कहानी: रीमा और उसकी बहादुरी

प्रस्तावना

दोपहर का वक्त था। सूरज अपनी पूरी ताजगी के साथ जमीन पर बरस रहा था। बाजार की तंग गलियों से निकलकर एक छोटी सड़क पर एक लकड़ी की पुरानी रेहड़ी खड़ी थी। उस रेहड़ी पर सब्ज रंग के ताजा नारियलों का ढेर लगा हुआ था। हरियाली से भरे ये नारियल धूप की रोशनी में ऐसे चमक रहे थे जैसे जुमर रुद्र के पत्थर सूरज की किरणों को अपनी तरफ खींच रहे हों।

रीमा, एक नौजवान लड़की, उस रेहड़ी के पीछे खड़ी थी। शक्ल-सूरत आम सी थी, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी जो सीधे दिलों को छू जाती थी। उसने एक सादा सा सूट पहना हुआ था, जिस पर मेहनत और गुरबत के निशान झलकते थे। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, मगर उसके होठों पर वही पुरानी मुस्कुराहट थी जो उसे दूसरों से अलग बनाती थी।

रीमा का संघर्ष

रीमा बार-बार अपने दुपट्टे से माथा साफ करती और फिर एक छोटी सी तेज छुरी उठाती, नारियल पर माहिराना वार करके ऊपर से काट देती। छुरी की ठकठक की आवाज जैसे पूरे माहौल में एक अलग ही राग बिखेर देती। जब भी कोई ग्राहक आता, रीमा खुशदिली से नारियल पेश करती। नारियल खोलने के बाद वह उसमें स्ट्रॉ लगाकर ग्राहक को थमा देती और साथ में कहती, “मीठा पानी है, पीजिए, थकन उतर जाएगी।”

ग्राहक एक घूंट लेते और फौरन खुश हो जाते। “बेटी, तुम्हारे नसीब चमके,” यह दुआ तकरीबन हर दूसरे शख्स की जुबान पर आती। रीमा के चेहरे पर मुस्कुराहट और गहरी हो जाती, लेकिन अंदर कहीं एक भारी बोझ छुपा हुआ था। यह बोझ उसके बीमार पिता की हालत थी, जो कभी खेतों में मजदूरी करके घर चलाता था, अब अरसे से बिस्तर पर पड़ा था।

बाजार की हलचल

डॉक्टरों ने दवाओं की लंबी फहरिस्त पकड़ा दी थी। इन्हीं दवाओं को खरीदने के लिए रीमा हर दिन बाजार आकर नारियल बेचती थी। उसके हाथों पर छाले पड़ चुके थे, मगर दिल में एक ही दुआ थी, “बस अब्बा को ठीक कर दूं। फिर सब आसान हो जाएगा।”

बाजार की रौनक अपने ऊज पर थी। सब्जी फरोश, मसाला बेचने वाले और चाय के खोखे वाले अपनी-अपनी आवाजें लगा रहे थे। हर तरफ शोर और भागदौड़ थी। उस शोर में रीमा की सादा सी रेहड़ी भी एक छोटा सा चिराग थी। लोग उसे एक आम नारियल बेचने वाली समझकर गुजर जाते। किसी को अंदाजा नहीं था कि उसकी जिंदगी के पीछे एक राज छुपा है।

एक नया मोड़

रीमा के लिए हर दिन एक इम्तिहान था। धूप में खड़े रहना, ग्राहकों की बातें सुनना, कुछ का हंसकर मजाक उड़ाना, कुछ का कीमत पर झगड़ना, यह सब वह सब्र से बर्दाश्त करती। लेकिन दिल के किसी कोने में वह हमेशा यही सोचती, “मैं कमजोर नहीं हूं। बस हालात ने मुझे खामोश बनाया है।”

उस दिन भी सब कुछ आम लग रहा था। रीमा नारियल तराश रही थी, ग्राहकों को पानी पिला रही थी। पसीना बहा रही थी, मगर उसे अंदाजा नहीं था कि यह दिन बाकी दिनों की तरह खत्म नहीं होगा।

पुलिस अफसर का आगमन

धूप अपनी ताजगी से जमीन जला रही थी। बाजार की गलियां धीरे-धीरे शोर से भरने लगीं। अचानक एक भारी कदमों की चाप ने उसके कानों को चौंका दिया। उस चाप के साथ ही जैसे बाजार के शोर में एक लम्हे के लिए खामोशी आ गई। लोग अचानक बातें करते-करते रुक गए।

सामने से एक पुलिस अफसर आ रहा था। खाकी रंग की स्त्रीशुदा यूनिफॉर्म, चमकती हुई पॉलिश की हुई जूतियां और कंधे पर तीन रोशन स्टार उसकी रैंक का ऐलान कर रहे थे। यह था इंस्पेक्टर राजीव प्रसाद, जिसे अपने गरूर और सख्त मिजाजी के लिए बदनाम था।

राजीव की धमकी

राजीव ने रीमा की रेहड़ी पर नजर डाली और बुलंद आवाज में बोला, “यहां किसने कहा बेचने को? यह सड़क आवाम के लिए है। तेरा स्टॉल फौरन हटा।” उसकी आवाज ऐसी थी जैसे किसी ने ऊंचे लाउडस्पीकर पर दहाड़ मारी हो।

रीमा चंद लम्हों के लिए हिचकिचाई। फिर आहिस्तगी से बोली, “साहब, मैं बस थोड़ी देर खड़ी हूं। यह नारियल फरोख्त हो जाए तो फौरन हट जाऊंगी।” लेकिन राजीव ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।

