“इंस्पेक्टर गरिमा का मिशन: टूटा रिश्ता, अधूरी ज़िंदगी और एक ननद का अटूट प्यार”

एक सुबह जिले की इंस्पेक्टर गरिमा सिंह अपने भाई आलोक के साथ हर्ष नगर के बाजार की ओर जा रही थी। गरिमा की नजर अचानक सड़े डेथक की दूसरी तरफ पड़ी, जहां उनकी तलाकशुदा भाभी नीलम देवी पुरानी गद्दियों की मरम्मत का काम कर रही थी। यह देखकर गरिमा ने तुरंत अपने भाई से कहा, “भैया, उस तरफ देखिए। यही मेरी भाभी है ना?”

आलोक घबरा गया और बोला, “नहीं बहन, यह तुम्हारी भाभी कैसे हो सकती है? तुम्हारी भाभी तो अच्छी खासी औरत थी। यह तो एक गड्डी साज है। देखो, गद्दी ठीक कर रही है।”

गरिमा ने कहा, “नहीं भैया, आपने जो फोटो मुझे दिखाया था, वही चेहरा है। मुझे पता है, आप झूठ बोल रहे हैं। यही मेरी भाभी हैं। प्लीज भैया, इन्हें हमारे घर लेकर चलिए। देखिए ना, इनकी हालत कितनी खराब है।”

नीलम का दुख

इतने में गद्दी साफ करते-करते नीलम की नजर आलोक पर पड़ी। वह उन्हें देखते ही तुरंत पहचान गई और शर्म से अपना सिर झुका लिया। गरिमा ने देखा कि नीलम की आंखों में आंसू थे। उसे यकीन हो गया कि यही उसकी भाभी है। लेकिन आलोक उसे खींचते हुए वहां से ले जाने लगा। वह कह रहा था, “यह तुम्हारी भाभी नहीं है। तुम्हें गलतफहमी हो गई है। चल घर चल।”

गरिमा ने हाथ छुड़ाते हुए बोली, “नहीं भैया, भाभी को घर लेकर चलो। देख तो लो, उनकी हालत कितनी खराब है। सब ठीक हो जाएगा। भैया, भले ही आप दोनों का तलाक हो चुका है, लेकिन वह मेरी भाभी हैं। आपका और उनका दुश्मनी हो सकती है, लेकिन मेरा तो नहीं है। मैं अपनी भाभी को घर ले जाऊंगी।”

आलोक का विरोध

आलोक राजी नहीं हुआ। वह गुस्से से चिल्ला उठा, “देखो, अगर तुम उन्हें घर लेकर जाओगी तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा। अगर तुम्हें अपनी भाभी चाहिए, तो मुझे भूल जाओ। ज्यादा जिद मत कर। यह तुम्हारी भाभी नहीं है।”

आलोक गरिमा को जबरदस्ती खींचते हुए घर ले आया। गरिमा मजबूरी में कुछ नहीं कर सकी और भाई के साथ चली गई। उधर, नीलम यह सब देख रही थी। उसके मन में यही ख्याल घूम रहा था, “मेरी ननद कितनी बड़ी हो गई है। काश, मेरी ननद मेरे पास होती तो शायद मेरी ऐसी हालत ना होती। खैर, कहीं ना कहीं गलती मेरी ही है। मेरी ही वजह से आज मैं इस हाल में जी रही हूं।” वह यह सोचते हुए फिर से अपने काम में लग गई।

घर की बहस

घर आकर गरिमा ने भाई से पूछा, “भैया, आप झूठ क्यों बोल रहे हैं? वही मेरी भाभी हैं। आप उन्हें घर क्यों नहीं लाना चाहते? मुझे अपनी भाभी से मिलना है। लड़ाई अगर आप दोनों की हुई है, तो आप दोनों के बीच दुश्मनी है, तो आपका रिश्ता खत्म हो गया। मेरा तो थॉट हुआ है। मैं अभी भी उनकी ननद हूं। मुझे अपनी भाभी से मिलना है। प्लीज भैया, मुझे मेरी भाभी से मिलने दीजिए।”

