ऑटो वाले ने रात में बीमार औरत को फ्री में अस्पताल पहुंचाया, इस छोटी सी नेकी ने उसकी जिंदगी बदल दी

हैदराबाद की चमचमाती सड़कों पर रमेश की कहानी

हैदराबाद, जहां साइबर सिटी की रोशनी और बिरयानी की खुशबू एक दूसरे से मिलती है, वहीं किसी पुराने मोड़ पर एक ऑटो ड्राइवर रमेश अपनी मेहनत और सच्चाई से हर सवारी का दिल जीत लेता था। उसके ऑटो की सीटें घिसी हुई थीं, मगर दिल सोने सा था। दिन-रात सड़कों पर दौड़ता, ताकि अपने परिवार का पेट पाल सके। उसका सपना था अपनी बेटी अनन्या को डॉक्टर बनाना और अपनी बीमार मां लक्ष्मी को बेहतर इलाज देना।

रमेश का घर बंजारा हिल्स से दूर एक तंग बस्ती में था। वहां उसकी मां लक्ष्मी, पत्नी सुनीता और आठ साल की बेटी अनन्या रहते थे। लक्ष्मी का दिल कमजोर था, डॉक्टरों ने कहा था जल्द ऑपरेशन जरूरी है। सुनीता घर संभालती और पड़ोस में सिलाई का काम करती, ताकि अनन्या की स्कूल फीस निकल सके। रमेश का सपना था कि अनन्या एक दिन डॉक्टर बने, ताकि कोई और मां उसकी तरह बीमारी से ना तड़पे।

एक तूफानी रात थी, जब हैदराबाद पर काले बादल छाए थे और बारिश ने सड़कों को नदी बना दिया था। रमेश रात की आखिरी सवारी की तलाश में चार मीनार के पास खड़ा था। तभी एक औरत तेजी से उसके ऑटो की ओर आई। उसकी उम्र 40 के आसपास थी, साड़ी भीगी थी और चेहरा दर्द से सिकुड़ा हुआ। वह ऑटो की सीट पर गिरते-गिरते बैठी और कराहते हुए बोली, “भैया, मुझे अस्पताल ले चलो, जल्दी!”

रमेश ने उसकी हालत देखी और बिना पैसे की परवाह किए ऑटो स्टार्ट किया। बारिश इतनी तेज थी कि सड़कें दिखाई नहीं दे रही थीं, वाइपर बार-बार रुक रहा था, मगर रमेश ने हिम्मत नहीं हारी। रास्ते में पुलिस ने उसे रोका, मगर इमरजेंसी जानकर रास्ता खोल दिया। आधे घंटे की जद्दोजहद के बाद रमेश अपोलो अस्पताल पहुंचा। उसने औरत को सहारा देकर इमरजेंसी वार्ड तक पहुंचाया। नर्सों ने उसे तुरंत स्ट्रेचर पर लिया। औरत ने रमेश की ओर देखा, “शुक्रिया भैया, मैं तेरा एहसान नहीं भूलूंगी।” रमेश ने कहा, “मैडम, आप ठीक हो जाइए, यही मेरे लिए काफी है।”

नर्स ने रमेश से पूछा, “आप इनके रिश्तेदार हैं?” रमेश ने सिर हिलाया, “नहीं, मैं तो बस ऑटो ड्राइवर हूं।” औरत ने कमजोर आवाज में कहा, “मेरा पर्स मेरे पास नहीं है, मैं बाद में पैसे दूंगी।” रमेश ने मुस्कुरा कर कहा, “कोई बात नहीं, आप बस ठीक हो जाइए।” वह अस्पताल से निकला, जेब खाली थी, मगर दिल सुकून से भरा था।

