कैसे इस भिखारी लड़के ने दिया इस करोड़पति लड़की को जीवनदान

यह कहानी है राजू की, जो केवल 10-11 साल का एक लड़का है। उसकी न तो मां है और न ही पिता। राजू फटे-पुराने मैले कपड़े पहने, बिना चप्पल के गली-मोहल्ले में भटकता रहता है। वह भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करता है। कभी किसी दुकान के बाहर, कभी फुटपाथ पर, तो कभी किसी फ्लाईओवर के नीचे रात बिताता है। खुले आसमान के नीचे कब तारे गिनते हुए वह नींद में डूब जाता, उसे पता ही नहीं चलता। अगले दिन फिर से दौड़ते-भागते मुंबई की चहल-पहल भरी गलियों में खो जाता है।

राजू बड़ा ही मनमौजी और अपने में खुश रहने वाला लड़का है। उसे नाचने का बहुत शौक है। जब भी कहीं डीजे पर गाना बजता या मोहल्ले में शोभा यात्रा निकलती, वह अपनी सारी चिंता भूलकर मस्त होकर नाचने लग जाता।

हिमांशी का दुख:

इस कहानी में एक आलीशान बंगला भी है, जिसकी सुंदरता के चर्चे पूरे इलाके में होते हैं। इस बंगले का मालिक सुनील अग्रवाल है, जो शहर के नामी बिजनेसमैन हैं और करोड़ों के मालिक हैं। सुनील अपनी 9 साल की बेटी हिमांशी के साथ रहते हैं। चार साल पहले, हिमांशी की मां सुनीता अग्रवाल एक दर्दनाक हादसे में चल बसी थीं। उस दिन हिमांशी अपनी मां के साथ किसी रिश्तेदार की पार्टी में गई थी। लौटते समय उनकी कार को एक बेकाबू ट्रक ने टक्कर मार दी। इस हादसे में मां की मौत हो गई और हिमांशी के पैर बुरी तरह घायल हो गए।

इस घटना ने सुनील की जिंदगी को बदलकर रख दिया। वह अपनी बेटी के इलाज के लिए देश-विदेश के डॉक्टरों के पास गए, लेकिन कोई भी डॉक्टर उसे पूरी तरह ठीक नहीं कर पाया। हिमांशी व्हीलचेयर पर बैठी रहती थी और उसकी आंखों में हमेशा एक मायूसी छाई रहती थी।

राजू की एंट्री:

एक दिन, जब हिमांशी अपने बगीचे में खूबसूरत फूलों और तितलियों को निहार रही थी, तभी उसे झाड़ियों के पीछे हलचल सुनाई दी। वह चौंकी और देखा कि वही राजू है, जो आम के पेड़ की ओर बढ़ रहा था। राजू ने शहतूत के पेड़ पर चढ़कर दीवार को पार करने की कोशिश की, लेकिन अचानक उसका पैर फिसल गया और वह बगीचे में गिर पड़ा।

राजू के कपड़े फटे थे, पैर नंगे थे और चेहरा धूल से सना हुआ था, लेकिन उसकी आंखों में मासूमियत और शरारत थी। उसने देखा कि हिमांशी बहुत मायूस है। उसे हंसाने के लिए राजू ने गोल-गोल घूमना शुरू किया। वह एक पैर पर खड़ा होकर नाचने लगा। अचानक वह गिर गया, जिससे हिमांशी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। यह पहली बार था जब उसने चार साल में हंसने की कोशिश की।

एक नई शुरुआत:

राजू की शरारतों को देखकर हिमांशी हंसने लगी। यह दृश्य देखकर सुनील और रघु काका भी आश्चर्यचकित रह गए। सुनील ने राजू को डांटने के बजाय उसे अपने बगीचे में रहने की अनुमति दी। राजू अब हर दिन बगीचे में आता और हिमांशी को हंसाने की कोशिश करता।

एक दिन, जब राजू ने हिमांशी को देखकर कहा, “तुम्हें चलने का प्रयास करना चाहिए,” तो हिमांशी ने कहा, “मैं तो खड़ी भी नहीं हो पाती।” राजू ने आत्मविश्वास से कहा, “मैं तुम्हें पकड़कर चलाऊंगा। तुम देखना, एक दिन तुम जरूर चलने लगोगी।” राजू की बातों ने हिमांशी के मन में एक नई उम्मीद जगा दी।

सपनों की ओर कदम:

राजू ने हिमांशी को धीरे-धीरे खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उसने कहा, “तुम खुद पर यकीन करो। दर्द होता है तो होने दो, हिम्मत मत हारो।” हिमांशी ने राजू की मदद से धीरे-धीरे खड़े होने की कोशिश की।

एक दिन, जब सुनील बगीचे में आए, तो उन्होंने देखा कि हिमांशी अपने पैरों पर खड़ी है। यह दृश्य एक पिता के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था। सुनील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने राजू को गले लगाते हुए कहा, “तूने मेरी बेटी को एक नई जिंदगी दे दी।”

एक नया परिवार:

सुनील ने राजू को अपने घर में रहने की अनुमति दी। राजू ने नए कपड़े पहने और सुनील ने उसकी पढ़ाई का भी ध्यान रखा। राजू अब स्कूल जाने लगा और हिमांशी के साथ समय बिताने लगा। दोनों में एक गहरा रिश्ता बन गया।

राजू और हिमांशी की दोस्ती ने सुनील के परिवार में खुशियों की वापसी की। सुनील ने कहा, “तुम दोनों ने मेरे जीवन में खुशियों की किरण ला दी है।”

खुशियों का उजाला:

अब राजू और हिमांशी हर दिन साथ में स्कूल जाते थे। राजू ने अपनी पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन किया और हिमांशी ने भी चलने में काफी सुधार किया। सुनील ने अपनी पत्नी की तस्वीर की तरफ देखते हुए कहा, “देखो सुनीता, हमारी बेटी फिर मुस्कुरा रही है।”

राजू ने अपनी मेहनत और दोस्ती के बल पर न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि हिमांशी को भी उसके खोए हुए सपनों की ओर वापस लाया।

सीख:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हिम्मत और सच्चा दिल सबसे बड़ी ताकत है। दौलत, दवाइयां और शोहरत जहां हार गई, वहीं एक मासूम दोस्ती और सच्चा प्यार जीत गया। राजू और हिमांशी की दोस्ती ने साबित कर दिया कि सच्चे रिश्ते और सहयोग से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है।

इस प्रकार, राजू और हिमांशी ने न केवल अपने जीवन को बदला, बल्कि एक-दूसरे के लिए प्रेरणा बन गए। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम एक-दूसरे का साथ दें, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

इसलिए, हमेशा याद रखें कि सच्ची दोस्ती और प्यार की ताकत सबसे बड़ी होती है। जब हम दूसरों के लिए खड़े होते हैं, तब हम अपने जीवन में खुशियों की रोशनी ला सकते हैं।

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