Police Wale Ne Yateem Bachche Par Zulm Kiya, Phir Jo Hua – Sabaq Amoz Waqia🥰 – Islamic Moral Story

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एक तपती दोपहर और अनाथ बच्चे का सफ़र

दोपहर का समय था। पुणे की सड़कें आग उगलते सूरज के नीचे तप रही थीं। गर्मी इतनी भयंकर थी कि लोगों के चेहरे पसीने से तर थे। चौराहों पर रिक्शों का शोर, मोटरसाइकिलों की गड़गड़ाहट और बसों के धुएँ ने पूरे माहौल को और दमघोंटू बना दिया था।

इन्हीं सड़कों पर एक छोटा-सा अनाथ बच्चा barefoot चल रहा था। उसके कपड़े फटे-पुराने, बाल बिखरे हुए और चेहरा धूल व पसीने से लथपथ था। लेकिन उसकी आँखों में एक मासूम चमक थी। वह न तो किसी से भीख माँग रहा था, न ही किसी से सहानुभूति चाहता था। बस चुपचाप सड़क किनारे पड़ा एक पुराना बैग उठाकर अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था।

कभी वह सिग्नल पर खड़ा गाड़ियों को गुजरते हुए देखता, तो कभी सड़क किनारे दुकानों पर झुकी निगाहों से खाने की चीज़ें देखता। भूख से उसका पेट ऐंठ रहा था, लेकिन वह हिम्मत करके किसी से कुछ माँगता नहीं।

पुलिस वालों की नजर

ठीक उसी वक्त चौराहे पर खड़ी एक पुलिस गाड़ी से दो वर्दीधारी उतरे। उनमें से एक दरोग़ा अपने आप को शहर का शेर समझता था। उसने बच्चे को देखा और साथ वाले कांस्टेबल से बोला—
“अरे ये देख, नया शिकार मिला है। पता नहीं कहाँ से टपक पड़ा है ये गंदा नंगा बच्चा।”

वे दोनों उसके पास आए और बिना कुछ पूछे उसका हाथ पकड़कर झकझोर दिया।
“कहाँ से आया है तू? चोरी करने निकला है न?” दरोग़ा ने डपटते हुए कहा।

बच्चा डर से कांप गया। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े। उसने धीमी आवाज़ में कहा—
“नहीं साहब… मैं तो बस पानी ढूँढ रहा था।”

लेकिन दरोग़ा ने उसकी एक न सुनी। उसने बच्चे को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया। राहगीरों ने यह दृश्य देखा, पर किसी ने कुछ कहने की हिम्मत नहीं की। सब चुपचाप आगे बढ़ गए।

जुल्म की हद

कांस्टेबल ने बैग छीनकर खोला। उसमें बस कुछ रोटी के टुकड़े और एक टूटा-फूटा खिलौना था।
“साहब, ये देखो! बड़ा चोर निकला। इतना कीमती सामान ले जा रहा है!” दोनों हँस पड़े।

दरोग़ा ने बच्चे को थप्पड़ मार दिया।
“गंदगी फैलाने निकला है। चलो थाने ले चलते हैं। वहीं पता करेंगे इसका बाप कौन है।”

बच्चा रोते हुए उनके पैरों में गिर पड़ा—
“साहब, मेरा कोई नहीं है। माँ-बाप दोनों मर गए हैं। मुझे मत ले जाइए। मैं बस भूखा था।”

लेकिन दरोग़ा का दिल पत्थर का था। उसने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया और गाड़ी में ठूँस दिया।

थाने का अंधेरा

थाने में बच्चे को एक अंधेरे कमरे में डाल दिया गया। वहाँ न पंखा था, न रोशनी। गर्मी से उसका गला सूख रहा था। वह बार-बार दरवाज़े पर दस्तक देता, लेकिन बाहर से गालियाँ मिलतीं—
“चुप बैठ, वरना हड्डियाँ तोड़ देंगे।”

उस रात बच्चा फर्श पर पड़ा रहा। न खाने को कुछ मिला, न पानी। आँखों से आँसू बहते रहे। उसे लग रहा था जैसे दुनिया में कोई उसका नहीं है।

भगवान की पुकार

सुबह जब दरोग़ा थाने आया तो उसने बच्चे को फिर से पीटा।
“सच बता! चोरी कहाँ की थी तूने?”

बच्चा दर्द से तड़पते हुए बोला—
“साहब, मैंने कुछ नहीं किया। झूठ बोलूँ तो अल्लाह मुझे सज़ा दे।”

उसकी मासूम आवाज़ ने पास खड़े एक सिपाही का दिल हिला दिया। वह सोचने लगा— क्या वाकई ये बच्चा चोर है? या हम एक मासूम पर ज़ुल्म कर रहे हैं?

लेकिन डर के मारे उसने कुछ कहा नहीं।

किस्मत का मोड़

इसी बीच थाने में एक बुज़ुर्ग महिला आई। वह पास के मोहल्ले में रहती थी और अक्सर गरीब बच्चों को खाना खिलाती थी। उसने दरोग़ा से कहा—
“साहब, यह बच्चा मेरा ही पड़ोसी है। इसके माँ-बाप का देहांत हो चुका है। यह मासूम है, इसे छोड़ दीजिए।”

दरोग़ा ने हँसते हुए कहा—
“अरे मैडम, ये तो चोर है। ऐसे आवारा बच्चों को जेल में ही रहना चाहिए।”

लेकिन महिला नहीं मानी। उसने जोर देकर कहा—
“मैं इसकी गारंटी लेती हूँ। अगर यह गलत निकला तो सज़ा मुझे दीजिए।”

आख़िरकार दबाव में आकर दरोग़ा ने बच्चे को छोड़ दिया।

प्यार की छाँव

महिला उसे अपने घर ले गई। पहली बार बच्चे ने गर्म रोटी और ठंडा पानी देखा। उसने भरपेट खाना खाया और रो पड़ा।
“अम्मा, आप सचमुच फ़रिश्ता हो।”

महिला ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा—
“बेटा, अब तू अकेला नहीं है। मैं तेरी माँ हूँ।”

बच्चे की ज़िंदगी बदलने लगी। उसने पढ़ाई शुरू की, मेहनत की और धीरे-धीरे बड़ा होकर एक नेक इंसान बन गया।

इंसाफ़ का दिन

सालों बाद वही बच्चा एक बड़े अफ़सर की कुर्सी पर बैठा। अब उसके हाथ में वर्दी थी और आँखों में ईमानदारी की चमक।

एक दिन वही दरोग़ा, जिसने उस पर जुल्म किया था, रिश्वत के केस में पकड़ा गया और उसके सामने लाया गया।
दरोग़ा ने जब उसे देखा तो पहचानकर हैरान रह गया। उसके पैरों में गिर पड़ा—
“बेटा, मुझे माफ़ कर दो। उस वक़्त मैं ग़लत था।”

अफ़सर ने ठंडी निगाहों से उसे देखा और कहा—
“तुमने एक मासूम को पीटा, उसे भूखा-प्यासा रखा और उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने की कोशिश की। अगर उस दिन मुझे अम्मा न मिलतीं तो शायद मैं मर जाता। कानून सबके लिए बराबर है। तुम्हें वही सज़ा मिलेगी जो तुम जैसे लोगों को मिलनी चाहिए।”

दरोग़ा रोता रहा, लेकिन इस बार कोई दया नहीं मिली।

संदेश

यह कहानी हमें बताती है कि ज़ुल्म कभी टिकता नहीं। मासूम की आह सीधे ऊपरवाले तक पहुँचती है और अन्यायी को उसकी सज़ा मिलती है।