तलाक के सालों बाद SP बनी पत्नी, पहुँची पति की झोपड़ी… फिर जो हुआ, सबको रुला दिया |
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🌿 नई कहानी: “तलाक के सालों बाद… जब एसपी बनी पत्नी अपने पति की झोपड़ी तक पहुंची”
मध्य प्रदेश के छोटे से गांव हरिपुर में हरियाली और सादगी की छांव थी। खेतों की मिट्टी में मेहनत की खुशबू घुली रहती, और सुबह-शाम बच्चों की हंसी से गलियां गूंज उठती थीं। इसी गांव में रहता था विक्रम, एक साधारण मगर ईमानदार युवक — शिवपुरी थाने में एक कांस्टेबल।
उसका जीवन सादगी से भरा था — सुबह जल्दी उठकर खेतों में मदद करना, फिर वर्दी पहनकर थाने के लिए निकल जाना, और शाम को लौटते समय गांव के बुजुर्गों से बातें करना, बच्चों के सिर पर हाथ फेरना। उसके चेहरे की मुस्कान और आंखों की ईमानदारी ने उसे गांव का प्रिय बना दिया था।
विक्रम का परिवार छोटा था — माता-पिता, एक छोटा भाई और एक बहन। माता-पिता जीवन भर खेती और मजदूरी करते आए थे। उनके लिए ईमानदारी ही सबसे बड़ी पूंजी थी। विक्रम भी यही मानता था कि जीवन में सच्चाई से बढ़कर कुछ नहीं।
दूसरी ओर, भोपाल की आधुनिक गलियों में रहती थी प्रिया — एक महत्वाकांक्षी, मेधावी और आत्मविश्वासी युवती। उसका सपना था — यूपीएससी पास कर पुलिस अधीक्षक बनना और समाज से अन्याय मिटाना।
पिता बैंक में क्लर्क थे, मां गृहिणी। परिवार मध्यमवर्गीय था, पर सपने ऊंचे। मां हमेशा कहतीं —
“बेटी, जो औरतें अपने पांव पर खड़ी होती हैं, वही समाज बदलती हैं।”
प्रिया दिन-रात पढ़ती। अखबार, करंट अफेयर्स, मोटी किताबें — वही उसका संसार था। लेकिन किस्मत की किताब में कुछ और लिखा था।
एक दिन प्रिया के माता-पिता को विक्रम का रिश्ता मिला। सरकारी नौकरी, ईमानदार, सादगीभरा जीवन — हर मां-बाप का सपना।
शुरू में प्रिया ने कहा, “मैं शादी के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ूंगी। मेरे सपने ही मेरी पहचान हैं।”
विक्रम मुस्कुराया —
“मैं तुम्हारे सपनों का दुश्मन नहीं बनूंगा, प्रिया। मैं तुम्हारा साथ दूंगा — चाहे रातों को तुम्हारे लिए चाय ही क्यों न बनानी पड़े।”
इन शब्दों ने प्रिया का दिल जीत लिया। विवाह तय हो गया।
भोपाल की चमक-दमक में, बैंड-बाजे और हंसी के बीच दोनों ने सात फेरे लिए। प्रिया लाल जोड़े में दुल्हन बनी तो सबकी नजरें थम गईं।

विवाह के बाद वह हरिपुर आ गई। मिट्टी की दीवारें, छोटा आंगन, कुएं से पानी भरना, चूल्हे की महक — यह सब उसके लिए नया था।
वह सुबह जल्दी उठती, घर के काम करती, सास-ससुर की सेवा करती, फिर किताबों में खो जाती। लालटेन की रोशनी में वह “क्रिमिनोलॉजी” पढ़ती। उसकी आंखों में चमक थी — एक दिन एसपी प्रिया बनेगी।
पर ससुराल में हर कोई उसके सपनों को नहीं समझ पाया।
सास कहतीं —
“बहुएं किताबों से नहीं, घर संभालने से घर चलता है।”
ससुर कहते —
“पुलिस की वर्दी मर्दों की चीज है, बेटा।”
औरतें हंसतीं — “शहर की बहू है, अब एसपी बनेगी क्या?”
