DM मैडम भिखारिन बनकर आधी रात कोर्ट पहुँचीं, वकील ने किया बड़ा कांड 😱 Shocking!
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रामगढ़ का नाम सुनते ही आंखों के सामने उन अधूरे सपनों और टूटे हुए वादों का मंजर उभर आता था जो यहां की धूल-मिट्टी में दबी पड़ी थीं। सुबह होते ही सड़कों पर धूल घुली रहती, और न्याय की देवी की मूर्ति के पैरों में कई बेरोजगार, विधवाएं, किसान अपनी पहचान तलाशते दिखाई देते। शहर के बड़े-बड़े वकीलों के दफ्तरों के आगे गरीब खड़े होते, लेकिन इंसाफ़ मांगता हाथ अक्सर खाली ही लौटता। वहीं मंच के पीछे, खामोशी में जज रूम और पुलिस थाने की ऊँची इमारतें कानून को अपनी मुट्ठी में बांधे खड़ी थीं।
पंद्रहवीं मंजिल पर सीडीओ कार्यालय की खिड़की से झाँककर जब डीएम प्रिया शर्मा ने नीचे उतरे हुए उन शख्सियतों को देखा, तो उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी पैदा हुई। कोटे में आए एक किसान के दस्तावेज ढंग से रखे नहीं गए थे, और दरोगा पास ही बिजली की टंगी तारों के पास बैठा मोबाइल में व्यस्त था। कुछ कदम दूर ऑफिस के लॉबी में अटैची ली एक वकील हंसते हुए शिनाख्त करवा रहा था, जबकि उसके पीछे सिपाही रजिस्टर में खामोश चुप्पी से कुछ नाम भर रहे थे।
प्रिया शर्मा ने गहरी सांस ली। आज सुबह उन्होंने फाइलें पढ़ी थीं—रामू की जमीन, शांति देवी की मकान की कागजी झड़प; खेतों पर कब्जा करने वाले बिल्डर के खिलाफ दर्ज घोर अविश्वसनीय रिपोर्ट; लेकिन थाने ने एफआईआर दर्ज नहीं की। न्यायालय ने सुनवाई की तारीख भी बढ़ा दी। ये सब कुछ मिलकर इस काले तंत्र का हिस्सा था। उन्होंने तय किया था कि इस बार दस्तावेज़ों या बाहर से दबाव डालने से काम नहीं चलेगा। उन्हें खुद वहां जाना होगा, जहां अन्याय चुपचाप अंधेरे में अंजाम पाता रहता था।
जब शाम ढलने लगी, तो प्रिया शर्मा ने हर सरकारी पहचान का निशान साफ कर दिया। कोट खाली करके एक सजी धजी पगड़ी वाले अधिकारी के कमरे में लॉक कर आ गई, और खुद को झुर्रियों से भरे पुराने लोटे, फटे कपड़े पहने एक बेसहारा विधवा में बदल लिया। बालों में मिट्टी मझी, चेहरे पर सालों पुरानी थकावट, हाथों में मैली थैली—जो आईने में देखती, उस भिखारिन औरत की आंखों में दर्द और उम्मीद का मिश्रित अक्स झलकता। बैग में उन्होंने सिर्फ एक छोटा कैमरा, एक ऑडियो रिकॉर्डर, कुछ नकली दस्तावेज रखे थे। अपनी कैंची से पॉलिथीन की एक थैली में उन्हें छिपाकर वे आधी रात के अँधेरे में निकल पड़ीं।
रामगढ़ की मुख्य सड़क पर जब वह झोली लिए धीरे-धीरे चलीं, तो दुकानों के बंद शटरों ने जैसे बड़े-बड़े सवाल दागे हों। चारों तरफ नीली पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ियां खड़ी थीं, लेकिन शोर- शराबे से दूर। न्यायालय की इमारत बड़ी ही ठाट से रोशनी में नहाई थी, जबकि गेट के बाहर एकाध भीख मांगता चेहरा दिखे—वही विधवा महिला इंतजार में थी। प्रिया चुपचाप उसके पास जा कर बोली, “मां, सुनवाई कल सुबह है?” उसने थरथराती आवाज में कहा, “जी… लेकिन सुना है जज साहब और वकील जी मिलकर यह केस ठुकरवा देंगे।” प्रिया ने सिर हिलाया, “कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे लिए लड़ूंगी।” वह मुस्कुराकर धूल ली।
