बेटियों का बोझ नहीं, इज्जत हैं — मारिया की कहानी
मेरी शादी को दस साल हो चुके थे। तीन बार मैं मां बनी और हर बार बेटी ही पैदा हुई। जब भी बेटी होती, सास के चेहरे पर मायूसी छा जाती। वह ताने मारती, डांटती, और हर छोटी बात पर लड़ाई करती। चौथी बार जब मैं हामिला हुई, तो रात के सन्नाटे में अल्लाह से दुआ करती—”या अल्लाह, मुझे बेटा दे ताकि मेरी इज्जत रह जाए।”
मगर जिस्म कमजोर होता जा रहा था, उम्मीदें टूटती जा रही थीं। सास की खिदमत करती, उनके पांव दबाती, खाना बनाती—शायद उनका दिल नरम पड़ जाए। मगर उनका दिल पत्थर का था। एक रात मोहल्ले की औरतों ने सास को भड़काया। वह गुस्से में थी। मैंने पांव दबाए तो उसने ताने मारते हुए मेरे हामिला पेट पर जोर से लात मार दी। मैं दर्द से तड़पती हुई जमीन पर गिर गई। बेहोश हो गई। जब होश आया, तो मेरी औलाद मर चुकी थी। शौहर गुस्से से देख रहा था, सास रोने का दिखावा कर रही थी।
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शौहर मुझे तलाक देने लगा। मैंने आसमान की तरफ देखा और कहा, “या अल्लाह, मुझे इंसाफ चाहिए।” मैंने कुछ नहीं कहा, बस अल्लाह से इंसाफ मांगा। उसी वक्त मैंने बद्दुआ दी—”मेरा दर्द मेरी सास को भी मिले।”
मेरा नाम मारिया है। मेरी परवरिश लाहौर के पुराने मोहल्ले में हुई। घर छोटा था, दीवारों पर वक्त के निशान, छत टपकती थी। अब्बा के पास कोई पक्का काम नहीं था। कभी मजदूरी, कभी बिजली का काम। शाम को खाली जेब लौटते, अम्मा चुपचाप बची दाल रख देती। चार बेटियां थीं, मोहल्ले वाले ताने मारते। अब्बा के दिल में बातें बैठ गईं। वह सख्त मिजाज होते गए। अम्मा चुप रहती, मगर उनकी आंखों में दर्द था।
मैं सबसे बड़ी थी। सुबह उठकर अम्मा के साथ रोटियां बनाती, पानी भरती, घर का काम करती। हालात और खराब हो गए जब अब्बा मजदूरी के दौरान गिर गए। डॉक्टर ने कहा—छह महीने तक काम नहीं कर पाएंगे। घर में भूख, चिंता और मायूसी थी। मैंने मालिक साहब की कोठी में कपड़े धोने का काम पकड़ लिया। ₹8000 मिलते, घर का खर्चा चलता। मगर मोहल्ले वालों ने झूठ फैलाया—”तुम्हारी बेटी गैरों के घर जाती है।” अब्बा ने मेरी शादी का फैसला कर लिया।

सलमान का रिश्ता आया। वह पास के गांव में किराने की दुकान चलाता था। शादी हो गई, जहेज में बस दो जोड़े मिले। अब्बा ने कहा, “अब सलमान ही तुम्हारा सब कुछ है।” सलमान का घर छोटा था, उसकी मां सख्त मगर सीधी थी। मैंने घर के सारे काम संभाल लिए। सलमान कमाई मां को देता, मुझे कभी पैसे नहीं दिए। मगर मैं खुश थी—कम से कम ताने नहीं सुनने पड़ते थे।
कुछ साल बाद अल्लाह ने मुझे जुड़वा बेटियां दीं—मेहर और आमना। दिल में खुशी थी, मगर ससुराल वालों के चेहरे उतर गए। सलमान की मां बोली, “लड़कियां तो बस खर्च बढ़ाती हैं।” मैंने बेटियों को सीने से लगाया, अकेले ही उनका ख्याल रखा। सलमान ने तसल्ली दी, मगर उसकी खुशी चेहरे पर नहीं थी।
फिर मैं फिर से हामिला हुई। सलमान की मां ने साफ कहा—”अबकी बार लड़का चाहिए, वरना बुरा होगा।” सलमान ने कहा, “इस बार लड़का ही होगा।” मगर मैंने दिल से दुआ की, “या अल्लाह, वही दे जो मेरे लिए बेहतर हो।” नौ महीने बाद फिर बेटी हुई। सास के ताने और सख्ती बढ़ गई। सलमान दिन-ब-दिन दूर होता गया। घर में बस ताने, मायूसी और चुप्पी थी।
एक रात सास ने फिर ताने मारते हुए मेरे पेट पर लात मार दी। मैं दर्द से तड़पती, बेहोश हो गई। जब होश आया, तो मेरी कोख खाली थी। इस बार बेटा था, जो दुनिया में आने से पहले ही चला गया। सबने मुझे दोषी ठहराया। मैंने सफाई देने की कोशिश की, मगर किसी ने नहीं सुना। उसी रात मैंने अल्लाह से बद्दुआ मांगी—”मेरी सास को भी वही दर्द मिले।”
अगले दिन सास की बेटी नायला को उसके शौहर ने तलाक दे दिया। वजह वही—तीसरी बेटी की पैदाइश। सास फर्श पर बैठकर रो रही थी—”हाय मेरा नसीब!” मैंने देखा, वही नायला जो मुझे ताने मारती थी, आज खुद उसी दर्द से गुजर रही थी। घर में सन्नाटा था। नायला ने खुदकशी की कोशिश की। मैंने उसे समझाया—”मैं भी तीन बेटियों की मां हूं, मगर हिम्मत नहीं हारी।”
इस बार सास मेरी तरफ देख नहीं पाई। एक रात वह मेरे पास आई, आंसुओं के साथ माफी मांगी। मैंने कहा, “अम्मा, माफी से वो नहीं लौट सकता जो मुझसे छीना गया।” मगर उसके आंसुओं में अब गुरूर नहीं, पछतावा था।
कुछ महीनों बाद मैंने और नायला ने मिलकर सिलाई सेंटर खोल लिया। हमारी बेटियां भी मदद करती हैं। घर के हालात बदल गए। सलमान अब बेटियों को इज्जत देता है। वही सास जो बेटियों को बोझ कहती थी, अब फख्र से सबको बताती है—”मेरी बेटियां ही मेरा फहर हैं।”
मेरे दिल में बस एक खलश है—काश मेरे बाप ने भी समझा होता कि बेटियां बोझ नहीं होतीं, बल्कि बोझ बांटने वाली होती हैं। मगर आज मैं अल्लाह का शुक्र अदा करती हूं कि उसने मुझे और मेरी बेटियों को वह इज्जत दी जिसका मैंने सिर्फ ख्वाब देखा था।
यह कहानी हमें सिखाती है कि बेटियां बोझ नहीं, इज्जत होती हैं। वक्त चाहे कितना भी मुश्किल हो, हिम्मत और सब्र से जिंदगी बदल सकती है।
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