जिस अनाथ बच्चे को ‘गंदा’ कहकर भगाया, उसी ने अरबपति के बेटे को अपना खून देकर बचाया…
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कहानी: जिस अनाथ बच्चे को ‘गंदा’ कहकर भगाया, उसी ने अरबपति के बेटे को अपना खून देकर बचाया…
भाग 1: घमंड और गरीबी का टकराव
मुंबई के सबसे पॉश इलाके में स्थित रॉयल पैलेस होटल आज रोशनी से नहाया हुआ था। शहर के नामी उद्योगपति सेठ धनराज सिंघानिया अपने इकलौते बेटे वंश का सातवां जन्मदिन मना रहे थे। धनराज का नाम इज्जत से ज्यादा उसके गुस्से और गुरूर के लिए जाना जाता था। उसके लिए गरीबी एक बीमारी थी और गरीब लोग उस बीमारी के कीटाणु।
होटल के बाहर महंगी गाड़ियों की कतार थी, हर तरफ विदेशी फूलों की खुशबू और महंगे परफ्यूम की महक। इसी चकाचौंध से कुछ दूर गेट के पास खड़ा था—एक 10 साल का अनाथ बच्चा, केशव। उसके कपड़े फटे थे, चेहरा धूल से सना था, पैरों में चप्पल तक नहीं थी। उसके हाथ में कुछ गुब्बारे थे, जिन्हें बेचकर वह दिनभर की रोटी का जुगाड़ करता था।
केशव की आंखें उस भव्य पार्टी पर टिकी थीं। उसे पार्टी से जलन नहीं थी, बस केक देखकर उसके पेट में भूख कुलबुलाने लगी थी। तभी एक काली चमचमाती Mercedes होटल के पोर्च पर आकर रुकी। उसमें से सेठ धनराज और उनका बेटा वंश उतरे। वंश ने महंगा सूट पहना था और हाथ में रिमोट वाली कार पकड़ रखी थी। गाड़ी से उतरते ही वंश के हाथ से वह कार फिसल गई और लुढ़कते हुए केशव के पैरों तक जा पहुंची।
भाग 2: अपमान का घाव
केशव ने मासूमियत से कार उठाई। उसने सोचा—बच्चा खुश हो जाएगा अगर वह उसे लौटा दे। वह मुस्कान लिए आगे बढ़ा। जैसे ही उसने वंश की तरफ हाथ बढ़ाया, धनराज की कड़क आवाज गूंजी, “रुको वहीं! खबरदार जो मेरे बेटे को हाथ भी लगाया तो!” वह चीते की तरह लपका और केशव के हाथ से खिलौना झपट लिया। उसने केशव को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह दूर जा गिरा। उसके हाथ से गुब्बारे छूटकर आसमान में उड़ गए। केशव की कोहनी छिल गई, लेकिन दर्द से ज्यादा अपमान ने चोट पहुंचाई।
धनराज ने खिलौने को रुमाल से पोंछा जैसे उस पर गंदगी लग गई हो। उसकी आंखों में केशव के लिए नफरत थी। सिक्योरिटी! धनराज ने चिल्लाया, “यह भिखारी अंदर कैसे आया?” केशव ने डरते हुए कहा, “साहब, मैंने तो बस बाबूजी की गाड़ी गिर गई थी, वही देने आया था…” “चुप!” धनराज ने डांटा, “अपनी गंदी जुबान बंद रख, तुम लोग सिर्फ गंदगी और बीमारी फैलाते हो। तुम्हारी परछाई भी अगर मेरे बेटे पर पड़ जाए तो मुझे उसे नहलाना पड़े।” उसने 100-100 के कुछ नोट केशव के मुंह पर फेंक दिए, “उठा ले और दफा हो जा, वरना पुलिस बुला लूंगा।”