गरिमा ने आगे कहा, “भैया, बताइए ना, आप दोनों के बीच क्या हुआ था, जिस वजह से आप लोगों का तलाक हुआ? मुझे तो कुछ याद नहीं है, लेकिन अगर आप बता देंगे तो शायद मैं उन सारी चीजों को सुलझा दूं और हम सब फिर से नई जिंदगी शुरू कर सकें। प्लीज भैया, मुझे बता दीजिए। मैं अपनी भाभी को इस हालत में नहीं देख सकती। मैं एक इंस्पेक्टर हूं और मेरी भाभी आज खड्सा का काम कर रही हैं। यह मुझे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है। अगर आप भाभी को घर नहीं लाएंगे और आप दोनों के बीच की दूरियां खत्म नहीं होंगी, तो मैं भी इस घर में नहीं रहूंगी। अब फैसला आपके हाथ में है। आपको जो करना है, कीजिए। लेकिन मुझे अपनी भाभी को घर लाना ही है।”

आलोक का ठंडा जवाब

आलोक बोला, “तुझे जो करना है, कर ले बहन। मगर मैं उसे घर नहीं लाऊंगा। तुझे इस घर में रहना है या नहीं, यह तेरा फैसला है। लेकिन मैं उस औरत को इस घर में कभी नहीं लाऊंगा। मैं बुझी हुई आग को फिर से जलाना नहीं चाहता। अगर तू मेरे साथ नहीं रहना चाहती, तो अलग बात है। वैसे भी तेरी भाभी ने मुझे छोड़ दिया था। अब अगर तू भी मुझे छोड़ना चाहती है, तो छोड़ दे। लेकिन मेरा दिल नहीं चाहता कि वह मेरे घर आए। बहन, तुम समझती नहीं हो। यह बात इतनी गहरी है कि तुम्हें समझा भी नहीं सकता।”

गरिमा की सोच

गरिमा मन ही मन सोचने लगी, “आखिर इतनी बड़ी कौन सी बात हो गई कि भैया आज तक नहीं मान रहे हैं? क्या मेरी भाभी इतनी बुरी औरत थी? जिस वजह से भैया के दिल में इतना गुस्सा है। लेकिन क्यों? क्या ऐसा हो सकता है कि भैया चाहते ही ना हो कि मैं भाभी को घर लाऊं? क्या वह चाहते हैं कि मैं भी इस घर को छोड़ दूं? लेकिन क्यों? भैया मुझे इग्नोर कर रहे हैं। मुझे छोड़ डरने की धमकी दे रहे हैं। पर भाभी को घर नहीं लाना चाहते। आखिर इतनी बड़ी कौन सी बात है? मुझे तो पता करनी ही पड़ेगी कि किस वजह से भैया इतने गुस्सा हैं कि मुझे भी छोड़ कर देंगे। लेकिन भाभी को घर नहीं लाएंगे।”

नीलम से मुलाकात

दूसरे दिन गरिमा चुपके से खुद नीलम से मिलने के लिए निकल पड़ी। आलोक को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनकी बहन कहां गई है। उन्हें लगा कि शायद वह ड्यूटी पर होगी। लेकिन इंस्पेक्टर गरिमा अपनी भाभी से मिलने बाजार की ओर निकल चुकी थी। वह जैसे ही बाजार पहुंची, देखा कि उसी जगह पर उनकी भाभी फिर से गद्दी ठीक कर रही हैं। गरिमा तुरंत पास जाकर खड़ी हो गई और बोली, “आपका नाम क्या है?”

फिर गरिमा बोली, “आप रहती कहां हैं?” नीलम बोली, “मेरा कोई घर बार नहीं है। मैं यहीं सड़कों पर रहती हूं। मेरा कोई नहीं है।” यह सुनकर गरिमा की आंखों में आंसू आ गए। वह बोली, “आप मुझे पहचानती हैं?”

नीलम का इनकार

नीलम ने शर्म से सिर झुकाते हुए कहा, “नहीं, मैं आपको नहीं जानती। आप कौन हैं? मुझे क्या पता?” गरिमा मन ही मन सोचने लगी, “भाभी झूठ क्यों बोल रही हैं? मुझे तो पहचानती होंगी। क्योंकि उस दिन भैया के साथ उन्होंने मुझे देखा था।”

वह फिर बोली, “आप मुझे जानती नहीं हैं। मेरा नाम गरिमा है। याद कीजिए, शायद जानती होंगी। कहीं ना कहीं तो आपने मुझे जरूर देखा होगा।” नीलम बोली, “नहीं बेटी, मैंने तुम्हें कहीं नहीं देखा है। मुझे सब याद है और मुझे यह भी नहीं पता कि गरिमा कौन है। हां, हो सकता है, तुम मुझे जानती हो। लेकिन मैं तुम्हें नहीं जानती बेटी।”

