13 Saal Ke Gareeb Ladki, Jisey Sab Mazak Samaj Rahe The, Ne Impossible Kar Dikhaya.

दोस्तों, आज की कहानी कोई आम कहानी नहीं है। यह कहानी है 13 साल की लड़की आरोही की, जो अपनी बीमार मां की जगह देश की सबसे बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने गई। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी, परवरिश और हिम्मत किसी भी डिग्री से ज्यादा कीमती होती है।

शहर की सबसे ऊंची इमारतों में से एक ग्लोबल नेट कॉरपोरेशन। जब 13 साल की आरोही ने उसके कांच के दरवाजे से अंदर कदम रखा, तो एक पल के लिए सब कुछ रुक सा गया। अंदर ठंडा, एयर कंडीशनिंग वाला माहौल, सूट पहने हुए लोग, और हर तरफ फाइलों और कॉफी की मिली-जुली खुशबू। इस माहौल में स्कूल यूनिफार्म पहने, बालों में दो चोटियां की और कंधे पर बैग लटकाए आरोही बिल्कुल एक भटके हुए किरदार जैसी लग रही थी। उसकी आंखों में डर और हिम्मत दोनों एक साथ चमक रहे थे।

भाग 2: रिसेप्शन पर

वह धीरे-धीरे रिसेप्शन की तरफ बढ़ी। रिसेप्शन पर बैठी महिला ने उसे देखकर एक बनावटी मुस्कुराहट के साथ पूछा, “जी बेटी, किसी के साथ आई हो? अपने पापा का इंतजार कर रही हो?” आरोही ने हल्की मगर मजबूत आवाज में कहा, “नहीं मैम, मैं इंटरव्यू के लिए आई हूं। वो जो आज मार्केटिंग कंसलटेंट की पोस्ट के लिए इंटरव्यू हो रहे हैं।”

यह सुनना था कि रिसेप्शनिस्ट की मुस्कुराहट असली हंसी में बदल गई। उसके साथ बैठी दूसरी लड़की ने भी जोर से हंसते हुए कहा, “इंटरव्यू, बेटी? यह कॉर्पोरेट ऑफिस है। कोई स्कूल नहीं। जाओ, यहां खेलने की जगह नहीं है।”

आरोही के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। “मैम, मैं मजाक नहीं कर रही। मेरी मम्मी अंजलि शर्मा का आज इंटरव्यू था। मैं उनकी जगह आई हूं।” रिसेप्शनिस्ट ने ताना मारने वाले अंदाज में कहा, “बेटा, ऐसा नहीं होता। यह स्कूल नहीं कि नकल करके एक दूसरे के बदले पेपर दिए जाए। यहां खुद आना पड़ता है।”

लेकिन रिसेप्शनिस्ट की इन बातों से आरोही पर कोई असर ना हुआ। आखिर उसकी जिद देखकर रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “वाह, आजकल के बच्चे भी कमाल करते हैं।” यह कहकर उसने आरोही को बैठने का इशारा किया और फोन उठाकर एचआर टीम को कॉल मिलाई।

भाग 3: एचआर हेड का आगमन

“सर, यहां एक छोटी बच्ची जिद लगाए बैठी है कि मां के बदले इंटरव्यू देना है। आप प्लीज आकर देख लें।” चंद लम्हों बाद एचआर हेड विजय शर्मा 30 के करीब गुरूर वाले मिजाज के अपने कमरे से निकले। वो हंसते हुए बोले, “कौन है वह बहादुर लड़की जो अपनी मां के लिए नौकरी का इंटरव्यू देने आई है?” रिसेप्शनिस्ट ने इशारा किया, “यह रही सर।”

विजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “चलो, इसे अंदर भेजो। आज कुछ नया देखते हैं।” थोड़ा मजा लिया जाए। फिर उसने अपने साथी सलमान कुरैशी को भी बुला लिया। कमरा तैयार था। विजय और सलमान हंसी-मजाक के मूड में थे, मगर उनके दरमियां इंटरव्यू पैनल में एक आदमी था। सीईओ रविंद्र शर्मा, 50 साल के संजीदा नरम दिल शख्सियत, जो हमेशा की तरह खामोशी से सब कुछ देख रहे थे।

