सड़क किनारे भीख मांगने वाले बच्चे ने कार की ठोकर से करोड़पति को बचाया… फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी

यह कहानी है हैदराबाद की, जहाँ की भीड़भाड़ भरी गलियों में हर रोज लाखों लोग अपने-अपने कामों में भागते दौड़ते रहते हैं। वहीं एक फुटपाथ के किनारे एक मासूम बच्चा बैठा हुआ था। उस बच्चे का नाम था आर्यन। उम्र मुश्किल से 8 साल रही होगी, लेकिन उसके चेहरे पर बचपन की मासूमियत से ज्यादा भूख और बेबसी की लकीरें साफ दिखाई देती थीं। आर्यन कभी अपने हाथ फैलाकर राहगीरों से कुछ सिक्के मांगता तो कभी चुपचाप उन लोगों को देखता जो कारों में बैठकर आराम से निकल जाते और जिनके चेहरों पर उसकी मौजूदगी का कोई असर नहीं होता।

आर्यन का अतीत

आर्यन के छोटे-छोटे पैर अक्सर नंगे रहते, धूल और मिट्टी से सने हुए। उसकी फटी हुई शर्ट उसके हालात का साफ आईना थी। लेकिन दोस्तों, जिंदगी आर्यन के लिए हमेशा से ऐसी नहीं थी। वह भी कभी अपने मां-बाप के साथ एक छोटे से किराए के कमरे में रहता था। उसके पिता, सत्यपाल, मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते थे, और उसकी मां, सुनीता, कपड़े सिलाई करके घर में थोड़ी बहुत मदद कर देती थीं। गरीब जरूर थे, लेकिन अपने बेटे को लेकर उनके सपने बहुत बड़े थे। सत्यपाल हमेशा कहा करते थे, “आर्यन, पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। हमारा नाम रोशन करेगा।”

लेकिन किस्मत को शायद यह मंजूर नहीं था। एक रात जब सत्यपाल और सुनीता मजदूरी के काम से लौट रहे थे, तो तेज रफ्तार से आती एक ट्रक ने उन्हें ऐसी ठोकर मारी कि दोनों ने वहीं सड़क पर दम तोड़ दिया। आर्यन, जो उस समय महज 5 साल का था, अचानक अनाथ हो गया। पड़ोसियों ने कुछ दिन तक सहारा दिया, उसके खाने-पीने का इंतजाम किया, लेकिन धीरे-धीरे सब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। कोई कहता, “हम कब तक इस बच्चे को संभालेंगे,” तो कोई ताने देता, “इसका क्यों बोझ उठाएं?” और फिर एक दिन आर्यन सचमुच अकेला रह गया।

फुटपाथ पर जिंदगी

उस दिन के बाद से आर्यन की जिंदगी फुटपाथ पर आ गई। वो वहीं सोता, वहीं जागता और पेट की आग बुझाने के लिए राहगीरों से भीख मांगता। धीरे-धीरे वह दूसरे भिखारी बच्चों के साथ शामिल हो गया। उनके साथ मिलकर सड़क किनारे गाड़ियों के पास जाकर हाथ फैलाना, मंदिरों के बाहर बैठना और कभी-कभी कूड़े के ढेर से खाना तलाशना यही उसकी दिनचर्या बन गई। आर्यन की आंखों ने कम उम्र में ही दुनिया की बेरहम सच्चाई देख ली थी।

समय बीतता गया। देखते ही देखते 3 साल गुजर गए। अब आर्यन 8 साल का हो चुका था, लेकिन उसका बचपन भूख और तिरस्कार में ही बीता। एक दिन जब वह भूखे पेट कुछ खाने मिलने की उम्मीद में सड़क किनारे बैठा था, उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी। वो आदमी अच्छे खासे कपड़े पहने हुए था, कान पर फोन लगाए तेज-तेज बात करता हुआ सड़क किनारे टहल रहा था। उसका नाम था अरविंद, और वह शहर के नामी उद्योगपतियों में से एक था। मगर उस समय वह अपने फोन में इतना व्यस्त था कि उसे सड़क पर आने जाने वाले वाहनों का कोई ध्यान नहीं था।

