अरबपति, उसकी पत्नी और एक मासूम बच्ची का चमत्कार
कई बार ज़िन्दगी का सबसे बड़ा चमत्कार वहीं होता है, जहाँ हम सबसे कम उम्मीद रखते हैं। भगवान हर किसी को किसी मकसद से भेजता है, और कई बार वह मकसद हमें उस चेहरे में दिखता है जिसे हम अनदेखा कर देते हैं। यह कहानी एक ऐसे अरबपति की है जिसके पास सब कुछ था—पैसा, बंगले, गाड़ियाँ, शोहरत। मगर उसकी पत्नी संध्या जन्म से ही बोल नहीं सकती थी। राघव वर्मा ने देश-विदेश के डॉक्टरों से इलाज करवाया, लाखों-करोड़ों खर्च किए, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। उसने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन दिल का दर्द अब भी ज़िंदा था।
एक दिन राघव अपनी पत्नी के साथ वाराणसी के मंदिर गया। पूजा के बाद जब दोनों मंदिर की सीढ़ियाँ उतर रहे थे, तभी फटे कपड़ों में लिपटी एक छोटी सी बच्ची उनके पास आई। उसकी आँखों में चमक थी। उसने संध्या की ओर देखा और मासूमियत से बोली, “साहब, मैं आपकी बीवी को बोलना सिखा सकती हूँ।” राघव पहले तो हँस पड़ा, उसे लगा बच्ची मज़ाक कर रही है। लेकिन संध्या की आँखों में उम्मीद की झलक थी।
राघव ने गंभीरता से पूछा, “बेटी, तुम कैसी बातें कर रही हो? बड़े-बड़े डॉक्टर हार गए, तुम क्या करोगी?” बच्ची ने शांत स्वर में कहा, “मेरे नाना कहते थे भगवान हर किसी को एक हुनर देते हैं। मेरा हुनर है कि मैं उन लोगों को आवाज दिला सकती हूँ जिनकी जुबान बंद हो जाती है। यह कोई जादू नहीं, बस भगवान का आशीर्वाद है।”
भीड़ सन्नाटे में थी। संध्या ने राघव का हाथ पकड़ा और उसकी आँखों में डर और उम्मीद दोनों थी। राघव ने सोचा, “खोने को कुछ नहीं है।” उसने बच्ची को मौका देने का फैसला किया। बच्ची ने संध्या का हाथ थामा, मंदिर की घंटियों के पास ले गई और बोली, “माताजी, डरिए मत। भगवान ने आपको आवाज दी है, बस वह सो गई है। मैं उसे जगा दूंगी।”

बच्ची ने अपने हाथों से संध्या के गले पर हल्के से स्पर्श किया और कहा, “गहरी सांस लीजिए, मन में एक शब्द सोचिए जिसे आप बोलना चाहती हैं।” संध्या की आँखें बंद थीं, उसका दिल तेज़ धड़क रहा था। बरसों से वह बोलने की कोशिश करती रही थी, लेकिन हर बार आवाज अटक जाती थी। आज पहली बार उसे लगा कि शायद कोई उसकी खामोशी को तोड़ सकता है।
राघव की आँखों में आँसू थे। संध्या ने कोशिश की और उसके होठों से एक धीमी सी आवाज निकली। भीड़ की आँखें फैल गईं, सबने जयकारा लगाया। संध्या ने फिर कोशिश की, इस बार गले से साफ स्वर निकला। वह खुद हैरान थी कि उसके भीतर से आवाज निकल रही है। राघव ने संध्या को गले लगा लिया, उसकी आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।
भीड़ में कई लोग भावुक हो गए। किसी ने कहा, “यह भगवान का चमत्कार है।” किसी ने बच्ची को भगवान का रूप मान लिया। लेकिन राघव की नजर उस बच्ची पर थी। उसने पूछा, “बेटी, तुम कौन हो? तुम्हें यह शक्ति कैसे मिली?” बच्ची ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मेरे पास कोई शक्ति नहीं है। मैं बस भगवान का नाम लेकर कोशिश करती हूँ। असली चमत्कार भगवान ने किया है।”
राघव का सिर झुक गया। उसके करोड़ों की दौलत और डॉक्टरों की टीम आज एक मासूम बच्ची की सादगी और विश्वास के सामने फीकी पड़ गई थी। संध्या की आँखों से सुकून के आँसू बह रहे थे। भीड़ में खड़े लोग भी सोच में पड़ गए कि चमत्कार पैसे और ताकत से नहीं, सच्चे विश्वास और इंसानियत से होते हैं।
उस दिन राघव और संध्या अपनी ज़िन्दगी में नया सवेरा लेकर लौटे। उन्होंने सबको यह सीख दी कि कभी किसी मासूम की बात को नजरअंदाज मत करो, क्योंकि वही कई बार भगवान का संदेश बनकर आती है। दौलत से नहीं, दिल से किए गए छोटे काम ही इंसान को बड़ा बनाते हैं। ईश्वर हर बार मंदिरों में नहीं मिलते, कई बार वे मासूम चेहरे के पीछे छुपे होते हैं।
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