फौजी शमशेर खान और ट्रेन का सबक
बीकानेर से हावड़ा जा रही एक एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल डिब्बे में शांति का माहौल था। यात्री अपने-अपने सफर में खोए थे। उसी डिब्बे की खिड़की वाली सीट पर फौजी शमशेर खान बैठा था। उसकी वर्दी थोड़ी धूल भरी थी, चेहरे पर थकान थी और आंखें भारी। शायद वह सीमा पर लंबी ड्यूटी करके लौट रहा था। ट्रेन की हिलोरियों में उसकी आंखें लग गई थीं।
अगले बड़े स्टेशन पर ट्रेन रुकी। तभी छह-सात कॉलेज के लड़के शोर मचाते हुए डिब्बे में घुस आए। उनके भड़कीले कपड़े, कानों में बालियां और तेज आवाज में गाने बजाते ब्लूटूथ स्पीकर ने सबका ध्यान खींच लिया। वे सीटों पर उधम मचाने लगे, मजाक उड़ाने लगे, गालियां देने लगे। बाकी यात्री चुपचाप तमाशा देख रहे थे। फौजी की नींद टूटी, उसने एक नजर लड़कों पर डाली और फिर आंखें बंद कर ली।
कुछ देर बाद, एक बूढ़ी महिला बड़ी मुश्किल से डिब्बे में चढ़ी। उसके सिर पर टोकरी थी, जिसमें भुने चने और मूंगफली के पैकेट थे। वह कांपती आवाज में बोली, “चने ले लो बाबूजी, मूंगफली ले लो।” कुछ लोगों ने उससे पैकेट खरीदे, लेकिन उसकी नजर उन लड़कों पर गई। वह उनके पास गई, उम्मीद थी कि अच्छी बिक्री होगी।
लड़कों ने उसे मजाक का जरिया बना लिया। “ऐ बुढ़िया, इधर आ। क्या बेच रही है?” उन्होंने अम्मा की पूरी टोकरी खाली कर दी—कोई चना फेंक रहा था, कोई मूंगफली उछाल रहा था। अम्मा बेबस खड़ी रही। जब सब खत्म हो गया, उसने कांपते हाथों से पैसे मांगे। लड़कों ने उसे टालना शुरू कर दिया—”तू दे, तू दे।” अम्मा की आंखें भर आईं। बाकी यात्री अब भी चुप थे।
फौजी शमशेर खान यह सब देख रहा था। उसे अपनी मां का चेहरा याद आ गया। वह अपनी सीट से उठा, उन लड़कों के पास गया। उसकी आवाज में ठहराव था, “भाई, इस बूढ़ी अम्मा के पैसे दो।” लड़कों का लीडर पहले अकड़ गया, फिर मजाक उड़ाने लगा। लेकिन फौजी ने अपनी सर्विस पिस्तौल निकाल ली और लीडर की कनपटी पर रख दी। डिब्बे में सन्नाटा छा गया।
“पैसे दो,” फौजी ने दो शब्द बोले। लड़कों के हाथ कांपने लगे। सबने अपनी जेब से नोट और सिक्के निकालकर अम्मा के हाथ में रख दिए। फिर फौजी ने कहा, “अब माफी मांगो।” सारे लड़के अम्मा के पैरों में गिर गए, माफी मांगने लगे। अम्मा घबरा गई, “नहीं बेटा, उठ जाओ।”
फौजी ने बंदूक वापस रख दी। डिब्बे में माहौल बदल गया। लोग मुस्कुराने लगे, कोई हंस पड़ा। पीछे से एक यात्री बोला, “फौजी साहब, माफी से क्या होगा? इनसे उठक-बैठक भी करवाइए!” पूरा डिब्बा हंस पड़ा। फौजी ने इशारा किया, लड़के कान पकड़कर गलियारे में उठक-बैठक लगाने लगे। सब यात्री खुश हो गए, अम्मा की आंखों में अब आंसू शुक्रगुजारी के थे।
अम्मा ने फौजी को 10 रुपये देने की कोशिश की। फौजी ने हाथ पकड़ लिया, “नहीं अम्मा, यह आपके मेहनत के पैसे हैं।” उसने अम्मा को सीट पर बैठाया, पानी की बोतल दी। अगले स्टेशन पर लड़के चुपचाप उतर गए, किसी ने पीछे नहीं देखा। फौजी वापस अपनी सीट पर बैठ गया, आंखें बंद कर ली।
अब ट्रेन की हवा में न्याय और सम्मान की खुशबू थी। डिब्बे के हर यात्री के लिए यह सफर यादगार बन गया।
वर्दी सिर्फ सरहद पर लड़ने के लिए नहीं, समाज के अंदर अन्याय से लड़ने के लिए भी होती है। फौजी शमशेर खान ने दिखाया कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है, खासकर जब पूरी भीड़ चुप हो। बुजुर्गों का सम्मान करना और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना ही सच्ची इंसानियत है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो शेयर करें और कमेंट करें—सच्ची इंसानियत यही है।
News
एक दिन किशोर दिल्ली गया। वहाँ एक बड़ी डील के सिलसिले में मीटिंग खत्म होने के बाद वो एक पुराने बाजार से गुजर रहा था। अचानक एक दुकान पर नजर गई—”रामकिशन एंड संस”।
सच्ची दोस्ती का कर्ज: किशोर और श्याम की कहानी पहला भाग: टूटी किताबें और टूटा दिल लखीमपुर के सरकारी स्कूल…
Zareen Khan: The Graceful Matriarch of Bollywood’s Khan Family Passes Away
Zareen Khan: The Graceful Matriarch of Bollywood’s Khan Family Passes Away The corridors of Bollywood fell silent on Friday morning…
क्यों हिन्दू रीति रिवाज से हुआ जरीन खान का अंतिम संस्कार!
जरीन खान: एक प्रेरणादायक जीवन की कहानी मुंबई की हलचल भरी सुबह थी, जब बॉलीवुड की मशहूर हस्ती जरीन खान…
सच्ची दोस्ती का कर्ज: किशोर और श्याम की कहानी
सच्ची दोस्ती का कर्ज: किशोर और श्याम की कहानी पहला भाग: टूटी किताबें और टूटा दिल लखीमपुर के सरकारी स्कूल…
15 साल बाद दोस्ती का कर्ज चुकाने आया करोड़पति दोस्त, लेकिन उसने जो देखा.. इंसानियत हिल गई
सच्ची दोस्ती का कर्ज: किशोर और श्याम की कहानी पहला भाग: टूटी किताबें और टूटा दिल लखीमपुर के सरकारी स्कूल…
होटल वेट्रेस को करोड़पति बोला एक लाख महीना दूंगा… मेरे घर चलो!” फिर जो हुआ… इंसानियत हिल गई
असली कमाई: इंसानियत शहर की चकाचौंध से कुछ दूर एक पुराना सा ढाबा था। जंग लगे बोर्ड, टूटी कुर्सियाँ, स्टील…
End of content
No more pages to load

