बेटा विदेश से लौटा तो मां-बाप सड़क पर भीख मांगते नज़र आये फिर उसने जो किया आप यकीन नहीं कर सकेंगे

एक बेटा और उसका सच्चा फ़र्ज़”

छोटे से गांव में रामप्रसाद अपनी पुरानी किराने की दुकान चलाते थे। जीवन सादा था, संघर्ष भरा लेकिन संतुष्ट। उनकी पत्नी सावित्री घर की देखभाल करती थीं। उनका बेटा अर्जुन पढ़ा-लिखा, समझदार और मेहनती था। परिवार में बहुत प्रेम था। अर्जुन की शादी कुछ वर्ष पहले प्रिया नाम की लड़की से हुई थी, जिसे उसके माता-पिता ने बहुत प्यार से चुना था।

गांव में सुविधाओं की कमी और सीमित अवसरों के कारण अर्जुन हमेशा बेचैन रहता था। वह नहीं चाहता था कि उसका परिवार गरीबी और संघर्ष में जीवन गुजारे। एक रात, खाने के बाद अर्जुन ने अपने माता-पिता से कहा,
“बाबूजी, मां… मैं चाहता हूं कि हमारा जीवन बेहतर हो। गांव में रहकर यह मुमकिन नहीं। अगर आप इजाजत दें, तो मैं शहर जाकर नौकरी करना चाहता हूं।”

रामप्रसाद ने एक गहरी सांस ली और सावित्री की ओर देखा। सावित्री मुस्कुराई और बोली,
“बेटा, तरक्की की चाहत अच्छी है। तू जा, हमें तुझ पर भरोसा है।”

प्रिया ने भी हामी भरी:
“जी, आप जैसा चाहें, मैं यहां घर संभाल लूंगी।”

अर्जुन अगले दिन छपरा के लिए रवाना हो गया। वहां उसने छोटे-मोटे काम किए, संघर्ष किया और आखिरकार छह महीने बाद एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी पा ली। उसने किराए का छोटा सा घर लिया और अपने माता-पिता और पत्नी को शहर बुला लिया।

शहर में नई शुरुआत

शुरुआत में सब अच्छा चला। अर्जुन ऑफिस जाता, प्रिया घर संभालती और रामप्रसाद-सावित्री अपने बेटे की मेहनत देखकर खुश रहते। लेकिन शहर महंगा था। अर्जुन की कमाई घर के खर्चों में ही खत्म हो जाती।
उसका सपना था — “अपना घर”

एक रात, अर्जुन ने प्रिया से कहा,
“प्रिया, हमें अपना घर लेना है। इसके लिए मुझे विदेश जाना होगा। वहां अच्छी कमाई होती है। मैं कुछ साल में इतना कमा लूंगा कि हम सबका भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।”

प्रिया थोड़ी चिंतित हुई, लेकिन बोली:
“ठीक है जी, अगर आप यही चाहते हैं तो मैं मां-बाबूजी को संभाल लूंगी।”

रामप्रसाद ने बेटे की पीठ थपथपाई और कहा,
“बेटा, हम तुझ पर गर्व करते हैं। जा, नाम रोशन कर।”

विदेश की राह और बदलता रिश्ता

15 दिन बाद अर्जुन विदेश चला गया। उसने दिन-रात मेहनत की। जो भी काम मिला — रेस्टोरेंट में वेटर, ऑफिस में क्लर्क — सब किया।
वह हर महीने पैसे भेजता। अपने माता-पिता से वह प्रिया के फोन पर ही बात करता, क्योंकि रामप्रसाद और सावित्री के पास मोबाइल नहीं था।
पहले दो साल सब ठीक चला। लेकिन फिर…

अर्जुन का नंबर बदल गया। वह प्रिया को तो नया नंबर दे गया, लेकिन माता-पिता को नहीं। फोन अब महीने में कभी-कभार आता।
इधर, प्रिया का व्यवहार बदलने लगा। वह सास-ससुर के प्रति रूखी हो गई। जब उसकी मां ने फोन पर बताया कि वह गांव में बहुत परेशान है, प्रिया ने उन्हें अपने घर बुला लिया।

दो कमरों के घर में अब तीन महिलाओं के बीच संघर्ष शुरू हुआ। प्रिया ने माता-पिता को हॉल में सुला दिया।
सावित्री ने कहा,
“बेटी, कमर में दर्द रहता है, ज़मीन पर सोना मुश्किल होगा।”
लेकिन प्रिया ने जवाब दिया,
“मेरी मां बीमार हैं। अगर उन्हें कुछ हो गया तो?”

