पत्नी आईएएस बनकर लौटी तो पति रेलवे स्टेशन पर समोसे बेच रहा था फिर जो हुआ। 

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सच्चाई की आवाज: रमाकांत और शालिनी की कहानी

1. रेलवे स्टेशन की हलचल

गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर उस दिन बहुत भीड़ थी। प्लेटफार्म नंबर तीन पर यात्रियों की आवाजाही, ट्रेन की सीटी, और ठेले पर तले जा रहे गरम-गरम समोसे की खुशबू माहौल में घुली थी। समोसे के ठेले पर रमाकांत खड़ा था—एक साधारण, मेहनती इंसान। उसका कुर्ता पसीने से भीगा हुआ, माथे पर चिंता की लकीरें और हाथ पर गर्म तेल के छींटों के निशान। लेकिन उसकी आंखों में कभी हार मानने वाली चमक थी।

रमाकांत का जीवन संघर्षों से भरा था। कभी वह एक छोटे व्यापारी थे, लेकिन पत्नी शालिनी की पढ़ाई के लिए अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी। जमीन गिरवी रखी, दिन-रात मेहनत की, ताकि शालिनी अफसर बन सके। आज हालात ऐसे थे कि रमाकांत रेलवे स्टेशन पर समोसे बेचने को मजबूर था। लेकिन उसे शिकायत नहीं थी। वह अपने हिस्से की खुशियों में संतुष्ट था।

2. प्लेटफार्म पर एक खास आगमन

उस सुबह प्लेटफार्म पर अचानक हलचल मच गई। स्टेशन मास्टर दौड़ते हुए आए, गार्ड चौकन्ने हो गए। कुछ लोग लाइन में खड़े हो गए। तभी चमचमाती सरकारी गाड़ी प्लेटफार्म के पास आकर रुकी। उसके पीछे दो और गाड़ियां। गाड़ी से एक महिला उतरी—हरे रंग की सिल्क की साड़ी, आंखों पर काला चश्मा, चेहरे पर सख्त भाव। वह थीं डीएम शालिनी वर्मा। उनके साथ सुरक्षाकर्मी थे। उनका चलना तेज था, अफसरों वाला तेज और चेहरे पर एक ठंडा घमंड।

शालिनी सीधे आगे बढ़ती रही। रेहड़ी के पीछे खड़ा रमाकांत उन्हें देखता रह गया। कुछ पल के लिए उसका हाथ रुक गया। शालिनी ने भी एक बार पीछे मुड़कर देखा। उनकी नजरें रमाकांत से टकराईं। एक पल को जैसे समय थम गया। फिर शालिनी बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई। जैसे उन्होंने रमाकांत को कभी जाना ही ना हो।

रमाकांत वहीं खड़ा रह गया। आसपास खड़े लोग उसकी तरफ देखने लगे। कोई हंस रहा था, कोई आपस में बातें कर रहा था। “अरे, यह समोसे वाला डीएम मैडम का पति है क्या?” “अब मैडम को कहां याद होगा ऐसे आदमी को?” ऐसी बातें सुनकर रमाकांत को बहुत अपमान महसूस हुआ।

3. अपमान और गिरफ्तारी

तभी दो पुलिस वाले वहां आए। एक ने पूछा, “तू ही रमाकांत है?”
रमाकांत ने धीरे से हां कहा।
पुलिस वाले बोले, “चुपचाप चल, तेरे खिलाफ शिकायत आई है। स्टेशन पर बिना इजाजत रेहड़ी लगाना, गंदगी फैलाना और अफसर के सामने हंगामा करना।”

रमाकांत कुछ समझ नहीं पाया। “मैंने कुछ गलत नहीं किया…” लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। पुलिस वाले उसे पकड़ कर थाने ले गए। थाने में उसे जमीन पर बिठा दिया गया। इंस्पेक्टर चिल्लाया, “बड़ा आया डीएम का पति! मैडम ने खुद कहा है, इसे सबक सिखाओ।”

रमाकांत की आंखें हैरानी से फैल गईं। “मैं शालिनी का पति हूं। मैंने क्या किया है?”
बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उसकी पीठ पर डंडा पड़ा। थाने में सब हंसने लगे। “अपनी शक्ल देखी है? तू डीएम का पति, यह तो हद हो गई।”
गालियां, मारपीट और बेइज्जती। रमाकांत चुप था। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं थे। बस एक गहरी चुप्पी थी जिसमें दर्द, अपमान और अंदर ही अंदर जलता हुआ गुस्सा था।

