पत्नी अपने अपाहिज पति की आँखों के सामने तालिबान से क्या करवाती रही।

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अफगानिस्तान के एक छोटे से शहर में, जहां जंग ने हर कोना अपने साये में ले रखा था, वहां एक 22 साल की औरत अलीना रहती थी। उसकी जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आए थे, जिनका सामना करना किसी के लिए भी आसान नहीं था। अलीना की कहानी सिर्फ उसकी ही नहीं, बल्कि उन सभी औरतों की कहानी थी जो जुल्मों के बीच भी अपने लिए खड़े होने का साहस जुटाती हैं।

अलीना का पति, मुसिब, एक बहादुर सिपाही था जिसने अपने देश की खातिर लड़ते हुए गहरी चोटें खाईं। एक जंग में उसकी गर्दन में गोली लगी, जिससे वह अपाहिज हो गया। डॉक्टरों ने कहा था कि वह ठीक हो जाएगा, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। घर की हालत खराब थी, दवाइयों के पैसे खत्म हो चुके थे, और दो छोटी बच्चियां भूख से तड़प रही थीं। बाहर के हालात भी इतने खराब थे कि किसी को भी घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं होती थी।

अलीना के लिए अब कोई रास्ता नहीं बचा था, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई। उसने सिर पर चादर ली और दवा लेने के लिए बाहर निकल आई। गलियों में तालिबान की गश्त थी, हर तरफ फायरिंग की आवाजें थीं। मगर अलीना का दिल बस एक दुआ कर रहा था कि खुदा मुसिब को बचा ले। वह किसी तरह एक मेडिकल स्टोर तक पहुंची, लेकिन दुकानदार ने उसकी हालत देख कर दवा देने से मना कर दिया। उसने कहा, “पहले पिछला कर्जा चुका दो, तभी दवा मिलेगी।” अलीना ने मिन्नत की, लेकिन उसकी बातें दीवार से टकरा गईं। वह खाली हाथ वापस लौट आई, आंखों में आंसू और दिल में भारी खामोशी लिए।

घर लौटकर वह मुसिब के पास बैठी और धीरे से उसके हाथ थामे, बोली, “हम अकेले रह गए हैं। मेरी खाला भी चली गई। अब कोई नहीं जो हमारी मदद करे।” कमरे में गहरी खामोशी छा गई। बाहर फिर कहीं फायरिंग हुई, दीवारें लरज उठीं। अलीना बस मुसिब के चेहरे को देखती रही, उसकी आंखों में आंसू थे, मगर उनमें अब डर नहीं था, सिर्फ एक इल्तजा थी।

बच्चियों की मासूम आवाजें कमरे के बाहर से आती रहीं। वे दरवाजे के पास खड़ी थीं, भूखी और बेखबर। उन्हें नहीं पता था कि उनकी मां पर क्या गुजर रही है। अलीना के दिल में एक लम्हे को सुकून सा आया। यही तो ममता है, हर दुख के बीच भी मां का दिल सिर्फ अपने बच्चों के लिए धड़कता है।

Biwi Apne Apahij Shohar Ki Aankhon Ke Samne Taliban Se Kya Karwati Rahi |  Afghanistan Ki Sachi Story

अगले दिन दरवाजे पर दस्तक हुई। डॉक्टर आया था। उसने बताया कि वह कुछ दिन के लिए शहर से बाहर जा रहा है और अलीना को ताकीद की कि वह मुसिब के जख्मों को रोज चेक करती रहे। अलीना ने सिर हिलाया, मगर जब वह मुसिब के पास गई तो जख्म वैसे ही थे, कोई फर्क नहीं आया था। उसने आहिस्ता से उसके चेहरे को छुआ और एक थकी हुई सांस ली, सोचते हुए, “क्या यह जिंदगी कभी ठीक होगी?”