गरिमा का विश्वास

यह सुनकर गरिमा को थोड़ी राहत मिली क्योंकि वह अपनी भाभी के मुंह से ‘बेटी’ शब्द सुनना चाहती थी। सुनते ही वह बोली, “आप मेरी भाभी हैं। आप झूठ बोल रही हैं। मुझे पता है कि मेरे भैया से आपकी शादी हुई थी और मैं आपकी ननद हूं। मुझे नहीं पता कि आप दोनों के बीच क्या हुआ, किस वजह से रिश्ता टूटा। लेकिन अब मैं आप दोनों को एक साथ देखना चाहती हूं। मेरा सपना है कि मेरे भैया और भाभी फिर से एक साथ रहें।”

यह सुनकर नीलम घबराते हुए बोली, “आप यह सब क्या कह रही हैं? मेरी तो शादी भी नहीं हुई। आप शायद किसी और के बारे में बात कर रही होंगी। मैं किसी की भाभी नहीं हूं।”

गरिमा की ठानी हुई बात

यह सुनकर गरिमा मन ही मन सोचने लगी, “मेरी भाभी सब झूठ बोल रही हैं। भैया और भाभी दोनों ही मिलना नहीं चाहते। मगर मैं तो इन्हें मिलाकर ही रहूंगी।” वह फिर से बोली, “देखिए, मुझे पता है कि आप मेरी भाभी ही हैं और मैं आप दोनों को मिलाकर रहूंगी। चाहे आप लोग जितना भी दूर भागें, चलिए मेरे साथ घर चलिए। आप यह सब क्या कर रही हैं? आपको यह शोभा नहीं देता। मैं एक इंस्पेक्टर हूं और एक इंस्पेक्टर की ननद की भाभी इस तरह का काम नहीं करती। प्लीज भाभी, घर चलिए।”

नीलम का इनकार

यह सुनकर नीलम की आंखों में आंसू आ गए। वह आंसू पोंछते हुए बोली, “नहीं बेटी, मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊंगी। वह मेरा घर नहीं है। वह तुम्हारा घर है। तुम रह सकती हो, लेकिन मैं तो तुम्हारे घर जा सकती हूं। हां, बोल दिया। हो गया। मैं यहीं रहती हूं बेटी और यहीं रहूंगी। मुझे किसी के घर जाने की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं। बेटी, तुम घर जाओ।”

गरिमा का संकल्प

यह सुनकर गरिमा समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसके भैया और भाभी के बीच हुआ क्या था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ देने के लिए कुछ भी करेगी।

दोस्त से मदद

अगले ही दिन गरिमा ने अपने भाई से पूछा, “भैया, आपका कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” आलोक बोला, “क्यों नहीं बहन? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरे एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बहन? यह सवाल क्यों?”

गरिमा बोली, “नहीं भैया, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं? वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।”

आलोक का संदेह

गरिमा की बात सुनकर आलोक को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है। फिर वह बोला, “सच बताओ बहन, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?” गरिमा बोली, “भैया, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाते। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपका कोई अच्छा सहेली है तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”

आलोक की सहेली का आगमन

गरिमा की बात सुनकर आलोक बोला, “हां बहन, तुमने सही कहा। मेरे एक-दो सहेली हैं जो पास में ही रहते हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगा तो जरूर आएंगे।” दूसरे दिन आलोक की सहेली शालिनी घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब आलोक की सहेली शालिनी अपने घर जाने लगी, तो गरिमा बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”

शालिनी का नंबर

शालिनी ने नंबर दे दिया और गरिमा ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन गरिमा ने शालिनी को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?”

शालिनी बोली, “क्यों बेटी, किस बारे में बात करनी है? फोन पर नहीं बता सकती।” गरिमा बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”

शालिनी का आमंत्रण

शालिनी ने कहा, “हां बेटी, अगर घर आना चाहती हो तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” गरिमा शालिनी के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरे भैया और भाभी का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए और मेरी भाभी की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर गद्दी ठीक करने लगी।”

शालिनी की कहानी

यह सुनकर शालिनी ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारे भैया और भाभी की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारी भाभी काम करती थी, वहां एक लड़के से उसका अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़के ने तुम्हारी भाभी को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारी भाभी के सारे पैसे ले लिए। यहां तक कि तुम्हारी भाभी इतनी पागल हो गई थी उस लड़के के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारे भैया को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारे भैया को उस लड़के के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारे भैया और भाभी के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारे भैया

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