बस बारह बजे के करीब प्रिया ने गेट के लोहे के परखच्चे खोलते ही चुपके से अंदर प्रवेश किया। गेट हाउस वाला झुँझला कर बोला, “इतनी रात को क्या कर रही हो?” प्रिया ने नकली आवाज में कहा, “मुझे अंदर किसी वकील से बात करनी है।” उसने मोबाइल की लाइट बंद की, कैमरा बाहर निकाल कर चालू किया और धीरे से कोर्ट के सन्नाटे को रिकॉर्ड करने लगी। दीवारों पर लगे सीसीटीवी कैमरे दिशाहीन थे, क्योंकि रोजाना की तरह दफ्तर में लोग अपनी जेब भरने की मशक्कत करते थे, निगाहें जनता से गुम थीं।

एक कोने में जब वकील विक्रम सिंह महंगे सूट में बैठा नोट गिन रहा था, तो पक्ष में खड़ा जज रघुनाथ प्रसाद ब्रीफकेस संभालकर पैसों की गठरी देख कर मुस्कुरा रहा था। “कल तुम्हें सुनवाई पूरी तरह खाते में मिल जाएगी,” विक्रम ने कहा। जज ने माथे पर कपड़ा पोंछते हुए जवाब दिया, “अरे बस तुमने पैसे ले लिए, फैसला फटाफट सुना देना। सरकार का नाम नहीं शर्मिंदा करना।” जज की यह लकीरें बताती थीं कि वह कितने वर्षों से इस भ्रष्टाचारी खेल का हिस्सा था।
प्रिया ने छुप कर रिकॉर्डिंग जारी रखी। विक्रम के पास पूरी अदालत थी—रजिस्टर की सफाई से लेकर जज के चेन तक। लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसे अचानक किनकी नजर लग गई। तभी उसकी टांग से एक छोटा पत्थर हिल गया। धड़कन और तेज हो गई। विक्रम ने पीछे मुड़कर देखा। अँधेरी चाल में खड़ी वह भिखारिन उसको घूर रही थी। विक्रम कुछ कहने ही वाला था कि जज ने उसे पीछे से डांटा, “चुप हो जाओ!” विक्रम ने गर्दन से घमंड भरी हंसी निकाली, “कौन?…”
प्रिया ने झिझकते हुए कहा, “मैं वही रिया हूं, जिसकी मर्जी से तुमने कागज फाड़ दिए थे।” उसकी आवाज़ हौली थी, लेकिन अंदर आग लिए। विक्रम हैरान हुआ, “कौन रू…?” उसने झटका दे दिया। प्रिया गिरते-गिरते संभली, लेकिन उसकी आंखों की चमक बनी रही। जज ने आंखें बंद की, शायद यह दृश्य भूल जाना चाहता हो। प्रिया बोली, “मेरी औकात नहीं जाननी चाहोगे या सुनोगे?” जज ने धीमी आवाज़ में कहा, “यहां gossip मत फैला, इधर से निकल।”
पर प्रिया ने कैमरे की दिशा बदलकर दोनों की उन हरकतों को रिकॉर्ड करना जारी रखा। विक्रम ने ब्रीफकेस उठाकर पैसे इधर-उधर संभाले, जज ने चुप्पी साध ली। तभी प्रिया ने खामोश आवाज़ में कहा, “आप दोनों ने मेरे जैसे कितनों की इज्जत मिट्टी में मिलाई है। अब जवाब देना पड़ेगा।” जज ने गर्दन से उचकनकर कहा, “इतनी रात को तंग न करो—यहां से भाग!” विक्रम ने सिपाही को इशारा किया, “उसे पकड़कर थाने ले चलो।”
वहीं, प्रिया ने रिकॉर्डर से आवाज़ अलर्ट HQ भेज दिया। दस मिनट में सुरक्षा बल पहुंच गए, दरोगा चौंककर बोले, “कहाँ से आई इतनी ताकत?” विक्रम और जज ने पलकों तरेरते हुए हाथ उठाए, सिपाहियों ने उन्हें बेहुदा तरीके से थैले डाले। अचानक कोर्ट परिसर में उजाला बढ़ गया। प्रिया ने अपने असली परिचय वाले कार्ड बाहर निकाले—डीएम कार्यालय का—and फ़्लैश मारी। सबकी आंखें चौंधिया गईं।
“आप!” विक्रम घुटनों पर गिरा, “आप डीएम साहिबा?” जज के मुँह से आवाज निकली नहीं। प्रिया ने कड़क आवाज में कहा, “विक्रम सिंह, रघुनाथ प्रसाद, आप दोनों भ्रष्ट आचरण के आरोप में गिरफ्तार हैं।” कोर्ट में बिखरा हुआ अक्तूबर का महीना भी सिहर उठा। भीड़ सन्न थी, चतूर सिपाहियों तक के पैर कांप रहे थे।