तभी शहर में एक ऐलान हुआ कि जंग शुरू होने वाली है। जो कोई हथियार चाहता है, आकर ले जाए। अलीना का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह जान गई कि अब कुछ बड़ा होने वाला है। उसने अपनी बच्चियों को उठाकर पड़ोसियों के साथ करीबी बेसमेंट में छिपने चली गई। ऊपर धमाकों की गूंज सुनाई दे रही थी, जमीन हिल रही थी, दीवारें लरज रही थीं। औरतें बच्चों को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं, मगर बाहर की गोलियों की तड़तड़ाहट हर सदा को दबा रही थी।

कुछ देर बाद अचानक सब कुछ खामोश हो गया। अलीना ने आहिस्ता से सर उठाया, दरवाजा खोला और ऊपर जाने लगी। घर पहुंचकर उसने देखा कि मिट्टी, धूल और टूटे शीशे हर तरफ बिखरे हुए थे। वह सीधे मुसिब के पास गई, उसके चेहरे से मिट्टी साफ की, कपड़े झाड़े और आंखों में आई ड्रॉप्स डालने लगी। “अब भी तो मेरी सांस की वजह हो,” उसने आहिस्ता कहा।

इतने में बाहर से एक जोरदार आवाज आई। एक टैंक उसके घर के सामने आकर रुका और अगले ही लम्हे एक गोला चलाया। धमाके से खिड़की के शीशे चकनाचूर हो गए। अलीना सहम गई, उसका दिल कांप उठा। तभी उसे याद आया कि उसकी बेटी घबरा कर भागी थी। वह दरवाजे की तरफ लपकी और चीखती हुई अपनी बच्चियों के पास पहुंची।

उनके जाने के कुछ ही देर बाद इलाके में शोर मच गया। चंद तालिबानी सिपाही गलियों से गुजरते हुए अलीना के घर के पास आ गए। दरवाजा आधा खुला था। वे अंदर दाखिल हुए और मुसिब को जमीन पर लेटा हुआ देखा। उसका जिस्म बिल्कुल साखित था। एक सिपाही उसके करीब जाकर झुक कर देखने लगा तो अचानक रुक गया। उसने मुसिब के पास अफगान आर्मी का यूनिफॉर्म पड़ा हुआ देखा। वह बोला, “यह फौजी है मगर जख्मी लगता है। इसे छोड़ दो, हमें आगे बढ़ना है।” वे लोग जल्दी में वहां से निकल गए और कुछ देर बाद मोहल्ले में खामोशी छा गई।

जब बमबारी का शोर थमा तो बेसमेंट में छिपे लोग धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे। हर कोई अपने घर की तरफ दौड़ा। कोई दीवारों के मलबे से गुजर रहा था, कोई अपने प्यारे लोगों को पुकार रहा था। अलीना भी दौड़ती हुई घर पहुंची। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, उसे अजीब सा एहसास हुआ, जैसे कोई यहां आकर जा चुका हो। वह मुसिब के करीब गई। उसके हाथों को देखा तो चौंक गई। उसकी घड़ी और शादी की अंगूठी गायब थी। उसका दिल डूबने लगा। मगर जैसे ही उसने देखा कि मुसिब सांस ले रहा है, उसके लबों से बेख़्तियार शुक्र निकला। खुदा का करम है, तुम जिंदा हो।

लेकिन सुकून का यह लम्हा ज्यादा देर तक नहीं टिक सका। बाहर से किसी औरत की चीख सुनाई दी। अलीना भागती हुई निकली तो देखा कि उसकी हमसाया बूढ़ी औरत रो रही थी। दरख्त के नीचे पूरा खानदान लटका हुआ था। मर्द, औरत, बच्चे सब मारे जा चुके थे। अलीना के कदम जम गए। आंखों के सामने अंधेरा छा गया। बूढ़ी औरत के होश उड़ गए। वह पागलों की तरह चीखने लगी, अजीब-अजीब बातें करने लगी।

