुआत
जोया ने बाघ के रास्ते पर लकड़ी के मोटे टुकड़े और चंद रुकावटें रख दी। उसने हाथ बांधकर इमरान की तरफ इशारा किया। “यही मैदान है। अब अपनी ताकत आजमाओ।” इमरान ने अपने कदम आगे बढ़ाए। शुरू में वह डगमगाया लेकिन फिर हिम्मत बांधकर भागने लगा। पहले चंद कदम बेमेल थे जैसे कोई बच्चा दौड़ना सीख रहा हो।
रुकावटें पार करना
उसका जिस्म कांप रहा था, मगर उसके दिल की आग उसे आगे धकेल रही थी। पहली रुकावट सामने आई। एक लकड़ी का टुकड़ा। इमरान ने पूरी कौवत से पांव उठाया और उसे फांद गया। वह लम्हा जैसे वक्त को रोक गया हो। बिलाल और जीशान के मुंह खुले के खुले रह गए। फिर दूसरी रुकावट आई। इस बार इमरान डगमगा गया और तकरीबन गिर ही गया। लेकिन उसने हाथ फैलाए, तवाजुन कायम किया और दोबारा सीधा खड़ा हो गया।
आत्मविश्वास की जीत
उसके लबों पर मुस्कान थी जैसे उसने खुद को शिकस्त से बचा लिया हो। तीसरी और सबसे बड़ी रुकावट सामने आई। इमरान ने गहरी सांस ली, दिल में दुआ की और फिर दौड़कर एक ही छलांग में उसे पार कर गया। उस लम्हे उसके अंदर छिपी तमाम मायूसी जैसे हवा में घुल गई।
एक नया इमरान
वह अब वह शख्स नहीं रहा था जो कुर्सी पर कैद था। वह एक नया इंसान था। एक नया इमरान। जब वह आखिरी लकड़ी पार करके रुका तो हाफ रहा था। पसीना उसके कपड़ों में भीग गया था। लेकिन उसके चेहरे पर एक फातिहा की मुस्कान थी। बिलाल ने बेख्तियार तालियां बजाई और कहा, “सर, आपने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।”
जोया का सबक
जोया आगे बढ़ी और इमरान के करीब आकर नरमी से बोली, “यह था चौथा सबक। तुमने अपने खौफ को शिकस्त दी। याद रखो, जब इंसान अपने डर को मात दे देता है तो उसके लिए दुनिया की कोई रुकावट बड़ी नहीं रहती।”
छठे दिन का बदलाव
इमरान ने सर उठाया, आसमान की तरफ देखा और दिल ही दिल में कहा, “मैं फिर से जिंदा हो गया हूं।” छठे दिन इमरान के दिल की कैफियत बिल्कुल अलग थी। पिछले दिन जब उसने दौड़कर रुकावटें पार की तो उसके अंदर जैसे कोई बंद दरवाजा खुल गया था।
नई पहचान
आज सुबह उसने शीशे में अपनी झलक देखी। वही चेहरा, मगर आंखों में कुछ नया था। हौसला, यकीन और रोशनी। जोया वक्त पर आ पहुंची। बिलाल और जीशान पहले ही वहां मौजूद थे। अब दोनों के रवैया बदल चुके थे। बिलाल की आंखों में अकीदत झलक रही थी और जीशान जो हर रोज शक का इजहार करता था, आज खामोश था।
बड़ी मंजिल का सामना
जोया ने इमरान को देखा और कहा, “आज का सबक सबसे बड़ा है। तुम्हें अपनी सबसे बड़ी मंजिल को छूना है।” इमरान ने हैरान होकर पूछा, “सबसे बड़ी मंजिल?” जोया ने बाघ के दूसरी तरफ इशारा किया जहां एक पुराना हेलीकॉप्टर खड़ा था। वही हेलीकॉप्टर जिस पर इमरान बरसों से सफर करता आया था और जिसके हादसे ने उसकी जिंदगी को अंधेरों में धकेल दिया था।
डर का सामना
उस दिन के बाद वह कभी उसके करीब नहीं गया था। इमरान के कदम जैसे रुक गए। उसके दिल में डर ने दोबारा सर उठाया। उस हादसे की याद, चीखों की आवाज, टूटते हुए जहाज की गूंज, सब कुछ वापस लौट आया। उसने धीरे से कहा, “नहीं, मैं उसके करीब नहीं जा सकता।” जोया ने सुकून से जवाब दिया, “यही तुम्हारा इम्तिहान है। जब तक तुम अपने डर को आंखों में नहीं देखोगे, तुम आजाद नहीं हो सकते।”
नया इमरान
बिलाल ने इमरान के कंधे पर हाथ रखा और कहा, “सर, अब आप वही आदमी नहीं हैं। आपने कुर्सी को छोड़ा, रेंग कर चले, खड़े हुए, दौड़े। तो फिर यह कदम भी क्यों नहीं उठा सकते?” इमरान ने गहरी सांस ली। उसके दिल में हलचल थी, लेकिन वह जानता था कि अगर आज उसने हिम्मत ना की, तो वह हमेशा के लिए कैदी रहेगा।
हिम्मत जुटाना
