एक बुजुर्ग बुढा को बैंक मैनेजर ने भिखारी समझकर बाहर क्यों निकाला …… फिर जो हुआ उसे देखकर तंग
पूरी कहानी: जसवंत, विक्रांत और बैंक की असली पहचान
सुबह का समय था। शहर के मुख्य बैंक में आज कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। बैंक के सारे कर्मचारी अपने-अपने काम में व्यस्त थे। कैशियर के काउंटर पर लंबी लाइन लगी हुई थी। हर कोई जल्दी-जल्दी अपना काम निपटाना चाहता था। तभी बैंक के दरवाजे से एक बूढ़ा आदमी अंदर आया। उसकी उम्र करीब सत्तर साल रही होगी। सफेद कुर्ता, सफेद धोती, और सिर पर पगड़ी पहने वह बुजुर्ग बहुत साधारण लग रहा था। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं।
वह इधर-उधर देखता है, फिर एक कोने में जाकर चेक स्लिप भरता है। उसके हाथ कांप रहे थे, शायद पहली बार इतने बड़े शहर के बैंक में आया था। स्लिप भरकर वह पैसे निकालने की लाइन में लग जाता है। उसके आगे आठ-दस लोग खड़े थे। धीरे-धीरे लाइन आगे बढ़ती है। एक-एक करके लोग अपना काम निपटाकर चले जाते हैं। आखिरकार वह बूढ़ा काउंटर पर पहुंचता है।
अब उसके सफेद कपड़े थोड़े मैले हो चुके थे। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। उसने चेक और स्लिप कैशियर को दी। कैशियर ने चेक देखा, उसमें दो लाख रुपये की राशि भरी थी। कैशियर चौंक गया। उसने फिर से चेक को देखा—यह एक बैरर चेक था। यानी जिसके भी हाथ लगे, वह पैसे निकाल सकता था।
कैशियर ने बूढ़े से पूछा, “आपका नाम क्या है और आपको यह चेक कहां मिला?”
बूढ़ा बोला, “मेरा नाम जसवंत है। यह चेक मुझे मेरे बेटे ने दिया है। मुझे जल्दी पैसे दे दीजिए, बहुत जरूरत है।”
कैशियर ने पूछा, “आपके पास कोई आइडेंटिटी प्रूफ है? आधार कार्ड, पैन कार्ड?”
जसवंत बोला, “नहीं, मेरे पास अभी कुछ नहीं है। मैं बहुत जल्दी में हूं, कृपया मुझे पैसे दे दीजिए।”
अब तक जसवंत के पीछे खड़े लोग कहने लगे, “इसे इतनी देर क्यों लग रही है?” और चिल्लाने लगे। जसवंत परेशान होकर कहता है, “रुकिए, यह कैशियर मुझे पैसे नहीं दे रहा है।”
कैशियर बोला, “मैं तुम्हें अभी पैसे नहीं दे सकता। जब तक हमें पूरी तसल्ली नहीं हो जाती कि यह चेक आपके लिए ही दिया गया है, तब तक मैं आपको पैसे नहीं दे सकता।”
जसवंत ने कहा, “मैं आज सुबह ही गांव से आया हूं। मेरी पत्नी अस्पताल में एडमिट है और इलाज के लिए मुझे पैसों की जरूरत है।”
कैशियर ने सख्त लहजे में कहा, “आप सीधी तरह से मेरी बात मानिए, नहीं तो आपको धक्के मारकर निकालना पड़ेगा।”
बूढ़े का सबके सामने अपमान हो रहा था। वो शर्मिंदा हो गया और बैंक से बाहर आ गया।
अस्पताल में चिंता और बेटे की उम्मीद
जसवंत अस्पताल पहुंचा। उसकी पत्नी का इलाज शुरू होना था, लेकिन पैसे जमा करना जरूरी था। तभी उसके बेटे विक्रांत का फोन आया।
“पापा, आप बैंक से आ गए? आपका काम हो गया ना? जल्दी पैसे अस्पताल में भर दीजिए, मैं आ रहा हूं।”
जसवंत मायूसी भरी आवाज में बोला, “नहीं बेटा, काम नहीं हुआ। तुमने जो चेक दिया था, उससे मुझे पैसे नहीं मिले।”
विक्रांत चौंक गया, “ऐसे कैसे? वो तो एक बैरर चेक था। उसे तो तुरंत पैसे मिल जाते हैं।”