खतरनाक पल

आर्यन पहले तो बस उसे देखता रहा, लेकिन तभी उसने देखा कि पीछे से एक कार तेज रफ्तार में उसी ओर बढ़ रही है। कार के हॉर्न बजाने की आवाज तो आई, लेकिन अरविंद अपने फोन की बहस में उलझा रहा। आर्यन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसके मन में तुरंत वही दृश्य घूम गया जब उसके माता-पिता को सड़क पर वाहन ने कुचल दिया था। उसकी आंखों से सामने की तस्वीर धुंधली होने लगी। जैसे अतीत और वर्तमान एक हो गए हों। उसने तुरंत खड़े होकर जोर से आवाज लगाई, “साहब, हट जाइए! गाड़ी आ रही है!”

लेकिन अरविंद ने उसकी आवाज सुनी ही नहीं। वह अपने मोबाइल में इतना मशगूल था कि उसे कुछ समझ नहीं आया। तभी अचानक हिम्मत जुटाकर आर्यन दौड़ा और उसने अरविंद को जोर से धक्का दिया। अरविंद सड़क से एकदम किनारे गिर पड़ा, और अगले ही पल तेज रफ्तार कार वहां से निकल गई। अगर आर्यन ने एक पल भी देर की होती, तो शायद अरविंद की जिंदगी वहीं खत्म हो जाती।

एक नई शुरुआत

अरविंद जमीन पर गिरा। उसके फोन के टुकड़े हो गए और हाथ में हल्की सी चोट आई। वह गुस्से से उठा और उस बच्चे को देखने लगा जिसने उसे धक्का दिया था। लेकिन जैसे ही उसने पीछे पलट कर देखा और समझा कि कार कितनी करीब से गुजर गई थी, उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके चेहरे का गुस्सा कृतज्ञता में बदल गया। उसने गहरी सांस ली और पहली बार उस बच्चे को गौर से देखा। धूल-मिट्टी से सना चेहरा, फटे पुराने कपड़े, आंखों में मासूमियत और दर्द।

अरविंद ने पास आकर कहा, “बेटा, रुको! भागो मत।” आर्यन चौकन्ना हो गया। उसके कानों में पहली बार किसी ने “बेटा” कहकर आवाज दी थी। उसके लिए यह शब्द किसी खजाने से कम नहीं थे। वो धीरे-धीरे रुक गया और कांपती आंखों से अरविंद को देखने लगा।

अरविंद ने पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे पास की बेंच पर बैठा लिया। वह बोला, “तुमने मुझे क्यों बचाया? तुम तो चुपचाप खड़े होकर देख भी सकते थे।” आर्यन की आंखों में आंसू आ गए। उसने धीमी आवाज में कहा, “साहब, मेरे माता-पिता भी एक सड़क हादसे में मारे गए थे। उस दिन से मुझे सड़कें बहुत डराती हैं। मैं नहीं चाहता था कि आपके बच्चों को भी वही दर्द मिले जो मुझे मिला।”

अजीब सी ममता

अरविंद स्तब्ध रह गया। एक छोटा सा बच्चा जो खुद भूखा और बेघर है, फिर भी इंसानियत के लिए इतना बड़ा काम कर गया। उसके दिल में पहली बार किसी अजनबी बच्चे के लिए अजीब सी ममता उमड़ आई। उसने कहा, “बेटा, क्या तुम्हें भूख लगी है?” आर्यन ने सिर झुका कर हां में कहा। अरविंद पास की दुकान से खाना लाया और उसके सामने रख दिया।

आर्यन ने कांपते हाथों से खाना उठाया और बड़े ध्यान से एक-एक निवाला ऐसे खाया जैसे हर दाना उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा हो। अरविंद ने जब यह देखा तो उसके दिल में अजीब सी कसक उठी। उसने अपने जीवन में बहुतों को दावतें दी थीं, महंगे रेस्टोरेंट में लाखों रुपए खर्च करके लोगों को खिलाया था। लेकिन वहां किसी ने इस तरह तृप्त होकर खाना नहीं खाया था, जैसे इस छोटे बच्चे ने खाया।

