रिजवान की कहानी: एक छोटे बच्चे की बड़ी हिम्मत
मुंबई का सूरज आज भी अपनी पूरी रोशनी के साथ चमक रहा था। उसकी तीखी किरणें झुग्गियों की छतों पर पड़ते ही पूरे इलाके को गर्म तंदूर में बदल देती थीं। लेकिन उन झुग्गियों के बीच एक 12 साल का लड़का, रिजवान, हर रोज की तरह नारियल के पत्तों से बनी झाड़ुओं की गठरी कंधे पर लटकाए गलियों में निकल पड़ता। उसकी कमीज के बटन टूटे हुए थे और पैरों में चप्पल तक नहीं थी। लेकिन उसके चेहरे पर अजीब सा सुकून था और आंखों में एक खामोश सी रोशनी, जैसे वह कुछ जानता हो जो दुनिया नहीं जानती।
कठिनाइयों का सामना
रिजवान की जिंदगी का आगाज खुशियों से नहीं बल्कि सदमों से हुआ था। उसके वालिद, अनवर खान, एक छोटे समाजी कार्यकर्ता थे जो झुग्गी वालों के हक के लिए लड़ते रहे। एक दिन, जब अनवर किसी गैरकानूनी जमीन हड़पने वाले माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए लापता हो गए, तो रिजवान की मां, जुलेखा, यह सदमा सहन नहीं कर सकी और चंद माह में बीमार होकर चल बसी। इस तरह एक खुशहाल ख्वाबों से भरा घर फुटपाथ की हकीकत बन गया।
रिजवान को न तो कोई यतीम खाना ले जाने आया और न ही कोई रिश्तेदार सामने आया। उसने खुददारी और मेहनत के रास्ते को चुना। उसने झाड़ू बनाना सीखा और खुद बाजार में बेचना शुरू कर दिया। वह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता, न ही किसी की हमदर्दी मांगता। बस सुबह से शाम तक झाड़ू बेचता और रात को रेलवे पुल के नीचे अखबार बिछाकर सो जाता। उसके लिए यही जिंदगी इज्जत से जीने का तरीका था।
एक नई शुरुआत
एक दिन, जब रिजवान चौराहे पर झाड़ू बेच रहा था, एक सफेद एसयूवी तेजी से आकर रुकी। दरवाजा खुलते ही एक नफीस लिबास में शख्स बाहर निकला, जो बेहद परेशान नजर आ रहा था। रिजवान ने उसकी परेशानी समझ ली और धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा। “साहब, कुछ गुम हो गया है क्या?” उस शख्स ने हां में सिर हिलाया।
“मेरी कार की चाबी गुम हो गई है। बहुत जरूरी मीटिंग है और मैं फंस गया हूं।” रिजवान ने फौरन जमीन पर निगाहें दौड़ाई और कुछ ही देर में चाबी ढूंढ ली। उसने चाबी उठाई और बड़ी अदब से वापस दी। “यह लीजिए साहब, नीचे गिर गई थी।”
एक अनोखा रिश्ता
सोहेल मल्होत्रा, उस आदमी का नाम था। उसने रिजवान को हैरानी से देखा और जेब से कुछ पैसे निकाले। लेकिन रिजवान ने फौरन हाथ जोड़ दिए। “साहब, नेकी की कीमत नहीं ली जाती।” यह सुनकर सोहेल के चेहरे पर एक ऐसी कैफियत आई जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी।
उस रोज रिजवान ने पुल के नीचे सोया, वही फटा बिस्तर, वही रात का सन्नाटा। लेकिन उसे क्या पता था कि अगला दिन उसके नसीब का सूरज लेकर आने वाला है। सोहेल ने अपने पीए को रिजवान के बारे में जानकारी जुटाने का आदेश दिया। वह जानना चाहता था कि यह बच्चा कौन है।
रिजवान की पहचान
अगली सुबह, सोहेल ने रिजवान को अपने ऑफिस बुलाया। जब रिजवान वहां पहुंचा, तो सोहेल ने उसे फाइव स्टार रेस्टोरेंट में लंच के लिए बुलाया। वहां कई निगाहें रिजवान पर जमी हुई थीं। लेकिन रिजवान ने घबराकर नजरें झुका लीं।
सोहेल ने कहा, “आज तुम मेरे मेहमान हो बेटा।” खाने के दौरान, सोहेल ने रिजवान से उसके बारे में पूछा। रिजवान ने कहा, “साहब, मैं आदत से जूते खा चुका हूं। बस आज पहली बार अंदर बैठा हूं।”
सोहेल ने महसूस किया कि रिजवान सिर्फ एक गरीब बच्चा नहीं, बल्कि एक मजबूत इंसान है। उसने रिजवान के लिए एक तालीमी सेंटर खोलने का फैसला किया। रिजवान ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि कोई बच्चा मेरे जैसे कपड़ों में स्कूल से वापस लौटे।”
बदलाव की लहर
सोहेल ने रिजवान की कहानी को मीडिया में फैलाना शुरू किया। रिजवान की पहचान अब सिर्फ झाड़ू बेचने वाले लड़के तक सीमित नहीं रही। वह करोड़ों की जायदाद का वारिस बन गया। उसकी कहानी ने लोगों को प्रेरित किया।
सोहेल ने रिजवान के लिए एक साफ-सुथरा फ्लैट किराए पर लिया। फ्लैट में सभी सुविधाएं थीं। रिजवान ने वहां पढ़ाई शुरू की और बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया। उसने अनवर लाइट नाम का एक तालीमी मरकज खोला, जहां झुग्गियों के बच्चे पढ़ने आते थे।
सामाजिक बदलाव
रिजवान ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, “मैं चाहता हूं कि कोई बच्चा मेरी तरह फुटपाथ पर न रहे।” उसकी कोशिशों से शहर में एक नई सुबह का आगाज हुआ। अब वह सिर्फ एक करोड़पति नहीं था, बल्कि बच्चों के दिलों का मालिक बन चुका था।
जब भी कोई उसे पहचानने आता, वह मुस्कुराकर कहता, “बड़ा वो होता है जो छोटे को अपने जैसा बना दे।” रिजवान ने अपनी सारी दौलत उन बच्चों के लिए वफ कर दी, जो फुटपाथ पर रहते थे लेकिन ख्वाब आसमान छूने के थे।
अंत में
रिजवान की कहानी ने साबित कर दिया कि असल ताकत पैसों में नहीं, बल्कि दिल की नरमी और किसी की मदद करने में होती है। उसने अपने संघर्ष से न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज में बदलाव लाने का काम भी किया।
उसकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है, एक फुटपाथ का बादशाह जो दिलों पर हुकूमत कर गया। रिजवान ने यह साबित कर दिया कि मेहनत, खलूस और इज्जत ही असली दौलत है।
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