SP मैडम को आम लड़की समझकर इंस्पेक्टर थाने ले जा रहा था, फिर रास्ते में इंस्पेक्टर के साथ जो हुआ…

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इंसाफ की आवाज

बाजार की भीड़ में दो औरतें धीरे-धीरे चल रही थीं। एक की उम्र लगभग 60 साल थी, नीली साड़ी पहने कमला देवी। उनके साथ चल रही थीं उनकी बेटी, नेहा, जो जींस और एक साधारण सी कुर्ती पहने थी। नेहा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह शहर की सबसे ताकतवर पुलिस अधिकारियों में से एक है। आज वह एसपी नेहा शर्मा नहीं थी; आज वह सिर्फ अपनी मां की बिटू थी। कई महीनों बाद उसे यह मौका मिला था। फाइलों, मीटिंग्स और अपराधियों की दुनिया से दूर, अपनी मां का हाथ थाम कर यूं बाजार में घूमने का। उसे याद भी नहीं था कि आखिरी बार उसने कब इतना हल्का महसूस किया था।

कमला देवी ने एक ठेले पर सजी हरी-भरी सब्जियों को देखते हुए कहा, “देख नेहा, कितनी ताजा पालक है। तेरे पापा को बहुत पसंद थी।” नेहा मुस्कुराई। “हां मां। और आप हमेशा पालक पनीर ही बनाती थीं और मैं खाती नहीं थी।” कमला देवी ने हंसते हुए उसकी नाक पर हल्की सी चुटकी काटी। “कहती थी, यह घास-फूस क्यों खिलाती हो?” दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ीं।

वे थोड़ा और आगे बढ़ीं। एक पुरानी सी दुकान के सामने कमला देवी रुक गईं। दुकान के ऊपर एक धूल भरा बोर्ड लगा था जिस पर “राम भरोसे जनरल स्टोर” लिखा था। कमला देवी की आंखों में पुरानी यादें तैर गईं। “याद है नेहा, यहीं से तू बचपन में वो नींबू वाली खट्टी-मीठी टॉफी खरीदती थी। ₹1 में चार मिलती थी।”
“हां मां, और आप हमेशा डांटती थीं कि पैसे बचा लें, गुल्लक में डाल दें।” कमला देवी ने उसी पुराने अंदाज में कहा, “तो क्या गलत कहती थी? बचत करना अच्छी आदत है।”
“पर मां, उन टॉफियों का मजा तो किसी बचत से ज्यादा था।” नेहा ने अपनी मां के कंधे पर सिर रख दिया।

दोनों मां-बेटी उस पल में खोई हुई थीं। उन्हें नहीं पता था कि उनकी यह छोटी सी प्यारी सी दुनिया कुछ ही मिनटों में बिखरने वाली थी। उनकी हंसी थमने वाली थी। अभी वे उस दुकान से कुछ ही कदम आगे बढ़ी थीं कि अचानक माहौल बदलने लगा।

SP मैडम को आम लड़की समझकर इंस्पेक्टर थाने ले जा रहा था, फिर रास्ते में इंस्पेक्टर के साथ जो हुआ...

बाजार के अंदरूनी हिस्से से एक तेज और कर्कश आवाज गूंजी। सायरन की आवाज एक नहीं, दो-दो पुलिस की जीपों के सायरन थे। जो लोग अभी तक अपनी खरीददारी में मग्न थे, वे अचानक डर कर इधर-उधर देखने लगे। सायरन की आवाज जैसे-जैसे पास आ रही थी, लोगों के दिलों में दहशत बढ़ रही थी। पुलिस का आना कभी भी आम बात नहीं होती। खासकर ऐसे बाजारों में।

एक हवलदार जीप से उतरकर डंडा फटकारता हुआ चिल्लाया, “हटो! साइड हटो! रास्ता खाली करो!” उसकी आवाज में रौब था, घमंड था। दो जीपें धूल उड़ाती हुई, लोगों को धकियाती हुई, बाजार के बीचों-बीच घुस आईं। दुकानदारों ने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटना शुरू कर दिया। जो ग्राहक आराम से मोलभाव कर रहे थे, वे डर कर दीवारों से चिपक गए। पल भर में जो बाजार जिंदगी की रौनक से भरा था, वह अब डर से शून्य हो गया था।

नेहा ने अपनी मां का हाथ कसकर पकड़ लिया। उसके अंदर का पुलिस अफसर जाग रहा था। वह जानती थी कि यह प्रोटोकॉल गलत है। किसी वीआईपी के आने पर भी आम जनता को इस तरह डराया-धमकाया नहीं जा सकता था। तभी उसकी नजर एक कोने में बैठी बूढ़ी अम्मा पर पड़ी। वह जमीन पर एक छोटी सी टोकरी रखकर अमरूद बेच रही थी। शायद दिन भर में ₹100-₹50 कमा पाती होगी। वह घबराई हुई सी अपनी टोकरी को और सिकुड़ने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जीप के साथ चल रहे एक पुलिस वाले की नजर उस पर पड़ गई।