प्रिया सब सुनती, पर भीतर से टूटने लगी। विक्रम बीच में फंस गया था — एक तरफ माता-पिता का मान, दूसरी तरफ पत्नी का सपना।
कई बार रातों में उसने विक्रम से कहा,
“मैं थक गई हूं। तुम्हारा परिवार मुझे समझता नहीं। मुझे भोपाल भेज दो, मैं कोचिंग से पढ़ाई कर लूंगी।”
विक्रम चुप रहता — “परिवार अलग नहीं हो सकता, प्रिया। थोड़ा समय दो।”
लेकिन “थोड़ा समय” प्रिया के लिए एक युग बन गया। उम्र निकल रही थी, मौका हाथ से फिसल रहा था।
अंततः एक रात उसने कह दिया —
“अगर तुम मेरे साथ नहीं हो सकते, तो मुझे आज़ाद कर दो। मैं अपने सपनों को मरने नहीं दूंगी।”
विक्रम ने भारी मन से सिर झुका लिया।
“अगर यही तुम्हारी खुशी है… तो मैं पीछे नहीं रोकूंगा।”
दोनों की आंखें नम थीं। प्यार था — मगर परिस्थितियों ने जुदाई लिख दी।
प्रिया ने भोपाल लौटकर खुद को पढ़ाई में झोंक दिया। दिन-रात मेहनत, फिजिकल ट्रेनिंग, मॉक टेस्ट — कोई कमी नहीं छोड़ी।
दो साल की अथक मेहनत के बाद — वह यूपीएससी पास कर गई।
वह पुलिस अधीक्षक (एसपी) बनी — उसी जिले शिवपुरी में, जहां विक्रम कांस्टेबल था।
जब पहली बार वह जीप में बैठकर थाने पहुंची, लाल-नीली बत्ती चमक रही थी। सारे पुलिसकर्मी सलामी दे रहे थे।
भीड़ में एक चेहरा था — विक्रम।
नजरें मिलीं, मगर शब्द नहीं निकले। दोनों ने एक-दूसरे को देखा — दो सालों की दूरी एक पल में सिमट गई।
प्रिया अपने केबिन में पहुंची, खिड़की से बाहर देखा — वही थाना, वही लोग, और वही विक्रम, पर अब रिश्ता बदल चुका था।
वह सोचती रही — “कल तक यह मेरा पति था, आज मेरा अधीनस्थ है।”
कुछ दिनों बाद उसने अपने सहायक राजेश को कहा —
“जाओ, पता करो विक्रम कैसे रहता है।”
राजेश ने बताया —
“मैडम, वह एक छोटे किराए के कमरे में अकेला रहता है। न परिवार, न कोई साथी। दीवार पर सिर्फ एक फोटो है — आपकी शादी की।”
प्रिया का दिल भर आया। वह सोच में पड़ गई —
“क्या उसने सचमुच अकेले रहना चुना? क्या उसने मुझे कभी भुलाया नहीं?”
थाने में संदीप नाम का इंस्पेक्टर था — भ्रष्ट, घमंडी और रिश्वतखोर।
प्रिया ने आते ही उसके गोरखधंधे बंद कर दिए। केस फाइलें खोलीं, सीसीटीवी लगवाए, अवैध धंधों पर नकेल कसी।
संदीप का धंधा चौपट हो गया। उसने प्रिया के खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया।
एक दिन उसने कहा —
“शहर की मैडम समझती क्या है खुद को? औरत होकर पुलिस चलाएगी?”
पास खड़ा विक्रम यह सुन न सका। उसने संदीप की कॉलर पकड़ ली —
“अगर दोबारा कुछ कहा, तो बर्दाश्त नहीं करूंगा!”
थाने में हलचल मच गई। सब कानाफूसी करने लगे — “विक्रम इतना गुस्सा क्यों हुआ? क्या रिश्ता है इन दोनों के बीच?”
जब बात प्रिया तक पहुंची, उसने विक्रम को बुलाया।
“तुमने उसे क्यों मारा? लोग बातें बना रहे हैं!”
