“IPS ने लाल जोड़ा पहनकर किया भ्रष्ट दरोगा का पर्दाफाश – आगे जो हुआ आपको हैरान कर देगा!”
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नए सवेरे की पहली हल्की धूप जब आईजीआर कॉलोनी के ऊँचे पेड़ों की नीचे से झाँकने लगी, तब आईपीएस निधि शर्मा ने अपने ऑफिस के दरवाजे पर ठहरकर गहरी सांस भरी। उनकी ल़ाल कांपिंग पहने हुए वर्दी पर अभी भी दिल्ली की चमक थी, लेकिन अब उन्हें उत्तर प्रदेश के उस छोटे से जिले में आकर कई अनकहे दर्द और लज्जा के किस्सों की गहराइयाँ जाँचना था। निधि हमेशा से कानून की परम उपासक रही; बचपन में गाँव की पक्की सड़क तक न होने पर भी उसने ठान लिया था कि पढ़ाई के बल पर ही किसी दिन ऐसी शक्तियाँ हासिल करेगी, जो लोगों को उम्मीद दे सकें। जब सालों की कड़ी मेहनत के बाद सीमा परीक्षा उत्तीर्ण कर आईएस ने खुद को यूपी कैडर में तबादला पाया, तो उसे लगा जैसे जीवन ने उसे एक नई जिम्मेदारी सौंपी हो: सच्चाई की मशाल को अँधेरे से लड़वाना।
पहले दिन ही तहसीलदार से मिलकर जब निधि ने लोगों की सुरक्षा के आंकड़े मँगाए, तो उनके हाथ एक अजीब सी रिपोर्ट पड़ी। दर्ज मामलों में भारी उछाल था, पर मुकदमों का निस्तारण नगण्य। जब उसने आम जनता से संवाद किया, तो पता चला कि यहां के कई थाने—मुख्यतः मेरठ रोड का थाना नंबर चार—बंद कमरों में शिकायतकर्ता महिलाओं को चुप करवा कर फाइलें ठुंसा देते थे। थाना प्रभारी निरीक्षक विजय राठौर का नाम ज़बान पर लिपटा हुआ रुठुआ गुड़ जैसा था; कड़वाहट में लिपटा और इंसाफ की जड़ में सूखापन ला देने वाला। निधि ने तय किया कि पहले अपने अपनों से इरादे साझा करेगा। टीम में शामिल रहेंगे दो सब-इंस्पेक्टर: कार्तिक और पूजा, जो पिछले साल से इस जिले में थे। कार्तिक तेज, पर अनुभवहीन था; पूजा शांत, पर अंदर किसी तूफ़ान जैसी धार लिए। निधि ने दोनों से सोमवार सुबह मिटीगेशन रूम में मुलाकात ली और कहा, “अब हम सिर्फ रिपोर्ट नहीं पायेंगे, सुकून लौटाएँगे।”
अगले दिन शाम को निधि और टीम मेरठ रोड थाना पहुँची। अँधेरा उतर चुका था, लेकिन थाने के बाहर छोटे-छोटे चमकते बल्बों से माहौल ज्यों-का-त्यों गंभीर लगा। निधि ने प्रवेश द्वार पर लगे गार्ड को परिचय पत्र दिखाया और अंदर कदम रखा। इधर-वहां फाइलों का अंबार था, टेबल पर रखी चाय ठंडी हो चुकी, और एक कोने में खामोशी से बैठकर कुछ महिलाएं थरथराहट में अपने पति-पड़ोसी के खिलाफ बयान दर्ज कराने की हिम्मत जुटा रही थीं। निधि ने उन्हें आँखों में देख कर मुस्कराते हुए कहा, “शुरुआती बातें बाद में, पहले मुझे सौगंध देना है कि मैं आपको सुरक्षित महसूस कराऊँगी।” यह सुनकर एक बुज़ुर्गा ने आंसू पोछे औररोशनी की तरह बोली, “बेटी, अगर सच में वर्दी की ये ताकत हैं तो आज हम सबको जी की राहत होगी।”
अगले सुबह निधि ने वीसीएस—वीडियो कांफ्रेंस सिस्टम—से हाईकमान को थाने की हालत दिखाई। कैमरे में साफ़ दिख रहा था कि महिलाओं के सामने बैठा इंस्पेक्टर विजय अपने मोबाइल में व्यस्त है, जबकि इंस्पेक्टर पूजा नोट्स ले रही थी। निधि ने तुरंत आदेश दिया कि थानाप्रभारी विजय को हाजिरी रजिस्टर पर हस्ताक्षर के लिए बुलाया जाए। विजय ने लड़खड़ाते कदमों से रजिस्टर उठाया, तब तक निधि खड़ी योजनाबद्ध मुस्कान सजा कर इंतज़ार कर रही थी। विजयी मुद्रा का आभास लिए विजय ने रजिस्टर खोलते ही देखा कि बीच-बीच में कट-मार्क्स लगे थे, जैसे किसी ने अनाधिकृत हस्तक्षेप के लिए शीटें ऊपर नीचे घसीटी हों। विजय की आँखे तैरने लगीं, लेकिन सबूत तो सामने थे। निधि ने शांत आवाज में कहा, “तुम्हारी जिम्मेदारी है शिकायतों पर कार्रवाई करना, न कि उम्मीदों को दबाना।” इसके बाद विजय को सस्पेंड करने का आदेश उच्चाधिकारियों को भेज दिया गया और निधि ने खुद पूजा और कार्तिक के साथ मिलकर थाने की सभी बड़ी दरवाज़ों के पीछे छिपे कारिंदों को आ कर बुलवाया।
