SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़
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जिला रामपुर की हवा में आज एक अजीब सी बेचैनी थी। वजह कोई बड़ा जुर्म नहीं, बल्कि जिले की नई एसपी अंजलि वर्मा थीं। उनकी सख्त छवि और ईमानदारी के चर्चे हर थाने में थे। पुलिस महकमे के पुराने अफसरों के मन में डर था कि कहीं उनके सालों से चले आ रहे आराम में खलल न पड़ जाए। अंजलि ने तीन दिन से ऑफिस की फाइलों में सिर डाले रखा था, केस पढ़े, अफसरों से मीटिंग की और हर कोई उन्हें यकीन दिला रहा था कि रामपुर में सब चंगा है। लेकिन अंजलि जानती थी कि असलियत अक्सर बंद कमरों से बाहर गलियों में कहीं छुपी रहती है। उनके पिता, जो एक मामूली हवलदार थे, हमेशा कहते थे—”बेटा, वर्दी की असली इज्जत कुर्सी पर नहीं, लोगों के बीच होती है।”
शाम के करीब पांच बजे थे। अंजलि ने अपनी वर्दी उतारी, साधारण सलवार-कुर्ता पहना, बाल बांध लिए और पर्स में सिर्फ कुछ रुपये, मोबाइल और आईडी कार्ड रख लिया। बगैर किसी को बताये, बंगले से बाहर निकलीं और ऑटो वाले को रोका, “भैया, सदर बाजार चलोगे?” ऑटोवाला बोला, “हां जी, बैठिए।” सरकारी गाड़ी के काले शीशों के पीछे से शहर ऐसा नहीं दिखता था, जैसा ऑटो में बैठे हुए दिख रहा था। भीड़, शोर, दुकानों की कतारें, बारिश की हल्की खुशबू और लोगों के चेहरे—सबकुछ अलग था।
अंजलि बाजार में घूमने लगीं। उनकी नजर एक पानी पूरी के ठेले पर पड़ी। ठेले वाला अधेड़ उम्र का आदमी था, नाम राम भरोसे। अंजलि ने मुस्कुरा कर कहा, “एक प्लेट लगाना भैया।” राम भरोसे ने गोलगप्पे बनाकर दिए। अंजलि ने पहला गोलगप्पा खाया, “वाह, क्या स्वाद है।” तभी अचानक पुलिस की जीप कर्कश आवाज के साथ बाजार में रुकी। लोग सहम गए। जीप से चार पुलिस वाले उतरे, तीन पुरुष और एक महिला सब इंस्पेक्टर—मीरा सिंह। मीरा सिंह की छवि इलाके में दबंग और तेजतर्रार अफसर की थी। लंबा कद, काला चश्मा, वर्दी और हाथ में डंडा। उसके चलने में अकड़ थी, जैसे वह थाने की नहीं, पूरे जिले की मालिक हो।
मीरा सिंह ने अपने सिपाहियों के साथ सीधे राम भरोसे के ठेले पर धावा बोला। “ओए राम भरोसे, निकाल आज का हफ्ता!” राम भरोसे डर गया, हाथ जोड़कर बोला, “मैडम जी, आज कमाई नहीं हुई। सुबह से बारिश है। दुकान भी देर से लगाई…” मीरा सिंह ने ठेले को धक्का दिया, “कमाया हो या ना कमाया हो, पुलिस का हफ्ता फिक्स है।” गोलगप्पे, मसाले, पानी सब सड़क पर बिखर गए। राम भरोसे रोने लगा। अंजलि खून खौलते हुए देख रही थी। बाकी लोग डर से चुप थे।
अंजलि आगे बढ़ी, मीरा सिंह के सामने खड़ी हो गई। “एक्सक्यूज मी ऑफिसर, आप किस कानून के तहत इनसे पैसे वसूल रही हैं?” मीरा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, “तेरे बाप का ठेला है क्या जो बीच में बोल रही है?” एक सिपाही ने डराने की कोशिश की, “ए लड़की, चलती बन यहां से वरना थाने ले जाकर अक्ल ठिकाने लगा देंगे।” अंजलि टस से मस नहीं हुई। “मैं इस देश की आम नागरिक हूं। मुझे सवाल पूछने का हक है। आप कानून की रक्षक हैं, भक्षक नहीं। बताइए, इंडियन पीनल कोर्ट के किस सेक्शन में लिखा है कि पुलिस गरीब से हफ्ता वसूलेगी?”