“ए बुढ़िया! दिख नहीं रहा क्या? साहब आ रहे हैं। रास्ता घेरे बैठी है।” वह गुर्राया। बूढ़ी अम्मा कांपते हुए हाथ जोड़कर खड़ी होने लगी। “बेटा, हटा रही हूं। बस एक मिनट।” लेकिन उस पुलिस वाले में शायद इंसानियत बची ही नहीं थी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी भारी भरकम लात सीधे अमरूद की टोकरी पर दे मारी।

“थक!” की आवाज के साथ टोकरी हवा में उछली और सारे अमरूद सड़क पर बिखर गए। कुछ तो पास की नाली में भी जा गिरे। बूढ़ी अम्मा की आंखों में आंसू आ गए। वह बिखरे हुए अमरूद को ऐसे देख रही थी जैसे उसकी पूरी दुनिया लूट गई हो। उसकी दिन भर की मेहनत, उसकी उम्मीद सब कीचड़ में मिल चुकी थी। कांपती हुई आवाज में वह बोली, “बेटा, क्यों मार दिया? गरीब की हाय लगेगी।”

पुलिस वाला हंसा, “एक बहुत गंदी हंसी। चुपचाप निकल यहां से वरना हाय देने के लायक भी नहीं छोड़ूंगा। यह रास्ता वीआईपी का है, तेरी जागीर नहीं।”

यह दृश्य देखकर नेहा का खून खौल उठा। उसकी मुट्ठियां भेँच गईं। उसके कदम अपने आप उस पुलिस वाले की तरफ बढ़ने लगे। वह भूल गई थी कि उसने आज वर्दी नहीं पहनी है। वह भूल गई थी कि वह अपनी मां के साथ है। उसे बस वह वर्दी वाला जानवर और उस बूढ़ी अम्मा के आंसू दिख रहे थे।

वह कुछ बोलती, इससे पहले ही कमला देवी ने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से दबाया। “बेटी, चुप रह। मैं नहीं चाहती कि कोई बखेड़ा खड़ा हो। एक तो बहुत दिन बाद मेरे साथ घूमने आई हैं।”

नेहा रुक गई। उसने एक लंबी सांस ली और अपने गुस्से को पी गई। आज का दिन उसकी मां का था। वह इसे खराब नहीं करना चाहती थी। “ठीक है मां।” उसने धीरे से कहा और अपनी मां को लेकर दूसरी तरफ चलने लगी। लेकिन जो आग उसके दिल में लगी थी, वह बुझी नहीं थी। वह बस एक चिंगारी का इंतजार कर रही थी।

बाजार में पुलिस की मौजूदगी ने एक अजीब सी टेंशन भर दी थी। जो लोग कुछ देर पहले तक मोलभाव कर रहे थे, अब वह चुपचाप सहमे हुए चल रहे थे। जैसे किसी ने उनकी आवाज छीन ली हो। कमला देवी भी इस माहौल से थोड़ी घबरा गई थीं। उनका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह नेहा का हाथ कसकर पकड़े हुए थीं। चलते-चलते उनके पैर अब जवाब देने लगे थे। उम्र का असर था और आज की घबराहट ने उन्हें और भी थका दिया था।

“बेटा, मैं बहुत थक गई।” उन्होंने हाफ हुए कहा, “अब मुझसे और नहीं चला जाएगा। तू सब्जी ले आ। मैं यहीं कहीं बैठ जाती हूं।” नेहा ने अपनी मां के चेहरे पर आई थकान और चिंता को पढ़ लिया। उसे खुद पर गुस्सा आया कि वह उन्हें इस माहौल में लेकर आई।

उसने चारों तरफ देखा। पास में ही एक किराने की दुकान बंद थी। उसका शटर नीचे था। शटर के बाहर ग्राहकों के बैठने के लिए रखा एक पुराना मजबूत सा लकड़ी का बक्सा रखा हुआ था। नेहा ने सहारा देते हुए कहा, “मां, आप इस बक्से पर बैठ जाओ। मैं बस दो मिनट में आलू-टमाटर लेकर आती हूं। आप यहीं आराम करो।”

कमला देवी ने राहत की सांस ली और धीरे से उस बक्से पर बैठ गईं। उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू से चेहरे पर आया पसीना पोंछा। नेहा ने उन्हें एक बार मुड़कर तसल्ली से देखा और फिर सामने वाले सब्जी के ठेले की तरफ बढ़ गई।

वह जैसे ही कुछ कदम दूर गई, बाजार में हलचल फिर से तेज हो गई। एक और पुलिस की जीप धूल उड़ाती हुई आई और तेजी से ब्रेक लगाकर रुकी। जीप से एक इंस्पेक्टर उतरा। इंस्पेक्टर बलबीर यादव, चेहरे पर अजीब सी अकड़, आंखों में ऐसा घमंड जैसे वह इस शहर का नहीं, पूरी दुनिया का राजा हो। उसके साथ दो हवलदार भी थे, जो कि हुजूरी में सर झुकाए ऐसे खड़े थे जैसे उनके शरीर में रीढ़ की हड्डी ही ना हो।