थोड़ी देर में थाने का माहौल बदल गया। कई सिपाहियों ने अपने कंधों पर झिझकते हुए बताया कि कैसे हर शिकायत पर जब महिला बनी रहती थी तो उसकी इज्जत बचाने के नाम पर जयादा दबाया जाता था। “सुनीता मैम,” एक सिपाही डरते हुए बोला, “हम अंदर की गलत फाइलें बदलते थे, रंगरूट लाइन में रख देते थे।” निधि ने शीघ्रता से अपना फोन निकाला और कहा, “जो भी बोल रहे हो, यहीं कैमरा चालू कर देता हूँ।” सिपाही का चेहरा एक पल में बदल गया और उसने बातों को क्रमवार बताना शुरू कर दिया। निधि ने हर शब्द को संकलित किया, हर दस्तावेज को संलग्न किया, और तय किया कि दो दिनों में जिले के डीएम और एसपी को संयुक्त रिपोर्ट भेजी जाएगी।
वहीं, जिले का कुख्यात भूमाफिया चंद्रकांत तिवारी जो पिछले महीने से रेस्टहाउस के बैडरूम में जीआरपी के सहारे अवैध जमीन सिंचाई का खेल चला रहा था, उसने खबर पाते ही अपने गुर्गों से कहा कि इस आईपीएस को सबक सिखाओ। रात के अँधेरे में थाने के बाहर एक काली स्कार्पियो रुकी और तीन बदमाश अंदर दाखिल हो गए। उन्होंने कंप्यूटर सिस्टम तोड़ मरोड़ दिया, वो रिकॉर्डिंग का हार्ड डिस्क तोड़कर इस कदर बाहर फेंक दिया कि सुनसान गली में घंटों तक इंचार्ज पूजा और कार्तिक हिलते रहे। लेकिन निधि की टीम पहले से सतर्क थी। पूजा ने तुरंत बैकअप सर्वर से डेटा डाउनलोड कर लिया था। फैसला हो गया कि अब तहसील स्तर पर नहीं, सीधा राज्य मुख्यालय को सौंपा जाएगा।

दूसरे दिन जिला मुख्यालय में जब डीएम और एसपी के सामने निधि ने पूरी रिपोर्ट पढ़ी, तो उनकी हालत लड़खड़ा गई। बैठक के बाद डीएम ने निष्कर्ष निकाला कि सिर्फ थाने का प्रभारी बंद करना पर्याप्त नहीं, पूरे जिले में नियमित ऑडिट और पीड़ित संरक्षण कार्यक्रम चलाया जाएगा। वहीं एसपी ने निधि का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा, “आपने सच्चाई की चादर वापस फैलाई है।” निधि ने विनम्रता से सिर झुकाया, पर दिल में जानती थी कि यह तो शुरुआत मात्र है।
कुछ ही समय बाद चंद्रकांत ने दूसरी चाल चली। उसने स्थानीय अखबारों में विज्ञापन आदि करवा दिए कि निधि शर्मा का कोई लगाव हटृडा देवस्थानम से जुड़ा हुआ है, वह निजी फायदे के लिए विभाग का दुरुपयोग कर रही है। सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट वायरल हो गईं, कुछ स्थानीय नेताओं ने भी प्रदर्शन करवा दिया कि वह भूखंड मालिकों के साथ मिलकर गरीबों की जमीन हड़प रही है। निधि को जानबूझ कर ऐसे प्रपंच में फँसाकर बदनाम करने की कोशिश थी। लेकिन निधि ने ध्यान नहीं भटकाया। उसने पत्रकारों के सामने खुलकर सभी दस्तावेज रख दिये, जमीन खरीदने वालों की लिस्ट, ट्रांजेक्शन के रसीदों के साथ खरीदारों के नाम। जब मीडिया के लोग निधि के ऑफिस में मिलते, तो उन्हें चाय के साथ प्रमाणपत्र दिखता: “निधि शर्मा ने जो ३०० एकड़ सरकारी ज़मीन खरीदी है, वह गोपनीय निविदा के दौरान मिली थी, जान-बूझकर उनकी ओर से सूचित नहीं किया गया।” अख़बारों ने छाप दिया कि “निधि शर्मा पर कोई भ्रष्टाचार नहीं पाया गया; उल्टा शहर के भू-घोटाले का मुख्य सूत्रधार पकड़ा गया है।” इस खबर से विरोधियों की धुरी ढह गई।