मीरा सिंह और भड़क गई। उसे लगा ये लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी है। उसने आव देखा ना ताव, अपना हाथ हवा में घुमाया और एक जोरदार थप्पड़ अंजलि के गाल पर जड़ दिया। पूरे बाजार में सन्नाटा छा गया। अंजलि का सिर एक तरफ घूम गया, लेकिन उसकी आंखों में अब सिर्फ ठंडक थी। उसने धीरे से पर्स खोला, अंदर से नीला पुलिस आईडी कार्ड निकाला और मीरा सिंह के सामने कर दिया। मीरा सिंह ने कार्ड देखा—”अंजलि वर्मा, आईपीएस, पुलिस अधीक्षक, रामपुर।” मीरा सिंह के चेहरे का रंग उड़ गया। जिस औरत को उसने थप्पड़ मारा, वह उसकी नई एसपी थी।
मीरा सिंह घुटनों के बल गिरने लगी, “मैम, माफ कर दीजिए। मैंने आपको पहचाना नहीं।” अंजलि ने कहा, “तुमने मुझे नहीं पहचाना, इसलिए थप्पड़ मारा। पहचान लेती तो सलाम करती। यही दिक्कत है तुम्हारी—वफादारी कानून से नहीं, पद से है। तुम वर्दी की इज्जत नहीं करती, सिर्फ रैंक से डरती हो।” उसने कंट्रोल रूम फोन किया, “मैं एसपी अंजलि वर्मा बोल रही हूं। सदर बाजार में पीसीआर वैन भेजिए।” फिर मीरा सिंह और बाकी सिपाहियों को वहीं सस्पेंड किया, “तुम सब लाइन हाजिर हो जाओ। मीरा सिंह, तुम्हारे ऊपर विभागीय जांच शुरू होगी। एक्सटॉरशन, ड्यूटी का दुरुपयोग, नागरिक पर हाथ उठाने का चार्ज लगेगा।”
कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ियां आ गईं। एसएचओ ने सैल्यूट किया। अंजलि ने आदेश दिया, “इन चारों को ले जाइए, जांच शुरू कीजिए।” कल तक जो पुलिस वाले बाजार में रोब जमाते थे, आज मुजरिमों की तरह सिर झुकाए जीप में बैठ रहे थे। जाते-जाते अंजलि ने मीरा सिंह से कहा, “यह थप्पड़ मुझे नहीं, वर्दी को पड़ा है। इसका सम्मान कैसे वापस लाना है, मुझे पता है।”
बाजार में अब डर की नहीं, आश्चर्य और सम्मान की खामोशी थी। लोगों ने ऐसा सीन सिर्फ फिल्मों में देखा था, आज हकीकत में देख रहे थे। राम भरोसे की आंखों में कृतज्ञता के आंसू थे। अंजलि ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “बाबा, आपका नुकसान सरकार करेगी। अगर कोई पुलिस वाला आपसे एक रुपया भी मांगे, तो सीधे मेरे ऑफिस आना। आपका दरवाजा मेरे लिए हमेशा खुला है।” उसने जेब से ₹500 निकालकर उसकी हथेली पर रख दिए, “यह आपकी बेटी की दवाई के लिए है।” भीड़ की तरफ देखा, “आप सब गवाह हैं कि आज यहां क्या हुआ। डरिए मत, पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए है। अगर कोई वर्दी वाला ताकत का गलत इस्तेमाल करे, तो आवाज उठाइए। मैं आपके साथ हूं।”
अंजलि भिड़ से बाहर निकल गई। उस रात जब वह अपने बंगले पर लौटी, आईने में चेहरा देखा। गाल पर निशान था, लेकिन अब उसमें दर्द नहीं, सुकून था। उसे लगा उसने वर्दी का कर्ज चुकाया है। खबर पूरे जिले में आग की तरह फैल गई। पुलिस लाइन में माहौल बदल गया। भ्रष्ट पुलिस वालों के दिलों में डर था, ईमानदार अफसरों के चेहरे पर उम्मीद थी।