भाग 4: इंटरव्यू की शुरुआत

दरवाजा खुला और आरोही अंदर आई। एक पल को सब खामोश हो गए। विजय ने मजाक उड़ाते हुए पहला सवाल किया, “छोटी मैडम, आपकी मम्मी कहां है जो आपको अपनी जगह भेज दिया?” आरोही ने एक गहरी सांस ली। उसकी आंखों के सामने कल का नजारा घूम गया। जब उसकी मां अंजलि शर्मा अचानक गिरकर बेहोश हो गई और उसे हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराना पड़ा। वो एक 45 साल की इज्जतदार बेवा औरत थी, जिसने शौहर के जाने के बाद अपनी बेटी आरोही को बहुत मुश्किल से पाला था।

आज बरसों बाद उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी का मौका मिला था। एक ऐसा मौका जो उनकी जिंदगी बदल सकता था। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इंटरव्यू से एक दिन पहले तेज बुखार ने उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया। पिछले दिन की यादों से बाहर आकर आरोही ने नरम लेकिन मजबूत आवाज में जवाब दिया, “सर, मेरी मां अस्पताल में है। उन्होंने एचआर टीम को कॉल की थी कि उनका इंटरव्यू दो दिन तक टाल दिया जाए। लेकिन आपकी कंपनी ने उन्हें 2 दिन का वक्त देने से मना कर दिया। इसलिए मैं यहां हूं। वो मौका लेने जो मेरी मां का हक था।”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया। हंसी और मजाक के हावभाव अब हैरानी में बदल चुके थे। रविंद्र शर्मा साहब ने पहली बार नजरें उठाकर गौर से आरोही को देखा। सलमान साहब ने ताना मारने वाले लहजे में माहौल बदलने की कोशिश की। “चलो, देखते हैं तुम्हें क्या आता है। बताओ बेटी, फोटोसिंथेसिस क्या होता है?” कमरे में फिर से हल्की हंसी गूंजी।

भाग 5: ज्ञान का प्रदर्शन

आरोही ने सीधी नजरों से देखते हुए कहा, “सर, वो सवाल साइंस का है। यह इंटरव्यू मार्केटिंग डिपार्टमेंट के लिए है। अगर आप चाहें, तो मैं आपके प्रोडक्ट, सेल, ब्रांड पहुंच या कस्टमर के व्यवहार पर बात कर सकती हूं।” यह जवाब सलमान साहब के लिए एक थप्पड़ की तरह था। कमरा एकदम खामोश हो गया। सलमान के चेहरे पर नाराजगी छा गई।

“अच्छा, तो तुम्हें मार्केटिंग आती है? चलो बताओ, बी टू बी और बी टू सी मार्केटिंग में क्या फर्क है?” आरोही ने फौरन कहा, “बी टू बी यानी बिजनेस टू बिजनेस। जहां एक कंपनी दूसरी कंपनी को प्रोडक्ट या सर्विस देती है। बी टू सी यानी बिजनेस टू कस्टमर जहां कंपनी सीधे ग्राहक को चीज बेचती है। मिसाल के तौर पर, अगर एक कंपनी दूसरी कंपनी को पानी के कूलर सप्लाई करे तो वह बी टू बी है और अगर वह कूलर आम बाजार में बेचे तो वह बी टू सी है।”

कमरे में हल्की सी सरगोशी हुई। रविंद्र शर्मा साहब ने नजरें ऊपर उठाई। दिलचस्प विजय जो अभी तक खामोशी से सुन रहे थे ने अगला सवाल किया, “अगर तुम्हें हमारी कंपनी का नया प्रोडक्ट लॉन्च करना हो तो तुम पहली रणनीति क्या अपनाओगी?”