अलीना ने फौरन अपनी बच्चियों को सीने से लगा लिया। उसे यकीन हो गया कि अब यहां रहना मौत को गले लगाने के बराबर है। वह रात के अंधेरे में अपनी बच्चियों को लेकर अपनी खाला के पुराने घर पहुंची, मगर वहां भी दरवाजा बंद था। घर वीरान पड़ा था। उसके आंसू बहने लगे। वह दरवाजे के पास बैठ गई, थकी-टूटी, मायूस।

इतने में एक बूढ़ी औरत वहां से गुजरी। उसने अलीना की हालत देखी और तरस खा गई। “बेटी, यहां मत बैठो। यह जगह अब महफूज नहीं रही।” अलीना ने रो-रो कर कहा, “मुझे बस अपनी बच्चियों के लिए कोई पनाह चाहिए, कोई जगह जहां यह जिंदा रह सकें।” बूढ़ी औरत ने सोचकर अपनी झोली से एक पर्ची निकाली और उसके हाथ में दे दी, “यहां जाओ इस पते पर। वहां तुम्हें तुम्हारी खाला मिल जाएगी।”

अलीना ने पर्ची ली और थके कदमों से बताए हुए पते पर जा पहुंची। वह जगह एक छोटा सा होटल था। अंदर जाकर उसने देखा कि सामने उसकी खाला बैठी थी। वक्त ने उन्हें बदल दिया था। अब वह एक वेश्या बन चुकी थी। अलीना जानती थी, मगर फिर भी उनके कदमों में बैठ गई। “खाला, बस मेरी बच्चियों को अपने पास रख लीजिए। इनके लिए कोई ठिकाना नहीं बचा।” खाला ने खामोशी से उसे देखा, फिर आह भरी और बोली, “ठीक है बेटी, ले आओ।”

अलीना के चेहरे पर थोड़ा सुकून आया। वह जानती थी कि दुनिया में अगर कोई उसका ख्याल रख सकता है तो वह यही औरत है। वही जिसने अपनी इज्जत खोकर भी दूसरों की जिंदगी संवारने का हौसला रखा हुआ था।

उस दिन अलीना ने पहली बार अपनी खाला से सीधा सवाल किया, “खाला, आपने यह रास्ता क्यों चुना? आपने इस काम को क्यों इख्तियार किया?” खाला ने गहरी सांस ली। आंखों में पुरानी यादों की थकन थी। आहिस्ता आवाज में बोली, “बेटी, हर औरत के लिए उसकी इज्जत सबसे कीमती गहना होती है। मगर जब वही इज्जत जवानी में कोई छीन ले तो औरत के पास बचता ही क्या है? कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ। शादी के बाद मुझे बच्चा नहीं हुआ और इसी बात पर मेरे ससुराल वालों ने मुझ पर जुल्म शुरू कर दिया। रोज मारपीट, गाली-गलौज, जिल्लत। मेरा शौहर सब जानता था, मगर वह भी चुप रहा। वो कभी मेरे लिए ढाल नहीं बना। घर वालों को लगता था कि अगर औरत मां नहीं बन सकती तो उसे जीने का कोई हक नहीं।”

खाला की आवाज भर गई। “एक दिन जब मेरे ससुर ने सारी हद पार कर दी तो मैंने अपना बचाव किया। वो मर गया। मैं घर से भाग आई। उस दिन के बाद जिंदगी ने मुझसे सब कुछ छीन लिया। मैंने वो रास्ता अपनाया जो औरत कभी सोच भी नहीं सकती। मगर जिंदा रहने के लिए कुछ तो करना था। यह शहर किसी को काम करने तक नहीं देता। लोग कहते हैं मैं वेश्या हूं, मगर असल में मैं एक टूटी हुई औरत हूं जिसे जमाने ने धकेल दिया।”

अलीना खामोशी से सुनती रही। खाला की बातें जैसे उसके दिल के अंदर उतरती जा रही थीं। जाने क्यों हर लफ्ज़ उसे अपना सा लग रहा था। शायद इसलिए कि उसकी अपनी जिंदगी भी किसी और के फैसलों का नतीजा थी।