केशव ने नोट नहीं उठाए। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने आत्मसम्मान की रक्षा की। वह धीरे से उठा, धूल झाड़ी, और बिना कुछ बोले चला गया। जाते-जाते उसने बस एक बार मुड़कर अमीर बाप-बेटे को देखा। धनराज ने हिकारत से उसे जाते हुए देखा, फिर बेटे का हाथ पकड़कर कहा, “चलो वंश, इन गंदे लोगों की वजह से मूड मत खराब करो।”
भाग 3: नियति का खेल
अंदर पार्टी शुरू हो गई, संगीत बजने लगा, केक काटा गया, तालियों की गूंज उठी। लेकिन बाहर कुदरत ने अपना खेल शुरू कर दिया था। धनराज को नहीं पता था कि जिस गंदे इंसान को उसने दुत्कारा है, वही उसकी जिंदगी की सबसे अहम डोर बनने वाला है।
पार्टी अपनी रफ्तार पर थी। धनराज मेहमानों के बीच घिरे थे, अपनी दौलत और कामयाबी के किस्से सुना रहे थे। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वंश धीरे-धीरे उनकी नजरों से ओझल हो चुका है। वंश की नजर होटल के गेट के पास बैठे एक छोटे पिल्ले पर पड़ी, जो रास्ता भटककर वहां आ गया था। मासूम वंश को वह पिल्ला इतना प्यारा लगा कि वह पिता और बॉडीगार्ड्स की नजरों से बचकर गेट की तरफ बढ़ गया।
रात के 10:30 बजे थे, सड़क पर गाड़ियां तेज रफ्तार से दौड़ रही थीं। वंश उस पिल्ले को पकड़ने के लिए सड़क के बीचों-बीच चला गया। तभी सामने से एक तेज ट्रक आया। ट्रक के हॉर्न की आवाज ने माहौल चीर दिया। वंश पीछे से किसी की चीख गूंजी, लेकिन देर हो चुकी थी। एक जोरदार धमाके की आवाज आई, टायरों की आवाज ने पार्टी का संगीत बंद करा दिया। धनराज का दिल रुक गया, वह पागलों की तरह बाहर भागा। सड़क पर खून बिखरा था, और उसी खून के बीच उसका लाडला वंश बेसुध पड़ा था। उसका महंगा सूट अब लाल रंग में सना हुआ था।
भाग 4: जीवन और मौत की जंग
धनराज ने बेटे को गोद में उठाया, उसका सफेद कुर्ता बेटे के खून से सन गया। वही खून जिसे वह कुछ देर पहले शाही मान रहा था, अब उसके हाथों से फिसलता जा रहा था। बिना एक पल गंवाए धनराज अपनी कार में बैठा और शहर के सबसे बड़े अस्पताल की तरफ भागा। रास्ते भर वह भगवान से मन्नतें मांगता रहा, वही भगवान जिसे उसने दौलत के नशे में कभी याद नहीं किया था।
अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टर्स की टीम वंश को स्ट्रेचर पर लिटाकर इमरजेंसी वार्ड ले गई। धनराज बाहर बेचैनी से टहलने लगा, उसकी पत्नी रो-रो कर बेहाल थी। हर सेकंड मौत जैसा लग रहा था। आधे घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए, चेहरे पर पसीना और गंभीरता थी। “मिस्टर सिंघानिया, पैसे की बात नहीं है, आपके बेटे की हालत बहुत नाजुक है। एक्सीडेंट से उसका बहुत खून बह चुका है, हीमोग्लोबिन स्तर खतरनाक रूप से नीचे है। हमें अभी खून चढ़ाना होगा, वरना हम उसे बचा नहीं पाएंगे।”
