वाराणसी की चायवाली राधिका और करोड़पति किशन की कहानी

सुबह का वक्त था। वाराणसी की 80 घाट वाली सड़क पर भीड़भाड़ के बीच एक छोटी सी चाय की दुकान थी। टीन की छत, लकड़ी की बेंचें और चूल्हे पर उबलती केतली से उठती भाप। उसी दुकान में खड़ी थी राधिका—साधारण साड़ी, माथे पर बिंदी, चेहरे पर थकान की लकीरें, लेकिन आंखों में दृढ़ता और आत्मसम्मान।

राधिका के हाथ लगातार चलते थे—चाय बनाना, कुल्हड़ सजाना, ग्राहकों को चाय देना। तभी सड़क पर एक काली Mercedes रेड सिग्नल पर आकर रुकी। गाड़ी में बैठा था किशन—आज करोड़पति बिजनेसमैन, लाखों की गाड़ियां, करोड़ों का बिजनेस—but उस वक्त उसकी आंखें गहरी सोच में डूबी थीं।

किशन की नजर अचानक चाय की दुकान पर गई। जैसे ही उसकी आंखें राधिका पर पड़ीं, उसका दिल जोर से धड़क उठा। हंठ कांप गए, और उसने बुदबुदाया—”राधिका…”
सिग्नल हरा हुआ, बाकी गाड़ियां आगे बढ़ गईं। लेकिन किशन ने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी यहीं साइड में लगाओ।”
किशन उतरा, सूट और चमकते जूतों में उसकी पहचान साफ थी, पर चेहरा तनाव और बेचैनी से भरा था। उसके कदम धीरे-धीरे चाय की दुकान की ओर बढ़े।

राधिका ने सिर उठाया। सामने किशन को देख उसकी आंखें फैल गईं, चेहरा सन रह गया। बरसों बाद वही चेहरा था।
किशन ने धीमे स्वर में कहा, “हां राधिका, मैं ही हूं। सोचा नहीं था किस्मत मुझे यहां ले आएगी।”
राधिका ने आवाज को संभालते हुए बोली, “चाय बना दूं?”
किशन ने सिर हिलाया। राधिका ने चाय निकाली, कुल्हड़ में डालकर उसके सामने रख दी। किशन ने कांपते हाथों से कुल्हड़ थामा। जैसे ही पहला घूंट गले से उतरा, उसके दिल में पुरानी यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।

यादों की गलियां

वाराणसी का डीएवी कॉलेज, बड़ा सा कैंपस, क्लासरूम, नया सेशन… भीड़ में किशन की नजर सिर्फ राधिका पर ठहर गई थी।
राधिका तेज-तेज कदमों से क्लास जा रही थी, किताबें हाथ में। अचानक किताबें गिर गईं, सब आगे बढ़ गए, कोई रुका नहीं। किशन आगे झुका, किताबें उठाई, मुस्कुराकर कहा—”यह आपकी है।”
राधिका ने नजर उठाई, आंखों में झिझक, होठों पर हल्की मुस्कान—”थैंक यू।”

धीरे-धीरे दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी लाइब्रेरी, कभी गलियारे, कभी कैंटीन। एक बार कैंटीन में राधिका अकेली बैठी थी, किशन पास आकर बोला—”अगर बुरा ना मानो, साथ बैठ सकता हूं?”
राधिका सिर झुका गई, मुस्कान आ गई। उस दिन से दोनों अक्सर साथ चाय पीने लगे।

राधिका पढ़ाई में अच्छी थी, लेकिन मंच पर जाने से डरती थी। एक बार कॉलेज में डिबेट प्रतियोगिता हुई, नाम लिखा गया। मंच पर कदम रखते ही उसकी आवाज कांपने लगी। लोग हंसने लगे। तभी पीछे से किशन ने ताली बजाई—”तुम बोल सकती हो राधिका, मुझे पता है तुम सबसे अच्छी हो।”
वो शब्द राधिका के लिए जादू बन गए। उसने बोलना शुरू किया, पूरी ऑडियंस खामोश हो गई। भाषण खत्म हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। वह प्रतियोगिता जीत गई। मंच से उतरते समय सबसे पहले किशन की तरफ देखा। उसकी आंखों में गर्व था।