घर पहुंचकर उसने सुनीता और लक्ष्मी को सारी बात बताई। सुनीता ने कहा, “तूने अच्छा किया रमेश, मगर तुझे पैसे लेने चाहिए थे, मां की दवाइयां खत्म हो रही हैं।” रमेश ने हंसकर कहा, “पैसे तो फिर कमा लेंगे, मगर वो औरत अगर ठीक हो गई तो यही मेरी सबसे बड़ी कमाई होगी।” लक्ष्मी ने उसका माथा चूमा, “बेटा, तेरा दिल सोने का है, भगवान तुझे जरूर फल देगा।”

अगली सुबह रमेश फिर ऑटो लेकर सड़कों पर निकला। चार मीनार के पास एक काली कार रुकी। उसमें से एक अधेड़ उम्र का आदमी उतरा, “तू रमेश है?” “हाँ साहब,” रमेश ने जवाब दिया। “मैं डॉ. रवि शर्मा हूं। कल रात तूने मेरी पत्नी मंजुला को अपोलो अस्पताल पहुंचाया था। मैं तुझसे मिलना चाहता था।” रमेश का दिल जोर से धड़का, “साहब, मैडम ठीक है ना?” “हाँ रमेश, वह अब खतरे से बाहर हैं। मगर तूने जो किया वो कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूं।”

डॉ. शर्मा ने रमेश को अपोलो अस्पताल ले गए। मंजुला बिस्तर पर थी, चेहरा शांत था। उसने रमेश को देखते ही हाथ जोड़े, “भैया, तूने मेरी जान बचाई।” रमेश ने सिर झुकाया, “मैडम, आप ठीक हैं, यही मेरे लिए काफी है।” डॉ. शर्मा ने कहा, “रमेश, मंजुला को रात को सीने में तेज दर्द हुआ था। वो अकेली निकल गई क्योंकि मैं शहर से बाहर था। अगर तू उसे समय पर ना पहुंचाता तो शायद मैं उसे खो देता।”

मंजुला ने कहा, “रमेश, मैंने तेरे बारे में पूछा, मुझे पता चला कि तू अपनी मां के इलाज के लिए मेहनत करता है। मैं चाहती हूं कि तेरा सपना पूरा हो।” रमेश ने हैरानी से पूछा, “मैडम, मेरा सपना?” डॉ. शर्मा ने मुस्कुरा कर कहा, “हाँ रमेश, मैं कार्डियोलॉजिस्ट हूं। मैं तेरी मां का ऑपरेशन मुफ्त करूंगा और तेरी बेटी अनन्या की पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगा।”

रमेश की आंखें भर आईं। उसने उनके पैर छूने की कोशिश की, मगर डॉ. शर्मा ने उसे रोक लिया, “रमेश, यह मेरा धन्यवाद है। मगर एक और बात है।” मंजुला ने कहा, “हमारे एनजीओ में एक नई ब्रांच खुल रही है, मैं चाहती हूं कि तू उसे संभाले।”

रमेश ने हिचकते हुए कहा, “मैडम, मैं तो बस एक ऑटो ड्राइवर हूं, इतना बड़ा काम कैसे करूंगा?” मंजुला ने उसका कंधा थपथपाया, “रमेश, तेरे पास वो दिल है जो दूसरों की जिंदगी बदल सकता है। मैं तुझ पर भरोसा करती हूं।”

अगले कुछ हफ्तों में रमेश ने एनजीओ में काम शुरू किया। वह बच्चों को स्कूल ले जाता, उनके लिए किताबें और खाना इकट्ठा करता, मंजुला के साथ मिलकर नई ब्रांच की योजना बनाता। लक्ष्मी का ऑपरेशन हो गया, वह धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। डॉ. शर्मा ने अनन्या को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिल करवाया और उसकी पढ़ाई का सारा खर्च उठाया। रमेश का ऑटो अब गैरेज में खड़ा था, मगर जिंदगी के पहिए अब सपनों की रफ्तार से दौड़ रहे थे।