नई जिम्मेदारी

अरविंद सोच रहा था, जिस बच्चे की आंखों में इतनी कृतज्ञता है, जो इतने कष्ट सहकर भी किसी और की जान बचा सकता है, क्या मैं इसे फिर से सड़क पर छोड़ दूं? नहीं, यह बच्चा अब मेरी जिम्मेदारी है। खाना खत्म करने के बाद जब आर्यन ने झिझकते हुए कहा, “साहब, अब मुझे जाना होगा। शाम के खाने का इंतजाम करना है,” तो अरविंद अचानक रुक गया।

उसने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाले और उसकी हथेली पर रखते हुए मुस्कुरा कर कहा, “आज का इंतजाम तो हो गया बेटा। अब तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें कहीं और ले जाना चाहता हूं।” आर्यन ने पहले तो डरते-डरते सिर झुका लिया। उसके मन में बीते धोखों की तस्वीरें तैर गईं। कई बार लोगों ने उसे बहलाया था और बाद में उसे दुत्कार कर भगा दिया था।

लेकिन अरविंद की आवाज और आंखों में उसे एक अजीब सी सच्चाई झलकती नजर आई। उसने मन ही मन सोचा, “शायद यह वही मौका है जिसका मैं बरसों से इंतजार कर रहा हूं। अगर यह भी धोखा हुआ तो कम से कम मैंने कोशिश तो की।”

सपनों की कार

अरविंद ने उसका हाथ थामा और अपनी कार तक ले आया। वो कार इतनी बड़ी और शानदार थी कि आर्यन ने पहले कभी सपनों में भी ऐसी गाड़ी की कल्पना नहीं की थी। उसका मन डर और लालच दोनों के बीच झूल रहा था। “क्या मुझे इसमें बैठना चाहिए? क्या यह सच है?” लेकिन अंततः उसने चुपचाप दरवाजा खोला और अंदर बैठ गया।

कार के चलते ही आर्यन की आंखें खिड़की से बाहर अटक गईं। हैदराबाद की सड़कों की चमक-धमक, ऊंची ऊंची इमारतें, जगमगाती रोशनी और भागती हुई जिंदगी सब कुछ उसके लिए नया था। उसका मन मानो सपनों की किसी दुनिया में चला गया हो। करीब आधे घंटे के सफर के बाद कार एक विशाल बंगले के सामने आकर रुकी। आर्यन की आंखें अविश्वास से फैल गईं। यह बंगला उसके लिए किसी महल से कम नहीं था। चारों ओर हरे-भरे पेड़, बड़े-बड़े गेट और भीतर से आती रोशनी। उसके लिए सब कुछ अनदेखा और अनजाना था।

एक नया परिवार

अरविंद ने गाड़ी पार्क की और धीरे से कहा, “बेटा, उतर जाओ। यही है मेरा घर।” आर्यन ने धीरे-धीरे पैर बाहर रखा और कांपती आंखों से चारों ओर देखा। उसे लग रहा था जैसे वो किसी सपनों की दुनिया में कदम रख रहा हो। इतने में घर का दरवाजा खुला और एक महिला बाहर आई। वो थी अरविंद की पत्नी, अनामिका।

अनामिका ने अपने पति को लौटते देखा, लेकिन उसके साथ खड़े फटेहाल बच्चे को देखकर वो चौंक गई। उसके चेहरे पर सवाल साफ झलक रहे थे। वह पास आई और बोली, “अरविंद, यह बच्चा कौन है? और तुम इसे यहां क्यों लाए हो?” अरविंद ने बिना देर किए पूरी घटना सुनाई। कैसे यह बच्चा उसकी जान बचाकर आया? कैसे उसने उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी सीख दी।

परिवार का फैसला

अरविंद की बात सुनकर अनामिका चुप हो गई। उसके दिल में कहीं गहरी हलचल हुई। लेकिन उसने एक और सवाल किया, “अच्छा है कि इसने तुम्हारी जान बचाई। लेकिन क्या यह सही होगा कि हम इसे यहां रखें? लोग क्या कहेंगे? यह तो सड़क का बच्चा है।”