उसके बाद निधि ने अपनी अगली योजना बनाई: पीड़ित महिलाओं के लिए समर्पित “सनशाइन सेंटर” की स्थापना। वहां जीवन-यापन के लिए कानूनी सलाह, इलाज, मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग और आत्मरक्षा कक्षाएं मुफ्त उपलब्ध थीं। गाँव-देहात से महिलाएँ आतीं और एक नई उम्मीद के साथ लौटतीं। सेंटर के उद्घाटन पर निधि ने कहा, “वर्दी का रंग लाल हो सकता है, लेकिन उसका उद्देश्य जीवन में उजाला लाना है।” भीड़ में खड़ी एक विधवा ने रोते हुए कहा, “मैडम, आपने हमें फिर जीना सिखाया।”
फिर एक दिन चंद्रकांत के गुर्गों ने सेंटर के दरवाज़े पर हमला किया। चूंकि सेंटर के बाहर सीसीटीवी लगे थे, हमले के वीडियो ऑनलाइन आ गए और पूरा जिला गुस्से में खड़ा हो गया। डीएम ने तत्काल आदेश दिया कि चंद्रकांत को हिरासत में लिया जाए, और वहाँ की सभी अवैध खदानों पर तत्काल रोक लगाई जाए। निधि ने स्वयं छापेमारी में हिस्सा लिया। काले कोयले और चूना-पीस का ढेर मिला, सबूत के रूप में ضبط किया गया। यही नहीं, पुलिस ने नोटिस जारी किया कि चंद्रकांत और उसके साथी भ्रष्ट कर्मचारियों को आज ही कोर्ट में पेश किया जाएगा।
इसी बीच निधि के घर में एक ऐसा पल आया जब उसकी आत्मा को ठेस पहुँची। उसकी छोटी बहन आकांक्षा ने फोन पर घबराहट में कहा, “दीदी, मुझे लगता है कि लोग हमें नापसंद करने लगे हैं। माँ कह रही है कि घर छोड़ो, गाँव वापस जाओ।” निधि ने बहन को गले लगाया और समझाया, “ये लड़ाई हमारी नहीं, सिस्टम की है। अगर हम पीछे हट गए तो एक और भू-गांठ खुल ही नहीं पाएगी।” बहन की आँखों में फिर सम्मान-सी चमक आई। यह निधि के लिए सबसे बड़ी जीत थी—अपने परिवार को अहसास दिलाना कि वह सही राह पर है।
कुछ महीने बाद, दिवाली की रात फिर आई। इस बार मेरठ रोड थाना का क्षेत्र पूरी तरह सज चुका था—महिलाएं स्वतंत्र महसूस कर रही थीं, फुटपाथों पर बच्चों के खिलौने बिक रहे थे, जुलूसों में पुलिस-कार्यकर्ता हाथ में रिबन बांध कर गली-गली में सुरक्षा गश्त दे रहे थे। निधि ने अपने अधिकारिक गाड़ी की जगह रिक्शा ली और उसमें बैठकर बाजार जाकर मिठाइयाँ खरीदीं। राह में एक वृद्धा ने उन्हें चिहुक कर आवाज दी, “मैडम, आपकी वजह से आज हम चैन की नींद सो रहे हैं।” निधि मुस्कुराई और बोली, “मेरी वर्दी का यही रंग है—नरमी और दृढ़ता का संगम।”
अगले दिन जब जिला मजिस्ट्रेट ने सार्वजनिक कक्ष में सभी सरकारी और गैर सरकारी अभ्यर्थियों के सामने निधि शर्मा को “जनकल्याण पुरस्कार” दिया, तब निधि ने हाथ उठाकर कहा, “इस पुरस्कार का सम्मान उन सबकी हिम्मत को जाता है, जो गलत के खिलाफ खड़े हुए।” भीड़ में से एक युवक ने ताली बजाई, एक महिला ने फुलझड़ी उड़वाई, और चारों ओर उत्सव का माहौल छा गया।
वहीं, जेल में बंद चंद्रकांत ने उम्मीद छोड़ी थी। जब उसे नोटिस मिली कि आने वाले हफ़्ते की सुनवाई में उसे दोषी ठहराया जा चुका है, तो वह जान गया कि अब उसकी नाकामियों के सबूत अदालत में डिफेंड नहीं हो पाएंगे।
इस प्रकार आईपीएस निधि शर्मा ने साबित किया कि वर्दी का मतलब सिर्फ अधिकार नहीं, दायित्व भी होता है। सिस्टम की हर दरार को वह अपनी लगन से भर सकती है। और जब तक देश में ऐसे अधिकारी खड़े हैं, अन्याय का अँधेरा कभी चिरकाल तक नहीं टिक सकता। कमरे की खिड़की से जब दिवाली के पटाखों की गूँज सुनाई दी, निधि ने हल्की मुस्कान से कहा, “और कितनी लड़ाइयाँ बाकी हैं, यह सफर तो बस शुरू हुआ है।”
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