4. अदालत का दरवाजा

अगली सुबह बिना कोई केस दर्ज किए उसे छोड़ दिया गया। रमाकांत सीधा कलेक्टरेट ऑफिस पहुंचा। गेट पर सुरक्षा गार्ड खड़े थे।
“मैं शालिनी से मिलना चाहता हूं। वह मेरी पत्नी है।”
गार्ड हंस पड़े, “फिर आ गया, कल भी तो तुझे समझाया था। यहां मजाक नहीं चलता।”
एक ऑफिसर बाहर आया, रमाकांत की हालत देखी और गुस्से में बोला, “इसे यहां से भगा दो। इसकी हिम्मत तो देखो, कौन शालिनी? कौन पति?”
गार्ड्स ने रमाकांत को गेट से धक्का देकर बाहर निकाल दिया।

लेकिन इस बार रमाकांत चुप नहीं बैठा। उसने एक आरटीआई का फॉर्म भरा—”क्या जिला मजिस्ट्रेट शालिनी वर्मा शादीशुदा हैं? अगर हां, तो उनके पति का नाम क्या है?”
कुछ ही दिनों में यह फाइल शालिनी के ऑफिस पहुंच गई। एक अफसर डरते हुए बोला, “मैडम, यह आरटीआई आई है, जवाब देना होगा।”
शालिनी ने फॉर्म देखा, पढ़ा और गुस्से में आकर फाड़ दिया। “जिसने यह भेजा है, उसे सबक सिखाओ। यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए।”
अफसर बोला, “लेकिन मैडम, कानूनन जरूरी है। जवाब देना पड़ेगा वरना मामला कोर्ट तक जा सकता है।”
शालिनी ने ठंडे स्वर में कहा, “तो जाए कोर्ट में। हम कोई जवाब नहीं देंगे। मीडिया तक बात पहुंचने से पहले इसे दबा दो।”

5. सच्चाई की लड़ाई

रमाकांत ने हार नहीं मानी। एक लोकल पत्रकार ने रमाकांत को खोज निकाला।
कैमरे के सामने रमाकांत ने कहा, “मैं शालिनी का पति हूं। मैंने ही उसे पढ़ाया है। अपनी जमीन गिरवी रखकर उसकी कोचिंग कराई। आज वह डीएम है, लेकिन मुझे पहचानने से इंकार कर रही है।”

यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। स्थानीय चैनलों पर हेडलाइन चली—”क्या समोसे वाला डीएम का पति है? डीएम ने अपने पति को स्टेशन पर नहीं पहचाना।”
अब मामला पुलिस थाने या ऑफिस तक सीमित नहीं रहा, यह लोगों और मीडिया के बीच पहुंच चुका था।

रमाकांत ने जिला कोर्ट में मुकदमा दायर किया। “मैं डीएम शालिनी का पति हूं। मेरे पास सबूत हैं—शादी का प्रमाण पत्र, तस्वीरें, गवाह और दस्तावेज। अगर कोई अफसर इसे झूठ मानता है, तो यह मेरी इज्जत और पहचान का अपमान है।”

कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय की। खबर मीडिया तक पहुंच गई और मामला और बड़ा हो गया। डीएम ऑफिस की इज्जत सवालों में थी। रमाकांत को धमकियां मिलने लगीं। किसी ने उसकी समोसे की रेहड़ी भी तोड़ दी। लेकिन फिर भी उसने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। वह सिर्फ कोर्ट की तारीख का इंतजार करता रहा।

अब उसका चेहरा एक आम आदमी का नहीं था। वह सच और हक की आवाज बन चुका था जो किसी बड़े पद को भी हिला सकता था।

6. अदालत में सच्चाई

पहली सुनवाई का दिन था। कोर्ट में काफी भीड़ थी। शालिनी की ओर से चार वकील आए थे—सूट-बूट में, मोटी फाइलें लेकर।
रमाकांत अकेला था। उसके हाथ में एक पुरानी फाइल, कुछ कागज और शादी की तस्वीरें।