अरविंद ने दृढ़ स्वर में कहा, “लोग क्या कहेंगे? यह सोचकर मैं कभी जिंदगी नहीं जीता। यह बच्चा मेरा बेटा बनेगा। चाहे कोई कुछ भी कहे। हमने 12 साल से इंतजार किया, लेकिन भगवान ने हमें संतान नहीं दी। शायद यह बच्चा ही भगवान का भेजा हुआ उत्तर है।”

अनामिका की आंखें नम हो गईं। उसने धीरे-धीरे आर्यन की तरफ देखा। वो बच्चा अब भी सहमा हुआ, डर से कांपता खड़ा था। उसे लग रहा था जैसे किसी भी पल उसे भगा दिया जाएगा। अनामिका उसके पास आई, उसके सिर पर हाथ फेरा और धीरे से बोली, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?”

आर्यन ने डरते-डरते जवाब दिया, “मेरा नाम आर्यन है।” अनामिका के दिल में ममता उमड़ पड़ी। उसने कहा, “आर्यन, अगर तुम चाहो तो हमारे साथ यहां रह सकते हो। हम तुम्हें अपना बेटा मानेंगे। तुम्हें पढ़ाई कराएंगे। अच्छे कपड़े देंगे। और तुम्हें वही प्यार देंगे जो एक मां अपने बेटे को देती है।”

नया जीवन

आर्यन की आंखें भर आईं। उसने फुसफुसाते हुए कहा, “क्या सचमुच? या फिर यह भी कोई सपना है जो थोड़ी देर में टूट जाएगा?” अरविंद ने तुरंत उसका हाथ थामा और बोला, “नहीं बेटा, यह सपना नहीं है। यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है।”

उस रात पहली बार आर्यन ने नर्म गद्दे पर सोया। पहली बार उसे एक छत मिली जो उसे अपनी कह सकती थी। पहली बार उसने महसूस किया कि वह भी किसी का बेटा है। लेकिन दोस्तों, यहीं से कहानी में नया मोड़ आया।

ईर्ष्या का जन्म

अरविंद का छोटा भाई, मनोहर, जो उससे कुछ दूर एक बड़े घर में रहता था, जब यह खबर सुनता है कि उसका बड़ा भाई सड़क से एक भिखारी बच्चे को उठाकर अपना बेटा बना रहा है, तो उसके अंदर लालच और ईर्ष्या की आग जल उठती है। मनोहर सोचता है, “अगर अरविंद की संतान नहीं होगी तो उसकी सारी संपत्ति मेरे बेटे के हिस्से में आएगी। लेकिन अगर यह भिखारी बच्चा वाकई उसका बेटा बन गया तो सब कुछ इसके नाम हो जाएगा।”

उसकी पत्नी भी उसके कान भरने लगी, “तुम्हारा बड़ा भाई हमेशा से ही दयालु रहा है। लेकिन इस बार तो उसने सीमा ही पार कर दी। सोचो जरा। एक फुटपाथ का बच्चा कल को तुम्हारे बेटे के बराबर आ खड़ा होगा। क्या तुम्हें यह मंजूर है?”

बिगड़ती स्थिति

मनोहर इन शब्दों को सुनकर मन ही मन योजना बनाने लगा कि किस तरह वो इस बच्चे को अरविंद से दूर कर सके। दूसरी तरफ, अरविंद और अनामिका आर्यन को सचमुच अपने बेटे की तरह पालने लगे। कुछ ही दिन में अरविंद ने उसका दाखिला शहर के सबसे अच्छे स्कूल में करवाया।

जब आर्यन ने पहली बार यूनिफॉर्म पहनी और स्कूल बैग अपने कंधे पर डाला, तो उसकी आंखों में एक चमक थी। मानो वो कहना चाहता हो कि अब मैं भी किसी से कम नहीं हूं। अरविंद उसे गाड़ी में बैठाकर स्कूल छोड़ने जाता और बार-बार उसकी पीठ थपथपाता जैसे वह उसे यह विश्वास दिलाना चाहता हो कि यह नई शुरुआत सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि नई जिंदगी की ओर कदम है।