विक्रम चुप रहा। फिर धीरे से बोला —
“तुम मेरे जीवन से चली गई हो, प्रिया… लेकिन मेरे दिल से नहीं। तुम्हारे बारे में गलत सुनना, मैं सह नहीं सकता।”
प्रिया की आंखें भर आईं।
उसने सोचा — काश, उस वक्त विक्रम ने मेरे लिए यूं खड़ा होता… तो शायद हम अलग न होते।
कुछ दिन बाद खबर आई — विक्रम पर हमला हुआ है।
रात में कुछ अज्ञात लोग चाकू मारकर भाग गए। वह गंभीर रूप से घायल था।
प्रिया अस्पताल पहुंची। आईसीयू के बाहर पूरी रात बैठी रही, हाथ जोड़कर प्रार्थना करती रही —
“भगवान, बस इसे बचा लो।”
सुबह मंत्री के दौरे के लिए उसे थाने बुलाया गया, लेकिन उसने कहा —
“मेरे लिए विक्रम की जान मंत्री से ज्यादा जरूरी है।”
डॉक्टर ने बताया कि हालत स्थिर है। जब वह अंदर गई, विक्रम ने कमजोर आवाज में कहा —
“तुम आईं… मुझे पता था, तुम आओगी।”
प्रिया रो पड़ी। उसके आंसू विक्रम की हथेली पर गिर पड़े।
कुछ दिनों बाद, जब विक्रम घर लौटा, प्रिया उसके कमरे में गई।
दीवारें नमी से भरीं, बिस्तर पुराना, मेज पर दवाइयां — और दीवार पर वही शादी की तस्वीर।
वह बैठी और पूछा —
“तुम अकेले क्यों रहते हो, विक्रम? दोबारा शादी क्यों नहीं की?”
विक्रम मुस्कुराया —
“तलाक के बाद सोचा, जो दर्द मैंने झेला, वो किसी और को क्यों दूं?
मां-बाप नाराज हुए, पर मैं खुद को सजा देना चाहता था।”
प्रिया की आंखें भर आईं।
धीरे से बोली —
“मैंने भी शादी नहीं की, विक्रम। मैं एसपी बनी… पर दिल खाली रहा। हर सफलता में तुम्हारी कमी महसूस हुई।”
दोनों रो पड़े — जैसे वर्षों का दर्द बह गया हो।
उस रात दोनों ने बातें कीं — बीते सालों की, अधूरे सपनों की, अधूरी मोहब्बत की।
विक्रम ने कहा —
“मैंने तुम्हें कभी रोका नहीं, बस हालातों ने रोक लिया।”
प्रिया ने कहा —
“तुम्हारी चुप्पी ही मेरे और तुम्हारे बीच दीवार बन गई।”
कुछ दिनों बाद प्रिया ने थाने में घोषणा की —
“कांस्टेबल विक्रम… मेरा पति है। हमारा तलाक कभी हुआ ही नहीं। मैंने उन कागजों पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।”
सन्नाटा छा गया। सबकी आंखें फटी रह गईं।
फिर उसने बताया कि विक्रम पर हमला संदीप ने करवाया था।
प्रिया ने खुद केस संभाला — सबूत जुटाए, बैंक रिकॉर्ड, गवाह, और आखिरकार संदीप जेल पहुंचा।
कुछ ही हफ्तों बाद शिवपुरी में एक भव्य समारोह हुआ।
थाने की छतों पर फूलों की झालरें, गांव के लोग, शहर के अधिकारी — सब जमा थे।
आज एसपी प्रिया और कांस्टेबल विक्रम का पुनर्विवाह था।
विक्रम के माता-पिता आए, सास ने रोते हुए कहा —
“बेटी, हमने तुझसे जो कहा, वो हमारी सोच की गलती थी। तूने साबित किया कि बहू घर की ताकत होती है।”
प्रिया ने उन्हें गले लगाया — “अब सब ठीक है, मां।”
शादी के बाद दोनों ने मिलकर थाने में पारदर्शिता की नई पहल शुरू की।
भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई, महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष सेल, स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम, और गांवों में रात की गश्त।
विक्रम ने थाने में ईमानदारी की मिसाल कायम की।
प्रिया ने अपने पद को शक्ति नहीं, सेवा का माध्यम बनाया।
धीरे-धीरे शिवपुरी में अपराध घटने लगा, और लोग कहते —
“देखो, यह वही जोड़ी है जिसने प्यार और इंसानियत दोनों की जीत कराई।”
कहानी का संदेश:
रिश्तों की कीमत धन या पद से नहीं, प्यार, समझ और त्याग से तय होती है।
अगर दिल में विश्वास हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता — और कोई भी रिश्ता टूटता नहीं।
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