बलबीर यादव ने अपनी नजरें चारों तरफ घुमाई जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को ढूंढ रहा हो। तभी उसकी नजर उस बंद दुकान के बाहर बक्से पर बैठी कमला देवी पर पड़ी। एक साधारण सी थकी हुई बूढ़ी औरत, जो अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी। लेकिन बलबीर की घमंडी आंखों को उसमें भी शायद कोई बड़ा खतरा नजर आ गया। कोई ऐसा जो उसके बनाए हुए वीआईपी रूट के अनुशासन को भंग कर रहा हो।

वह तेजी से उनकी तरफ बढ़ा। उसके भारीभरकम बूटों की आवाज बाजार के शोर में भी अलग सुनाई दे रही थी। उसने बिना किसी लाग-लपेट के अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया, “ए बुढ़िया! यहां क्यों बैठी है? दिख नहीं रहा? वीआईपी रूट है यह। हट यहां से।”

कमला देवी इस अचानक हुए हमले से बुरी तरह सकपका गईं। उनका दिल मुंह को आ गया। उन्होंने घबराकर कांपते हुए हाथ जोड़ दिए। “बेटा, बस बहुत थक गई थी। दो मिनट बस दो मिनट बैठ रही थी। अभी उठ जाती हूं।” उनकी आवाज में नरमी थी, लाचारी थी। एक मां की विनती थी। लेकिन बलबीर यादव जैसे इंसानों को शायद इसी में मजा आता था। दूसरों को लाचार देखकर उनका अहंकार और बढ़ जाता था।

वह जोर से हंसा। एक ऐसी हंसी जिसमें इंसानियत नहीं, सिर्फ क्रूरता थी। “दो मिनट।” उसने अपनी उंगली से कमला देवी को लगभग ढकियाते हुए कहा, “तेरी वजह से पूरा रास्ता गंदा दिख रहा है। तेरी यह हैसियत है कि तू यहां बैठेगी।”

“बेटा, ऐसे मत बोलो।” कमला देवी की आंखों में पानी भर आया। यह अपमान असहनीय था। “मैं ऐसे ही बोलूंगा। तुम जैसे लोगों ने ही इस शहर को गंदा कर रखा है। कचरा हो तुम लोग।”

और फिर वह हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उस भीड़ भरे बाजार में, दिन के उजाले में, एक वर्दी वाले ने अपनी सारी हदें पार कर दी। उसने बिना सोचे-समझे अपना भारी हाथ उठाया और कमला देवी के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

आवाज इतनी तेज थी कि आसपास की सारी आवाजें जैसे एक पल के लिए मर गईं। जो लोग डर से सिर झुकाए चल रहे थे, वह भी जहां के तहां थम गए। सबने देखा। सबने सुना। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। किसी की हिम्मत नहीं हुई। कमला देवी का सिर एक तरफ झुक गया। उनकी आंखों से आंसू की एक धार बह निकली। यह थप्पड़ सिर्फ उनके गाल पर नहीं, उनकी आत्मा पर पड़ा था। उनके सम्मान पर पड़ा था। एक मां के स्वाभिमान पर पड़ा था।

आखिर कैसे एक Police कांस्टेबल ने SP मैडम को डंडा मारा फिर जो हुआ पूरे जिले में हलचल मच गया..... - YouTube

ठीक उसी पल नेहा सब्जी लेकर लौटी। उसने दूर से ही देखा। उसकी मां, उसकी दुनिया, सिर झुकाए बैठी थी और उनके सामने खड़ा था वो वर्दी वाला शैतान जो अपनी मूछों पर ताव दे रहा था। पहले तो नेहा को समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है। लेकिन जैसे ही वह पास आई, उसकी नजर अपनी मां के गाल पर पड़े उस लाल निशान पर गई। बस वह वहीं जम गई जैसे किसी ने उसके पैरों में सीसा भर दिया हो।

सब्जी का थैला उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। टमाटर और आलू सड़क पर बिखर गए। थप्पड़ जैसे उसके दिल पर पड़ा हो। एक पल के लिए उसकी सांस रुक गई। दुनिया घूमती हुई सी लगी। फिर सब कुछ बदल गया। उसके कदम अपने आप तेज हुए। वह किसी घायल शेरनी की तरह इंस्पेक्टर बलबीर यादव की तरफ बढ़ी। वह ठीक उसके सामने जाकर खड़ी हो गई।

“तुमने मेरी मां पर हाथ उठाया।” बलबीर यादव ने नेहा को ऊपर से नीचे तक घूरा। एक आम सी लड़की, जींस और कुर्ती में, कोई खास नहीं। उसने सोचा, “यह भी कोई होगी जो ड्रामा करने आ गई।” वह जोर से हंसा, “हां, उठाया तो क्या कर लेगी? भाग यहां से। ज्यादा जुबान मत चलाना। वरना तुझे भी ऐसा मारूंगा कि याद रखेगी।”

नेहा ने एक गहरी सांस ली। उसके अंदर का एसपी उसे आदेश दे रहा था कि इस आदमी की वर्दी और अहंकार दोनों को इसी सड़क पर उतार दें। लेकिन उसके अंदर की एक और आवाज ने उसे रोक लिया। वह आवाज कह रही थी, “नहीं, अभी नहीं। आज देखती हूं। यह वर्दी वाले और कितना गिर सकते हैं। आज मैं एसपी नहीं, एक आम नागरिक बनूंगी और देखूंगी कि एक आम नागरिक के साथ ये लोग क्या सुलूक करते हैं।”