भाग 6: मार्केटिंग रणनीति

आरोही ने लम्हा भर सोचा और बोली, “मैं पहले बाजार रिसर्च करूंगी, टारगेट ऑडियंस देखूंगी। फिर सोशल मीडिया एनालिसिस से ग्राहकों के रवयों का अंदाजा लगाकर मार्केटिंग प्लान बनाऊंगी और सबसे पहले लोगों का भरोसा जीतने की कोशिश करूंगी। क्योंकि ब्रांड सिर्फ विज्ञापन से नहीं, भरोसे से बनता है।”

अब हंसी पूरी तरह से गायब थी। हर चेहरा संजीदा हो चुका था। एक और सवाल आया, “यह सब तुम्हें किसने सिखाया?” आरोही ने मुस्कुराकर कहा, “यह सब मुझे मेरी मम्मी ने सिखाया। मम्मी कहती हैं, शिक्षा वो दौलत है जो किसी को भी अमीर बना सकती है, अगर नियत सच्ची हो।”

रविंद्र शर्मा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। “बहुत खूब। लेकिन दोस्तों, यह कहानी यहीं खत्म नहीं होनी थी। क्योंकि आरोही को पता था कि आने वाले सवाल और भी मुश्किल होंगे। कमरे का सन्नाटा बरकरार था। सबके चेहरे संजीदा थे। वही लोग जो कुछ देर पहले हंस रहे थे, अब इस 13 साल की लड़की की समझदारी से हैरान थे।

भाग 7: चुनौतीपूर्ण सवाल

सीईओ रविंद्र शर्मा अपनी कुर्सी पर जरा आगे झुके। “चलो बेटी, आपके लिए अगला सवाल।” आरोही ने नजरें उठाकर उनकी तरफ देखा। “जी सर।” रविंद्र शर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “फर्ज करो कि तुम्हारी कंपनी ने एक नया प्रोडक्ट लॉन्च किया है। पहले हफ्ते में बिक्री बहुत ज्यादा है, लेकिन दूसरे हफ्ते में अचानक कमी आ जाती है। तुम बतौर मार्केटिंग मैनेजर क्या करोगी?”

आरोही ने एक लम्हे के लिए सोचा। फिर बोली, “मैं सबसे पहले डाटा एनालिसिस देखूंगी। किस एरिया में बिक्री कम हुई और क्यों? मैं कस्टमर फीडबैक इकट्ठा करके जानूंगी कि मसला प्रोडक्ट में है या सर्विस में। और अगर वजह भरोसे की कमी है तो मैं एक साफ सुथरी कम्युनिकेशन कैंपेन लॉन्च करूंगी। ताकि ग्राहकों को दोबारा यकीन हो कि हमारा ब्रांड सच बोलता है। सिर्फ बेचता नहीं।”

भाग 8: विश्वास का निर्माण

रविंद्र शर्मा ने बेख्तियार सिर हिलाया। “वाह! शानदार जवाब।” लेकिन इससे पहले कि रविंद्र शर्मा बात खत्म करते, सलमान बोल पड़े, “बेटी, एक सवाल मेरी तरफ से भी।” रविंद्र शर्मा ने इजाजत दी। सलमान ने मुस्कुरा कर ताना मारने वाले अंदाज में कहा, “चलो बताओ बेटी, आरओआई यानी रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट कैसे कैलकुलेट करते हैं?”

यह सवाल थोड़ा टेक्निकल था। आरोही ने लम्हा भर खामोशी इख्तियार की। फिर बोली, “सर, आरओआई बराबर गेन ऑन इन्वेस्टमेंट, माइनस कॉस्ट ऑफ इन्वेस्टमेंट डिवाइड, बाय कॉस्ट ऑफ इन्वेस्टमेंट, मल्टीप्लाई बाय 100।” यह कहने के बाद वो रुकी, चेहरे पर उलझन आई। फिर बोली, “लेकिन सर, आरओआई हमेशा पैसे से नहीं, कभी-कभार भरोसे से भी नापा जाता है। अगर कंपनी का नाम खराब हो जाए तो लाखों की कमाई भी नुकसान बन जाती है।”

रविंद्र शर्मा के चेहरे पर गहरी मुस्कुराहट आई। लेकिन सलमान ने झट से एक नया सवाल धागा। “अच्छा फिर यह बताओ, कंज्यूमर रिटेंशन रेट क्या है और इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है?” आरोही ने सांस भरी मगर फिर मुस्कुरा कर बोली, “यह रेट इस बात को जाहिर करता है कि कितने कस्टमर आपके साथ हमेशा जुड़े रहते हैं। इसे बढ़ाने के लिए प्रोडक्ट के माप के साथ-साथ ईमानदारी, कस्टमर सर्विस और रिश्तेदारी जरूरी है। मम्मी कहती हैं, ‘अगर आप एक कस्टमर को इज्जत देंगे, तो वह 100 नए ले आएगा।’”

