शुरुआत: साधु का अपमान

चंडीगढ़ की शांत सुबह में, एक साधारण झोपड़ी में रहने वाले वैभव दास महाराज अपने भक्तों को आशीर्वाद देते और गरीबों की मदद करते थे। उनके पास अद्भुत शक्ति थी, जिससे लोग उनकी पूजा करते थे। लेकिन कुछ लोग उन्हें पाखंडी मानते थे।

एक दिन, पुलिस ने उन्हें चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया। इलाके में बढ़ती चोरी की घटनाओं के कारण, पुलिस ने बिना सबूत के साधु को दोषी ठहराया।

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साधु की गिरफ्तारी और जेल में तपस्या

पुलिस ने वैभव दास महाराज को उनकी झोपड़ी से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल की अंधेरी कोठरी में भी साधु शांत रहे। उन्होंने न किसी से शिकायत की, न गुस्सा दिखाया। वे अपनी तपस्या में लीन रहे।

प्रकृति का प्रकोप

जेल में साधु का अपमान होते ही, चंडीगढ़ का मौसम अचानक बदल गया। आसमान में काले बादल छा गए, ठंडी हवाएं तूफान में बदल गईं, और बारिश ने भयंकर बाढ़ का रूप ले लिया।

नदियां उफान पर थीं, सड़कों पर पानी भर गया, और पूरा शहर जलमग्न हो गया। लोग डर गए। उन्हें लगा कि यह साधु के अपमान का परिणाम है।

पुलिस का पछतावा

जब बाढ़ ने पुलिस थाने को भी अपनी चपेट में ले लिया, तो पुलिस वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने साधु से माफी मांगी। जेलर और पुलिसकर्मी घुटनों पर गिरकर बोले, “महाराज, हमें माफ कर दीजिए। हमने आपके साथ अन्याय किया। कृपया हमें और हमारे शहर को बचा लीजिए।”

साधु का चमत्कार

साधु महाराज ने अपनी आंखें खोलीं और शांत स्वर में कहा, “मैं किसी का बुरा नहीं चाहता। लेकिन जब निर्दोष का अपमान होता है, तो प्रकृति भी रोती है।” उन्होंने हाथ उठाकर सबको आशीर्वाद दिया।

उसके बाद, बारिश रुक गई, बाढ़ का पानी कम होने लगा, और नदियां शांत हो गईं। पूरे शहर ने साधु के चरणों में गिरकर उनका धन्यवाद किया।

साधु का संदेश

वैभव दास महाराज ने कहा, “अहंकार का अंत हमेशा विनाश से होता है। इंसाफ और करुणा ही सबसे बड़ा धर्म है। जब तक आप सत्य और न्याय को अपनाएंगे, तब तक शांति बनी रहेगी।”

प्रेरणा

यह घटना हमें सिखाती है कि निर्दोष का अपमान करना बड़े परिणाम ला सकता है। करुणा, न्याय और सत्य को अपनाने से ही जीवन में शांति आती है।

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