करोड़पति ने बूढ़ी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया, लेकिन सालों बाद उसे चौंकाने वाली सच्चाई पता चली
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करोड़पति बेटे और उसकी बूढ़ी माँ की कहानी
मुंबई की चमचमाती सड़कों पर एक महंगी कार दौड़ रही थी। कार के अंदर बैठा अरविंद मेहता, जो मुंबई में मेहता इंडस्ट्रीज का मालिक और करोड़पति बिजनेसमैन था, अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लेने जा रहा था। लेकिन उसे क्या पता था कि यह फैसला उसकी किस्मत को पूरी तरह बदल देगा। कार की रफ्तार बढ़ रही थी, लेकिन रिश्तों की डोर पीछे छूट रही थी। उसके साथ बैठी उसकी बूढ़ी माँ, कमला जी, खामोश थीं। उनकी आँखों में दर्द और उम्मीद का मिला-जुला भाव था। वह जानती थीं कि उनका बेटा उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा है।
माँ का त्याग
कमला जी को अपने बेटे अरविंद का बचपन याद आ रहा था। जब उनके पति का देहांत हुआ था, तब अरविंद केवल 12 साल का था। उन्होंने अकेले घर-घर जाकर चाक, पापड़ और अचार बेचकर अपने बेटे को पढ़ाया। दूसरों के बच्चों को ट्यूशन देकर उन्होंने अरविंद की IIT की फीस भरी। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। उनका एक ही सपना था—उनका बेटा बड़ा आदमी बने और अपनी जिंदगी में खुश रहे। लेकिन आज वही बेटा उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा था।
वृद्धाश्रम में माँ को छोड़ना
अरविंद की कार वृद्धाश्रम के गेट पर रुकी। वहाँ बड़े अक्षरों में लिखा था, “शांति निवास ओल्ड एज होम”। यह वही जगह थी जहाँ अमीर लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ जाते थे। अरविंद ने अपनी माँ की तरफ बिना देखे कहा, “आपके लिए यही ठीक रहेगा।” उसकी आवाज में कोई भाव नहीं था।
कमला जी खामोशी से कार से उतरीं। उनके हाथ में एक पुरानी थाली थी, जिसमें उनकी जिंदगी की कुछ यादें थीं—एक पुराना फोटो, भगवद गीता की एक कॉपी, और वह सिल्क की साड़ी जो उन्होंने अरविंद की ग्रेजुएशन सेरेमनी के लिए पहनी थी।
अंदर जाकर नर्स ने उनका स्वागत किया। उसकी मुस्कान नकली थी। डायरेक्टर ने कहा, “आपका बेटा जब चाहे आपसे मिलने आ सकता है।” लेकिन कमला जी जानती थीं कि यह झूठ है। मुंबई की तेज रफ्तार जिंदगी में कौन किसी के लिए रुकता है?
अरविंद ने जल्दी-जल्दी सारे कागजों पर साइन किए और अपनी माँ को छोड़कर चला गया। कमला जी ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह बिना पलटे चला गया। उनकी आँखें नम थीं, लेकिन उन्होंने मुस्कुराकर अपना दर्द छुपा लिया।
अरविंद की जिंदगी
अरविंद अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया। वह अपने बिजनेस में इतना व्यस्त हो गया कि उसे अपनी माँ की याद भी नहीं आती थी। वह मरीन ड्राइव के सामने बने अपने पेंटहाउस में रहता था। उसकी जिंदगी में सब कुछ था—दौलत, शोहरत, और इज्जत। लेकिन वह अपनी माँ के प्यार को भूल चुका था।
माँ का जीवन वृद्धाश्रम में
शांति निवास में कमला जी ने अपनी नई जिंदगी को स्वीकार कर लिया। वह दिन भर दूसरी बुजुर्ग महिलाओं से बातें करतीं और शाम को अपने साड़ी का पल्लू सीती रहतीं। लेकिन हर रात, वह एक छोटा सा दिया जलातीं और अपने बेटे के लिए प्रार्थना करतीं। वह भगवान से कहतीं, “हे प्रभु, मेरे बेटे को रोशनी दिखाओ।” उनकी आँखों में अब एक अजीब सी शांति थी। उन्होंने विद्रोह नहीं किया, बस अपनी नियति को स्वीकार कर लिया।