जब अलीना खाला के पास बैठी तो उसने पहली बार दिल की सारी बात कह दी। “खाला, आप जानती हैं, उसने कभी मेरी खूबसूरती की तारीफ नहीं की। कभी मुझे वह वक्त नहीं दिया जिसकी मैं हकदार थी। उसके लिए हमेशा उसका काम ज्यादा जरूरी रहा और उसी काम ने उसे मुझसे छीन लिया। उसकी आवाज कांप रही थी। मैंने तो उसकी तस्वीर से शादी की थी, उसकी जिंदगी में मेरे लिए जगह ही कहां थी। जब भी घर आया बस जबरदस्ती की, कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि मैं उसकी बीवी हूं, सिर्फ एक जिम्मेदारी हूं।”

अलीना ने आहिस्ता कहा, “शायद सब मर्द एक जैसे होते हैं। मेरे बाप भी ऐसे ही थे। शराब पीकर आते, मेरी मां को मारते और फिर जबरदस्ती करते। और उसने भी वही किया मेरे साथ।” उसकी आंखों से आंसू बह निकले।

“कभी-कभी सोचती हूं, अगर वो उस दिन मर गया होता तो शायद मैं इस जल्लत भरी जिंदगी से आजाद हो जाती। कहीं किसी महफूज जगह किसी और के साथ नई जिंदगी शुरू कर लेती। मगर अब बहुत देर हो चुकी है। सब जा चुके हैं क्योंकि सब जानते थे कि यह जगह अच्छी नहीं।”

अलीना ने अपनी खाला की तरफ देखकर आहिस्ता कहा, “ऐसा नहीं है कि उसे मालूम नहीं था, मगर उसने ना मेरे बारे में कभी सोचा ना अपनी बेटियों के बारे में।” उसके लहजे में दुख और गुस्सा दोनों शामिल थे।

उसकी बातें सुनकर खाला ने एक दिन उसे एक पुरानी कहानी सुनाई। कहने लगी, “सदियों पहले एक पत्थर हुआ करता था जिसे संग सबूर कहा जाता था। लोग उसे अपने पास रखते, उससे अपने दिल की वो बातें कहते जो किसी से नहीं कही जा सकतीं। और जब उनके दिल का सारा बोझ खत्म हो जाता तो वह पत्थर खुद ही टूट कर बिखर जाता था।”

अलीना यह सुनकर चुप हो गई, मगर उसके चेहरे पर जैसे कोई नया एहसास उभर आया। उसने दिल ही दिल में सोचा, “मेरे लिए तो मेरा संग सबूर मेरा शौहर ही है। मैं अपनी सारी बातें उसी से कहती हूं, वो चाहे सुन रहा हो या नहीं।”

वह घर लौटी तो मुसिब के जिस्म को साफ करने लगी। उसने देखा कि वह खुद को भी संभाल नहीं पा रहा। उसने नरमी से कपड़ा बदला, जख्मों पर हाथ रखा और आहिस्ता कहा, “मुझे आज भी अपनी शादी की वह पहली रात याद है। तुमने मुझसे एक बात तक नहीं की, बस वह काम किया जिसके लिए मैं तैयार नहीं थी। मैंने मना किया तो तुमने मारा भी। मगर उसके बाद मैंने कभी कुछ नहीं कहा। तुम्हारी मां चाहती थी कि मैं जल्दी से बच्चा पैदा करूं, इसलिए डरती रही कि अगर ऐसा न हुआ तो वो ना जाने मेरे साथ क्या करेंगे। लेकिन तुमने कभी वो प्यार नहीं दिया जो मैं चाहती थी, जो एक औरत चाहती है।”

इतने में बाहर से शोर सुनाई दिया। अलीना खिड़की की तरफ गई तो देखा कि पड़ोसी लोग किसी की लाश दफना रहे थे। फिजा में उदासी और खामोशी फैली थी। वह कुछ देर चुप खड़ी रही, फिर वापस आई तो दरवाजे पर दस्तक हुई। डॉक्टर आया था मुसिब को देखने के लिए।