“तो चढ़ाओ खून, इंतजार किसका कर रहे हो?” धनराज चिल्लाया। “पूरा ब्लड बैंक खरीद लो, लेकिन मेरे बेटे को खून दो।” डॉक्टर ने नजरें झुका ली, “यही तो समस्या है, आपके बेटे का ब्लड ग्रुप AB नेगेटिव है, जो बहुत दुर्लभ है। हमारे ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं है। दूसरे अस्पतालों में भी नहीं मिला।”
धनराज सन रह गया। “मेरा खून ले लो, मैं उसका बाप हूं!” “आपका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता, आपकी पत्नी का भी अलग है। हमें तुरंत कोई डोनर चाहिए, वरना…” डॉक्टर ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

भाग 5: गंदे खून की कीमत
धनराज पागलों की तरह फोन घुमाने लगा, हर संपर्क को कॉल किया, लेकिन इतनी रात गए AB नेगेटिव खून मिलना चमत्कार से कम नहीं था। समय रेत की तरह फिसलता जा रहा था, वंश की सांसें उखड़ रही थीं। धनराज अस्पताल के रिसेप्शन पर सिर पकड़कर बैठा था, आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था।
तभी अस्पताल के दरवाजे से एक फटे पुराने कपड़ों वाला लड़का अंदर आया—केशव। उसके पैर नंगे थे, कोहनी पर ताजा चोट के निशान थे। वह वहां किसी मरीज को देखने नहीं, अस्पताल के बाहर वाटर कूलर से पानी पीने आया था। शोरगुल सुनकर अंदर झांकने लगा। केशव ने वार्ड बॉय से पूछा, “भैया, क्या हुआ? सब इतना रो क्यों रहे हैं?” “शहर के सबसे बड़े सेठ का बेटा मरने वाला है, उसे AB नेगेटिव खून चाहिए, नहीं मिला तो बच्चा नहीं बचेगा।”
केशव के कान खड़े हो गए। उसे याद आया कि 6 महीने पहले अनाथालय के पास मेडिकल कैंप में डॉक्टर ने कहा था, “तुम्हारा खून बहुत कीमती है, AB नेगेटिव है।” बिना एक पल गंवाए वह नन्हे पैरों से दौड़ता हुआ आगे बढ़ा।
भाग 6: इंसानियत की जीत
धनराज घुटनों के बल बैठा था, आसमान की तरफ देखकर रो रहा था। केशव ने हिम्मत करके धनराज के कंधे पर हाथ रखा। “साहब, मैंने सुना आपके बेटे को AB नेगेटिव खून चाहिए, मेरा खून वही है। डॉक्टर अंकल ने बताया था, आप मेरा खून ले लो।”
धनराज सन्न रह गया। जिस बच्चे को उसने कीचड़ और गंदगी कहा था, वही उसकी जिंदगी बचाने की पेशकश कर रहा था। डॉक्टर आए, “मिस्टर सिंघानिया, समय खत्म हो रहा है।” धनराज ने बस केशव की तरफ इशारा कर दिया। डॉक्टर ने केशव का हाथ पकड़ लिया, “चलो जल्दी।”
केशव को तुरंत अंदर ले जाया गया। एक तरफ करोड़ों की दौलत का वारिस मौत से लड़ रहा था, दूसरी तरफ वह अनाथ बच्चा एक साधारण स्टूल पर बैठा था। डॉक्टर ने ब्लड ग्रुप चेक किया, एक मिनट का सन्नाटा… “मिस्टर सिंघानिया, यह चमत्कार है, ब्लड ग्रुप मैच कर गया है। परफेक्ट मैच!”