उसने अपनी पहचान का पर्दा ना हटाने का फैसला कर लिया। “किस कानून ने तुम्हें यह हक दिया कि तुम एक बूढ़ी औरत पर हाथ उठाओ?” बलबीर को यह आत्मविश्वास देखकर और गुस्सा आ गया। “कानून। मैं हूं यहां का कानून। चल निकल यहां से। ज्यादा बहस मत कर।”

नेहा ने अपनी जगह पर खड़े रहते हुए कहा, “मैं कहीं नहीं जा रही। तुम्हें माफी मांगनी होगी।” “माफी और मैं तुझ जैसी सड़क छाप लड़की से?” बलबीर बौखला गया। “लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी। तेरी सारी हेकड़ी थाने निकालनी पड़ेगी। चल, बैठ जीप में।” उसने एक हवलदार को इशारा किया। “डालो इसको जीप में। सरकारी काम में बाधा डालने और पुलिस वाले से बदतमीजी करने के जुर्म में अंदर करो इसे।”

हवलदार नेहा की तरफ बढ़ा। भीड़ में कुछ लोग कानाफूसी करने लगे। “बेचारी लड़की खामखा पंगे में पड़ गई। इसे चुप रहना चाहिए था।” नेहा ने हवलदार को हाथ से रोकने का इशारा किया। उसकी आंखों में ऐसी दृढ़ता थी कि हवलदार के कदम खुद-ब-खुद रुक गए।

उसने बलवीर की आंखों में आंखें डालकर कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारे साथ थाने चलूंगी। मुझे भी देखना है तुम्हारा कानून और तुम्हारा थाना।” बलबीर हैरान रह गया। उसने सोचा था कि लड़की डर जाएगी, रोने लगेगी, माफी मांगेगी। लेकिन यह तो खुद ही थाने चलने को तैयार थी।

वह गरजा, “ठीक है। बहुत शौक है तो चल।” नेहा ने कहा, “बस एक मिनट। मैं अपनी मां को घर भेज दूं, फिर चलती हूं।” बलबीर हंसा, “ठीक है, कर ले अपना आखिरी काम जो करना है, कर लो। फिर तो सीधा हवालात की हवा खाएगी।”

नेहा मुड़ी और अपनी मां के पास गई। कमला देवी बुरी तरह घबराई हुई थीं। “नहीं बिटू, तू कहीं नहीं जाएगी। मैं ही माफी मांग लेती हूं इससे।”
“नहीं मां।” नेहा ने दृढ़ता से कहा। “आप कोई माफी नहीं मांगेंगी। गलती उसने की है। सजा उसे मिलेगी। आप बस मुझ पर भरोसा रखो।”

उसने पास से गुजर रहे एक ऑटो को रोका। उसने अपनी मां को सहारा देकर ऑटों में बिठाया। “नहीं बेटी, मुझे छोड़कर मत जा। मैं बस अभी आई।”
“मां, आप घर जाओ। चिंता मत करना।” उसने ऑटो वाले को घर का पता समझाया और उसकी जेब में कुछ ज्यादा ही पैसे रख दिए। “चाचा, इन्हें सुरक्षित घर पहुंचा देना।”

जैसे ही ऑटो आगे बढ़ा, नेहा ने अपनी पीठ बलबीर की तरफ की ताकि वह देख न सके। ऑटो के पीछे खड़े होकर उसने तेजी से अपना मोबाइल निकाला। उसकी उंगलियां किसी मशीन की तरह तेजी से कीपैड पर चलीं। उसने शहर के डीएसपी को एक मैसेज टाइप किया।

“डीएसपी सर, जनता मार्केट में आपके इंस्पेक्टर बलवी यादव ने एक बूढ़ी महिला पर हाथ उठाए हैं जो कि वह मेरी मां है। जब मैं पूछने गई तो वह मुझे धमकी दे रहे हैं और थाने ले जाने की बात कर रहे हैं। अब आपको क्या करना है? आप कीजिए। मैं एसपी नेहा शर्मा।”

मैसेज भेजकर उसने मोबाइल वापस अपनी जेब में डाल लिया। उसके चेहरे पर अब कोई शिकन नहीं थी। वह शांत थी, जैसे एक शिकारी अपने शिकार को जाल में फंसाने के बाद होता है। वह मुड़ी और पुलिस की जीप की तरफ चल दी।

“हो गया तेरा नाटक।” बलबीर ने ताना कसा। नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप जीप के पिछले हिस्से में जाकर बैठ गई। उसके चेहरे पर डर का कोई भाव नहीं था, जो बलवी को और भी चिढ़ा रहा था। उसने ड्राइवर को आदेश दिया, “चलाओ जीप।”

जीप स्टार्ट हुई और बाजार की भीड़ को चीरती हुई आगे बढ़ गई। लोग उस लड़की को जाते हुए देख रहे थे जिसे वह अपनी आंखों के सामने एक अन्याय की भेंट चढ़ते हुए देख रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि शिकार खुद शिकारी को अपने जाल की तरफ ले जा रहा था।