अब उनकी बातें सपनों तक पहुंच गई थीं। गंगा किनारे बैठना आदत बन गई। राधिका अक्सर पूछती—”किशन, तुम्हारे सपने क्या हैं?”
किशन आसमान की तरफ देखता—”सपने बड़े हैं, लेकिन अगर तुम साथ हो तो हर सपना पूरा कर लूंगा।”
धीरे-धीरे दोस्ती मोहब्बत में बदल गई, मगर कभी इजहार नहीं किया। सिर्फ आंखों से बातें, मुस्कानों से एहसास।

जिंदगी का मोड़

किशन का परिवार गरीब था। पिता ने कहा—अब पढ़ाई छोड़, कमाने जा। किशन बेबस था। एक शाम गंगा किनारे उसने राधिका से कहा—”अगर कभी मैं दूर चला जाऊं, तो याद रखना लौटकर जरूर आऊंगा।”
राधिका की आंखें भर आईं। पहली बार उसका हाथ थामा—”कभी मत कहना कि हमारी राहें अलग हो सकती हैं। मैं इंतजार करूंगी।”

किस्मत ने बेरहम मोड़ लिया। कुछ महीनों बाद राधिका की शादी गांव में कर दी गई। किशन दूसरे शहर चला गया। 10 साल बीत गए।
अब किशन की चाय खत्म हो चुकी थी। उसने नजरें उठाई, सामने वही राधिका थी—अब कॉलेज की लड़की नहीं, बल्कि चाय बेचती मजबूत औरत।

मां का आंचल

तभी दुकान के भीतर से मासूम आवाज आई—”मां…”
किशन का दिल धक से रह गया। आठ-नौ साल का बच्चा, किताबों से भरा बैग, मासूम मुस्कान।
बच्चा दौड़कर राधिका के पास आया—”मां, स्कूल देर हो रही है। चलो ना।”
किशन ने पूछा—”राधिका, यह तुम्हारा बेटा है?”
राधिका ने बेटे के सिर पर हाथ फेरा—”हां, यही मेरी दुनिया है।”

किशन की आंखों में मोहब्बत, जुदाई और दर्द एक साथ उमड़ आए।
“राधिका, तुम्हें यह सब अकेले क्यों झेलना पड़ा? शादी तो हुई थी ना?”
राधिका ने गहरी सांस ली—”हां, शादी हुई थी। लेकिन पति शराबी था। घर में मारपीट, अपमान ही मिला। बहुत सहा, सिर्फ बेटे के लिए। पर जब लगा मासूमियत भी जहर में डूब जाएगी, तब सब छोड़कर शहर चली आई। दूसरी शादी का सहारा ले सकती थी, मगर नहीं चाहती थी कि मेरा बच्चा सौतेलेपन की चोट खाए। इसलिए इस चूल्हे को ही अपनी इज्जत बना लिया।”

किशन का गला भर आया—”राधिका, तुमने यह सब अकेले झेला और मैं कहीं और दुनिया जीतने में लगा रहा।”
राधिका की आंखों में ना शिकायत थी, ना इल्जाम—बस एक थकी हुई सच्चाई।
“किशन, जिंदगी हमारी चाहतों के हिसाब से नहीं चलती। मैं अपने बेटे के लिए जी रही हूं। बस इतनी चाहती हूं कि मेरा बच्चा पढ़े-लिखे और कभी किसी के सामने हाथ ना फैलाए।”

बच्चा मासूमियत से किशन की ओर देख रहा था—”क्या नाम है तुम्हारा?”
“आरव। मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा, ताकि मम्मी को कभी तकलीफ ना हो।”
यह सुनकर किशन की आंखों से आंसू छलक पड़े।