धनराज कांच की दीवार के उस पार सब देख रहा था। राहत की सांस के साथ ही उसके सीने में अपराधबोध का दर्द उठा। डॉक्टरों ने प्रक्रिया शुरू कर दी। एक नली केशव के पतले हाथ में, दूसरी वंश के हाथ में। वही लाल रंग का गाढ़ा द्रव जिसे धनराज ने ‘गंदा’ कहा था, अब उसके बेटे की नसों में उतर रहा था।
भाग 7: नया रिश्ता, नया जीवन
ऑपरेशन थिएटर के बाहर लाल बल्ब बुझ गया, उम्मीद की रोशनी जल उठी। डॉक्टर बाहर आए, “बधाई हो मिस्टर सिंघानिया, वंश अब खतरे से बाहर है। सही समय पर खून मिलने से उसकी जान बच गई।”
धनराज के घुटने जमीन पर टिक गए, उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया। फिर वह हड़बड़ाकर ICU की तरफ भागा। अंदर वंश ऑक्सीजन मास्क लगाए गहरी नींद में सो रहा था, बगल वाले बेड पर केशव लेटा था। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, शरीर से जान खींची सी लग रही थी।
धनराज उसके बेड के पास पहुंचा, केशव की आंखें खुली, उसने डरते हुए कहा, “माफ करना साहब, मैं बस अभी चला जाऊंगा। मैंने बेड गंदा नहीं किया है…” धनराज की आंखों से आंसुओं का बांध टूट गया। उसने कांपते हाथों से केशव का पतला हाथ थाम लिया, “नहीं बेटा, तुमने कुछ गंदा नहीं किया, सच तो यह है कि मेरा मन गंदा था। तुमने मेरे खून को पवित्र कर दिया।”
केशव ने मासूमियत से पूछा, “साहब, वह छोटा बाबू ठीक है ना?” अपनी हालत की परवाह किए बिना केशव को वंश की फिक्र थी। डॉक्टर बोले, “मिस्टर सिंघानिया, आपको इस बच्चे का ताउम्र एहसानमंद होना चाहिए। इसके शरीर में पहले से ही खून की कमी थी, नियमों के हिसाब से यह डोनर बनने के लिए फिट नहीं था, लेकिन इसकी जिद और इमरजेंसी को देखकर रिस्क लिया। इसने अपनी जीवन शक्ति दे दी।”
धनराज ने चेकबुक निकाली, “यह लो बेटा, तुम्हें जितना चाहिए इसमें भर लो। अब तुम्हें कभी गुब्बारे नहीं बेचने पड़ेंगे।” केशव ने चेक वापस कर दिया, “नहीं चाहिए साहब। मैंने खून बेचा नहीं, मदद की है। इंसानियत और मदद की कभी कीमत नहीं लगाते, वरना वह व्यापार बन जाता है।”
भाग 8: अपनापन और समाज की चुनौती
केशव ने कहा, “मुझे जाना होगा साहब, सुबह हो रही है, मंडी जाकर गुब्बारे खरीदने हैं।” धनराज की पत्नी फूट-फूट कर रो पड़ी, उसने केशव का माथा चूम लिया। तभी वंश की आवाज आई, “पापा, ये मेरे दोस्त हैं। इन्हें डांटना मत।”
धनराज का संयम टूट गया। उसने महसूस किया कि वंश और केशव के बीच दोस्ती से भी गहरा रिश्ता बन गया है। केशव ने दरवाजे की कुंडी पर हाथ रखा, पीछे से धनराज ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “रुको केशव, गलती तुमसे नहीं मुझसे हुई है। आज से तुम अनाथ नहीं हो, ईश्वर ने मुझे दूसरा बेटा दे दिया है।”
धनराज ने घर के सभी नौकरों और स्टाफ को हॉल में इकट्ठा किया, “आज से इस घर में दो छोटे मालिक हैं—केशव, वंश का बड़ा भाई और मेरा बेटा। इसका हुकुम भी वैसे ही माना जाएगा।”
पुराने नौकर कानाफूसी करने लगे। धनराज की बुआ आगे आई, “दया करना ठीक है, लेकिन खून के रिश्तों और पानी के रिश्तों में फर्क होता है। पता नहीं किसकी औलाद है, किस जाति का है…”