स्कूल का अनुभव

लेकिन स्कूल का पहला अनुभव आसान नहीं था। क्लास में कई बच्चे उसके फटे अतीत को जानकर उसे चिढ़ाने लगे। कुछ कहते, “अरे, यह तो वही बच्चा है जो सड़कों पर भीख मांगता था।” कुछ उसकी टूटी-फूटी अंग्रेजी पर हंसते। लेकिन आर्यन ने यह सब बर्दाश्त किया क्योंकि उसे पता था कि अब उसके पीछे अरविंद और अनामिका की छाया है।

वो सोचता, “अगर मैंने हिम्मत हार दी तो उन लोगों का भरोसा टूट जाएगा जिन्होंने मुझे अपनाया है।” इसी सोच ने उसे और मेहनत करने की प्रेरणा दी। दिन बीतते गए और धीरे-धीरे आर्यन पढ़ाई में अच्छा करने लगा। उसकी लगन और अनुशासन देखकर टीचर भी प्रभावित हो गए। वह ना सिर्फ पढ़ाई में बल्कि खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में भी आगे बढ़ने लगा।

मनोहर की जलन

लेकिन जितना आर्यन आगे बढ़ता गया, मनोहर के भीतर का जहर उतना ही गहरा होता गया। वह अक्सर अपने घर में बैठकर पत्नी से कहता, “देखना, जिस दिन यह बच्चा बड़ा हो जाएगा, अरविंद अपनी पूरी संपत्ति इसके नाम कर देगा। हमारा बेटा तो कहीं का नहीं रहेगा।” उसकी पत्नी भी यही जोड़ती, “तुम्हें कुछ करना होगा। वरना यह भिखारी तुम्हारे बेटे का भविष्य छीन लेगा।”

मनोहर का बेटा करण उम्र में आर्यन का ही हमउम्र था, लेकिन स्वभाव में बिल्कुल विपरीत। करण ऐशो आराम का आदि था। नशे और बिगड़े दोस्तों में ज्यादा समय बिताता। पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं देता। वही आर्यन अपनी हर सांस मेहनत और ईमानदारी में झोंक देता। दोनों लड़कों का यह फर्क मनोहर के दिल में और भी जलन पैदा करता।

परिवार में दरार

एक दिन जब पूरा परिवार एक साथ किसी पारिवारिक समारोह में गया था, तो रिश्तेदारों की नजर भी आर्यन पर पड़ी। लोग दबी जुबान में कहने लगे, “यह वही बच्चा है जो कभी सड़क पर भीख मांगता था। और आज करोड़पति का बेटा बनकर महंगे कपड़े पहन रहा है।” कुछ लोगों ने तारीफ की, लेकिन कुछ ने ताने मारे।

अरविंद भाई, “आपने तो बड़ा अजीब फैसला लिया है। अपने खून का वारिस छोड़कर एक अजनबी को अपना नाम दे रहे हो।” अरविंद ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन मनोहर भीतर ही भीतर और आग बबूला हो उठा। उसे लगा कि अब तो लोग भी आर्यन को स्वीकार करने लगे हैं। और यह स्थिति उसके लिए खतरे की घंटी है।

आर्यन का संघर्ष

उधर आर्यन को यह सब सुनाई पड़ता था। वह जानता था कि हर कोई उसे अपनाने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन उसकी मासूमियत और सादगी उसे यह कहने पर मजबूर कर देती, “मैं किसी का हक नहीं छीनना चाहता। मैं तो बस पढ़ लिखकर इतना बड़ा बनना चाहता हूं कि अरविंद साहब और अनामिका मैडम गर्व कर सकें।”

दिन बीतते गए और मनोहर के मन का जहर अब खुले विरोध में बदलने लगा। वह अरविंद से बहस करने लगा। “भाई, तुम यह क्यों नहीं समझते कि यह बच्चा हमारा नहीं है। यह अजनबी है। कल को यह सब कुछ हड़प लेगा।”

अरविंद ने शांत स्वर में जवाब दिया, “मनोहर, तुम गलत सोच रहे हो। इस बच्चे ने मुझे मौत से खींचकर वापस जिंदगी दी है। इसके भीतर इंसानियत है, ईमानदारी है। और सच कहूं, तो आज यह मेरे लिए बेटे से कम नहीं।”