उधर पुलिस हेड क्वार्टर में डीएसपी कुलदीप सिंह अपनी कैबिन में फाइलों पर नजर दौड़ा रहे थे। जैसे ही उनके पर्सनल मोबाइल पर एक मैसेज टोन बजी। उन्होंने फोन उठाकर देखा। मैसेज पढ़ते ही उनके हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। “एसपी मैडम, अरेस्ट बलबीर यादव।” उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं।

शहर की एसपी को उसी के एक इंस्पेक्टर ने अरेस्ट कर लिया था और उसे पता भी नहीं था कि वह कौन है। डीएसपी कुलदीप सिंह जानते थे कि यह कोई मामूली बात नहीं है। यह एक टाइम बम था जो कभी भी फट सकता था। वह अपनी कुर्सी से लगभग उछल पड़े। उन्होंने तुरंत अपने ऑपरेटर को फोन लगाया।

“तुरंत अभी के अभी एसपी मैडम के ऑफिशियल नंबर की लोकेशन ट्रेस करो। मुझे हर 30 सेकंड में अपडेट चाहिए। फास्ट।” फिर उन्होंने वायरलेस सेट उठाया। उनकी आवाज में ऐसी घबराहट और गुस्सा था जो पूरे कंट्रोल रूम ने महसूस किया।

“सभी यूनिट ध्यान दें। क्यूआरटी (क्विक रिएक्शन टीम) को तुरंत तैयार करो। शहर के सारे मेन एग्जिट पॉइंट्स पर नाकाबंदी की तैयारी करो।” पूरे पुलिस हेड क्वार्टर में हड़कंप मच गया। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है। बस सब इतना समझ रहे थे कि मामला बहुत बड़ा है।

डीएसपी ने अपनी टोपी उठाई और कैबिन से बाहर भागे। “एक गाड़ी निकालो, मैं खुद जाऊंगा।” लोकेशन आ चुकी थी। जीप जनता मार्केट से निकलकर शहर के बाहरी हाईवे की तरफ बढ़ रही थी। शायद बलबीर उसे मेन कोतवाली थाने ना ले जाकर किसी सुनसान चौकी पर ले जाने की फिराक में था ताकि वह उसे डराधमका सके।

डीएसपी की गाड़ी सायरन बजाती हुई हेड क्वार्टर से निकली। उनके पीछे क्यूआरटी की दो और गाड़ियां थीं। उनकी नजरें लगातार जीपीएस ट्रैकर पर थीं जो एक लाल बिंदु के रूप में नेहा की लोकेशन दिखा रहा था।

पुलिस की जीप में बलवीर यादव और उसके हवलदार नेहा पर हंस रहे थे। एक हवलदार बोला, “बड़ी नेता बन रही थी बाजार में। अब पता चलेगा पुलिस से पंगा लेने का अंजाम।” बलवीर ने अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा, “इसकी सारी हेकड़ी निकाल दूंगा आज। इसको तो आज पूरी रात हवालात में सड़ाऊंगा।”

नेहा चुपचाप बाहर देखती रही। वह शांत थी, लेकिन उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। वह देख रही थी कि जीप शहर की गलियों से निकलकर अब चौड़े हाईवे पर आ गई थी। हाईवे पर ट्रैफिक कम था। उसे पता था कि अब एक्शन का समय हो गया है।

तभी जीप के ड्राइवर ने घबरा कर ब्रेक लगाए। बलवीर चिल्लाया, “क्या हुआ?”
“साहब, आगे पुलिस की गाड़ियां रास्ता रोके खड़ी हैं।” बलवीर ने आगे देखा। हाईवे पर दो पुलिस की गाड़ियां तिरछी खड़ी करके रास्ता ब्लॉक किया गया था। वर्दी में कई पुलिस वाले बंदूकें ताने खड़े थे।

बलवीर गुर्राया, “यह क्या बकवास है? शायद कोई चेकिंग चल रही है। साइड से निकाल लें।” लेकिन जैसे ही ड्राइवर ने जीप को साइड से निकालने की कोशिश की, पीछे से तेज सायरन की आवाज आई। बलवीर ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके होश उड़ गए।

पीछे भी दो क्यूआरटी की गाड़ियों ने रास्ता रोक दिया था। उनकी जीप अब दोनों तरफ से फंस चुकी थी। गाड़ियों से दर्जनों कमांडो उतरे और उनकी जीप को चारों तरफ से घेर लिया। सबके हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे। बलवीर और उसके हवलदारों को लगा कि शायद उन्होंने गलती से किसी आतंकवादी के काफिले में अपनी जीभ घुसा दी है। उनके चेहरे का रंग पीला पड़ गया।

तभी सामने वाली गाड़ी से डीएसपी कुलदीप सिंह उतरे। उनका चेहरा गुस्से से लाल था। वह तेजी से बलवीर की जीभ की तरफ बढ़े। बलवीर ने उन्हें देखा तो थोड़ा सकपकाया। लेकिन फिर भी अपनी अकड़ में बोला, “अरे डीएसपी साहब, आप यह सब क्या हो रहा है? हम एक मुजरिम को थाने ले जा रहे थे।”