उसने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और हेलीकॉप्टर के दरवाजे तक पहुंच गया। उसने हिचकिचाते हुए दरवाजा खोला और अंदर कदम रखा। कॉकपिट की खुशबू, पुराने बटन, कंट्रोल का स्टिक यह सब उसके लिए अतीत की याद दिलाने वाला था। उसके हाथ कांप रहे थे। जोया ने करीब आकर धीरे से कहा, “आंखें बंद करो। तसवुर करो कि तुम उड़ रहे हो। जिस्म को हुक्म मत दो। दिमाग को यकीन दिलाओ।”
उड़ान की तैयारी
इमरान ने आंखें बंद की। उसने अपने तस्सवुर में आसमान देखा। नीला आसमान, खुले बादल और उसके नीचे छोटा सा शहर। जैसे ही उसने यह मंजर जहन में बनाया, उसके हाथों ने स्टिक को मजबूती से थाम लिया और पांव पैडल पर जम गए। इंजन की गड़गड़ाहट पूरे बाग में गूंज उठी।
नई उड़ान
बिलाल और जीशान अपनी जगह साखित रह गए। हेलीकॉप्टर के पंखे घूमने लगे और चंद लम्हों बाद वह धीरे-धीरे जमीन से ऊपर उठने लगा। इमरान की आंखें अब भी बंद थीं, मगर उसका दिल आजाद परिंदे की तरह पाई परवाज कर रहा था। जब उसने आंखें खोलीं तो वह बादलों के करीब था। उसके चेहरे पर आंसू बह रहे थे, लेकिन उन आंसुओं में करब नहीं, सुकून था।
वापसी
कुछ देर बाद उसने हेलीकॉप्टर को वापस जमीन पर उतारा। जोया मुस्कुरा रही थी। उसने कहा, “यह था तुम्हारा असल सबक। तुमने अपने डर को शिकस्त दी और अपनी मंजिल को दोबारा छू लिया।” इमरान जमीन पर उतरा तो उसके कदम मजबूत थे। अब वह जान चुका था कि उसकी जिंदगी की कैद टूट चुकी है।
आशा की किरण
हेलीकॉप्टर की जमीन पर वापसी के बाद माहौल में एक अजीब सा सुकून छा गया। बिलाल और जीशान दोनों अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहे थे। वह शख्स जो 6 महीने तक व्हीलचेयर पर कैद था, आज ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा हुआ, दौड़ा बल्कि आसमान की वसातों को भी छू आया। यह लम्हा उनके लिए किसी ख्वाब से कम ना था।
धन्यवाद
इमरान हेलीकॉप्टर से उतरा तो उसके चेहरे पर पसीने के कतरे और आंखों में आंसू थे। वह कुछ लम्हों के लिए जमीन पर खामोश खड़ा रहा। फिर उसने जोया की तरफ रुख किया। उसकी आवाज भारी मगर शुक्रगुजारी से भरी हुई थी। “यह सब तुम्हारी वजह से हुआ। तुमने मुझे नई जिंदगी दी।” लेकिन जोया ने सर हिलाया और कहा, “नहीं, यह सब तुमने खुद किया। मैंने सिर्फ रास्ता दिखाया। ताकत हमेशा से तुम्हारे अंदर थी। तुमने उसे पहचान लिया।”
निष्कर्ष
यह सुनकर इमरान कुछ लम्हों के लिए खामोश रहा। उसके दिल में अजीब सा सुकून उतर रहा था। उसने समझ लिया कि जोया महज एक बच्ची नहीं थी। वह उम्मीद की अलामत, हिम्मत की अलामत, उस यकीन की अलामत जो इंसान को नामुमकिन रास्ते भी तय करा देता है। उस दिन के बाद इमरान के दिल में सुकून उतर गया। वह जान गया कि जोया का शुक्रिया अदा करने की जरूरत नहीं क्योंकि उसने शुक्रिया हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि इंसानों को जगाने के लिए जन्म लिया था।
इमरान अपनी नई जिंदगी की तरफ लौटा। उसने अपनी दौलत, वक्त और सलाहियतें उन लोगों पर न्यछावर कर दी जिनہوں ने खुद को हारा हुआ समझ लिया था। उसके इदारे में लोग व्हीलचेयर पर आते और अपने कदमों पर चलकर जाते। कोई जहनी मरीज सुकून पा लेता, कोई मायूस शख्स दोबारा ख्वाब देखने लगता और जब कभी इमरान तन्हा बैठता, उसके लबों पर एक ही जुमला आता। “असली ताकत पैसे में नहीं, यकीन और हौसले में है।” यूं इमरान की कहानी एक मिसाल बन गई। उसने अपनी जिंदगी दूसरों की जिंदगी बनाने में वक़्त कर दी। और जोया वह अब भी कहीं ना कहीं किसी मायूस इंसान के दरवाजे पर दस्तक देती होगी। उसे यह याद दिलाने की हार मान लेना सबसे बड़ी कमजोरी है।
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Jaisalmer Bus Fire: DNA सैंपलिंग से होगी अग्निकांड के मृतकों की पहचान
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