अलीना ने दरवाजा आहिस्ता से खोला मगर फौरन कहा, “डॉक्टर साहब, आप चले जाएं। मेरे पास अब पैसे नहीं हैं। मैं फस कहां से दूं?” डॉक्टर कुछ लम्हे चुप रहा, फिर आहिस्ता सर झुका कर चला गया। कमरे में फिर वही सन्नाटा लौट आया। सिर्फ अलीना, मुसिब और उनके दरमियान फैली एक लंबी अधूरी गुफ्तगू।

उस रात अलीना देर तक जागती रही। उसने मुसिब के करीब बैठकर आहिस्ता कहा, “मेरे दिल में कुछ और बातें हैं जो मैं कल तुम्हें बताऊंगी।” यह कहकर वह उसके पास ही लेट गई और आंखें बंद कर ली।

अगली सुबह अचानक दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई। बाहर चंद तालिबानी सिपाही खड़े थे, जिनमें एक उनका कमांडर भी था। अलीना के दिल में खौफ की लहर दौड़ गई। उसे लगा वे लोग उसके साथ कुछ गलत करने आए हैं। उसने घबराकर झूठ कहा, “मैं एक वेश्या हूं, यहां अकेली रहती हूं।” कमांडर ने नफरत से उसके चेहरे की तरफ देखा, जमीन पर थूका और बोला, “ना जाने कौन सा गुनाह किया था जो मुझे इस नापाक घर में आना पड़ा।” यह कहकर वह वापस चला गया।

अलीना ने सुकून की सांस ली, मगर उसका डर अभी कम नहीं हुआ था। वह जानती थी कि यह खामोशी ज्यादा देर नहीं रहेगी। उसने एहतियातन एक छोटा सा खंजर अपने लिबास में छिपा लिया ताकि अगर कोई जबरदस्ती करे तो वह अपनी हिफाजत कर सके।

शाम के करीब वही सिपाही दोबारा आया, मगर इस बार कमांडर के बिना। उसकी आंखों में कुछ अजीब सी भूख थी। अलीना ने कहा, “तुम गलत समझ रहे हो, मैं वो औरत नहीं हूं जो तुम समझते हो।” मगर वह नहीं रुका। बस चंद नोट उसके सामने फेंके और जुल्म करके चला गया।

अलीना बेहिस हो गई, जैसे सारी आवाजें बंद हो गई हों। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब हुआ भी या वह कोई बुरा ख्वाब था। फिर वह धीरे-धीरे उठी, खुद को साफ किया और मुसिब के पास जाकर आहिस्ता से बोली, “मैं अपनी हिफाजत नहीं कर सकी, माफ कर दो।”

उसी लम्हे उसकी नजर फर्श पर पड़े कुछ नोटों पर गई। वे पैसे शायद उस सिपाही के गिराए हुए थे। कुछ देर वह उन्हें देखती रही, फिर आंसू पोंछे और दिल में कहा, “अब यह पैसे गुनाह के नहीं, मेरी बच्चियों के हक के हैं।”

वह बाजार गई, थोड़ा सा खाना खरीदा, दवा ली और पहली बार कई दिनों बाद घर में चूल्हा जलाया।

चंद दिन बाद वही लड़का दोबारा आया। इस बार वह अकेला था और उसके हाथ में फिर पैसों का एक मुट्ठा था। अलीना कुछ देर खामोश रही, फिर दरवाजा खोल दिया। शायद हालात ने उसकी सोच बदल दी थी। उसने उसे अंदर आने दिया।

वे दोनों कुछ देर चुप बैठे। फिर जो होना था हो गया। बाद में वह बाहर निकली तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी खामोश मुस्कुराहट थी।