अब पूरा कमरा पूरी तरह से खामोश था। रविंद्र शर्मा ने कुर्सी से टेक लगा ली। “बहुत खूब। लेकिन मेरा आखिरी सवाल और यह मुश्किल है।” आरोही ने ध्यान से सुना। “फर्ज करो, तुम्हारी कंपनी पर एक गलत इल्जामों का तूफान आ गया है। मीडिया में नेगेटिव खबरें चल रही हैं। लोग तुम्हारे प्रोडक्ट से नफरत करने लगे हैं। तुम बतौर कम्युनिकेशन हेड क्या करोगी?”

भाग 9: सच्चाई की अहमियत

यह सवाल वाकई मुश्किल था। आरोही ने काफी देर सोचा। फिर हल्की आवाज में बोली, “मैं शायद एक पब्लिक मीटिंग बुलाऊंगी या मीडिया कॉन्फ्रेंस? और अगर इल्जाम गलत है तो मैं सबूत पेश करूंगी। लेकिन अगर कंपनी सच में गलती पर हो तो मैं सबके सामने माफी मांगूंगी। क्योंकि सच्चाई थोड़े वक्त का नुकसान देती है। मगर झूठ हमेशा के लिए नुकसानदेह होता है।”

यह कहते हुए आरोही की आवाज भर गई। सलमान ने बेसाख्ता कहा, “और अगर मीडिया तुम्हारा मजाक उड़ाए?” आरोही ने सीधी नजर से जवाब दिया, “तो मैं बर्दाश्त करूंगी जैसे मेरी मम्मी करती है। मम्मी कहती हैं, ‘सच बोलने वाला थोड़े वक्त का नुकसान उठाता है। मगर इतिहास में इज्जत पाता है।’”

यह जुमला सुनकर कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई। रविंद्र शर्मा के चेहरे पर एक नरम सी मुस्कुराहट आई। उन्होंने धीरे से कहा, “बेटी, तुम्हारी मम्मी क्या करती हैं?”

भाग 10: मां का गर्व

“मम्मी एक प्राइवेट इंटर कॉलेज में मार्केटिंग पढ़ाती हैं। और तुम्हें यह सब किसने सिखाया?” आरोही ने फक्र से जवाब दिया, “मम्मी ने। वो कहती हैं, शिक्षा बांटने से बढ़ता है। पिछले 5 साल से वह मुझे यही सब सिखाती आई हैं। उनका सपना है कि एक दिन मैं कॉर्पोरेट वर्ल्ड में अपना नाम रोशन करूं।”

रविंद्र शर्मा के होठों पर हल्की सी खामोशी छा गई। वो दिल ही दिल में सोच रहे थे, “बेटी, तुमने तो वह काम आज कर दिखाया। तुमने अपना नाम रोशन कर दिया।” उनकी आंखों में वो जज्बात थे जो शायद बरसों से छिपे थे। इंसानियत और इज्जत के।

उन्होंने धीरे से कहा, “बेटी, तुम्हारी मम्मी बहुत अजीम औरत हैं।” “जी सर, वो सब कुछ हैं मेरे लिए।” रविंद्र शर्मा ने एक फैसला लेने वाले लहजे में कहा, “इंटरव्यू खत्म।” विजय ने हैरानी से पूछा, “सर, मगर रिजल्ट?”

रविंद्र शर्मा ने सिर्फ इतना कहा, “रिजल्ट मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा। फिलहाल मुझे इस बच्ची के साथ कहीं जाना है।” आरोही चौंक गई। “कहां सर?”