डीएसपी ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। उनकी नजरें जीप के अंदर बैठी नेहा पर थीं। वह जीप के पिछले दरवाजे के पास गए। उन्होंने दरवाजा खोला और फिर उन्होंने वही किया जिसकी बलवीर यादव ने अपने सबसे बुरे सपने में भी कल्पना नहीं की होगी।

डीएसपी कुलदीप सिंह ने अपनी पूरी ताकत से जोरदार आवाज में सैल्यूट ठोका। “मैडम, आप ठीक तो हैं? हमें आने में थोड़ी देर हो गई। उसके लिए माफी चाहते हैं।” सैल्यूट की आवाज और “मैडम” शब्द बलवीर यादव के कानों में किसी बम की तरह फटे।

एक पल के लिए उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है। यह आम सी लड़की और डीएसपी साहब उसे सैल्यूट कर रहे हैं। यह या यह एसपी मैडम है, एसपी नेहा शर्मा। उसके हाथ-पैर कांपने लगे। उसकी दुनिया एक पल में घूम गई। उसे अपनी आंखों के सामने अपना बर्बाद होता हुआ करियर, अपनी उतरती हुई वर्दी और जेल की सलाखें साफ-साफ दिखाई देने लगीं।

नेहा ने डीएसपी के सैल्यूट का जवाब सिर हिला कर दिया और शांति से जीप से नीचे उतरी। फिर वह धीरे-धीरे चलकर बलवीर यादव के सामने आई, जो अब भी जीप में पत्थर का बुत बना बैठा था। “तो इंस्पेक्टर बलबीर यादव, तुम मुझे थाने ले जा रहे थे, मेरी हेकड़ी निकालने। बताओ, क्या है तुम्हारा कानून?”

बलबीर की जुबान जैसे तालू से चिपक गई। वह कुछ बोल नहीं पाया। बस फटी फटी आंखों से उसे देखता रहा। तभी डीएसपी कुलदीप सिंह का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने बलवीर का कॉलर पकड़ कर उसे जीप से बाहर खींचा। “हरामखोर, तेरी हिम्मत कैसे हुई एसपी मैडम पर हाथ डालने की?”

उन्होंने बलवीर के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। “तूने सिर्फ मैडम का नहीं, पूरी पुलिस फोर्स का अपमान किया है।” “तुझे तो मैं…” नेहा ने उन्हें रोक दिया। “रुकिए, डीएसपी साहब। इसे कानून के हिसाब से ही सजा मिलेगी। इसे मारना इसे भी इसी की तरह बना देगा।”

उसने बलबीर की तरफ देखा जो अब जमीन पर गिरा हुआ था। इंस्पेक्टर बलबीर यादव नेहा ने अपनी एसपी की आवाज में आदेश दिया, “तुम्हारी बहादुरी के लिए एक निही औरत पर हाथ उठाने के लिए और अपनी वर्दी का घमंड दिखाने के लिए, मैं एएसपी नेहा शर्मा तुम्हें इसी वक्त इसी जगह पर सस्पेंड करती हूं। तुम्हारी वर्दी और तुम्हारा सर्विस रिवाल्वर अभी तुमसे छीन लिया जाएगा। बाकी बातें अब डिपार्टमेंटल इंक्वायरी में होंगी।”

डीएसपी ने तुरंत दूसरे अफसरों को इशारा किया। उन्होंने बलबीर और उसके दोनों हवलदारों को पकड़ लिया। उनकी बेल्ट, टोपी और रिवाल्वर उनसे ले लिए गए। जो आदमी कुछ देर पहले तक खुद को शहर का राजा समझ रहा था, अब वह एक मामूली अपराधी की तरह सिर झुकाए खड़ा था। उसकी सारी अकड़, सारा घमंड हाईवे की धूल में मिल चुका था।

नेहा ने एक आखिरी बार उसकी तरफ देखा और फिर अपनी ऑफिशियल गाड़ी की तरफ बढ़ गई। आज न्याय हुआ था और वह भी सरेआम उसी वर्दी के सामने जिसका कुछ लोग गलत इस्तेमाल करते थे।

बलवीर यादव और उसके हवलदारों को दूसरी जीप में बिठाकर हेड क्वार्टर भेज दिया गया था। नेहा अपनी ऑफिशियल गाड़ी में बैठी। ड्राइवर ने पूछा, “मैडम, हेड क्वार्टर चलें?” नेहा ने एक गहरी सांस ली और अपनी आंखें बंद कर लीं। अभी उसे हेड क्वार्टर नहीं जाना था। अभी उसे अपनी मां के पास जाना था।

उसने धीरे से कहा, “नहीं, घर चलो।” पूरे रास्ते वह चुप रही। उसके मन में कई बातें चल रही थीं। आज उसने अपनी मां के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी थी। जब गाड़ी उसके घर के सामने रुकी तो उसने देखा कि दरवाजे पर ही कमला देवी बेचैनी से टहल रही थीं। जैसे ही उन्होंने नेहा को गाड़ी से उतरते देखा, वह भागकर उसके पास आईं और उसे कसकर गले लगा लिया।