धनराज ने मुस्कुराते हुए कहा, “खून के रिश्तों और पानी के रिश्तों में फर्क होता है, लेकिन जब मेरा शाही खून मेरे बेटे की नसों में बह रहा था, तब मेरा कोई रिश्तेदार काम नहीं आया। जिस खून की आप बात कर रही हैं, वही आज वंश की रगों में दौड़ रहा है। विज्ञान कहता है कि खून का कोई धर्म या जाति नहीं होती। और रही बात औलाद की, आज से यह धनराज सिंघानिया की औलाद है।”
केशव की आंखों से आंसू गिरने लगे। वंश ने व्हीलचेयर से हाथ बढ़ाकर केशव का हाथ पकड़ा, “भाई, रो क्यों रहे हो? चलो ना, मुझे तुम्हें अपने खिलौने दिखाने हैं।”
भाग 9: नियति का चक्र और असली अमीरी
केशव और वंश एक साथ खिलौनों वाले कमरे की तरफ जा रहे थे। एक के शरीर में दूसरे का खून था, दोनों के दिलों में अब एक ही धड़कन थी। धनराज ने महसूस किया कि उसने जीवन में बहुत दौलत कमाई थी, लेकिन आज जो कमाया, वह उसकी सात पीढ़ियों की सबसे बड़ी संपत्ति थी।
समय का चक्र घूमता है। 20 साल बाद, मुंबई का वही रॉयल पैलेस होटल फिर भव्य समारोह का गवाह बना। शहर के बड़े नेता, उद्योगपति, फिल्मी सितारे मौजूद थे। मंच पर उद्घोषक बोला, “आज हमें सम्मानित करते हुए गर्व हो रहा है उस शख्सियत को, जिसने शहर का सबसे बड़ा मुफ्त कैंसर अस्पताल बनाया, हजारों अनाथ बच्चों को नई जिंदगी दी—केशव धनराज सिंघानिया।”
तालियों की गड़गड़ाहट से छत हिल गई। सबसे जोर से तालियां बजाने वाला वंश सिंघानिया था, जो अब सिंघानिया ग्रुप का सीईओ था। मंच पर 30 साल का केशव चढ़ा, अब वह डरा-सहमा गुब्बारे वाला बच्चा नहीं था। उसने अवार्ड हाथ में लिया और माइक के पास आया।
भाग 10: कहानी का संदेश
“यह अवार्ड मेरा नहीं है,” केशव ने कहा, “यह उस इंसान का है, जिसने सड़क की धूल को माथे का तिलक बना दिया।” उसने बूढ़े हो चुके धनराज की तरफ इशारा किया। “20 साल पहले मुझे इसी जगह से गंदा कहकर भगा दिया गया था। लेकिन मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि असली अमीरी बैंक बैलेंस में नहीं, उस खून में होती है जो दूसरों के लिए बहता है।”
“लोग कहते हैं कि मैंने वंश की जान बचाई थी, लेकिन सच तो यह है कि उस रात वंश और पापा ने मेरी रूह बचा ली थी।”
केशव मंच से नीचे उतरा, धनराज के पैर छुए। धनराज ने केशव को उठाकर गले लगा लिया, “नहीं बेटा, उस रात तुमने मुझे बचाया था। अगर तुम नहीं होते, तो मैं दौलत के ढेर पर बैठा एक गरीब ही मर जाता। तुमने मेरे गंदे अहंकार को अपने साफ खून से धो दिया।”
वंश भी दौड़कर आया, तीनों एक-दूसरे के गले लग गए। हॉल में बैठे हर शख्स की आंखें नम थीं। उस रात वहां मौजूद हर इंसान समझ गया—इंसान की पहचान उसके कपड़ों या जेब से नहीं, उसके कर्मों और संस्कारों से होती है।
जिस अनाथ बच्चे के हाथ कभी गुब्बारे बेचते हुए कांपते थे, आज वही हाथ हजारों लोगों की नब्ज़ थामकर उन्हें जीवन दे रहे थे। नियति ने साबित कर दिया कि अगर नियत साफ हो तो कीचड़ में भी कमल खिलते हैं, और सड़क की धूल भी एक दिन माथे का चंदन बन जाती है।
समाप्त
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