रामप्रसाद और सावित्री ने चुपचाप सह लिया।

बुजुर्गों का अपमान और दर-दर की ठोकरें

प्रिया की मां के आने के बाद हालात और बिगड़ गए।
सास-ससुर के साथ दुर्व्यवहार बढ़ता गया — ताने, अपमान, भूखा रख देना।

एक दिन रामप्रसाद ने कहा,
“बेटी, अगर हमारी वजह से परेशानी हो रही है, तो हम चले जाते हैं। बस, अर्जुन से बात करवा दो।”
प्रिया ने मना कर दिया:
“वो बहुत व्यस्त है। बात नहीं कर पाएगा।”

रामप्रसाद ने अर्जुन का पुराना नंबर डायरी से निकाला और विकास नामक पुराने पड़ोसी से मदद मांगी, लेकिन नंबर बंद था।
आखिरकार, वे घर छोड़कर छपरा के मंदिर के बाहर त्रिपाल में रहने लगे।
भीख मांगकर पेट भरने लगे।

बेटे की वापसी और सच्चाई का सामना

चार साल बाद अर्जुन का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हुआ। वह ढेर सारा पैसा कमाकर भारत लौटा। वह अपने माता-पिता और पत्नी को सरप्राइज देना चाहता था।

टैक्सी मंदिर के पास रुकी। अर्जुन ने बाहर देखा, तो मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे एक भिखारी का चेहरा जाना-पहचाना लगा।
वह चौक पड़ा — “ये तो बाबूजी हैं!”

अर्जुन भागा और पिता के सामने जाकर झुक गया:
“बाबूजी! आप यहां कैसे?”

रामप्रसाद की आंखों से आंसू बह निकले:
“बेटा, प्रिया ने हमें घर से निकाल दिया। हम यहीं रहते हैं।”

अर्जुन सन्न रह गया। मां को देखकर और भी टूट गया।
“मां, माफ कर दो। मैंने प्रिया पर आंख मूंदकर भरोसा किया।”

इंसाफ और नया जीवन

अर्जुन ने अपने माता-पिता को होटल में ठहराया। नए कपड़े, खाना, दवाइयां — सब इंतज़ाम किया।
फिर वह प्रिया के पास पहुंचा।

प्रिया को शॉपिंग पर ले जाने के बहाने मॉल में छोड़ दिया और खुद लौट आया।
फोन पर कहा:
“मैंने मां-बाबूजी को मंदिर की सीढ़ियों पर देखा। तुमने उन्हें घर से निकाला और मुझसे झूठ बोला। अब इस घर से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं। मैं तलाक दे रहा हूं।”

प्रिया गिड़गिड़ाई,
“माफ कर दो, मेरी मां ने भड़काया।”

अर्जुन ने फोन काट दिया।

अंतिम मोड़

अर्जुन ने तलाक की प्रक्रिया शुरू की और छपरा में एक छोटा सा घर खरीदा। अपने माता-पिता को वहां ले गया।
सावित्री ने एक दिन कहा,
“बेटा, अब तू दूसरी शादी कर ले।”
अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा,
“अगर फिर किसी ने आपको दुख पहुंचाया तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा। आप दोनों ही मेरा परिवार हैं।”

रामप्रसाद ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा,
“तू हमारा गर्व है।”

अर्जुन ने अपनी नौकरी फिर से शुरू की और माता-पिता के साथ सच्चे सुख और सम्मान का जीवन बिताने लगा।


सीख:

परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता।
जिस घर में माता-पिता का सम्मान नहीं, वहां सुख भी स्थायी नहीं होता।

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