जसवंत बोला, “पता नहीं बेटा, वो कैशियर मुझे बहुत सवाल पूछ रहा था। मेरा नाम, यह चेक कहां मिला, आधार कार्ड भी मांगा। जल्दी-जल्दी में आधार कार्ड तो गांव ही भूल आया हूं। मैंने तो कहा था कि मुझे अपने साथ लाए हुए पैसे इस्तेमाल करने दो। पर तुमने मेरी बात नहीं मानी।”
विक्रांत बोला, “नहीं पिताजी, वो पैसे आपके खेती के काम के लिए रखे हुए हैं। यहां आपका बेटा अभी जिंदा है और मां के इलाज की पूरी जिम्मेदारी मेरी है। आप वहीं रुकिए, मैं 15 मिनट में आता हूं।”
अस्पताल में बेटे की पहचान और सम्मान
15 मिनट बाद अस्पताल के सामने एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी। उसमें से चार बॉडीगार्ड उतरे और खड़े हो गए। उनके बाद एक हैंडसम युवक उतरा—वह विक्रांत था। बॉडीगार्ड के घेरे में विक्रांत अस्पताल के अंदर आया। सभी उसे देखकर हैरान रह गए।
विक्रांत सीधे डॉक्टर के केबिन में गया और उनसे बात की। कुछ देर बाद विक्रांत की मां का ऑपरेशन शुरू हो गया। विक्रांत अपने पिताजी के पास आया।
जसवंत ने पूछा, “पैसे भरे बिना इलाज शुरू हो गया?”
विक्रांत बोला, “हां पिताजी, आपके आशीर्वाद से आपके बेटे ने इतना नाम कमा लिया है कि उसके नाम पर डॉक्टर ने ऑपरेशन शुरू कर दिया। हम दो दिनों के बाद पैसे भर देंगे, तब भी कोई दिक्कत नहीं है।”
जसवंत बोला, “मुझे किसी के पैसे रखना अच्छा नहीं लगता। मैं अपने पास लाए हुए पैसे भर देता ना। तुमने बेकार में ही जिद की। मुझे उस बैंक में कितना बेइज्जत किया उन्होंने। सभी लोग मुझे ही देख रहे थे। समझ नहीं आ रहा है कि वह मुझसे इतने सवाल क्यों पूछ रहे थे। इसका जवाब तो वह कर्मचारी ही दे सकता है।”
विक्रांत ने पूछा, “जब कैशियर आपसे इतने सवाल पूछ रहा था, तब वहां कोई मैनेजर नहीं था?”
जसवंत बोला, “नहीं बेटा, वो कैशियर मुझे अपमानित कर रहा था, पर वहां कोई बड़ा अधिकारी नहीं आया था।”
कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आए और बोले, “सर, आपकी मां का ऑपरेशन अच्छे से हो गया है।”
जसवंत ने डॉक्टर की तरफ देखा और हाथ जोड़ दिए। डॉक्टर ने उनके हाथ पकड़ते हुए कहा, “यह तो मेरा काम है, आपको हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं है।”
थोड़ी देर बाद विक्रांत की मां को एक बड़े स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। जसवंत और विक्रांत उसके पास ही थे।
बैंक में फिर से अपमान और सच का सामना
अगले दिन विक्रांत ने सादे कपड़े पहन लिए—सादी शर्ट, पट, बिखरे बाल। जसवंत से कहा, “चलिए आज हमें बैंक में जाना है।” जसवंत तैयार हो गए। रोज की तरह सफेद धोती, कुर्ता, सिर पर पगड़ी। दोनों गाड़ी में बैठ गए। विक्रांत ने ड्राइवर को गाड़ी बैंक से थोड़ी दूर खड़ी करने को कहा। बॉडीगार्ड्स भी दूर चल रहे थे, पर उनका ध्यान विक्रांत और उसके पिताजी पर था।
सुबह की भीड़ में जसवंत और विक्रांत दोनों बैंक पहुंचे।
विक्रांत ने जसवंत से कहा, “आप कल की तरह लाइन में खड़े हो जाइए, मैं यहीं खड़ा रहकर देखता हूं।”
जसवंत फिर से लाइन में जाकर खड़े हो गए। उनका नंबर आया और उन्होंने कैशियर को वही चेक थमा दिया। आज भी कैशियर ने उन्हें उसी नजर से देखा जैसे कल देख रहा था।
“आधार कार्ड लेकर आए हो?”