वह मुसिब के पास गई और हल्की हंसी के साथ बोली, “आज वो लड़का आया था। वो चाहता है कि मैं ठीक रहूं। उसकी आंखों में शर्म थी, लेकिन उसके दिल में बुराई नहीं। शायद वो मुझसे ज्यादा इंसान है, क्योंकि जबरदस्ती तो मेरे अपने शौहर ने की थी, उसने नहीं।”

उसके चेहरे पर पहली बार एक नरम हंसी उभरी। एक ऐसी हंसी जिसमें दुख भी था मगर किसी अजीब सी आजादी का एहसास भी।

अब यह सिलसिला कुछ दिनों तक यूं ही चलता रहा। वह लड़का बार-बार आता और अलीना हर बार उसके साथ अंदर चली जाती। हर बार वह वापस आकर मुसिब से सब कुछ कह देती, जैसे अब वह उसके सामने कोई पर्दा नहीं रखना चाहती थी।

शायद आपको लगे कि अब कहानी इसी रास्ते पर आगे बढ़ेगी, मगर नहीं। यहां से सब कुछ बदलने वाला था।

एक दिन वह लड़का फिर आया, मगर इस बार उसके चेहरे पर कोई ख्वाहिश नहीं थी। उसने कहा, “मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं करना चाहता, बस थोड़ी देर बैठना चाहता हूं।” अलीना ने कुछ लम्हे उसे देखा, फिर खामोशी से दरवाजा खोल दिया। दोनों कमरे में बैठ गए।

बातों-बातों में अलीना को पता चला कि उसका नाम हुसैन है। वक्त गुजरता गया और उनके दरमियान खामोशी किसी अजीब एहसास में बदलने लगी। अलीना के दिल में एक नरम सी कैफियत जागने लगी, शायद वही जो उसने जिंदगी में कभी महसूस नहीं की थी।

हुसैन ने अपनी शर्ट के बटन खोले तो अलीना ने देखा कि उसके जिस्म पर पुराने जख्मों के निशान थे। उसने हैरान होकर पूछा, “यह कैसे लगे?” हुसैन ने आहिस्ता जवाब दिया, “मेरे मां-बाप मारे गए थे। मैं तब बहुत छोटा था। कमांडर ने मुझे पाला, मगर हर रात वो मेरे साथ जुल्म करता। यह सब निशान उसी के हैं।” उसकी आवाज कांप गई, “आज तक किसी ने मुझे प्यार नहीं दिया।”

अलीना खामोश रही। उसके दिल में एक चुभन सी उठी, जैसे उसने अपने अंदर के दर्द में एक और दर्द महसूस किया हो।

अगले दिन सुबह जब वह उठी तो खिड़की के पास एक थैला रखा था। उसमें खाने का सामान और एक छोटी सी सोने की चैन थी। अलीना ने जैसे ही उसे देखा, लबों पर एक हल्की मुस्कुराहट आ गई। वह जान गई कि यह हुसैन की तरफ से था। शायद पहली बार किसी मर्द ने उसे कुछ दिया था बिना किसी ख्वाहिश के।

वह चैन हाथ में लिए बैठी रही। उसके चेहरे पर वह मुस्कुराहट थी जो बरसों बाद किसी मर्द की वजह से आई थी। मगर उसी लम्हे उसके दिल में शर्मिंदगी भी उभरी। वह आसमान की तरफ देखकर बोली, “ए खुदा, यह क्या हो रहा है मुझ पर? मुझे माफ कर दे।”

उसे अब समझ आने लगा था कि औरत को खुश रखने के लिए जबरदस्ती या ताकत नहीं, सिर्फ एहसास चाहिए। वह प्यार जो उसके शौहर ने कभी नहीं दिया, वह एहसास जो कभी नसीब न हुआ।

वह हुसैन की नरम बातों में मिलने लगी। उसने सब कुछ मुसिब को भी बताया। “वो लड़का बहुत अलग है। उसके कमांडर ने उस पर जुल्म किया, मगर फिर भी वह मोहब्बत जानता है। उसने मुझे पहली बार एहसास दिलाया कि मैं जिंदा हूं, कि मैं भी मोहब्बत के काबिल हूं।”

