वो रोजाना अंधे भिखारी को अपना टिफिन खिला देती , फिर जब वो ठीक होकर आया तो पता चला वो एक करोड़पति है

एक छोटी सी नेकी ने बदल दी दो ज़िंदगियाँ: कॉलेज छात्रा प्रिया की मदद से अंधे भिखारी की पहचान हुई उजागर

कहते हैं नेकी कभी बेकार नहीं जाती। मुंबई की भीड़-भाड़ भरी गलियों में रोज़ कॉलेज जाती प्रिया ने शायद कभी नहीं सोचा था कि उसकी एक छोटी सी मदद न सिर्फ किसी की ज़िंदगी बदल देगी, बल्कि उसकी अपनी दुनिया भी रोशनी से भर जाएगी।

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प्रिया एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी थी, जिसे उसके माता-पिता ने हमेशा दूसरों की मदद करना सिखाया था। रोज़ कॉलेज जाते समय वह एक अंधे भिखारी शंकर को देखती थी, जिसके कटोरे में कभी-कभार ही कुछ सिक्के गिरते थे। एक दिन प्रिया ने अपने टिफिन का आधा खाना शंकर को दे दिया। यहीं से दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता शुरू हुआ। रोज़-रोज़ प्रिया शंकर को खाना देती, उसकी बातें सुनती और उसे हौसला देती।

कुछ महीने बाद अचानक शंकर गायब हो गया। प्रिया को उसकी बहुत याद आई, लेकिन ज़िंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही। कई महीने बीत गए। एक दिन कॉलेज से लौटते समय प्रिया को उसी नुक्कड़ पर एक महंगी गाड़ी और उसमें खड़े एक सजीले आदमी ने रोक लिया। वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि ऑपरेशन के बाद आँखों की रोशनी और याददाश्त वापस पा चुके शंकर थे – असल में शहर के मशहूर उद्योगपति देव आनंद।

देव आनंद ने प्रिया को बताया कि कैसे उसकी मदद और इंसानियत ने उन्हें जीने की उम्मीद दी, अस्पताल में इलाज मिला और उनकी पहचान लौट आई। उनकी पत्नी और बेटे की मौत के बाद, वह सब कुछ खो बैठे थे, लेकिन प्रिया की दया ने उन्हें फिर से ज़िंदगी की ओर लौटा दिया।

देव आनंद ने प्रिया को अपनी बेटी मानकर अपनी संपत्ति और कारोबार संभालने का प्रस्ताव दिया। साथ ही, उन्होंने प्रिया के परिवार की सारी आर्थिक परेशानियाँ दूर कर दीं और उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। प्रिया ने देव आनंद के नाम पर एक चैरिटेबल ट्रस्ट खोला, जो बेसहारा लोगों की मदद करता है।

यह कहानी हमें सिखाती है:

छोटी-सी मदद भी किसी के जीवन में चमत्कार ला सकती है।
इंसानियत और दया सबसे बड़ी दौलत है।
नेकी का फल देर-सवेर जरूर मिलता है।

अगर ये कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो अच्छाई का संदेश आगे बढ़ाएँ। ऐसी कहानियाँ समाज में उम्मीद और रोशनी जगाती हैं।

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