गरीब बच्चे ने सड़क पर पड़ा लॉटरी टिकट उठाया और कई दिन उससे खेलता रहा, फिर उसके पिता ने देखा तो उसके
लॉटरी का टिकट: मासूमियत से बदली तकदीर
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मुंबई की एक घुटन भरी चॉल में रहने वाला शंकर, अपनी बीमार पत्नी पार्वती और सात साल के बेटे गोलू के साथ ज़िंदगी की जद्दोजहद में उलझा था। हर दिन की तरह उस दिन भी शंकर परेशान था—पैसों की तंगी, पत्नी की बीमारी और बेटे के भविष्य की चिंता। मगर उसे क्या पता था, किस्मत उसकी सबसे अंधेरी रात में फरिश्ते की तरह आने वाली है।
गोलू का अनमोल खिलौना
गोलू को महंगे खिलौने नहीं मिलते थे। उसका खिलौना था—एक रंगीन लॉटरी का टिकट, जो सड़क पर पड़ा मिला था। वो उसे राजा का खत समझता, उससे बातें करता, कहानियां बनाता। शंकर और पार्वती उसे समझाते, “फेंक दे इसे, ये कचरा है।” लेकिन गोलू के लिए वह टिकट सपनों की चाबी थी।
किस्मत का इशारा
एक दिन शंकर अपने दोस्तों के साथ चाय की दुकान पर बैठा था। वहां एक बूढ़े काका ने छह लकी नंबर बताए, जो उसने सपने में देखे थे—42, 8, 15, 99, 7, 21। सबने मजाक किया, पर शंकर ने भी वो नंबर एक कागज पर लिख लिए। घर लौटकर फिर वही रोज़ की परेशानियां। पार्वती की तबीयत और बिगड़ गई, पैसे खत्म हो गए, उम्मीदें टूट रही थीं।
अविश्वसनीय संयोग
एक रात गोलू अपने लॉटरी टिकट से खेल रहा था। उसने उस टिकट पर बने नंबरों को जोर-जोर से पढ़ना शुरू किया—वही नंबर, जो काका ने बताए थे! शंकर ने टिकट और कागज के नंबर मिलाए—एक-एक नंबर वही था। उसकी सांसे रुक गईं। वह टिकट गोलू से छीन लिया। पार्वती को सब बताया। अब सिर्फ एक सवाल था—क्या वाकई उनकी किस्मत बदलने वाली है?
सब्र की रात, उम्मीद की सुबह
सुबह-सुबह शंकर कांपते हाथों से अखबार खरीदता है। लॉटरी के रिजल्ट कॉलम में वही छह नंबर! शंकर और पार्वती फूट-फूट कर रोते हैं—सालों की गरीबी, दर्द और संघर्ष आखिरकार खत्म हो गया। पहला इनाम—₹5 करोड़!
जिंदगी की नई शुरुआत
शंकर ने सबसे पहले पार्वती का इलाज करवाया, गांव का कर्ज चुकाया, गणेश नगर की चॉल को अलविदा कहा, मुंबई में सुंदर घर लिया, गोलू का एडमिशन अच्छे स्कूल में करवाया। फैक्ट्री की नौकरी छोड़ कपड़ों का कारोबार शुरू किया। दोस्तों को पार्टनर बनाया, काका को इनाम दिया। शंकर ने अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और इलाज के लिए दान किया। गणेश नगर में चैरिटेबल क्लीनिक खुलवाया।
मासूमियत का जादू
एक शाम बालकनी में गोलू ने पूछा, “बाबूजी, क्या अब मैं राजा बन गया?”
शंकर मुस्कुराया, बेटे को गले लगाया, “नहीं बेटा, तू तो जादूगर है। जिसने अपनी मासूमियत से सबकी तकदीर बदल दी।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। किस्मत कब, किस रूप में आपके दरवाजे पर दस्तक दे दे—कोई नहीं जानता।
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