करोड़पति लड़का VIP कार से जा रहा था, फुटपाथ पर भीख माँगती मिली प्रेमिका और फिर…

शहर की चौड़ी सड़कों पर शाम का वक्त था। चारों तरफ हॉर्न की आवाजें, भागती गाड़ियां और लाल-हरी बत्ती का शोर। उसी भीड़ में एक काली चमचमाती वीआईपी कार आराम से चल रही थी। उस कार की पिछली सीट पर बैठा था अभिषेक, सूटेड-बूटेड, मोबाइल पर बिजनेस की बात करते हुए मानो इस शहर की हर दौलत उसी की मुट्ठी में हो।

लाल बत्ती पर गाड़ी रुकी तो अचानक खिड़की पर दस्तक हुई। ड्राइवर ने नजर उठाकर देखा और झुंझुलाकर बड़बड़ाया, “फिर यह लोग आ गए।” लेकिन अभिषेक की आंखें ठिठक गईं। सामने खड़ी लड़की के फटे कपड़े, धूल से सना चेहरा और फैले हुए हाथ को देखकर उसकी सांस अटक गई। वो झुक कर गौर से देखने लगा। चेहरा धूप से जला हुआ था, लेकिन आंखों में वही चमक, वही पहचान… और पल भर में उसके होश उड़ गए। यह कोई अजनबी नहीं, बल्कि उसकी पहली मोहब्बत आराध्या थी।

वह लड़की जिसके साथ उसने कॉलेज की गलियों में सपने देखे थे, जिसके साथ हसी-मजाक में भविष्य की तस्वीरें बनाई थीं। वही आज सड़क पर खड़ी होकर अजनबियों से भीख मांग रही थी। अभिषेक के होंठ कांपे, पर आवाज गले से बाहर ना निकल सकी। उसके मन में बरसों पुरानी यादें कौंध गईं। कैसे लाइब्रेरी की गलियों में पहली बार मुलाकात हुई थी, कैसे छोटे-छोटे लम्हों ने दोनों को करीब ला दिया था। और फिर वही प्यार जो उसके परिवार की नफरत की वजह से टूट गया।

“नहीं, यह सपना है। यह आराध्या नहीं हो सकती।” उसने खुद से कहा, लेकिन अगले ही पल जब लड़की ने फटी आवाज में कहा, “साहब, कुछ मदद कर दीजिए। दो दिन से कुछ खाया नहीं,” तो उसकी रूह कांप उठी। वही आवाज, वही लहजा, जिसे सुनकर कभी उसकी दुनिया रोशन हो जाया करती थी।

लाल बत्ती हरी हो चुकी थी। पीछे से गाड़ियां हॉर्न बजा रही थीं। मगर अभिषेक की आंखें वही जमी थीं। उसका दिल चिल्लाना चाहता था, “आराध्या, तुम इस हाल में क्यों?” लेकिन वो पत्थर सा बन गया। कार धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी और आराध्या भीड़ में खो गई।

मगर अभिषेक का मन अब किसी और चीज पर टिकने वाला नहीं था। उसने तय कर लिया, “सच जाने बिना अब मैं चैन से नहीं बैठ सकता।” उसने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी मोड़ो। मुझे पीछे जाना है।” ड्राइवर हैरान था, पर कुछ पूछने की हिम्मत ना जुटा सका।

कुछ मिनटों बाद कार उसी जगह लौटी। लेकिन वहां अब भीड़ बिखर चुकी थी। अभिषेक उतरा और चारों ओर नजरें दौड़ाने लगा। थोड़ी ही दूरी पर उसने उसे देखा। आराध्या जो अब फुटपाथ के किनारे बैठी थी। उसके पास एक छोटा सा कटोरा रखा था और लोग आते-जाते उस पर नजर डालकर निकल जा रहे थे।

अभिषेक के कदम खुद ब खुद उसकी ओर बढ़ने लगे। उसने पास जाकर धीरे से कहा, “आराध्या।” लड़की ने सिर उठाया। आंखों में थकान थी, मगर पहचान की हल्की सी चमक भी थी। वह कुछ पल उसे देखती रही, फिर नजरें झुका लीं। “आप यहां…?” उसके होंठ कांपे।

अभिषेक के गले से शब्द मुश्किल से निकले, “तुम इस हालत में क्यों?” आराध्या ने कटोरे को किनारे कर दिया, मानो किसी अजनबी के सामने अपनी बेबसी छुपाना चाहती हो। वह बोली, “लोग दया से सिक्के डालते हैं। पर किसी की नजरों में खुद को पहचानना और भी मुश्किल होता है।”

यह सुनकर अभिषेक के दिल में सन्नाटा भर गया। उसने याद किया कैसे कभी वही लड़की कैंपस की सबसे होनहार छात्रा थी, जिसकी आंख
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