9 साल पहले खोया हुआ बेटा IAS ऑफिसर को रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता मिला , फिर जो हुआ …
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रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता बेटा, IAS पिता की आंखों में आंसू: एक परिवार की 12 साल बाद मिलन की कहानी
भूमिका
सुबह के 6 बजे, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ थी। प्लेटफार्म नंबर तीन के कोने में एक 12 साल का लड़का—रोहित—अपनी चाय की केतली और प्लास्टिक के कप लेकर बैठा था। उसके कपड़े फटे थे, मगर साफ थे। चेहरे पर मासूमियत और आंखों में गहरा दर्द था। वह नहीं जानता था कि कभी उसका भी एक अलग जीवन था—एक बड़ा घर, महंगी कारें, और सबसे बड़ी बात: उसके पिता एक IAS अधिकारी थे। वह नहीं जानता था कि उसका असली नाम रोहित राज है।
1. 12 साल पहले की घटना
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में एक सरकारी कार्यक्रम था। IAS अधिकारी अमित राज अपनी पत्नी प्रिया और तीन साल के बेटे रोहित के साथ वहां गए थे। अमित उस जिले के कलेक्टर थे। कार्यक्रम के बाद रात में ही दिल्ली लौटने का फैसला किया। ड्राइवर ने बारिश का डर बताया, लेकिन अमित की जिम्मेदारियों के कारण वे निकल पड़े।
शाम 7 बजे सरकारी गाड़ी में वे दिल्ली के लिए निकले। रास्ता घुमावदार और पहाड़ी था। अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। सड़क फिसलन भरी हो गई। एक मोड़ पर गाड़ी का संतुलन बिगड़ा, और गाड़ी गहरी खाई में गिर गई। धमाके की आवाज पहाड़ों में गूंज गई। प्रिया राज की मौके पर ही मृत्यु हो गई। अमित बुरी तरह घायल हो गए, मगर जिंदा थे। छोटा रोहित कहीं नजर नहीं आ रहा था।
2. रोहित का खो जाना
पास से गुजरने वाले कुछ स्थानीय लोग मदद के लिए पहुंचे। अमित को अस्पताल पहुंचाया गया। होश आने पर उन्होंने सबसे पहले रोहित के बारे में पूछा। तीन दिन तक रेस्क्यू टीम ने खाई और आसपास के इलाके में खोजा, हेलीकॉप्टर से भी खोज हुई, मगर रोहित का कोई निशान नहीं मिला। पुलिस और डॉक्टरों का मानना था कि बच्चा शायद खाई में ही दब गया या बह गया।
अमित राज का दिल टूट गया। एक ही दिन में उन्होंने पत्नी और बेटे दोनों को खो दिया। वे महीनों अस्पताल में रहे। जब ठीक हुए तो एक अलग इंसान बन चुके थे। लेकिन उस रात जो वाकई हुआ था, वह कुछ और ही था।

3. रामू काका की ममता
जब गाड़ी खाई में गिरी, रोहित बाहर निकल गया था। वह पेड़ की शाखा से टकराकर बेहोश हो गया, और ढलान से लुढ़कते हुए नदी में जा गिरा। नदी का पानी तेज नहीं था, मगर बेहोश बच्चे को कुछ दूर बहा ले गया। खुशकिस्मती से वह एक पत्थर से टकराकर रुक गया। उसी रात, खाई से दो किलोमीटर दूर रामू काका लकड़ी इकट्ठा कर रहे थे। उन्होंने पानी में हलचल देखी। पास जाकर देखा तो एक छोटा बच्चा पड़ा था।
रामू काका ने बच्चे को पानी से निकाला, कपड़े साफ किए, घर ले गए। उनकी पत्नी की मृत्यु कई साल पहले हो चुकी थी, वे अकेले रहते थे। बच्चे की चोट गहरी नहीं थी, मगर वह बेहोश था। रात भर रामू काका उसकी देखभाल करते रहे। सुबह बच्चा जागा, मगर उसे कुछ याद नहीं था। सिर की चोट के कारण उसकी याददाश्त चली गई थी।
4. नया नाम, नई जिंदगी