“नहीं,” कहकर जसवंत ने सिर हिलाया।
“अरे, तुम्हें कल भी तो कहा था कि हम ऐसे ही बिना जांच किए इतनी बड़ी अमाउंट नहीं दे सकते हैं।”
जसवंत ने कहा, “लेकिन मेरे बेटे ने तो कहा है कि बैरर चेक के लिए किसी जांच की जरूरत नहीं होती।”
अब कैशियर के चेहरे पर गुस्से की लकीरें छा गईं।
“अरे तुम्हारा बेटा क्या बहुत बड़ा ज्ञानी है या रिजर्व बैंक का गवर्नर है जो तुम मुझे नियम और कायदे सिखा रहे हो? होलिया देखा है अपना। सड़क छाप भिखारी लग रहे हो। यह मैले कपड़े पहनकर बैंक में लाखों लेने आए हो।”
दूर खड़ा विक्रांत यह सारा तमाशा देख रहा था। अब बैंक के बाकी कर्मचारी भी कैशियर की बातों में हामी भरने लगे।
“हां, पता नहीं कौन है। इसे देखकर तो नहीं लगता कि इसके बेटे के अकाउंट में भी इतने पैसे होंगे।”
“अरे बेरर चेक है, कहीं किसी अमीर का चेक गिर गया होगा जो इसे मिल गया और यह आ गया बहती गंगा में हाथ धोने।”
उन सबके यह ताने सुनकर जसवंत को बहुत बुरा लग रहा था। उसने पलटकर विक्रांत की तरफ देखा। विक्रांत ने उसे इशारे से और बात करने को कहा।
जसवंत ने कैशियर के सामने हाथ जोड़कर कहा, “मैंने आपसे कल भी कहा है कि मैं गांव से यहां अपनी पत्नी का इलाज करवाने आया हूं। मेरे बेटे के खाते में पैसे हैं, इसलिए उसने मुझे यह चेक दिया है।”
यह बात सुनकर बैंक के कर्मचारी हंसने लगे।
बैंक में खड़े बाकी लोग भी जसवंत को ही देख रहे थे। किसी को लग रहा था कि जसवंत सच बोल रहा है तो कुछ को लगता था चेक उसे रास्ते पर ही मिला होगा।
“अगर तुम्हारे बेटे के खाते में इतने पैसे हैं तो वह खुद क्यों नहीं आया पैसे निकलवाने? बूढ़े बाप को क्यों भेज दिया?”
“मेरे बेटे को बहुत काम होता है। वह अपना काम छोड़कर नहीं आ सकता।”
काफी देर से विक्रांत यह सब देख रहा था, पर वह बैंक मैनेजर के बाहर आने का इंतजार कर रहा था। बाहर भीड़ बढ़ने लगी थी। कैशियर अपना काउंटर छोड़कर बाहर आ गया, सबको देरी हो रही थी। अब बाकी सब ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया।
कुछ लोग बोले, “वन उस बूढ़े को पैसे दे दो और बात को खत्म करो।”
कुछ बोले, “ऐसे लोगों को बैंक में घुसने ही नहीं देना चाहिए।”
सबका हल्ला सुनकर आखिरकार बैंक का मैनेजर बाहर आया।
उसने कैशियर से पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?”