जज ने पूछा, “तुम किस अधिकार से कह रहे हो कि तुम शालिनी वर्मा के पति हो?”
रमाकांत ने चुपचाप जज के सामने अपनी शादी की तस्वीरें रख दीं। फिर दिखाया—शादी का रजिस्ट्रेशन पेपर, गांव के सरपंच का सर्टिफिकेट, और एक चिट्ठी जो शालिनी ने कोचिंग के समय लिखी थी—”रमाकांत, अगर मैं कुछ बन पाई तो वह सिर्फ तुम्हारी वजह से।”

शालिनी के वकीलों ने इन सबूतों को गलत साबित करने की कोशिश की। “यह सब नकली हो सकते हैं। अगर शादी हुई भी थी तो यह आदमी शालिनी का पति नहीं, बस कोई जान-पहचान वाला होगा।”

लेकिन जब कोर्ट ने गवाह बुलाए—गांव का सरपंच, रमाकांत का पुराना स्कूल टीचर, कोचिंग सेंटर का डायरेक्टर—तब धीरे-धीरे सच्चाई सामने आने लगी। सभी ने एक ही बात कही—शालिनी और रमाकांत की शादी सच में हुई थी और पूरा गांव इसका गवाह है। रमाकांत ही वह आदमी है जिसने शालिनी की पढ़ाई के लिए सब कुछ कुर्बान किया था।

जज ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके चेहरे पर हैरानी साफ नजर आई। उन्होंने अगली सुनवाई की तारीख तय की।

7. मीडिया, समाज और अंतिम फैसला

अगली सुनवाई के दिन कोर्ट के बाहर मीडिया की भीड़ थी। जब शालिनी अपनी सरकारी गाड़ी से उतरी, सभी कैमरे उन्हीं की तरफ घूम गए। चेहरे पर टेंशन साफ नजर आ रही थी। दूसरी ओर रमाकांत एक पुरानी शर्ट और घिसी हुई चप्पलों में कोर्ट के अंदर आया। लेकिन अब उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। उसके कदम मजबूत थे।

कोर्ट में जज ने दोनों पक्षों से सवाल पूछे। शालिनी ने फिर वहीं कहा, “मैं रमाकांत को नहीं जानती।”
तभी रमाकांत ने अपनी जेब से एक पुरानी डायरी निकाली। उसमें शालिनी की लिखी चिट्ठी थी—”रमाकांत, मैं आज इंटरव्यू देने जा रही हूं। तूने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है। बस दुआ कर कि मैं पास हो जाऊं।”

कोर्ट में सन्नाटा छा गया। शालिनी की नजरें नीचे झुक गईं। जज ने तुरंत कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने फैसला सुरक्षित रख लिया।

फैसले वाले दिन कोर्ट में भीड़ थी। जज ने फैसला सुनाया—”यह बात सच है कि शालिनी और रमाकांत की शादी हुई थी। शालिनी वर्मा ने जानबूझकर अपने पति की पहचान छिपाई।”

8. इज्जत की वापसी

इस फैसले के बाद शाम को रमाकांत फिर से अपनी पुरानी समोसे की रेहड़ी पर लौट आया। वह पहले की तरह तवे पर समोसे तल रहा था। लेकिन इस बार उसके चेहरे पर दुख या हैरानी नहीं थी। ना कोई गार्ड था, ना कोई सरकारी गाड़ी, ना कोई अफसर। बस वही पुराना तवा, वही रेहड़ी और वही रेलवे प्लेटफार्म।

लेकिन अब फर्क था। अब हर आने-जाने वाला रमाकांत को इज्जत की नजर से देख रहा था। उसी स्टेशन पर एक आदमी धीरे से उसके पास आया—
“रमाकांत भैया, आप जैसे लोग ही सिस्टम से लड़ सकते हैं।”

रमाकांत ने मुस्कुराते हुए एक समोसा थाली में रखा, “गर्म है, ध्यान से खाना।”

9. निष्कर्ष

मित्रों, यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई चाहे जितनी भी दबा दी जाए, एक दिन सामने आ ही जाती है। समाज, सत्ता, पैसे और ओहदे के सामने अगर आप सच के साथ खड़े हैं, तो आपकी आवाज जरूर सुनी जाएगी। रमाकांत की तरह एक आम इंसान भी सिस्टम को हिला सकता है, अगर उसके पास सच्चाई और हिम्मत हो।