अगली सुबह अंजलि ऑफिस पहुंची। गेट पर तैनात संतरी से लेकर चपरासी तक सबने सैल्यूट किया। अब हर सैल्यूट में ज्यादा इज्जत थी। वह जानती थी कि कल की घटना एक जंग की शुरुआत थी। तभी फोन बजा। “हेलो एसपी साहिबा, मैं विधायक रामनारायण तिवारी बोल रहा हूं।” अंजलि सीधी होकर बैठ गई। तिवारी बोला, “सुना है कल आपने बाजार में हिम्मत का काम किया। मैं बस यही कहूंगा, आप बड़ी अफसर हैं, बड़ा दिल रखिए। मीरा सिंह लड़की है, नादान है, गलती हो गई। उसके भविष्य का सवाल है। मामले को ठंडा हो जाने दीजिए।” अंजलि ने सपाट आवाज में कहा, “तिवारी जी, गलती और गुनाह में फर्क होता है। गरीब को लूटना, वर्दी पहनकर नागरिक पर हाथ उठाना यह नादानी नहीं, गुनाह है। और गुनाहगार को सजा मिलना कानून का नियम है। बाकी जांच चल रही है, सच सामने आ जाएगा।” तिवारी चुप हो गया, अंजलि ने फोन काट दिया।
अगले दो-तीन दिन तनाव में बीते। पुलिस एसोसिएशन के पदाधिकारी मिलने आए, “मैडम, आपकी कार्रवाई से फोर्स का मोरल डाउन हो रहा है।” अंजलि ने कहा, “पुलिस का काम अवैध वसूली करना नहीं है। जो ईमानदारी से काम करेगा, उसका मोरल मैं कभी डाउन नहीं होने दूंगी। जो वर्दी को दाग लगाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
वहीं दूसरी तरफ, राम भरोसे को दो बाइक सवारों ने धमकाया, “अगर अपनी बच्ची की सलामती चाहता है तो वही करना जो कहा गया है।” राम भरोसे डर कर एसपी ऑफिस पहुंचा। अंजलि ने उसे पानी पिलाया, “घबराइए मत, सब सच-सच बताइए।” राम भरोसे ने सब बता दिया। अंजलि ने इंस्पेक्टर शमशेर सिंह की फाइल देखी, जिसमें लिखा था—ईमानदार है, लेकिन सिस्टम के साथ नहीं चलता। अंजलि ने उसे बुलाया, “मैं रामपुर का भ्रष्टाचार खत्म करना चाहती हूं, मुझे आप जैसे अफसरों की जरूरत है।” शमशेर सिंह बोले, “आप हुक्म कीजिए मैडम, अब इसे साफ करने का वक्त आ गया है।”
अब अंजलि अकेली नहीं थी। उन्होंने मिलकर योजना बनाई—पहला कदम, राम भरोसे की सुरक्षा; दूसरा, लड़ाई को खुले मैदान में लाना। प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर अंजलि ने कहा, “पुलिस अब हर नागरिक की सुरक्षा करेगी। एंटी करप्शन हेल्पलाइन जारी की गई है। कोई भी पुलिस वाला रिश्वत मांगे तो शिकायत करें।” यह लड़ाई अब जनता की बन गई थी। विधायक तिवारी ने हाथ खींच लिए। विभागीय जांच पूरी हुई। राम भरोसे और दुकानदारों ने गवाही दी। रिपोर्ट में मीरा सिंह और उसके साथी दोषी पाए गए। अंजलि ने साइन किए और मीरा सिंह को सर्विस से बर्खास्त करने की सिफारिश भेज दी।
एक शाम अंजलि ऑफिस की खिड़की से बाहर देख रही थी। शहर की बत्तियां जल रही थीं। फोन बजा, “हां पापा।” पिता बोले, “लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। सिस्टम में गंदगी बहुत गहरी है। हारना मत।” अंजलि मुस्कुराई, “मैंने वर्दी इसी लिए पहनी है।” खिड़की से बाहर देखा—राम भरोसे का ठेला उसी कोने में लगा था, अब उसके पास भीड़ थी। लोग अब उससे पानी पूरी नहीं, उम्मीद और हिम्मत लेने आते थे।
अंजलि को एहसास हुआ कि उसने सिर्फ एक भ्रष्ट अफसर को सजा नहीं दी थी, बल्कि हजारों राम भरोसे जैसे लोगों के दिल में उम्मीद और हिम्मत का दिया जलाया था। जब तक यह दिया जलता रहेगा, वर्दी का असली रंग कभी फीका नहीं पड़ेगा।
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