रामू काका ने बच्चे का नाम रोहित रखा। धीरे-धीरे रोहित को रामू काका के साथ रहने की आदत हो गई। रोहित तेज बुद्धि का था, जल्दी सीखता था। रामू काका ने उसे पढ़ना-लिखना सिखाया। गरीबी के बावजूद रामू काका ने कभी हार नहीं मानी। वे चाहते थे कि रोहित पढ़-लिखकर कुछ बने।
साल बीतते गए। रोहित बड़ा होता गया। उसने कभी नहीं सोचा कि रामू काका उसके असली पिता नहीं हैं। रामू काका भी उसे अपने बेटे की तरह प्यार करते थे। कभी-कभी स्कूल की फीस भी नहीं जुटा पाते थे, मगर हिम्मत नहीं हारी।
5. जिम्मेदारी का अहसास
12 साल बीत गए। रोहित अब समझदार लड़का बन गया था। रामू काका कमजोर होते जा रहे थे। रोहित ने तय किया कि अब वह रामू काका की देखभाल करेगा। उसने स्टेशन पर चाय बेचना शुरू किया। पहले दिन 60 रुपये कमाए, मगर खुश था। धीरे-धीरे ग्राहक बढ़े, आमदनी बढ़ी। उसने एक नियम बनाया कि हर कप चाय के 10 रुपये लेगा—चाहे अमीर हो या गरीब।
कुछ हफ्तों में ही वह दिन में 250-300 रुपये कमाने लगा। रामू काका की दवाइयां आ जाती थीं, घर का खर्च भी चलता था। रामू काका की तबीयत भी सुधरने लगी थी।
6. स्टेशन पर एक घटना
एक सोमवार की सुबह, स्टेशन पर भीड़ थी। एक महंगी गाड़ी आई, जिसमें से सुप्रीम कोर्ट के वकील राजेश अग्रवाल उतरे। उनका घमंड बहुत था। उन्होंने रोहित से चाय मांगी। रोहित ने अच्छे से चाय बनाई, मगर जब पैसे मांगे तो राजेश ने पांच रुपये देने की बात की। रोहित ने विनम्रता से कहा, “मैं सबसे ही लेता हूं।” राजेश गुस्सा हो गए, रोहित को थप्पड़ मार दिया, लात मारी, और पैसे नहीं दिए।
स्टेशन पर लोग देख रहे थे, मगर राजेश के डर से कोई कुछ नहीं बोला। रोहित ने हिम्मत करके कहा, “मैं तो आपका सम्मान कर रहा हूं।” राजेश ने फिर धक्का दिया, “भाग यहां से, नहीं तो पुलिस को बुलाकर जेल भिजवा दूंगा।”
7. फरिश्ते की एंट्री: डॉ. सुधा शर्मा
ठीक उसी समय, स्टेशन पर डॉक्टर सुधा शर्मा आईं, जो राष्ट्रीय महिला सुरक्षा आयोग की चेयरपर्सन थीं। उन्होंने देखा कि एक बड़ा आदमी एक बच्चे को मार रहा है। उनका खून खौल गया। उन्होंने राजेश से पूछा, “आपने इस बच्चे को क्यों मारा?” राजेश ने अहंकार से जवाब दिया, “यह मेरी औकात नहीं जानता।”
डॉ. सुधा शर्मा ने रोहित से पूछा, “बेटा, तुमने कुछ गलत किया?” रोहित ने कहा, “मैंने सिर्फ अपनी मेहनत के पैसे मांगे थे।” डॉ. सुधा शर्मा ने पुलिस स्टेशन जाकर एफआईआर लिखवाई। एक पत्रकार विकास कुमार ने पूरा वीडियो रिकॉर्ड किया था और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। वीडियो वायरल हो गया।
8. न्याय की लड़ाई
वीडियो वायरल होने के बाद मीडिया ने शोर मचाया। राजेश अग्रवाल परेशान हो गया, उसके दोस्त और क्लाइंट्स दूरी बनाने लगे। कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। वीडियो के सामने राजेश के सारे तर्क फेल हो गए। डॉ. सुधा शर्मा ने रोहित के लिए अच्छे वकील का इंतजाम किया। कोर्ट में रोहित ने साफ तरीके से गवाही दी। जज साहब ने कहा, “यह बच्चा सिर्फ अपना हक मांग रहा था।”
राजेश अग्रवाल को छह महीने की जेल और पांच लाख रुपये मुआवजे की सजा मिली। पूरी कोर्ट में तालियां गूंज उठीं। रोहित ने डॉ. सुधा शर्मा के पैर छुए, “मैडम, आपने मेरी बहुत मदद की।”