अरविंद की जिंदगी में तूफान
अरविंद की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, जब अचानक एक दिन उसकी कंपनी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। सीबीआई ने जांच शुरू कर दी। उसके बिजनेस पार्टनर्स ने उससे दूरी बना ली। बैंक अकाउंट्स फ्रीज हो गए। उसकी कंपनी के शेयर पानी की तरह गिरने लगे। कुछ ही दिनों में उसकी दुनिया हिल गई।
अरविंद को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह अपने पुराने दोस्तों से मदद मांगने गया, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। वह अब अकेला था।
माँ की याद
मुंबई की सड़कों पर भटकते हुए, अरविंद को अपनी माँ की याद आने लगी। उसे याद आया कि कैसे उसकी माँ उसके लिए सुबह-सुबह गरम चाय बनाती थीं। उसे अपनी माँ की ममता और त्याग याद आया। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। उसने सोचा कि शायद उसकी माँ उसे माफ कर दें।
माँ को ढूँढने की कोशिश
अरविंद शांति निवास वृद्धाश्रम पहुँचा, लेकिन वहाँ का नजारा देखकर उसका दिल टूट गया। वृद्धाश्रम अब एक खंडहर बन चुका था। वहाँ कोई नहीं था। उसने हर जगह अपनी माँ को ढूँढा, लेकिन वह कहीं नहीं मिलीं।
वह वहाँ के पुराने चायवाले से मिला। चायवाले ने बताया कि कमला जी बहुत अच्छी महिला थीं। वह रोज मंदिर जाती थीं और अपने बेटे के लिए प्रार्थना करती थीं। लेकिन एक दिन, वृद्धाश्रम के सारे रेजिडेंट्स को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया।
माँ से मुलाकात
अरविंद ने अपनी माँ को ढूँढने की ठानी। वह एक पुराने मंदिर पहुँचा, जहाँ चायवाले ने बताया था कि कमला जी जाती थीं। मंदिर के अंदर, उसने अपनी माँ को देखा। वह कोने में बैठी थीं, हाथ में माला पकड़े भगवान से प्रार्थना कर रही थीं।
अरविंद उनकी तरफ बढ़ा। उसने धीरे से कहा, “माँ, मैं हूँ अरविंद।”
कमला जी ने उसकी आवाज सुनी। उनकी आँखें अब अंधी हो चुकी थीं। उन्होंने कहा, “मैं जानती थी कि तुम आओगे। माँ का दिल सब जानता है।”
अरविंद उनकी गोद में गिरकर रोने लगा। उसने कहा, “माँ, मुझे माफ कर दो। मैंने आपको अकेला छोड़ दिया।”
कमला जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, “तुम्हें ढूँढने में देर लगी, लेकिन तुम आ गए। बस यही काफी है।”
अरविंद का बदलाव
उस दिन अरविंद की जिंदगी बदल गई। उसने अपनी माँ के साथ मंदिर में रहना शुरू कर दिया। उसने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उसने अपनी जिंदगी को दूसरों की सेवा में लगा दिया।
असली दौलत का एहसास
अरविंद ने महसूस किया कि असली दौलत पैसे में नहीं, बल्कि प्यार में होती है। उसने अपनी माँ से सीखा कि जिंदगी में सबसे बड़ा धन दूसरों की मदद करना है।
माँ और बेटे का रिश्ता
अरविंद और उसकी माँ अब एक साथ मंदिर में रहते थे। कमला जी ने अपनी अंधी आँखों से भी अपने बेटे का प्यार महसूस किया। अरविंद ने अपनी माँ से कहा, “आपने मुझे बचा लिया। आपने मुझे एक नई जिंदगी दी।”
कमला जी मुस्कुराईं और कहा, “तुम हमेशा से अमीर थे, बस तुम्हें पता नहीं था कि असली धन क्या होता है।”
कहानी का सबक
यह कहानी हमें सिखाती है कि माँ का प्यार दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। एक माँ अपने बच्चे के लिए सब कुछ करती है, और उसका प्यार कभी खत्म नहीं होता। जिंदगी में दौलत और शोहरत से ज्यादा जरूरी है इंसानियत और रिश्तों की कद्र करना।
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