“बिटू, तू ठीक है ना? उन लोगों ने तेरे साथ कुछ किया तो नहीं?” नेहा ने उनकी पीठ सहलाते हुए कहा, “मैं बिल्कुल ठीक हूं मां। अब आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है।” वह अपनी मां को सहारा देकर अंदर ले आई।

“बेटा, आज तूने जो किया उसके बाद मेरा सिर गर्व से और ऊंचा हो गया है। बस डर लगता है। यह दुनिया बहुत खराब है।” “जब तक मैं हूं, आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं।” “अब आप आराम करो। कल एक नया दिन होगा और वह दिन इंसाफ का दिन होगा।”

उस रात मां-बेटी ने बहुत देर तक बातें कीं। नेहा ने उन्हें पूरी घटना बताई कि कैसे उसने डीएसपी को मैसेज किया और कैसे बलबीर को पकड़ाया। सालों बाद उस रात वह दोनों एक ही कमरे में सोईं। एक-दूसरे का हाथ थामे हुए जैसे एक-दूसरे को यकीन दिला रही हों कि अब सब ठीक है।

अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ एक नई हलचल शुरू हो गई थी। पुलिस डिपार्टमेंट में एसपी मैडम की खबर आग की तरह फैल चुकी थी। हर कोई इसी बारे में बात कर रहा था। कुछ लोग नेहा की हिम्मत की तारीफ कर रहे थे। नेहा आज सुबह जल्दी उठ गई थी। आज वह अपनी जींस-कुर्ती में नहीं थी। आज उसने अपनी वर्दी पहनी थी। एकदम कड़क स्त्री की हुई वर्दी, जिस पर उसका नाम नेहा शर्मा और पद एसपी साफ चमक रहा था।

उसने आईने में खुद को देखा। आज वह बेटी नहीं, एक पुलिस अफसर थी जो इंसाफ करने जा रही थी। हेड क्वार्टर के कॉन्फ्रेंस हॉल को इंक्वायरी रूम में बदल दिया गया था। एक लंबी मेज के चारों तरफ डिपार्टमेंट के बड़े-बड़े अफसर बैठे थे। डीआईजी साहब खुद इस कमेटी को हेड कर रहे थे। माहौल में एक गंभीरता थी।

एक तरफ कटघरे में इंस्पेक्टर बलबीर यादव खड़ा था। कल वाला घमंड आज उसके चेहरे से गायब था। वह एक भीगे हुए चूहे की तरह लग रहा था। डरा हुआ, सहमा हुआ। तभी दरवाजा खुला और एसपी नेहा शर्मा अंदर दाखिल हुईं। उनके कदम रखते ही पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। सब अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए। उनकी वर्दी का रंग, उनके चेहरे का आत्मविश्वास और उनकी आंखों की सच्चाई देखकर वहां बैठा हर शख्स प्रभावित था।

उन्होंने सबको सैल्यूट किया और अपनी कुर्सी पर बैठ गईं। डीआईजी ने कार्यवाही शुरू की। “इंस्पेक्टर बलवीर यादव, आप पर एक सीनियर अफसर को गैर कानूनी तरीके से गिरफ्तार करने, अपनी ड्यूटी के दौरान एक आम नागरिक के साथ मारपीट करने और अपनी वर्दी का गलत इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप हैं। आपका क्या कहना है?”

बलवी ने कांपती हुई आवाज में बोलने की कोशिश की। “सर, यह सब झूठ है। मुझे फंसाया जा रहा है। मैडम से मेरी कोई पर्सनल दुश्मनी नहीं है।” “वो औरत बार-बार वीआईपी रूट में बाधा डाल रही थी। मैंने बस उन्हें हटने को कहा था।”

“और हटाने का आपका तरीका एक औरत को थप्पड़ मारना है?” इंस्पेक्टर नेहा की आवाज शांत लेकिन किसी हथौड़े की तरह चोट करने वाली थी। “नहीं मैडम, वो गलती से हाथ लग गया था।” बलवीर अब बहाने बना रहा था।

“ठीक है।” नेहा ने एक फाइल उठाते हुए कहा। “तो फिर इस गलती के बारे में भी बात कर लेते हैं।” उसने एक दूसरी फाइल खोली। “यह जनता मार्केट के ही एक दुकानदार श्री राम भरोसे लाल की शिकायत है। शिकायत के अनुसार इंस्पेक्टर बलवीर यादव हर महीने उनसे हफ्ता वसूली करते हैं। पैसे ना देने पर उनका सामान फेंकने और उन्हें झूठे केस में फंसाने की धमकी देते हैं। क्या यह भी गलती से हुआ था?”