कैशियर ने कल से जो हो रहा था, सब बता दिया।
अब मैनेजर ने भी बूढ़े जसवंत को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा।
जसवंत को लगा कि मैनेजर उसकी बात समझेगा।
पर मैनेजर ने कहा, “आप जैसे लोगों के लिए यहां किसी को समय नहीं है। आपको देखकर लगता नहीं कि यह चेक आपको किसी ने दिया है। यह चेक आपको जरूर कहीं पड़ा हुआ मिला होगा और बेयरर है, यह देखकर आपके मन में लालच आ गया।”
जसवंत ने कहा, “नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैं सच कह रहा हूं, मेरा यकीन कीजिए।”
मैनेजर ने कहा, “आप यहां से चले जाइए। नहीं तो मुझे मजबूरन सिक्योरिटी को बुलाना पड़ेगा।”
यह सुनकर अब जसवंत को गुस्सा आ गया। कल से वह बैंक में ऐसा अपमान सहन कर रहा था।
उसने कहा, “अब तो जब तक मुझे पैसे नहीं मिलते, मैं यहां से नहीं हिलूंगा।”
यह सुनकर कैशियर ने मैनेजर से कहा, “सर, यह बूढ़ा ऐसे नहीं मानेगा। आप सिक्योरिटी को बुला लीजिए।”
मैनेजर ने सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया और सिक्योरिटी गार्ड जसवंत का हाथ पकड़ लेता है। जसवंत गुस्से से उसका हाथ झटक देता है। अब सिक्योरिटी गार्ड गुस्से से जसवंत की पगड़ी उछाल देता है।
उस पगड़ी से 500-500 के नोटों के दो बंडल नीचे गिरते हैं।
इससे पहले कि पगड़ी जमीन पर गिरे, विक्रांत आगे आकर उसे पकड़ लेता है और अपने पिता के सिर पर रख देता है।
वो नोटों के बंडल देखकर सब सन्न रह जाते हैं।
“देखा, इसने तो पहले ही किसी को लूटा है और अब बैंक में आया है बेरर चेक लेकर किसी और के अकाउंट को खाली करने, और इस बार तो अपना साथी भी लेकर आया है।”
कैशियर ने कहा।
सच्चाई का उजागर होना
यह सुनकर विक्रांत ने चुप्पी तोड़ी। इतनी देर से शांत खड़ा रहकर वह सब देख और सुन रहा था। अब समय आ गया था कि उन लोगों को मुंह तोड़ जवाब मिले।
विक्रांत ने आगे आकर कहा, “आप लोगों में थोड़ी सी भी शर्म और संस्कार नहीं है। एक बुजुर्ग के साथ कैसे बात की जाती है, यह किसी ने सिखाया नहीं है आपको? बैरर चेक देने के बाद बैंक वालों को बिना किसी जांच के पैसे देने होते हैं। यह एक सामान्य नियम है और आपको पता नहीं है।”
उसे ऊंची आवाज में बात करते देख मैनेजर बोला, “तुम कौन हो हमें यह सब पूछने वाले? तुम जैसे सड़क छाप चोरों से सीखने जितने बुरे दिन नहीं आए हैं हमारे। दफा हो जाओ यहां से। नहीं तो अब पुलिस बुलवानी पड़ेगी। वैसे भी यह दो बंडल तो चुराए ही तुम दोनों ने।”
विक्रांत बोला, “हां बुलाओ पुलिस को। लेकिन हमारे लिए नहीं, खुद अपने लिए क्योंकि अब मैं ही तुम्हारी शिकायत पुलिस में करने वाला हूं।”
उसकी यह बात सुनकर मैनेजर के चेहरे पर शिकन आ गई।
“तुम हमें पकड़वाओगे किस जुर्म में?”