फैसले की घड़ी

किशन बोला—”राधिका, तुम्हें अकेले यह सब और नहीं सहना चाहिए। अगर इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए…”
राधिका की आंखों में शंका और डर।
“किशन, तुम्हारे शब्द मीठे हैं, पर जिंदगी इतनी आसान नहीं है। मैं अपने बेटे के लिए जी रही हूं। अगर समाज ने सवाल उठाए, अगर उसने पूछा कि मम्मी ने दोबारा क्यों शादी की—क्या तुम्हें यकीन है कि वह सौतेलेपन की छाया से बच पाएगा?”

किशन ने कहा—”पर मैं तो उसका बाप बनना चाहता हूं, दिल से अपनाना चाहता हूं। क्या यह सौतेलापन होगा?”
राधिका रो पड़ी—”तुम्हारी नियत पर शक नहीं, पर दुनिया की नियत पर है। लोग ताने देंगे, कहेंगे करोड़पति से शादी कर ली ताकि आराम पा सके। मैं अपने बेटे की नजरों में कभी गिरना नहीं चाहती।”

कुछ देर दोनों खामोश रहे।
आरव मां का आंचल पकड़कर बोला—”मम्मी स्कूल जाना है ना?”
राधिका ने उसके बालों को सहलाया, फिर किशन की तरफ देखा—”तुम्हारी बातें मीठी हैं, पर मेरा सच बहुत कड़वा है। शायद इस जनम में हमारी मोहब्बत सिर्फ यादों में ही पूरी होगी।”

किशन की आंखें भीग गईं, उसने गहरी सांस ली—”अगर इस जन्म में भी हमारी मोहब्बत अधूरी रही तो दुनिया जीते जी हमें मार देगी। मैं चाहता हूं कि समाज के सामने ही तुम्हारा और आरव का हाथ थाम लूं, ताकि सबको दिखे कि मैं तुम दोनों का अपनाया हूं।”

राधिका चौंक गई—”किशन, यह इतना आसान नहीं है।”
किशन ने उसका हाथ पकड़ लिया—”आसान नहीं है, लेकिन अगर डरते रहे तो कभी जी ही नहीं पाएंगे। आज जब किस्मत ने हमें फिर मिलाया है, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।”

भीड़ में खड़े लोग देख रहे थे, कोई फुसफुसा रहा था, कोई मुस्कुरा रहा था।
राधिका का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया—”लोग क्या सोचेंगे?”
किशन ने दृढ़ स्वर में कहा—”लोग कल भी बोलते थे, आज भी बोलेंगे, कल भी बोलेंगे। लेकिन हमारी जिंदगी उनकी सोच से नहीं चलेगी। मैं चाहता हूं कि आरव जब बड़ा हो तो गर्व से कहे—यह मेरे पापा हैं, और तुम कह सको—यह मेरे पति हैं।”

राधिका की आंखें भर आईं। उसने कांपते होठों से कहा—”अगर तुम सच में इतना साहस रखते हो, तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी। पर याद रखना, यह सिर्फ मोहब्बत की नहीं, इज्जत की लड़ाई भी होगी।”

किशन ने मुस्कान दी, हाथ आगे बढ़ाया—”मैं वादा करता हूं, अब कोई जुदाई नहीं होगी।”
राधिका ने हिचकिचाकर उसका हाथ थाम लिया। आरव मासूमियत से दोनों को देख रहा था। उसकी आंखों में खुशी की चमक थी। जैसे उसने बिना समझे ही सब कुछ समझ लिया हो।

सड़क किनारे उस छोटी सी चाय की दुकान पर लोग ताली बजाने लगे—”सच में, यह मोहब्बत की जीत है।”
बरसों से बिछड़े दो दिल फिर से मिल गए थे। और इस बार सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उस छोटे मासूम के लिए भी, जिसकी आंखों में अब पूरा परिवार होने की चमक थी।