संघर्ष की शुरुआत

राजीव ने अपनी हथेली रीमा की रेहड़ी पर मार दी। एक धमाके सी आवाज निकली। नारियल एक तरफ लुढ़क गए। रीमा ने घबराकर रेहड़ी संभालने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ कांपने लगे।

राजीव ने फिर से गरजते हुए कहा, “मैंने कहा, अभी के अभी हटा यह सब। वरना नारियल जमीन पर नहीं रहेंगे।” बाजार में सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने मोबाइल निकालकर चुपके से रिकॉर्डिंग शुरू की।

रीमा के दिल की धड़कन तेज हो गई। वह जानती थी कि यह सिर्फ रेहड़ी का मसला नहीं, बल्कि इज्जत ए नफ्स का मामला है। हाथ लरज रहे थे, मगर दिल मजबूत था। उसने नरम लहजे में कहा, “साहब, मैंने रास्ता नहीं रोका। चंद नारियल बेच लूं फिर चली जाऊंगी।”

राजीव की बर्बरता

राजीव की आंखों में तौहीन और बढ़ गई। उसने गुस्से से रेड़ी पर हाथ मारा। नारियल एक तरफ गिर गए। रीमा का सब्र लबरेज होने लगा। उसने चोट भुलाकर खुद को सीधा किया। आंखों में आंसुओं के साथ जलाल भी था।

“साहब, यह रेहड़ी मेरा सब कुछ है। घर चलता है। अब्बा की दवा आती है। इसे मत तोड़िए।” यह सुनकर राजीव और भड़क उठा।

रीमा की ताकत

रीमा ने जख्मी हथेली साड़ी के पल्लू से बांधी। आंखों में नमी थी, मगर हौसला कहा था। धीरे से बोली, “साहब, मैं रिझकर कमाने आई हूं। मेरा दिल दुखाना इंसाफ नहीं।”

बाजार चौंक गया। सरगोशियां होने लगीं। “यह आम नहीं लगती।” राजीव का चेहरा सुर्ख हो गया। माथे की रगें उभर आईं।

संघर्ष का चरम

राजीव ने पूरी ताकत से रेहड़ी को धक्का दिया। पहिए चरमराए। नारियल चारों तरफ बिखर गए। रीमा का दिल मुट्ठी में जकड़ा गया। वह झुककर नारियल समेटने लगी। मगर कांटे हाथों को और जख्मी करते गए।

“देखा, पुलिस के सामने जुबान चलाने का अंजाम यही है,” राजीव बोला।

निर्णायक क्षण

रीमा ने जख्मी हथेली देखी। फिर सीधी खड़ी हो गई। आंसू रुक गए थे। सांसें भारी मगर आवाज मजबूत थी। “मैं कमजोर जरूर हूं, लेकिन इतनी बेबस नहीं कि अपनी मेहनत यूं बर्बाद होते देखूं।”

यह अल्फाज बिजली की तरह गूंजे। बाजार साकेत हो गया। राजीव को एहसास हुआ कि यह झगड़ा अब सिर्फ रेहड़ी का नहीं रहा, बल्कि इंसाफ और गरूर की टक्कर बन चुका था।

रीमा की जीत

रीमा ने धीरे से सर उठाया। उसकी आंखों में अब खौफ नहीं था, बल्कि मजबूती थी। “साहब, मैं कोई जुर्म नहीं कर रही। रिझकर कमाने आई हूं।”

बाजार में मुकम्मल खामोशी छा गई। हर तरफ सिर्फ रीमा की आवाज गूंजी। “जुल्म के आगे हमेशा सच्चाई खड़ी होती है।”

पुलिस का अंत

राजीव ने फिर से झपटने की कोशिश की, लेकिन रीमा ने उसे एक कदम पीछे धकेल दिया। “देखो, पुलिस वाला पीछे हट गया।”

राजीव ने गुस्से से चीखा, “यह तो हद है।” लेकिन रीमा ने उसकी कलाई मजबूती से पकड़ ली। “बस बहुत हो गया। मेरा सब्र खत्म है।”

मीडिया की प्रतिक्रिया

इस लम्हे ने राजीव के लिए कयामत का एहसास कर दिया। रीमा ने कहा, “अगर तुम वाकई पुलिस हो तो याद रखो पुलिस आवाम की खिदमत के लिए है। उन्हें रौंदने के लिए नहीं।”

यह अल्फाज तीर की तरह राजीव के दिल में उतर गए।

निष्कर्ष

रीमा ने गिरे हुए नारियलों को समेटना शुरू किया। हाथ जख्मी थे, लेकिन उसके हौसले ने सब जख्मों को मात दे दी थी। “मैंने सिर्फ वो किया जो मेरा फर्ज था। सच और इंसाफ के लिए आवाज बुलंद करना ही सबसे बड़ी बहादुरी है।”

बाजार में एक नई फिजा पैदा हो चुकी थी। नारियल बिखरे थे, लेकिन अब वह बिखरे नारियल इंसाफ और सच्चाई के प्रतीक बन चुके थे।

रीमा ने आसमान की तरफ देखा। डूबते सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी। उसने दिल ही दिल में कहा, “यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं थी। यह हर उस इंसान की लड़ाई थी जो जुल्म के सामने डटता है। आज बाजार ने देख लिया कि सच्चाई कभी नहीं हारती।”

अंत

और यूं, एक आम नारियल बेचने वाली लड़की एक अहद की अलामत बन गई।