एक दिन मंजुला ने रमेश को अपने घर बुलाया। वहां एक बूढ़ी औरत थी, जिसकी आंखें उदास थीं। मंजुला ने कहा, “रमेश, यह मेरी मां सरस्वती हैं।” मंजुला ने बताया, “जब रिया का हादसा हुआ, मेरी मां ने खुद को दोषी माना। वो रिया को स्कूल ले जा रही थी, जब हादसा हुआ। उस दिन से मां ने बोलना छोड़ दिया। मगर जब मैंने उन्हें तेरी कहानी बताई, तो वह मुझसे मिलने आई।”

सरस्वती ने कांपते हाथों से रमेश का हाथ पकड़ा, “बेटा, तूने मेरी बेटी को बचाया, मैं तुझसे माफी मांगना चाहती हूं।” रमेश की आंखें भर आईं, “मां जी, आप ऐसा मत कहिए, मैंने तो बस अपना फर्ज निभाया।” मंजुला ने कहा, “मां अब हमारे साथ रहेंगी और मैं चाहती हूं कि तू और तेरा परिवार भी हमारे करीब रहे। मेरे पास एक छोटा सा फ्लैट है जो मैं तुम्हें देना चाहती हूं।” रमेश ने सिर हिलाया, “मैडम, आपने पहले ही बहुत किया, मैं यह नहीं ले सकता।” मंजुला ने हंसकर कहा, “रमेश, यह मेरा प्यार है, तू मेरा भाई है।”

अगले कुछ महीनों में रमेश का परिवार मंजुला के दिए फ्लैट में शिफ्ट हो गया। लक्ष्मी अब पूरी तरह ठीक थी और अनन्या स्कूल में सबसे होशियार बच्चों में थी। रमेश की नई ब्रांच अब हैदराबाद की सबसे मशहूर जगहों में थी, जहां सैकड़ों बच्चे मुफ्त पढ़ाई करते थे। रमेश हर बच्चे को अपनी कहानी सुनाता, कैसे उसने एक तूफानी रात में एक बीमार औरत को अस्पताल पहुंचाया और उसकी नेकी ने उसकी जिंदगी बदल दी।

एक दिन मंजुला ने रमेश को एक समारोह में बुलाया। वहां शहर के बड़े लोग थे। मंजुला ने मंच पर रमेश को बुलाया, “यह रमेश है, जिसने मेरी जान बचाई। आज हमारी नई ब्रांच का उद्घाटन उसी के नाम पर है – रमेश की रोशनी।” रमेश की आंखें नम हो गईं। उसने माइक पकड़ा, “मैंने सिर्फ एक औरत को अस्पताल पहुंचाया था, मगर आप सब ने मुझे इतना प्यार दिया। यह मेरी नहीं, मेरी मां के आशीर्वाद की जीत है।”

उस दिन सरस्वती भी वहां थी। उसने रमेश को गले लगाया, “बेटा, तूने मुझे मेरी बेटी वापस दी।” रमेश की नेकी ने ना सिर्फ उसका परिवार बचा लिया, बल्कि मंजुला और सरस्वती का टूटा हुआ रिश्ता भी जोड़ दिया। अनन्या अब डॉक्टरी की पढ़ाई की ओर बढ़ रही थी और रमेश का सपना सच हो रहा था।

एक सांझ जब रमेश अपनी नई ब्रांच बंद कर रहा था, एक बूढ़ा आदमी आया, “बेटा, मेरी बेटी बीमार है, क्या तू मुझे अस्पताल ले जाएगा?” रमेश ने मुस्कुराकर अपना पुराना ऑटो स्टार्ट किया, “चलो अंकल, मैं आपको पहुंचा दूंगा।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि एक छोटी सी नेकी – एक रात का फैसला – किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है। रमेश ने सिर्फ एक बीमार औरत को अस्पताल पहुंचाया, मगर उसकी नेकी ने एक परिवार को जोड़ा और हैदराबाद की गलियों में सैकड़ों बच्चों के लिए रोशनी जला दी।

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