9. नई शुरुआत
रोहित ने सबसे पहले रामू काका का अच्छे अस्पताल में इलाज कराया। ऑपरेशन के बाद वे ठीक हो गए। रोहित ने गांव में छोटी दुकान खोली, रोजमर्रा का सामान बेचने लगा। दुकान अच्छी चलने लगी। उसकी तस्वीरें अखबारों में छपीं, टीवी चैनलों पर इंटरव्यू आए। दिल्ली में गृह मंत्रालय के दफ्तर में IAS अधिकारी अमित राज ने अखबार में रोहित की तस्वीर देखी। उन्हें चेहरा जाना-पहचाना लगा।
उन्होंने पूरी खबर पढ़ी, जब जाना कि रोहित 12 साल का है, नदी से निकाला गया था, तो उनका दिल जोर से धड़कने लगा। वे तुरंत रोहित के गांव पहुंचे। रामू काका से मिले, कहा, “मैं रोहित को आपसे अलग नहीं करूंगा। हम एक ही परिवार हैं।”
10. सच्चाई का खुलासा
शाम को रोहित दुकान बंद करके घर आया। अमित राज और रामू काका गंभीर थे। रामू काका ने पूरी कहानी बताई—अमित राज उसके असली पिता हैं, 12 साल पहले एक्सीडेंट में वे अलग हो गए थे। रोहित सन्न रह गया। उसने पूछा, “तो मेरा असली नाम रोहित नहीं है?” अमित राज ने कहा, “तुम्हारा नाम रोहित राज है, लेकिन रामू काका ने जो नाम दिया वही सही है।”
रोहित ने अमित राज के पास जाकर कहा, “पापा!” अमित राज की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। 12 साल बाद किसी ने उन्हें पापा कहा था। रोहित ने कहा, “रामू काका हमेशा मेरे पहले पापा रहेंगे, क्योंकि उन्होंने मुझे पाला है। आप मेरे दूसरे पापा हैं।” अमित राज ने कहा, “बिल्कुल सही। अब हम एक ही परिवार हैं।”
11. परिवार का पुनर्मिलन
अब खुशियों का माहौल था। 12 साल बाद एक परिवार फिर से मिल गया था। अमित राज ने कहा, “अब तुम दोनों दिल्ली चलोगे। रोहित की अच्छी शिक्षा का इंतजाम करूंगा।” रोहित की पढ़ाई दिल्ली के बेस्ट स्कूल में हुई। अमित राज ने उसे सभी सुविधाएं दीं, मगर यह भी सिखाया कि गरीबी के दिनों को कभी नहीं भूलना चाहिए। रामू काका भी दिल्ली आ गए। अब वे दादाजी की तरह रोहित का ख्याल रखते थे।
12. संघर्ष से सफलता तक
रोहित ने अपने संघर्ष के दिनों को कभी नहीं भुलाया। वह स्कूल के दोस्तों को बताता था कि मेहनत और ईमानदारी ही सबसे बड़ी बात है। डॉ. सुधा शर्मा भी रोहित से मिलने आती रहती थीं। वे उसे अपने बेटे की तरह मानती थीं।
कुछ साल बाद रोहित ने आईएएस बनने का फैसला किया। उसने मेहनत की, परीक्षा में टॉप किया। परिवार खुशी से झूम उठा। अमित राज की आंखों में गर्व के आंसू थे, रामू काका भी बहुत खुश थे। रोहित ने अपनी पहली सैलरी से रामू काका के नाम एक छोटा घर खरीदा।
13. समाज को संदेश
आज रोहित एक सफल IAS अधिकारी है। वह गरीबों की मदद करता है, सुनिश्चित करता है कि मेहनतकश व्यक्ति का अपमान न हो। वह अक्सर कहता है, “एक थप्पड़ ने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर राजेश अग्रवाल ने मुझे नहीं मारा होता, तो शायद मैं अपने असली पिता से कभी नहीं मिलता।”
निष्कर्ष
यह कहानी हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत, मेहनत और ईमानदारी से जिंदगी बदल सकती है। परिवार, प्यार और इंसानियत सबसे बड़ी पूंजी है। न्याय की जीत और रिश्तों का पुनर्मिलन ही असली सफलता है।
जय हिंद, जय श्री राम।
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