“कामवाली बाई ने मालकिन की फेंकी हुई पुरानी मूर्ति को साफ किया—मूर्ति के अंदर निकला ऐसा राज़ कि सब हैरान रह गए!”

मिट्टी की मूर्ति: शांति की नेकी और अंजलि का टूटा रिश्ता

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क्या आपने कभी सोचा है कि जिन चीजों को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, उनमें किसी की पूरी जिंदगी के राज छुपे हो सकते हैं? क्या एक मामूली सी पुरानी मूर्ति किसी के टूटे हुए रिश्तों को फिर से जोड़ सकती है?

यह कहानी है शांति की, जो दिल्ली के वसंत विहार की एक झुग्गी बस्ती में अपने बेटे राहुल के साथ रहती थी। पति की मौत के बाद शांति ने ही मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी निभाई। वह दिन-रात अमीरों के घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन मांजने का काम करती थी ताकि राहुल की पढ़ाई और घर का खर्च चल सके। राहुल उसकी आंखों का तारा था, लेकिन उसकी आंखों की रोशनी कमजोर होती जा रही थी और डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी थी। ऑपरेशन का खर्च शांति के लिए पहाड़ जैसा था।

शांति पिछले पांच साल से खन्ना विला में काम कर रही थी। इस कोठी की मालकिन थी श्रीमती अंजलि खन्ना—शहर के सबसे बड़े बिल्डर की विधवा, जिनके पास दौलत और शौहरत सब कुछ था, लेकिन चेहरे पर मुस्कान नहीं। अंजलि हमेशा सख्त और तन्हा रहती थी।

एक दिन दिवाली की सफाई के दौरान अंजलि ने घर का पुराना कबाड़ बाहर फेंकवाने के लिए स्टोर खुलवाया। धूल और जाले से भरे इस कमरे में शांति को एक पुरानी मिट्टी की मूर्ति मिली। मूर्ति देखने में साधारण थी, एक कोना टूटा हुआ था। अंजलि ने गुस्से में कहा, “इसे अभी बाहर फेंको, मैं इसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।” शांति ने डरते-डरते कहा, “मैडम, ये गणपति बप्पा की मूर्ति है, इसे फेंकना पाप है।” लेकिन अंजलि ने डांट दिया।

काम खत्म होने के बाद शांति की नजर फिर उस मूर्ति पर पड़ी, जो अब भी कबाड़ के ढेर में पड़ी थी। उसने चुपके से उसे अपने थैले में डाल लिया और घर ले आई। उसने मूर्ति को साफ किया तो पाया कि उसके आसन का एक हिस्सा ढीला है। उत्सुकता से उसने उसे खोला तो अंदर से मखमली कपड़े में लिपटी एक सोने की अंगूठी और एक पुरानी चिट्ठी निकली।

शांति पढ़ी-लिखी नहीं थी, उसने राहुल से चिट्ठी पढ़ने को कहा। चिट्ठी अंजलि की मां शारदा खन्ना ने अपने पारिवारिक मित्र के नाम लिखी थी। उसमें लिखा था कि अंजलि का एक बड़ा भाई रोहन है, जिसे उसके पिता ने जायदाद से दूर करने के लिए मरा हुआ घोषित कर दिया था, जबकि वह जिंदा था। रोहन ने अपने ड्राइवर की बेटी से शादी की थी, जिससे उसके पिता नफरत करते थे। चिट्ठी में लिखा था कि यह मूर्ति रोहन ने अपनी मां के लिए बनाई थी और इसमें उसकी निशानी—सोने की अंगूठी—छुपाई थी।

शांति और राहुल स्तब्ध रह गए। यह सच अंजलि की पूरी दुनिया बदल सकता था। शांति ने तय किया कि यह अमानत अंजलि को लौटानी चाहिए। अगली सुबह वह कांपते हाथों से मूर्ति, अंगूठी और चिट्ठी लेकर अंजलि के पास गई। पहले तो अंजलि गुस्सा हुई, लेकिन जब उसने अपनी मां की लिखावट पहचानी, तो उसकी आंखों से आंसू बह निकले। उसे पता चला कि उसका भाई जिंदा है और उसके अपने पिता ने ही उसे उससे दूर किया था।

अंजलि पूरी तरह बदल गई। उसने देश के सबसे बड़े जासूसों को भाई की तलाश में लगा दिया। इस दौरान उसने शांति और राहुल का खूब ख्याल रखा। राहुल की आंखों के ऑपरेशन का सारा खर्च उठाया और उसका इलाज करवाया। ऑपरेशन सफल रहा और राहुल की दुनिया में फिर से रंग लौट आए।

महीनों की तलाश के बाद रोहन का पता चल गया। वह उत्तराखंड के एक गांव में अपनी पहचान छुपाकर रह रहा था। अंजलि खुद उसे लेने गई। 20 साल बाद भाई-बहन मिलकर फूट-फूटकर रोए। अंजलि अपने भाई-भाभी को दिल्ली ले आई, अपनी जायदाद का आधा हिस्सा उसके नाम कर दिया। खन्ना विला में बरसों बाद खुशियां लौट आईं।

एक दिन अंजलि ने घर में बड़ी पूजा रखवाई। सबके सामने उसने घोषणा की, “आज मेरा परिवार अगर पूरा हुआ है तो उसकी वजह सिर्फ शांति है।” उसने शांति को घर की सदस्य बना लिया, उसके नाम फिक्स्ड डिपॉजिट करवाया और राहुल की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी ली। वह मूर्ति, जिसे कभी अपमानित कर फेंक दिया गया था, आज खन्ना विला के मंदिर में सबसे ऊंची जगह पर स्थापित थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि ईमानदारी और नेकी का रास्ता कठिन जरूर है, लेकिन उसका फल हमेशा मीठा होता है। एक छोटी सी नेकी भी किसी की जिंदगी में उजाला ला सकती है।

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