भाग 11: अस्पताल की ओर

“उस अस्पताल जहां तुम्हारी मां है।” उधर अस्पताल में अंजलि अभी भी बिस्तर पर थी। चेहरे पर कमजोरी मगर दिल में फिक्र। नर्स ने आकर बताया कि अस्पताल का बिल ₹1 लाख हो चुका है। “मैडम, अगर आपने आज पेमेंट ना की तो हमें इलाज रोकना पड़ेगा।”

अंजलि के हाथ कांप गए। उसने कांपती हुई आवाज में कहा, “बेटी, मेरे पास अभी कोई पैसा नहीं है। भगवान के लिए इलाज बंद मत करो। मैं वादा करती हूं कि जैसे ही ठीक हुई, इंतजाम कर लूंगी।” लेकिन नर्स ने सिर हिलाया। “रूल्स हैं मैम। हम कुछ नहीं कर सकते।”

यह नजारा दरवाजे पर खड़े रविंद्र शर्मा अपनी आंखों से देख रहे थे। उनके साथ आरोही भी खड़ी थी। आंखों में आंसू। रविंद्र शर्मा ने एक लम्हे के लिए आंखें बंद की। फिर जेब से अपना क्रेडिट कार्ड निकाला। कमरे में दाखिल होकर उन्होंने नर्स को कार्ड देते हुए कहा, “इस कार्ड से जितना बिल है क्लियर कर दें और आइंदा का खर्च भी इसी से चार्ज करें।”

भाग 12: मां का आभार

नर्स हैरान रह गई। “सर, आप…” रविंद्र शर्मा ने सिर्फ इतना कहा, “इनका इलाज फौरन जारी रखो।” अंजलि शर्मा ने हैरान होकर उनकी तरफ देखा। “आप कौन हैं? मैं आपको नहीं जानती।”

रविंद्र शर्मा ने मुस्कुरा कर कहा, “मैडम, आप मुझे नहीं जानती लेकिन मैं आपकी बेटी के जरिए आपको जान गया हूं। वो आज हमारी कंपनी में इंटरव्यू देने आई थी आपकी जगह और उसने हम सबको हैरान कर दिया।”

अंजलि शर्मा की आंखों में आंसू आ गए। “क्या मेरी आरोही वहां गई थी?” “जी, और उसने साबित कर दिया कि आप एक अजीम मां हैं। मैं रविंद्र शर्मा हूं। ग्लोबल नेट कॉरपोरेशन का सीईओ। मैं आपको सीनियर एग्जीक्यूटिव की पोस्ट ऑफर करता हूं।”

भाग 13: नए अवसर

अंजलि शर्मा ने बेयकीनी से उनकी तरफ देखा। “मगर मैं आपका एहसान कैसे चुका सकती हूं?” रविंद्र शर्मा ने नरमी से कहा, “यह कोई एहसान नहीं। यह आपका हक है। आप अपनी बेटी जैसी नस्ल तैयार कर रही हैं। आपने हमें सिखाया कि कामयाबी के पीछे सिर्फ डिग्री नहीं बल्कि तरबियत होती है। दिल की तरबियत। हम आपसे सीखना चाहते हैं। आप जल्दी से ठीक होकर ड्यूटी ज्वाइन करें। और हां, अस्पताल का बिल आपकी पहली सैलरी से एडजस्ट हो जाएगा। आप फिक्र ना करें।”

अंजलि के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। आरोही भागकर मां से लिपट गई। दोनों की आंखों में आंसू थे। कमरे में एक अजीब सी रोशनी छा गई थी। इंसानियत, इज्जत और मां-बेटी के रिश्ते की रोशनी।

भाग 14: एक नई शुरुआत

ग्लोबल नेट कॉरपोरेशन अब मुल्क की बेहतरीन कंपनियों में गिनी जाने लगी थी। बिक्री में बढ़ोतरी, टीम वर्क में सुधार और सबसे बढ़कर एक इंसानियत वाला माहौल पैदा हो चुका था। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई तो चैनल को सब्सक्राइब और वीडियो को लाइक और शेयर जरूर करें।

आरोही की हिम्मत और उसकी मां की परवरिश ने यह साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और ईमानदारी का फल हमेशा मिलता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मुश्किल हालात में भी अगर हम अपने इरादों को मजबूत रखें, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

अंत

आरोही की कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें याद दिलाती है कि कभी भी किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए। यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि सभी उन मां-बेटियों की है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं।

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