उस दिन अलीना ने साफ-सुथरे कपड़े पहने, अपने बाल संवारे और चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट रखी। बरसों बाद वह अपने अंदर एक नई औरत को महसूस कर रही थी। एक औरत जो पहली बार अपने वजूद की कदर जानने लगी थी।

उस दिन अलीना के दिल में एक बोझ था। हुसैन के आने से पहले वह मुसिब को एक आखिरी राज बताना चाहती थी। वो राज जो बरसों से उसके सीने में दबे हुए थे।

वह आहिस्ता से उसके पास बैठी और बोली, “जब मैं मां बनने वाली थी तो पहली बार मैंने उस बच्चे को गवाने की बहुत कोशिश की क्योंकि मैं उसके लिए तैयार नहीं थी, मगर ऐसा न कर सकी। फिर जब दूसरा बच्चा हुआ तो मुझे खुद नहीं मालूम कि वह किसका है। तब मुझे एहसास हुआ कि कमी मुझमें नहीं, तुम में थी। इसीलिए मैं अपनी खाला के पास गई। उन्होंने मेरा साथ दिया, वरना तुम्हारी मां तो मुझे घर से निकाल देती।”

उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे। वह मजीद कुछ कहना चाहती थी कि अचानक मुसिब के जिस्म में हल्की सी हरकत हुई। अलीना चौंक गई। वह होश में आ चुका था और उसने सब कुछ सुन लिया था।

उसके चेहरे पर गुस्सा था। वह गले की तरफ हाथ बढ़ाता है। अलीना का दम घुटने लगा। उसने बचने की कोशिश की, मगर मुसिब की गिरफ्त सख्त थी। चंद लम्हों की जद्दोजहद के बाद उसने पास रखा हुआ चाकू उठाया और एक झटके में उसके सीने में उतार दिया।

खून का फवफारा छूटा। मुसिब की आंखें फैल गईं और वह खामोश हो गया। अलीना के हाथ कांप रहे थे। वह जमीन पर बैठ गई। आंखों से आंसू बहने लगे। उसने आहिस्ता कहा, “तो यही अंजाम था। तुम ही मेरा संग सबूर थे। तुमने मेरे सारे राज सुने, सब दुख जजब किए और फिर खुद टूट गए।”

उसने अपने शौहर के चेहरे को छुआ और आंखें बंद कर दी। शायद वह उसके साथ अपनी सारी तकलीफें दफन कर देना चाहती थी।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला। हुसैन अंदर आया। जैसे ही उसने मंजर देखा, वह रुक गया। उसकी आंखों में हैरत और दुख दोनों थे। उसने अलीना को देखा जो अब खामोश बैठी थी और मुसिब बेजान पड़ा था। हुसैन ने कुछ नहीं कहा। बस आहिस्ता से सर झुका कर समझ गया कि अब यह औरत आजाद हो चुकी है, अपने गुनाहों से भी, अपने दुखों से भी।

अलीना ने एक लंबी सांस ली और धीरे से कहा, “अब मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं। मैं खुद अपनी हिफाजत कर सकती हूं।”

उसके चेहरे पर पहली बार एक सुकून भरी मुस्कुराहट थी। एक ऐसी औरत की मुस्कुराहट जो अपने दुखों से गुजर कर आखिरकार खुद को पहचान लेती है।

यह कहानी सिर्फ अलीना की नहीं थी बल्कि हर उस औरत की थी जो जुल्म सहते-सहते आखिर खुद के लिए खड़ी होना सीख लेती है। यह पैगाम था उन सब मर्दों के लिए जो समझते हैं कि औरत कमजोर है। नहीं, अगर आप उसे मोहब्बत देंगे तो वह आपको दस गुना ज्यादा प्यार देगी क्योंकि औरत के दिल की गहराई की कोई हद नहीं होती।