इंस्पेक्टर हॉल में बैठे अफसर एक दूसरे का मुंह देखने लगे। बलबीर का चेहरा पसीने से तर हो गया। “सर, यह झूठा आरोप है।” तभी दरवाजे पर एक दस्तक हुई। एक हवलदार अंदर आया। “मैडम, गवाह आ गए हैं। उन्हें अंदर भेजो।”

दरवाजे से जो अंदर आया, उसे देखकर बलबीर के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह वही बूढ़ी अमरूद वाली अम्मा थी, जिनकी टोकरी को पुलिस वाले ने लात मारी थी। उनके साथ दुकानदार राम भरोसेल भी थे। नेहा ने उन्हें इज्जत से कुर्सी पर बिठाया।

“अम्मा, आप बिना डरे बताएं। उस दिन आपके साथ क्या हुआ था?” नेहा ने बहुत नरमी से पूछा। अम्मा ने रोते-रोते पूरी बात बताई। कैसे पुलिस वाले ने उनकी दिन भर की कमाई को लात मारकर सड़क पर बिखेर दिया था। कैसे बलवीर यादव ने उन्हें गालियां दी थीं।

फिर राम भरोसेल ने बताया कि कैसे बलवी और उसके हवलदार हर छोटे-बड़े दुकानदार को परेशान करते थे। वह लोग डर के मारे कभी शिकायत नहीं कर पाए क्योंकि उन्हें पता था कि कोई उनकी नहीं सुनेगा। एक के बाद एक बलबीर के काले कारनामों के पन्ने खुलने लगे।

यह सिर्फ एक थप्पड़ की कहानी ही नहीं थी। यह वर्दी की आड़ में चल रही गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार की एक लंबी दास्तान थी। जो फाइलें आज तक धूल खा रही थीं, वह आज इंक्वायरी की मेज पर थीं। सबूत इतने मजबूत थे और गवाह इतने मुखर कि बलवी के पास अब बोलने के लिए कुछ नहीं बचा था। उसका सिर शर्म और डर से झुक गया।

आखिर में डीआईजी साहब अपनी कुर्सी से उठे। उन्होंने सारे सबूतों और गवाहियों को देखा और अपना फैसला सुनाया। “इंस्पेक्टर बलवीर यादव,” उनकी आवाज पूरे हॉल में गूंज रही थी। “आपके खिलाफ लगे सभी आरोप, हफ्ता वसूली, क्षमता का दुरुपयोग और आम जनता के साथ दुर्व्यवहार सब सच साबित हुए हैं। आपने इस वर्दी को, जिस पर हम सबको गर्व है, उसे दागदार किया है। पुलिस डिपार्टमेंट में आपके जैसे अफसरों के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए पुलिस एक्ट के तहत आपको तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त किया जाता है।”

“बर्खास्त।” यह शब्द सुनते ही बलबीर वहीं जमीन पर बैठ गया। उसका सब कुछ खत्म हो चुका था। कार्यवाही खत्म हो गई थी।

नेहा अपनी कुर्सी से उठी। उसने उस बूढ़ी अम्मा के पास जाकर उनके हाथ अपने हाथ में लिए। “अम्मा, अब आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं है। आपका जो भी नुकसान हुआ है, डिपार्टमेंट उसकी भरपाई करेगा।”

अम्मा की आंखों में आंसू थे, लेकिन आज यह खुशी के थे। उन्होंने नेहा के सिर पर हाथ रखकर कहा, “जीती रह बेटी। तूने आज हम गरीबों का मान रख लिया।”

नेहा जब हॉल से बाहर निकल रही थी, तो डिपार्टमेंट के हर छोटे-बड़े अफसर की आंखों में उसके लिए सम्मान था। आज उसने सिर्फ अपनी मां का बदला नहीं लिया था, बल्कि उसने पूरी पुलिस फोर्स का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। उसने साबित कर दिया था कि वर्दी का असली मतलब डराना नहीं, बचाना होता है।

उस शाम जब वह घर लौटी तो उसके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था। इंसाफ हो चुका था।

तो दोस्तों, कैसी लगी आपको यह कहानी? देखा आपने कैसे एक बेटी जब अपनी मां के सम्मान के लिए खड़ी हुई तो उसने पूरे सड़े हुए सिस्टम को हिला कर रख दिया।

यह कहानी सिर्फ एक पुलिस अफसर की नहीं है। यह कहानी है हिम्मत की, सही और गलत की पहचान की। कभी-कभी हम अपनी जिंदगी में ऐसी बहुत सी चीजें देखते हैं जो गलत होती हैं। पर हम चुप रह जाते हैं। हम सोचते हैं कि हम अकेले क्या कर लेंगे।

लेकिन नेहा की कहानी हमें सिखाती है कि अगर आप सच्चाई के रास्ते पर हैं तो आप अकेले नहीं होते। आपकी हिम्मत ही आपकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है।

एक सवाल है मेरा आपसे। अगर आप नेहा की जगह होते और आपके पास वह पावर नहीं होती तो क्या आप तब भी अपनी मां के लिए आवाज उठाते? नीचे कमेंट में जरूर बताना। मुझे आपके जवाब का इंतजार रहेगा।

यार, अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, अगर आपको भी लगा हो कि हां, दुनिया में ऐसे ही इंसाफ की जरूरत है, तो प्लीज इस वीडियो को एक लाइक जरूर करना। आपका एक-एक लाइक मुझे हिम्मत देता है ऐसी ही और कहानियां आप तक पहुंचाने के लिए।

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चलो, फिर मिलते हैं अगली कहानी में एक नए जोश और एक नए मैसेज के साथ। तब तक अपना और अपनों का खूब ख्याल रखना। हमेशा याद रखना, बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो, जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है।