अगले दिन मीडिया के कैमरों के फ्लैश में जीती-जागती तस्वीर बन गई। सीबीआई ने फोरेंसिक टीम भेजी, बिरीफकेस में मिले नोट गिनती फाइलों और वीडियो सबूतों से स्पष्ट हुआ कि पिछले तीस साल में विक्रम और जज ने मिलकर करोड़ों की रिश्वत ली थी। थाने के कई इंस्पेक्टरों के खातों में ट्रांसफर रिकॉर्ड मिले, दर्जनों एफआईआर गायब पाए गए। सीबीआई ने वकील संघ से भी पूछताछ की।
इसी दौरान रामू गांव पहुंचा। उसकी जमीन पर से कब्जा हट गया, मज़दूरों के मुआवजे जारी हुए, विधवा शांति देवी को न्याय मिला। अदालत ने विशेष बेंच बैठाई, सभी गुल्लक खोल दिए गए। रामगढ़ की धरती पर इंसाफ की बहार लौट आई। लोग घरों से निकलकर तालियां बजाने लगे, बच्चों ने झूले फिर से सजाए—उस अंधेरी रात के बाद जहां सिर्फ घृणा थी, अब वहां उम्मीद की रोशनी फैल गई।
कुछ लोगों ने कहा कि अगर प्रिया शर्मा ने खुलकर कार्रवाई की होती तो पहले भी आतंरिक प्रतिरोध दूर हो जाता, लेकिन उसकी चाल ने भ्रष्टों को कलंकित कर दिया। उसने खुद को भिखारिन के वेश में ढालकर समाज की आंखें खोल दी थीं। इस घटना ने पूरे राज्य में हलचल मचा दी। कानपुर, इंदौर, लखनऊ, हर शहर में अफसरों ने खुद छद्मवेश में घूमकर काले खेलों को रिकॉर्ड करना शुरू किया।
राज्य सरकार ने आदेश जारी किए कि हर न्यायिक कार्रवाई में सीसीटीवी अनिवार्य हो, थानों में पब्लिक हेल्पडेस्क खुले, डीएम के मानक निरीक्षण में प्रतिवर्ष ऑडिट रखा जाए। भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित हुईं। रामगढ़ देश का पहला जिला बना जहां अपराध दर और रिश्वतखोरी शून्य के करीब आ गई।
विक्रम सिंह को सात वर्ष की सजा हुई, जज रघुनाथ प्रसाद को दस वर्ष का कार्यवाही मिला, उनकी संपत्ति जब्त की गई। कई पीड़ितों का मुआवजा उसी राजस्व से बांटा गया जो पहले रिश्वत के रूप में चुना गया करता था। शहर में नारे लगे—“न्याय ही असली ताकत” और “भिखारिन ने हिला दिए सत्ता के देवता।”
वर्षों बाद भी जब रामगढ़ के न्यायालय के सामने कोई भूखा-नंग व्यक्ति दस्तक देता, तो गेट पर तैनात अधिकारी सम्मान से पूछता, “क्या मदद कर सकता हूँ?” और वह व्यक्ति चुपचाप अपना दस्तावेज रख, वही प्रिया शर्मा की तरह अपने लिए न्याय मांगता, यह जानते हुए कि उसका गला नहीं घुटेगा, क्योंकि न्याय अब उसका हक था।
प्रिया शर्मा ने बाद में कहा कि इस रणनीति से उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चाई सुनने वाला कान चाहिए, इंसाफ देने वाला दिल चाहिए। वर्दी-पताका कुछ नहीं कर सकते, जब तक इंसानियत की आवाज दबाई जाती है। आज रामगढ़ की फसलों में लहराता न्याय की हवाएं है, और हर बरसाद की बूँद मॉनसून की तरह जन-जन को सुकून देती हैं।
यह कहानी इसलिए याद रखी जाती है, क्योंकि उसने दिखाया कि एक अकेली आवाज जब आवाज की तलाश में निकलती है, तो वह तानाशाहों को घुटनों पर ला देती है। आधी रात की उस भिखारिन ने जिस मुकुट को पहना था, वह वर्दी-पाग से नहीं, साहस के तेज से दमकता रहा। और यह तेज़ी कभी थमती नहीं, जब तक हर इंसान खुद को न्याय का पात्र समझता है।
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