भाईचारे की पुनर्स्थापना

मनोहर ने गुस्से से कहा, “तो फिर समझ लो भाई, अब से हमारे रास्ते अलग हैं। मैं और मेरा परिवार तुम्हारे घर के कामों से दूर रहेंगे। जब तुम्हें ही अपने खून से ज्यादा भरोसा एक भिखारी पर है, तो हमें साथ रहने की कोई जरूरत नहीं।” इस तरह धीरे-धीरे दोनों भाइयों के बीच खाई और चौड़ी हो गई।

एक तरफ अरविंद का घर जहां आर्यन मेहनत और लगन से पढ़ाई कर रहा था और अरविंद-अनामिका उसे हर संभव सहारा दे रहे थे। दूसरी तरफ मनोहर का घर जहां करण हर दिन बिगड़ता जा रहा था और उसका भविष्य धीरे-धीरे अंधेरे में डूब रहा था।

बिगड़ती स्थिति

समय धीरे-धीरे बीतता गया और जैसा कि अक्सर होता है, मेहनत और ईमानदारी से जीने वाला इंसान ऊपर उठता है। जबकि लालच और बिगड़े रास्ते पर चलने वाला धीरे-धीरे गिरने लगता है। यही हुआ मनोहर और उसके बेटे करण के साथ। करण दिन प्रतिदिन और भी बेकाबू होता गया। पढ़ाई से उसका कोई लेना-देना नहीं रहा। शराब और नशे की लत ने उसे पकड़ लिया और देर रात तक पार्टियां करना, गलत दोस्तों की संगत में रहना ही उसका शौक बन गया।

मनोहर ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन जब पिता खुद लालच और ईर्ष्या में डूबा हो, तो बेटा कैसे सुधर सकता था। करण अपनी हर गलती का ठीकरा कभी पिता पर फोड़ता तो कभी समाज पर। लेकिन अपने भीतर झांकने की हिम्मत कभी नहीं करता।

मनोहर की मुसीबत

इधर मनोहर का व्यापार भी धीरे-धीरे डूबने लगा। कर्ज बढ़ता गया। पार्टनर साथ छोड़ते गए और जिस आलीशान घर पर उसे हमेशा घमंड था, उसे गिरवी रखने की नौबत आ गई। मनोहर के लिए यह किसी तूफान से कम नहीं था। उसे लग रहा था कि उसकी पूरी जिंदगी की कमाई अब हाथ से निकल रही है।

उधर अरविंद का घर बिल्कुल विपरीत दिशा में बढ़ रहा था। आर्यन अपनी पढ़ाई में हर साल अव्वल आता और समाज के हर व्यक्ति का दिल जीतने लगा। उसकी विनम्रता और सादगी ने रिश्तेदारों को भी धीरे-धीरे प्रभावित करना शुरू कर दिया। लोग कहने लगे, “अरविंद भाई, आपने सही फैसला लिया। सचमुच यह बच्चा आपके घर की किस्मत बदलने आया है।”

मनोहर का अंत

यह सुनकर मनोहर का मन और जलता। क्योंकि अब वही समाज जो पहले ताने देता था, अब आर्यन की तारीफ कर रहा था और करण की बिगड़ी हालत पर अफसोस जता रहा था। एक दिन हालात इतने बिगड़ गए कि मनोहर को अपना गिरवी रखे घर को बेचने तक की नौबत आ गई। उसने बहुत जगह कोशिश की लेकिन खरीदार तैयार नहीं थे क्योंकि कर्ज बहुत ज्यादा था।

मजबूर होकर वह अपने बड़े भाई अरविंद के पास गया। अरविंद ने जैसे ही सुना कि उसका छोटा भाई इतनी बड़ी मुसीबत में है, वह बिना देर किए उसके घर पहुंचा। उसने मनोहर को गले लगाया और कहा, “भाई, अगर ऐसी हालत थी तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं तुम्हारा सगा हूं। तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज है।”

भाई का साथ

मनोहर की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने भारी आवाज में कहा, “भाई, सच बताओ तो मुझे डर था कि कहीं तुम मुझे ताना ना दे दो। क्योंकि जब तुमने उस बच्चे को अपनाया था तब मैंने तुम्हारा साथ नहीं दिया था। बल्कि उल्टा तुम्हें रोकने की कोशिश की थी और आज वही बच्चा तुम्हारे लिए वरदान बन गया और मेरा बेटा मेरे लिए अभिशाप।”

