दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मिला पति… जिसे शराबी बोल छोड़ गई थी तलाकशुदा पत्नी.. फिर..

दिल्ली के स्पेशल ट्रेन की भीड़ के बीच एक लड़की अकेली बैठी थी। अचानक उसकी नजर एक शख्स से टकराई और फिर वही शख्स उसके पीछे-पीछे उसी बोगी में चढ़ गया। लड़की अपनी रिजर्व सीट पर बैठी, पर जैसे ही उसने उस अनजान मुसाफिर को पलट कर देखा, उसकी सांसे थम गई। दिल धक से रह जाता है और अगले ही पल वो फुसफुसाती है, “कुंदन, कौन है यह कुंदन?” क्योंकि सामने कोई अजनबी नहीं बल्कि उसका 8 साल पुराना अतीत खड़ा था। अब सवाल यह था कि क्या यह सफर उन्हें फिर से करीब लाएगा या हमेशा के लिए अलग कर देगा।

दिल्ली स्टेशन की शाम कुछ अलग तरह की थी। हर तरह की आवाजें एक साथ घुली-मिक्स होकर आतीं। रोम-रोम में थकान, किसी के वक्त की पाबंदी, किसी के जाने का उत्साह और किसी के लौट आने का सुकून। ऊंची-ऊंची घोषणाएं, पटरी पार पर साफ सुथरी रोशनी, बैग त्रिपलिंग करते लोग, चाय की गर्म प्यालियों की खुशबू और दूर कहीं पार्सल की थक सब मिलकर प्लेटफार्म को जिंदा रखते थे। पर उसी जिंदा दिल रंग रूप के बीच एक कोना ऐसा भी था जहां वक्त धीमा लग रहा था। प्लेटफार्म नंबर सात की एक पुरानी लोहे की बेंच पर एक लड़की चुपचाप बैठी थी। चेहरा थका हुआ, आंखें थोड़ी सुस्त। हाथ में एक छोटा सा कपड़ा बैग। लोग आते जाते रहे, पर उसकी दुनिया मानो अकेली थी। उसका नाम रेशमी था।

रेशमी ने सुबह ही घर बंद किया था। कुछ भी भारी नहीं। केवल जरूरी कागज, कुछ पुराने कपड़े और एक छोटा सा टिफिन। दिल्ली उसे मिलाजुला शहर लगा। कभी-कभी उम्मीदें पल्लवित कर देता और अक्सर काटती छांट देता। आज वह वाराणसी जाने वाली स्पेशल ट्रेन पकड़ने आई थी। जरूरत नहीं थी किसी बड़े कारण की। ना कोई गंभीर इलाज, ना कोई बड़ा अवसर। बस दोस्त की बुलाहट और दिल का कुछ खाली पाना। वह चाहती थी कि कुछ दिन किसी पुराने दर्द से दूर बीते। कुछ समय खुद के लिए हो, खुद को संभालने की कोशिश।

उसने चारों तरफ देखा। यात्रियों का उतार-चढ़ाव, बच्चों की खनकती हंसी, बुजुर्गों की धीमी चाल, स्टेशन के ठेले पर बिकने वाले समोसे और चाय के घेरे और फिर अपनी सीट पर छुप कर बैठ गई। बार-बार टिकट चेक करना, ट्रेन का प्लेटफार्म नंबर याद करना, बैग का झिप बंद करना, यह छोटे-छोटे काम उसके अकेलेपन का सहारा बन रहे थे।

भीड़ में कहीं एक युवक बार-बार उसी ओर देख रहा था। पहली बार तो नजरें टकराईं और दोनों ने पल भर के लिए एक अजनबी सा आदान प्रदान किया। पर कुछ ही देर बाद वह युवक फिर से घबराकर दूर हट गया। उसके चेहरे पर एक तरह की बेचैनी, जिज्ञासा और पल्लवित कुछ पुरानी यादों के निशान थे। वह युवक कुंदन था। कुंदन की चाल ढाल देखकर कोई कह सकता था कि वह साधारण सा आदमी है। कोई औसत उम्र, आरामदायक पर सादा कपड़े, हाथ में एक छोटा बैग। पर उसकी आंखों में एक संघर्ष सा रंग पड़ता था। शायद कुछ वक्त पहले की उसकी जिंदगी ने उसे बदल दिया था।

वह अक्सर दिल्ली में घूमता, अपने छोटे से व्यवसाय की जिम्मेदारियों में उलझा रहता और लोगों के बीच से गुजरते हुए किसी चीज की तलाश में रहता – नाम ना लेकर भी शायद खोई हुई किसी चीज की। आज उसने जब रेशमी को देखा तो उसके अंदर अजीब सी गर्माहट उठी, ऐसा था मानो कोई पुराना खंड उसे पुकार रहा हो।

घड़ी ने प्लेटफार्म पर आगाह कर दिया। वाराणसी स्पेशल प्लेटफार्म नंबर सात पर आ चुकी है। आवाज की झंकार ने जैसे हर किसी के धड़कन को तेज कर दिया। लोग उठे, घूम कर देखे, बैग उठाकर अपनी सफर तैयारी में लग गए। रेशमी ने गहरी सांस
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