“रिजर्व बैंक के गवर्नर और उसके पिताजी के साथ बदतमीजी और बैंक के नियमों के अपराध में।”
विक्रांत की यह बात सुनकर सभी के होश उड़ गए।
“आप… आप गवर्नर हैं?”
कैशियर ने हल्की डरती हुई आवाज में पूछा।
विक्रांत का बॉडीगार्ड आगे आया और उसने विक्रांत का सच बताया।
“हां, विक्रांत सच में एक गवर्नर हैं।”
अब तो सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।
बैंक का मैनेजर और बाकी कर्मचारी भी हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विक्रांत से माफी मांगने लगे।
विक्रांत ने उन्हें कहा, “यह मेरे पिताजी हैं। गांव में बड़े जमींदार हैं। इनके पास पहले से ही पैसे थे जो इन्होंने अपनी पगड़ी में छुपा कर रखे थे। लेकिन मैंने ही उन्हें कहा था कि मेरे अकाउंट से पैसे निकालें। पर यहां आकर आप सब ने उनका इतना अपमान किया। किसी बुजुर्ग के साथ कोई ऐसा बर्ताव कैसे कर सकता है?”
बैंक में आए हुए सभी कस्टमर भी अब विक्रांत की बात को सहमति देने लगे।
कुछ देर पहले तक जो जसवंत को सड़क छाप समझ रहे थे, वह अब उसकी तरफदारी कर रहे थे।
विक्रांत ने उन्हें बताया, “मेरे पिताजी को अचानक गांव से यहां मां को लेकर आना पड़ा। वह ज्यादा कपड़े साथ नहीं ले पाए, इसलिए उन्होंने मैले कपड़े पहने हैं। लेकिन बैंक के कर्मचारी लोगों के कपड़े और पहनावे को देखकर उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाते हैं। यह बहुत गलत बात है।”
विक्रांत ने उन्हें बहुत सुनाया।
कहा, “अब मैं आप सब पर कार्रवाई करूंगा। मैं गवर्नर हूं। यह पता चलने के बाद आपका व्यवहार बदल गया। नहीं तो आप सब मुझे भी धक्के मारकर बाहर निकाल देते। आप सब की असलियत जानने के लिए मैं इस भेष में यहां आया था। आप सब की करतूत सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो गई है। मुझे आपके खिलाफ ज्यादा सबूत इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है।”
अब सबको बहुत पछतावा होने लगा। सब ने उससे माफी मांगी लेकिन विक्रांत कहां किसी की सुनने वाला था।
उसने कहा, “अब तो आप सब की नौकरियां गई समझो।”
सब हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
सबकी आंखों से अब पछतावा साफ दिखाई दे रहा था।
यह देखकर जसवंत ने विक्रांत से कहा, “माफ कर दो सबको। इन्हें पछतावा है और पछतावे से बड़ा कोई प्रायश्चित नहीं होता। मेरे कारण अगर इनकी नौकरियां चली गई तो सबसे ज्यादा दुख मुझे ही होगा। इन्होंने जो गलती की वह अनजाने में की।”
विक्रांत को अपने पिता की बात माननी पड़ी।
उसने सबको एक शर्त पर माफ कर दिया कि आगे से वह कभी भी बैंक में आने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ ऐसे दुर्व्यवहार नहीं करेंगे। इंसान चाहे अमीर हो या गरीब, सबको एक ही तराजू में तोलेंगे। और अगर कभी भी उसे यह पता चला कि उस बैंक में कुछ गलत हो रहा है तो उससे बुरा फिर कोई नहीं होगा।
कैशियर अब पैसे निकालकर जसवंत के हाथ में रख देता है और पैर पकड़कर जसवंत से माफी मांगता है।
आगे से कभी उस बैंक में अमीर-गरीब का भेद नहीं होता और वहां आने वाला हर व्यक्ति उनके लिए एक समान होता।
कहानी का संदेश:
इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसके व्यवहार और कर्मों से होती है।
इज्जत हर किसी का अधिकार है—चाहे वह अमीर हो या गरीब।
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