अरविंद ने उसकी बात बीच में ही रोक दी और कहा, “नहीं मनोहर, बच्चे गलतियां करते हैं लेकिन हमें ही उन्हें संभालना होता है। देखो, तुम्हारा बेटा भटक गया है लेकिन अभी देर नहीं हुई है। उसे सुधार सकते हो। और जहां तक बात है तुम्हारे कर्ज की, तुम घर बेचने की बात छोड़ दो। मैं सारा कर्ज चुका दूंगा। तुम और भाभी मेरे घर आ जाओ। वहीं साथ रहेंगे।”

नई शुरुआत

मनोहर यह सुनकर फूट-फूट कर रो पड़ा। उसने पहली बार महसूस किया कि सच्चा भाई वही है जो मुश्किल वक्त में साथ खड़ा हो। चाहे कितनी भी दूरियां क्यों ना आई हों। अरविंद ने तुरंत आर्यन को बुलाया और कहा, “बेटा, यह तुम्हारे चाचा हैं। यह भी अब हमारे साथ रहेंगे।”

आर्यन ने विनम्रता से उनके पैर छुए और मुस्कुरा कर बोला, “चाचा जी, अब हम सब मिलकर एक परिवार की तरह रहेंगे।” उसकी मासूमियत और सच्चाई ने मनोहर का दिल छू लिया। धीरे-धीरे करण को भी अपनी गलती का एहसास होने लगा। जब उसने देखा कि उसका पिता बर्बादी की कगार पर था और उसका चाचा, जिस पर कभी उसने हंसी उड़ाई थी, अब उसकी मदद कर रहा है, तो उसे अपनी गलतियां साफ-साफ नजर आने लगीं।

परिवार का पुनर्मिलन

एक रात वह रोते हुए अपने पिता के पास आया और बोला, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको बहुत दुख दिया है। आपकी मेहनत की कमाई बर्बाद कर दी। अब मैं सचमुच बदलना चाहता हूं।” मनोहर की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपने बेटे को गले लगाया और कहा, “बेटा, अगर अब सचमुच बदलने की ठान ली है तो यही तुम्हारा नया जन्म है।”

अरविंद ने करण को भी अपने व्यापार में एक छोटा काम दे दिया ताकि वह मेहनत और ईमानदारी से सीख सके। आर्यन भी उसके साथ खड़ा रहा जैसे वह उसका सगा भाई हो। धीरे-धीरे करण ने भी मेहनत करना शुरू किया और परिवार की इज्जत लौटाने में योगदान देने लगा।

सच्चाई और इंसानियत का महत्व

मनोहर अब समझ चुका था कि इंसानियत और सच्चाई का रास्ता ही सही है। इस तरह जो परिवार लालच और ईर्ष्या से बिखरने लगा था, वो इंसानियत और भाईचारे से फिर से जुड़ गया।

दोस्तों, यह कहानी हमें यही सिखाती है कि खून का रिश्ता ही सबसे बड़ा रिश्ता नहीं होता, बल्कि इंसानियत और प्यार से बने रिश्ते ही असली होते हैं। एक भिखारी बच्चा जिसे कोई नाम तक नहीं देना चाहता था, आज मेहनत और इंसानियत की वजह से पूरे परिवार की जान बन गया।

आपका विचार

अब सवाल आपसे है, अगर आप अरविंद की जगह होते तो क्या आप भी आर्यन जैसे अनाथ बच्चे को अपने घर और दिल में जगह देते? और अगर आप मनोहर की जगह होते तो क्या लालच छोड़कर भाई का साथ देते? कमेंट करके जरूर बताइए। और अगर कहानी ने आपका दिल छू लिया हो तो इसे लाइक कीजिए और चैनल ‘सच्ची कहानियां बाय आरके’ को सब्सक्राइब करना ना भूलिए। मिलते हैं अगले वीडियो में, तब तक इंसानियत की जिम्मेदारी निभाइए, नेकी फैलाइए और दिलों में उम्मीद जगाइए।

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